गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

शुभ नव varsh

प्रतिपल उत्कर्ष मिले .....
नव वर्ष और नव्दशक की हार्दिक शुभकामनाये !
आपको जीवन में प्रतिपल उत्कर्ष मिले
सफलताए प्रतिपल और प्रतिवर्ष मिले
आगामी वर्ष आपके लिए खुशिया ही लाये
और यह वर्ष खुशियों की याद बन कर जाये
रंग बिरंगे सुमन खिले आपके ह्रदय आँगन
चन्दन सी खुसबू का हो परिणय मनभावन
गम का कही नाम न हो , नित्य प्रति हर्ष मिले
आपको जीवन में प्रतिपल उत्कर्ष मिले
सूर्य सा हो गौरव आपका , कीर्ति चन्दन सी
स्थान शिखार्तम हो , इच्छा हो वंदन की
हर कदम पे सफलताए मिले , हर राह में रज फूलों की
यही कामना हमारी, विसरित करना बातें कुछ भूलो की
ख़ुशी शांति का पैगाम , यह सन्देश नववर्ष मिले
आपको जीवन में प्रतिपल उत्कर्ष मिले
आपका ही शुभेच्छु मुकेश पाण्डेय "चन्दन"

रविवार, 20 दिसंबर 2009

कोपेनहेगन ; बड़े-बड़ो के चोंचालें....

नमस्कार, दोस्तों
आजकल डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर १९२ देशो का विचार मंथन चल रहा है । हमारे प्रधानमंत्री महोदय भी वहां तशरीफ़ ले गये है । जहाँ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कारन उन्हें ट्राफिक जाम में फसना पड़ा । जैसा की हम सभी जानते है की , दुनिया में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश कार्बन डाय ओक्साईड गैस का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करते है, जिसके कारन जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या सामने आ रही है । मगर ये देश सोचते है की इस समस्या से निपटने का सारा जिम्मा विकासशील देश ही उठाये जो की गलत ही नही बल्कि उनका गैरजिम्मेदारना रवैया दिखलाता है । खैर जैसा की पहले से ही तय लग रहा था की इस सम्मलेन से कोई हल नही निकलने वाला है । वही हो भी रहा है ।
खैर हम सरे देश वासी भी कोई बहुत जागरूक नही है। आज भी हमारे देश में पर्यावरण को लेकर कोई खास जागरूकता नही है। इसकी आगे बहुत ज्यादा जरुरत है। अगर हम जल्द ही चेते नही तो हो सकता है की हमारे देश के नक़्शे से लक्ष्यदीप और अंडमान के कई द्वीप गायब हो जाये ! हमारी जल की बर्बादी का ही नमूना ले लीजिये ॥ बिहार में हर साल बाढ़ आती है तो देश के कई हिस्से पानी को तरसते है। आज ही गाँव में खाना पकाने के कल लिए लकड़ी को जलाया जा रहा है, जबकि देश में जंगल तेजी से ख़त्म हो रहे है । सडको के प्रदुषण का तो हाल आप जानते ही है । खैर खतरे की घंटी बज रही है हम नही जागे तो फिर हो सकता है ,की हमें फिर जागने की नौबत ही न आये (तब तक बहुत देर हो चुकी होगी )
अब बरी है पुछल्ले की ......
अपने जवाहर सिंह झल्लू जो की बहुत प्रतिभाशाली है , उनसे पत्रकारों ने दुनिया में तेजी से बढ़ रही कार्बन डाय ओक्साइड की मात्र कम करने का सुझाव पूछा तो झल्लू जी ने कहा -" सरे पेड़ो को कटवा दो साले सभी पूरी रात कार्बन डे ओक्साइड का उत्सर्जन करते है ।
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

किन्नरों की एतिहासिक गाथा !!

नमस्कार , मित्रो
जबसे मेरे शहर की महापौर किन्नर कमला बुआ बनी है , मैंने सोचा क्यों न इतिहास का छात्र होने के नाते आप सभी को इतिहास में किन्नरों की कुछ गाथाये सुना दू । सबसे पहले किन्न्नारो के बारे में जानकारी रामायण काल में प्राप्त होती है । जब भगवन श्री राम बनवास के लिए जा रहे थे तो उन्हें छोड़ने आये अयोध्या वासियो से उन्होंने कहा- सभी नर- नारी अब वापिस चले जाये ! तो सभी नर- नारी तो चले गये मगर किन्नर खड़े रह गये ! भगवन राम के कारन पूओछ्ने पर किन्नरों ने कहा , प्रभु आपने नर-नारियो को जाने को खा था , मगर हम तो न नर है न नारी , इसलिए हम गये नहीं। तब भगवन ने उन्हें आशीष दिया - " जाओ तुम लोग कलयुग में राज करोगे " (शायद इसीलिए शुरुआत मध्य प्रदेश से हुई है ?!)
महाभारत काल में पांडव अज्ञात वास में जब विरत नरेश के यहाँ गुप्त रूप में रह रहे थे तो अर्जुन ब्रहंल्ला नमक किन्नर बने थे , जो स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी का श्राप था ! आगे महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह की मृत्यु का कारन बना शिखंडी भी किन्नर था ।
मध्यकालीन इतिहास में सल्तनत युग में प्रसिद्द सुलतान अलाउदीन खिलजी के दक्षिण अभियान का सफल नेतृत्व मालिक काफूर नामक हिजड़े ने किया था । उत्तर प्रदेश के शहर को जौनपुर को एक हिजड़े शासक ने इतना सुन्दर बनाया की इसे पूर्व का शीराज खा जाने लगा था । उत्तरवर्ती मुग़ल शासक जहांदार शाह भी एक किन्नर के प्रेम जाल में गिरफ्त था !
आगे भी कुछ इल्चास्प कहानिया है किन्नरों की बहादुरी की मगर फिर कभी ........
अब बारी पुछल्ले की
अपने जवाहर सिंह "झल्लू " एक बार चुपके से स्वर्ग में घुस रहे थे , की तभी स्वर्ग के पहरेदारों ने उन्हें देख लिया। झल्लू जी को पकड़ कर बहुत मारा ।
झल्लू जी झल्ल्ला गये और बोले सालों तुम्हारी इन्ही हरकतों के कारन कोई स्वर्ग नही आना चाहता !!! :-)

मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

न जीता कमल, न जीता पंजा! वाह रे मतदाता जीत गया छक्का !!!!

जी हाँ दोस्तों , शीर्षक सही है और मेरी मानसिक स्थिति भी अभी ठीक है। मध्य प्रदेश के सागर शहर के मतदाताओ ने महापौर (meyar) के पद के लिए एक किन्नर "कमला बुआ " को रिकॉर्ड मतों से जीताया है .जी हाँ मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार और केंद्र में कांग्रेस की सर्कार होने के बाद भी लोगो ने एक निर्दलीय किन्नर को भरी मतों से जिताया है । ये हाल है की , भाजपा की कमजोर स्थिति देख कर खुद मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को आना पड़ा मगर उनकी अपील भी मतदाताओ को लुभा नही पाई । मुख्यमंत्री ने कहा था की अगर यहाँ से यदि भाजपा प्रत्याशी जीतती है , तो वे सागर को विशेष पैकेज देंगे । मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी सागर को केंद्र सरकार से भारी अनुदान और सहायता राशि दिलाने का वादा भी कांग्रेस को तीसरे नंबर पर जाने से नही रोक पाया । गनीमत है की कांग्रेस की जमानत बच गयी। मतदान के दिन सभी मतदाता खुलकर कह रहे थे की मेरी वोट चाभी (कमला बुआ का चुनावचिंह) को गया है ।
अब प्रश्न ये उठता है की ,
आखिर मतदाता ने क्यों एक किन्नर को चुना ?
क्या कमला बुआ इतनी लोक प्रिय थी ?
क्या भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी कमजोर थे ?
या फिर जनता कुछ नया चाहती थी ?
क्या लोग भाजपा के नगर निगम में लगाक्तार दस सालो के कार्यकाल से नाखुश थी ?
सबसे पहले मेरे ख्याल से जनता ने कमला बुआ किन्नर को इसलिए चुना की, वो इसके माध्यम से इन दोनों पार्टियों को ये सन्देश देना चाहती है की वो अपनी नपुंसकता को त्यागे ! अपनी जेबे तो भरे मगर विकास का भी ध्यान रखे ! ऐसा नही है की इतिहास में सिर्फ सागर से ही कोई किन्नर जीता हो , इससे पहले मध्य प्रदेश में ही कटनी से महापौर कमला मौसी और सुहागपुर से शबनम मौसी (शबनम मौसी के ऊपर इसी नाम से फिल्म भी बन चुकी है , जिसमे शमनं मौसी की भूमिका सागर के ही आशुतोष राणा ने निभाई थी )विधायक बन चुकी है । मगर इन दोनों की कोई उल्लेखनीय भूमिका नही रही .कमला मौसी कत्निमे कुछ खास नही कर पाई , शबनम मौसी ने कांग्रेस के विधायक को विधान सभा में चप्पल मारी !
मगर सागर में कमला बुआ की स्थिति जरा दूसरी है। कमला बुआ पहले से ही समाजसेविका रही है । इन्होने स्वयं अपने खर्चे से कई गरीब लड़कियों की शादी धूमधाम से कराइ है । विकलांगो की न केवल सहायता की है बल्कि उनके अधिकारों के लिए राष्ट्रिय विकलांग पार्टी का गठन किया। दैनिक भास्कर द्वारा किये गये एक टॉक शो में कमला बुआ ने जनता के गंभीर सवालो ने सटीक जवाब दिए जबकि दोनों पार्टी के उम्मीदवार हिचकिचा गये थे।
खैर आज के दिन सागर में लोग जश्न और ख़ुशी मना रहे है । दोहरी ख़ुशी ! भारत अपना पहला मैच श्री लंका से संघर्ष पूर्ण मुकाबले में जीता , और महपौर के चुनाव में कमला बुआ जीती। दोनों मुकाबले में रिकॉर्ड बने (एक में रनों का , दुसरे में मतों का ) दोनों में छक्को की भूमिका महत्वपूर्ण रही !
खैर इश्वर से दुआ है की किन्नर राजनीति में आये , मगर हमारे नेतायो विकास कर के दिखा दे की इश्वर ने भले उन्हें परपक्वता नही दी है , मगर असल में नपुंसक कौन है !
अब बारी है अपने पुछल्ले की
कमला बुआ के कुछ नारे :-
- कमल नही कमला चाहिय, पंजा नही छक्का चाहिय !
- नकली नही असली चाहिय !
- न भैया से न भाभी से , अब निगम खुलेगा चाभी से !
- जब गूंजेगी कमला की ताल , कंपेगी दिल्ली , हिलेगा भोपाल !
शुक्रिया अपनी टिपण्णी से हमारा उत्साह वर्धन करते रहिये
आपका मुकेश पाण्डेय "चन्दन"

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

उफ़ ! ये नई मुसीबत आ गई .....?

नमस्कार जी,
सबसे पहले सॉरी जी , इतने दिनों जो ब्लॉग जगत से जो गायब रहा । खैर कुछ परेशानिया तो आती ही रहती है। लेकिन आज मैं जो मुसीबत की बात करने वाला हूँ, वो आम नही कुछ खास है। अब अपने सीधे सादे परधन मंत्री जी की मुसीबत बढ़ गयी है, जनाब जिस अमेरिका से परमाणु समझौता करने के लिए उन्होंने अपनी सरकार तक दांव पर लगा दी। उसी अम्रीका के राष्ट्रपति ओबमाओ (ओबामा+माओ)जो शायद दिखने के लिए हनुमान जी की प्रतिमा अपने साथ रखते है, गाँधी जी की फोटू अपने ऑफिस में लगाते है, व्हाईट हाउस में दिवाली मनाते है. और चीन जाकर इंडो-पाक विवाद में चीन का हस्तक्षेप जरुरी मानते है !
खैर, हिंदुस्तान अपने मसले ख़ुद सुलझाने की समझ रखता है , बशर्ते पाक इसके लिए तैयार हो ?!
अब दुनिया दारी छोडो और मेरी एक कविता पढ़िए ......
नवजीवन
अस्त होते-होते सूर्य क्षितिज से बोला - कि तात
तनिक प्रतीक्षा और कर लेती, ये अंधकारमयी रात
आपके पुत्रो को दिवसभर दिया, ऊर्जा और प्रकाश
अभी मन भरा ही न था कि आपने दे दिया अवकाश
क्षितिज मेघ झरोखा हटाते बोला - कि वत्स
है प्रकृति का नियम यही, है हम-तुम विवश
कल तुम आना , नव ऊर्जा और शक्ति से सम्पूर्ण होके
देना इन्हे नवजीवन , कि विस्मित होके जग देखे
सब लगते निज निज कर्मो से आते ही तुम्हारे
दिवस परिश्रम से थक्के , करते आराम जाते ही तुम्हारे
नियम टूटे या न टूटे, पर मत इनको थकने देना
है आराम भी जरुरी, अब आने दो मधुरिम रैना
नवजीवन लेकर आऊंगा, अब मैं नित्य
क्षितिज से कहते-कहते, अस्त हुआ आदित्य
ये तो हुई कविता जाहिर आपको अच्छी लगी हो , और आप अपनी टिप्पणी भी देंगे ! अब बात करते है , अपने जवाहर सिंह "झल्लू" मतलब पुछल्ले की
एक बार जल्लू जी एक अमेरिकी से मिले । तो अमेरिकी ने कहा कि - मेरे यंहा इतनी स्वतंत्रता है कि आप व्हेइत हाउस के सामने खड़े होकर हमारे प्रेसिडेंट को गाली दे सकते है।
तो जल्लू जी बोले इसमे कौन सी बड़ी बात है , आप हमारे राष्ट्रपति भवन के सामने खड़े होकर भी अपने प्रेसिडेंट को गालियाँ दे सकते है !

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

लता जी ; अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो ?!

नमस्कार,
पिछले दिनों आपने भी ये ख़बर पढ़ी सुनी होगी की लता मंगेशकर जी ने कहा - अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो ! उनकी ये बात हमारे कई जख्म कुदेर गयी , जब लता मंगेशकर जी जिन पर सरे भारत को ही नही वल्कि समूचे विश्व को गर्व है , उनके मुह से ये बात सुन्नी पड़ रही है । मतलब आप समझ सकते है, की देश में बेटियों की क्या हालत है ?
वाह रे मेरे देश तुने अपनी बेटियों को क्यो इस हाल पे छोड़ दिया की उन्हें मजबूरन कहना पड़ रहा है - अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
आज भी हमारे देश बेटियों की हालत बद से बदतर है !
आज भी हमारे घरो में बेटियों को दोयम दर्जे का समझा जाता है !
आज भी हमारी माँ और दादी बेटियों को सलीके से रहने को कहती जबकि बेटा भले ही कैसा घूमे !
आज भी अपने हिस्से से बेटियों को ही कम दिया जाता है !
आज भी बेटियों को अपने सपनो का दम घोटना पड़ता है , क्योंकि भइया का सपना पूरा हो सके !
आज भी बेटिया पैदा होते ही पराया धन समझी जाती है !
आज भी कोई लता, कोई किरण , कोई उषा, कोई आशा, कोई कल्पना ,कोई प्रतिभा बेबस होके कहती है -अगले जनम मोहे बिटियाँ न कीजो ? !
आख़िर क्यों ?????????????????????????
गलती किसकी है ? हमारी और आपकी ही है न ?
चलो अपनी ! galti sudhare !
अब पुछल्ले की बारी .....
जैसा की आप जानते ही है की जवाहर सिंह "झल्लू" एक प्रतिभा शाली वैज्ञानिक है ।
इस बार झाल्लुजी ने नोट छपने की मशीन इजाद कर ली , लगे धडाधड नोट छपने लगे !
लेकिन एक बार गलती से १५ रूपये का नोट छप गया !
झल्लू जी ने सोचा चलो इसे किसी गाँव में चलाया जाए क्योंकि शहर में तो शायद ही कोई इसे लेगा ।
jhallu ji ek kirane ki dukaan pe gye , dukaandaar ko not diya aur kaha- ek gutkha dedo bhai .
dukaan dar ne not liya gutkha dekar bola, abhi khulle lata hoon !
jhallu ji khush !
thodi der baad dukaan dar aaya aur 7-7 ke do not dekar bola lo bhaiya aapke 14 rupye.!
jai raam ji

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

सब गड़बड़ है पर नो प्रोब्लम !!

भइया अब तो हद हो गयी ! नोबल वाले का सठिया गये जो मात्र ०९ माह के कार्यकाल में ओबामा उन्हें शान्ति के मसीहा नजाए आ गये ! हमें तो ठीक ख़ुद ओबामा को भी हैरानी हो गयी , की ससुरा कुछ बहुतै जल्दी नही हो गया !
हमारे राष्ट्रपिता गाँधी जी का पॉँच बार नोबल शान्ति के लिए नामांकन हुआ , पर नोबल समिति वालो को वो इस पुरूस्कार के लायक नही लगे , उनके चेलो तक को नोबल शान्ति मिला (नेल्सन मंडेला, अंग सन सू की , मार्टिन लूथर किंग आदि ) , चलो कोई बात नही पर गाँधी के नये चेले ने ऐसा क्या गुल खिला दिया की नोबल वाले उन पर मोहित हो गये । भइया कुछ गड़बड़ जरुर है !!
सुना था की अपने इहाँ कुछ फिल्मी कलाकार अवार्ड फंक्सन में फिक्सिंग करके अवार्ड ले जाते थे ! मगर दुनिया के सबसे बड़े और निष्पक्ष पाने जाने वाले नोबल में ऐसा होगा ........................
देश के दक्षिणी इलाको में बाढ़ का कहर जारी है, लाखो लोग बेघर हो गये है , हजारो अनाथ , सैकडो काल के गाल में समा गये है। केन्द्र सरकार ने १००० करोड़ रु० की सहायता की घोषणा की है, मेरा आप सभी से करबद्ध निवेदन है की इस संकट की घडी में हमारे बाढ़ पीड़ित भाई बहनों की सहायता जरुर करे , साथ ही साथ अन्य लोगो को भी सहायता करने के लिए प्रेरित करे ।
मेरा मानना है की इस बार दिवाली सादगी से मानकर हम अपने भाई बहनों की सहायता के लिए आराम से पैसे जोड़ सकते है। हाँ इस बार उन लोगो के लिए भी कुछ दिए जरुर जलाये जो इस बार दिवाली नही मन पाएंगे ।
मेरे मन में विश्वास है की आप मेरी बात जरुर मानेंगे । अरे-----रे रे , सॉरी एक बात मैं भूल ही गया की ये मेरी हाफ सेंचुरी यानि पचासवी पोस्ट है ! आज से अपनी पोस्ट में एक न्य आयटम जोड़ रहा हूँ जिसका नाम दिया है मैंने पुछल्ला , इस में अपनी बात के आख़िर में एक गुदगुदाती सी बात कहने की कोशिश करूँगा। अगर पुछल्ला पसंद आए तो सूचित जरुर करे। तो पेश है आज का पुछल्ला
एक नए नवेले वैज्ञानिक (प्रतिभाशाली ) जवाहर सिंह 'झल्लू' ने न्यूटन के गति के तीन नियमो में अपना एक नया चौथा नियम जोड़ा है।
" लूज मोशन कभी भी स्लो मोशन में नही होता है "

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

एक भारतवंशी को नबल पुरूस्कार !! खुश होए या शर्मशार !!!!

नमस्कार , मित्रो
आप सभी लोग मीडिया के किसी न किसी माध्यम से ये जान ही चुके होंगे की भारत वंशी वैज्ञानिक श्री वेंकटरमण रामकृष्णन को राइबोसोम के अध्यनन के लिए रसायन शास्त्र के नोबल पुरूस्कार के लिए चयनित किया गया है । श्री रामकृष्णन जी ने बडोदरा विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर किया है। फ़िर निकल गये विदेश !
अब उनके नोबल मिलने पर जैसा की हर भारतीय को खुशी होनी चाहिय खुशी हुई .मगर मेरे हिसाब से हमें शर्म आणि चाहिए की हम अपने देश के आजाद होने ६० सालो के बाद भी ऐसी परिस्थितिया नही पैदा कर सके की , ऐसी प्रतिभाये अपने ही देश में रहकर अपने देश का नाम ऊँचा कर सके ?१! श्री रामकृष्णन देश के चौथे भारतीय या भारतवंशी वैज्ञानिक है जिन्हें नोबल पुरुस्कार मिला। इन चारो वैज्ञानिको में सिर्फ़ डॉ सी० वी० रामन को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकि तीन (डॉ एस चंद्रशेखर, डॉ हरगोविंद खुराना और अब वी रामकृष्णन ) वैज्ञानिक भारतीय नही भारतवंशी है । आख़िर क्यो इन्हे भारत से बाहर जाना पड़ा ? कभी हमारी सरकारों ने सोचा है ?
हम क्यों नही ऐसी सुविधाए उपलब्ध करा सके ताकि इस प्रतिभा पलायन को रोका जा सके ? क्यों देश आजाद होने के बाद हम किसी भारतीय को नबल पुरूस्कार नही दिला पाए ? क्या हमारे यहाँ प्रतिभाये नही है ? (शायद ऐसा नही है )
एक बार सी वी रमन के भतीजे डॉ एस चंद्रशेखर (दोनों नोबल विजेता ) ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से अपने शोध के लिए सुविधाए जुटाने की बात की थी , मगर नेहरू जी तब ब्भारत के गरीब होने की बात कहकर अपनी असमर्थता जाहिर की थी । परिणामस्वरूप डॉ चंदार्शेखर अमेरिका गये , खगोल विज्ञानं में अपना शोध पुरा किया और नोबल भी जीता । क्या हम इस नोबल को एक भारतवंशी की जगह एक भारतीय के नाम नही कर सकते थे? अगर नेहरू जी की बात मान भी ले की उस वक्त भारत की आर्थक हालत ठीक नही थी । तो आज तो ये स्थिति नही है , भारत विश्व की उभरती ताकत बन रहा है । तब क्यो नही हम शिक्षा , शोध और प्रतिभाओ को बढावा देने वाली योजनाये बनाते है ? क्यों नही हमारे विश्वविद्यालयो में मौलिक पी एचडी होती है
खैर मौका खुशी का है , भले किसी और मुल्क ने हमें ये अवसर दिया हो । हम खुशिया तो मन ही ले , इसके सिवा हमें और आता ही क्या है ? (भारत में सबसे ज्यादा छुट्टियाँ और त्यौहार होते है, यानि साल में सबसे कम काम भी होता है )
डॉ रामकृष्णन को हार्दिक बधाई !
आप सभी को भी आने वाले त्योहारों की शुभकामनाये !
जय जय

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

वाह रे ! राष्ट्रिय नाम देखे कितना करेगा काम !

भारत सरकार ने गंगा की डालफिन को राष्ट्रिय जलजीव घोषित कर दिया है। इसके फहले गंगा को राष्ट्रिय नदी घोषित किया गया था। मगर इस तरह राष्ट्रिय घोषित करने से होगा क्या ? इससे पहले भी सरकार ने मोर को राष्ट्रिय पक्षी , बाघ को राष्ट्रिय पशु घोषित किया , उनके संरक्षण के लिए तमाम योजनाये चलायी । मगर फायदा क्या हुआ ? बाघ दिनों दिन कम हो रहे है , मोर १९४९ की तुलना में आधे ही बचे है । गंगा की तो बात ही क्या करे जबसे राष्ट्रिय नदी शायद ही सरकार ने कोई ध्यान देने वाला काम किया हो ! मुझे तो ये समझ में नही आता की आखिर सरकार राष्ट्रिय शब्द जोड़कर अपनी जबब्दारियो से मुह क्यो मोड़ना चाहती है ? अगर वास्तव में सरकार को इनके लिए कुछ करना है तो सबसे पहले लोगो को जागरूक बनाना होगा । मैंने ख़ुद अपने कालेज के ज़माने मेंनौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य के द्वारा आयोजित वन्यजीव संरक्षण सप्ताह प्रतियोगिताओ में भाग लिया और कई पुरूस्कार भी जीते मगर वह वन अधिकारियो का वन और वन्यजीवों के प्रति रवैया देखकर पता चला क्यो सरकार की ये योजनाये फेल हो जाती है ।
सरकार अगर वाकई इन हमारी प्राकृतिक धरोहरों के प्रति गंभीर है तो उसे सबसे पहले अपने विभागों का नजरिया और कार्य पद्धति बदलनी होगी ।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

गाँधी के बहाने.... दुनिया के तराने

गाँधी के बहाने
दुनिया के तराने
लोग चले भुनाने
कुछ भोले , कुछ सयाने
थरूर- छुट्टी बंद हो !
मोंट-ब्लेक - महंगा पेन हो !
जो अहिंसा के लिए मरा
वो हिंसा की जड़ नोट पे छपा
जब बिग अपना काम हो
तो बनाने गाँधी का नाम हो
हाड़ मांस पे आधी धोती है
वही राजनेताओ की बपौती है
हर शहर में उसके नाम पे सड़के
तीन दिन के लिए हर नेता फडके
अब बेटा सगे बाप को नही पूछता
तो कौन राष्ट्र पिता को पूजता ?
बस दिखाने को कर देते रस्म अदायगी
जाने कब हमें शर्म आएगी ?
जब जिन्दा था वो महात्मा तो अपनों ने ही मार दिया
और हमने तोडके उसके उसपे कितना उपकार किया ?
अब गाँधी, तवा है ! अपनी अपनी रोटी सेंक लो
जब रोटी सिक जाए तो गाँधी को फेंक दो !!
प्रिय मित्रो , मेरा सौभाग्य समझ्यिये की मैं भी गाँधी और शास्त्री की तरह २ अक्तूबर को पैदा हुआ हूँ। मगर आज मुझे बड़ा दुःख होता है की लोग गाँधी को अपने स्वार्थ को साधने के लिए इस्तेमाल कर रहे है ! और शास्त्री जी जैसे महँ नेताओ को तो आजकल अखबार और मीडिया भी अब तबज्जो नही देता । बड़ी शर्म की बात है ! पर क्या करे हम तो मूलतः बे-शर्म है ही ! अगर हमें शर्म आती तो इतहास में हमारे ऊपर इतने लोगो ने शासन किया होता ?
जिनको शर्म आई वो लड़े और मरे हमने कुछ दिन याद किया और फ़िर सकूली किताबो में छपकर बे-शर्म हो गये । दोस्तों माफ़ करना अगर आप की भावनाए आहात हो रही हो तो ....? मैं कुछ सच्चाई बयां कर रहा हूँ । पर क्या करना किसी को कोई पचासक साल पहले कुच्छ लोगो ने लड़-मर कर देश को आजाद कराया ? हम तो बे-शर्म है ही ! अगर आप को कुछ अपने दिल या मन में कुछ महसूस हो रहा हो तो मुझे जरुर बताये
बकौल दुष्यंत कुमार -
तमाशा खड़ा करना मेरा मकसद नही , बस तस्वीर बदलनी चाहिए
जो आग मेरे सीने में है , हर दिल में जलनी चाहिए .........

रविवार, 27 सितंबर 2009

हर घर में रावण छिपा है !!

कितने पुतले जलाओगे, हर घर में रावण छिपा है
कितनी बार आग लगाओगे, हर पग पर तम जाल बिछा है
एक्पुतला जल जाने से, सारा पाप नही मर जाता
पुतले में आग लगाने से , हर नर राम नही बन जाता
जब होगा अहम् , तब तक रावण नही मरेगा
अहम् ब्रम्हास्मि मार्के भी रावण यही कहेगा
स्वार्थ, ईर्ष्या, घृणा, पाप चारो और यही मचा है
कितने पुतले जलाओगे हर घर में रावण छिपा है ।
हर दिन सीता का अपहरण हो रहा है
पुलिस प्रशासन कुम्भकरण सो रहा है
गीध जटायु मूक बनके सब छिपा है
कितने पुतले.................................
आज रावण एक नही , उसके रूप कई है
अन्याय , अत्याचार के बाद भी वह सही है
मारते मारते रावण को आज राम थक जायेंगे
इतने रावण है की कई राम भी न मार पाएंगे
कितने पुतले जलाओगे , हर घर में रावण छिपा है
कितनी बार आग लगाओगे , हर पग पर तम जाल बिछा

मित्रो आप को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाये । जैसा की हम जानते है की विजय दशमी बुराई
पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है । हम भारतीय ढोंग ज्यादा करते है, मतलब हम जो त्यौहार मानते है उनमे सन्देश तो बहुत अच्छे होते है , मगर वो सिर्फ लिखने कहने के लिए ही होते है । उन पर हम अमल करने की कंजूसी करते है । ऐसा क्यों ? हम इतने दोगले क्यों है ? सिर्फ परंपरा निर्वाह के लिए ही हम पर्व-त्यौहार कब तक मानते रहेंगे ?
मेरी ये बातें हो सकता है कुछ लोगो को जरुर बुरी लग सकती है ! मगर मुझे नादाँ समझ कर क्षमा करे क्योंकि सच यही है । जो कड़वा है । आप अपनी प्रतिक्रिया से जरुर अवगत कराये ताकि मुझे पता चल सके की मैं कितना सही और गलत हूँ ।
जय जय .......

बुधवार, 23 सितंबर 2009

ये जननी, ये माता !!

बड़ी तन्यमयता के साथ , सृजनहार कर रहे थे सृजन
इतने में नारद ने पूछा - क्या कर रहे हो भगवन ?
नारद, मैं आज बना रहा हूँ , ब्रम्हांड की अनमोल काया
जिसमे होगा प्यार का सागर , और मेरी माया
या कह सकते हो, की मैं बना रहा हूँ अपना प्रतिरूप
जो देगी सबको छाया, करके सहन जीवन की धूप
वो हंसकर झेलेगी कष्ट, पर फ़िर भी करेगी सृजन
सृजनहार भले ही मैं हूँ , पर वो देगी सबको जीवन
उसके बिना अकल्पनीय होगी , सारी सृष्टि
प्रेम का प्रतीक , होगी उसकी वात्सल्य पूर्ण दृष्टि
आज मैं करके उसका सृजन , अपने को धन्य पाता
मुझसे भी बढ़कर होगी, ये जननी, ये माता !!

जैसा की आप सभी जानते है की आजकल पूरे देश में आदि शक्ति जगत जननी दुर्गा का महापर्व नवरात्री मनाया जा रहा है । इस पर्व में लोग दुर्गा के नारी स्वरुप का पूजन करते है , कन्याओ को देवी मान कर उनकी पूजा करते है । मगर क्या हम सचमुच इस पर्व का औचित्य या मतलब समझ पाए है ? क्या हम झूठ मूठ ही नही देवी के दिखावे के लिए दर्शन प्रदर्शन नही कर रहे है ? क्या बड़ी बड़ी झांकिया और पंडाल सजाने से देवी प्रसन्न हो जायेगी ? क्या नो दिन भूखे रहने से देवी की हम पर कृपा हो जायेगी ?
जब तक इस परम पवित्र देव भूमि भारत वर्ष में कन्या भ्रूण हत्या , दहेज़ के लिए बहुओं की हत्या ,घटता लिंगानुपात , महिलाओ के प्रति बढती हिंसा, अश्लीलता आदि कई अपराध उपस्थित है , तब तक हमारी आराधना निश्फक ही होगी ! ये मेरे अपने विचार है आप भी अपने विचारो से जरूर अवगत कराये ।जय जय ............

सोमवार, 21 सितंबर 2009

कुछ बचपन की यादें, शायद आपके साथ भी ऐसा हुआ हो !

दोस्तों , बचपन बहुत ही निराला होता है । न कोई चिंता , न कोई फिकर बस अपने में मस्त ! मेरी इस बात से आप सभी सहमत होंगे ? हर किसी के बचपन की तरह मेरा बचपन भी बड़ा ही सुंदर रहा । मेरे बचपन की बड़ी प्यारी सी याद आपसे बांटने का जी कर रहा है । मेरा जन्म जरूर बिहार के बक्सर जिले में हुआ मगर चार साल की उम्र के बाद मैं सागर (म०प्र०) में ही खेला कूदा हूँ ।
मैं जिस कसबे में रहता था वहां हर साल कसबे के लोगो के द्वारा दशहरा के समय रामलीला खेली जाती थी । मेरे उम्र के भी कई बच्चे भी रामलीला में भाग लेते थे । मुझे भी राम लीला देखने में मजा आता और उसमे भाग लेने का मन करता था। कई बार कोशिश की मगर कोई फायदा नही हुआ । मुझे किसी पत्र के लायक नही समझा गया । पर अपनी किस्मत भी जोरदार थी , एक जब दशहरा के दिन रावन बध का मंचन होना था । रामलीला का यह प्रसंग देखने दूर दूर के गांवों से लोग आए थे । राम-हनुमान में जोरदारhओ रही थी । मैं रामलीला के प्रबंधक के यहाँ हर दिन की तरह एक आशा के साथ पंहुचा । मगर आज तो गजब हो गया इस विशेष दिन मुझे वानर सेना के एक वानर के रोल के लिए चुना गया। मैं स्वाभाविक रूप से बड़ा खुश !!
अब रामलीला शुरू राम और हनुमान के बीच युद्ध प्रारम्भ :
मैं मुह में लाल रंग पोते हाफपेंट लाल रंग के पहने और पीछे छोटी सी पुँछ लगाये मंच पर जेश्रीराम चिल्लाते हुए आया । मैं मन में सोच रहा था की शायद मेरा मुकाबला महाबली रावन से होगा । अपनी इस उपलब्धि पर मैं इतना खुश था , की शायद रामायण सीरियल के बानर भी इतने न हुए होंगे !
पर ये क्या हो गया !!
मेरे मंच पर आते ही विशालकाय शरीर वाले बड़ी मूछो वाले दुष्ट रावन ने अट्टहास किया -
हीही हां हा हा और मैं छोटा सा बानर कुछ डर सा गया ! फ़िर रावन मेरी तरफ़ लपका ...... मैं डर के मरे मंच के पीछे भगा ........ मगर बलिष्ट दुष्ट रावन ने मुझे पकड़ लिया । सरे दर्शक हस हस के लोट पोत हो रहे थे , मगर मेरी हाफ पेंट गीली हो रही थी !!
.....मैं मम्मी मम्मी चिल्लाया मगर उस दुष्ट को तरस न आया !......उसने मुझे उठाया ......और .......और....... फ़िर उठाकर हनुमान की तरफ़ फेक दिया ....हनुअमान ने लपका ... दर्शको ने जोरदार ताली बजाई । मुझे नानी याद आई ..... हनुमान जी ने भी गुस्सा दिखाया और ..... हाय ! मेरी फूटी किस्मत ........हनुमान जी ने भी मुझे लपक के रावन की ओरफेंका ....... संकट मोचन मेरे लिए संकट दायक हो गये!! ..... फ़िर रावन ने लपका ....फेका ... हनुमान ...लपका ..... फेका.... रावन ...... हनुमान .......रावन ......हनुमान ......रावन ........फ़िर अचानक रावन ने लपकने में ढील की मैं धडाम से नीचे गिरा... ... जान बची तो लाखो पाए !....... मैंने फ़िर आव देखा न तव ........फ़िर ऐसे भगा की सीधे अपने घर जाकर ही रुका !
हूउह अरे भाई साँस तो ले लेने दो ......जेश्रीराम

अब बस आज थक गया हूँ । अभी जब जब दशहरा आता है, या तेलेविसन पर रामायण चलती है तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है !!
तब से मैंने कभी रामलीला नही देखि !
आखिर में बचपन में खेली ज्ञऐ कुछ खेलो की लीने शायद आपने भी ये खेले हो ?
आजकल के होनहार तो कम्पूटर और मोबाईल से ही काम चला लेते है । जे जे ....

1.) मछली जल की रानी है,जीवन उसका पानी है।हाथ लगाओ डर जायेगीबाहर निकालो मर जायेगी।
2.) पोशम्पा भाई पोशम्पा,सौ रुपये की घडी चुराई।अब तो जेल मे जाना पडेगा,जेल की रोटी खानी पडेगी,जेल का पानी पीना पडेगा।थै थैयाप्पा थुशमदारी बाबा खुश।
3.) झूठ बोलना पाप है,नदी किनारे सांप है।काली माई आयेगी,तुमको उठा ले जायेगी।
4.) आज सोमवार है,चूहे को बुखार है।चूहा गया डाक्टर के पास,डाक्टर ने लगायी सुई,चूहा बोला उईईईईई।
5.) आलू-कचालू बेटा कहा गये थे,बन्दर की झोपडी मे सो रहे थे।बन्दर ने लात मारी रो रहे थे,मम्मी ने पैसे दिये हंस रहे थे।
6।) तितली उडी, बस मे चढी।सीट ना मिली,तो रोने लगी।।driver बोला आजा मेरे पास,तितली बोली " हट बदमाश "।
7.) चन्दा मामा दूर के,पूए पकाये भूर के।आप खाएं थाली मे,मुन्ने को दे प्याली में
क्यों आपको भी अपना बचपन याद आया की नही ? सही बताना !

रविवार, 20 सितंबर 2009

मजहब

मजहब सिखाता है , आपस में सब भाई भाई

तो भइया क्यो होती है , मजहब के नाम पे लडाई

क्या मजहब के बन्दों को मजहब का पाठ समझ न आया

क्यों मजहब के नाम पर, इन बन्दों ने खुनी रंग चढाया

इनको मजहब का पाठ पढ़ा दे कोई ज्ञानी

समझा दे इनको खून खून है , नही है पानी

अमन का संदेसा देकर इनको, बंद करवा दे मौत का तमाशा

होता रहा ये सब तो कुछ न बचेगा, न मजहब न खुनी प्यासा

मन्दिर के घंटे चीखे, चिल्लाएं मस्जिद की अजाने

मजहब की लडाई बंद कर दो, ओ मजहबी दीवाने

अपने मंसूबो की खातिर, क्यों करते हो मजहब बदनाम

एक संदेशे नानक ईसा के , एक ही आल्लाताला राम

मित्रो , आप सभी को नवरात्री और ईद की दिल से ढेर शुभकामनाये ।

रविवार, 13 सितंबर 2009

कुर्सी खामोश है !!

अजब सा हो गया है, देश का हाल
सबसे सस्ती कारऔर सबसे महंगी दाल
कहीं बाढ़ से लोग त्रस्त,कहीं पर सूखा
आम इन्सान परेशां खड़ा , नंगा और भूखा
जिन्दगी की साडी मिठास ले महँगी हुई चीनी
बची खुची इज्ज़त भी कुदरत ने छिनी
आंकडो में महंगाई और मुद्रास्फीति घट रही है
हकीकत में क़र्ज़ से किसान की छाती फट रही है
कहीं पानीसे तबाही, कहीं पानी की कमी
पर कुर्सी खामोश है, सलामत जो उसकी जमीं
मित्रो , देश के हालत आपसे छुपे नही है , मगर हमरी खाशी ही कुर्सी को खामोश किए है । आज बढती महंगाई के कारन एक आम आदमी को दाल रोटी भी ढंग से नसीब नही हो पा रही है , आम आदमी की सरकार के मंत्री तो फाइव स्टार होटलों में मजे कर रहे मगर आम आदमी .............?
यही हाल आम आदमी की भाषा हिन्दी का भी है , जिस तरह सत्तानशीं लोगो को आम आदमी की याद चुनावो में आती है , उसी तरह हिन्दी की याद भी सितम्बर के महीने आती है । कल हिन्दी की पुण्यतिथि ओफ्फ्हो क्षमा करना हिन्दी दिवस है । हम क्यों साल के कुछ दिन हिन्दी को कुछ दिन याद कर उसे श्रद्धांजलि देते है ? मैं आप सभी हिन्दी ब्लोगेर्स को नमन करता हूँ , जो हमेशा हिन्दी की लाज बचाए रखते है । उड़नतश्तरी वाले समीर जी तो विशेष रूप से नमन योग्य है जो परदेश में भी हिन्दी की अलख जगाये हुए है । खैर मुझ अज्ञानी से जो भी भूल हुई हो उसे क्षमा करना ! आप सभी को भारत की रास्त्रभाषा दिवस की कोटि कोटि शुभकामनाये ॥
जे हो हिन्दी , हिंदुस्तान की शान

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

भैंस चालीसा

भैंस चालीसा महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी।एम. बनवायो तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी भैंस
मित्रो ये मेरी रचना नही है , इसे किसी मित्र ने ही मुझे ऑरकुट पर स्क्रैप किया था , मुझे लगा की आप सभी को इससे रु-ब-रु करू। कैसी लगी जरुर बताना ।

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

भारत भी बन सकता है , शत प्रतिशत साक्षर !!

आज यानि ८ सितम्बर को विश्व साक्षरता दिवस है । आज का दिन हमें सोचने को मजबूर करता है , की हम क्यो १०० % साक्षर नही है ? यदि केरल को छोड़ दिया जाए तो बाकि राज्यों की स्थिति बहुत अच्छी नही कह जा सकती है । सरकार द्वारा साक्षरता को बढ़ने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड दे मील योजना , प्रोढ़ शिक्षा योजना , राजीव गाँधी साक्षरता मिशन आदि न जाने कितने अभियान चलाये गये , मगर सफलता आशा के अनुरूप नही मिली । मिड दे मील में जहाँ बच्चो को आकर्षित करने के लिए स्कूलों में भोजन की व्यवस्था की गयी , इससे बच्चे स्कूल तो आते है , मगर पढने नही खाना खाने आते है । शिक्षक लोग पढ़ाई की जगह खाना बनवाने की फिकर में लगे रहते है । हमारे देश में सरकारी तौर पर (वास्तव में ) जो व्यक्ति अपना नाम लिखना जानता है , वह साक्षर है । आंकड़े जुटाने के समय जो घालमेल होता है , वो किसी से छुपा नही है । अगर सही तरीके से साक्षरता के आंकडे जुटाए जाए तो देश में ६४.९ % लोग शायद साक्षर न हो । खैर अगर सरकारी आंकडो पर विश्वास कर भी लिया जाए तो भारत में ७५.३ % पुरूष और ५३.७ % महिलाये ही साक्षर है । मगर सच्चाई इससे अलग है । (ये आंकड़े साक्षरता के है , न की शिक्षित लोगो के नही है )
चलिए सरकार की खामिया बहुत है , जब सरे कुएं में भंग हो तो किसे दोष दे ?
अब बात करते है , की भारत १०० % साक्षर कैसे बने ? भारत में सबसे ज्यादा विश्वविद्यालय है । हमारे देश में हर साल लगभग ३३ लाख विद्यार्थी स्नातक होते है । उसके बाद बेरोजगारों की भीड़ में खो जाते है ! (अगर किस्मत या पैसे वाले न हो तो ) मेरे अनुसार हम हर साल स्नातक होने वाले विद्यार्थियो का सही उपयोग साक्षरता को बढ़ने में कर सकते है । स्नातक के पाठ्यक्रम में एक अतिरिक्त विषय जोड़ा जाए , जो सभी के लिए अनिवार्य हो । इस विषय मे सभी chhatro को एक व्यक्ति को साक्षर बनने की jababdari लेनी होगी । shikshako के द्वारा इसका mulyankan किया जाएगा । अन्तिम वर्ष मे mulyankan के aaadhar पर anksoochi मे इसके ank भी जोड़े जाए । इससे हर साल लगभग ३३ लाख लोग साक्षर होंगे । वो भी बिना किसी सरकारी kharch के !
इस vyawstha का ये फायदा होगा की , सरकार का bahumulya पैसा तो bhachega ही sath ही chhatro को uttardyitv की भावना भी utpan होगी ।
maaf कीजिये takniki gadbadi के karan मैं इस lekh को यही samapt करने को मजबूर हूँ ।

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

गणेशोत्सव और कांटा लगा !!

गणेश चतुर्थी के पहले लोग पंडाल सजा रहे थे
लेकिन धार्मिक की जगह, फिल्मी गीत बजा रहे थे
बंगले के पीछे कांटा लगा, बुद्धि विनायक सुन रहे थे
मनो काँटों से बचने के लिए जाल कोई बुन रहे थे
बेरी के नीचे लगा हुआ था, काँटों का अम्बार
लहूलुहान से बैठे गजानन , होके बेबस और लाचार
सोच रहे थे , कब अनंत चतुर्दर्शी आएगी ?
जाने कब बेरी के काँटों से मुक्ति मिल पायेगी ?
मुश्किल हो गया, इस लोक में शान्ति का ठिकाना
नाक में दम कर दिया , और कहते अगले बरस जल्दी आना !
मैं इसी बरस जल्दी जाने की सोच रहा हूँ
अपने फिल्मी भक्तो के लिए अपने आंसू पोछ रहा हूँ
मुझसे बढ़कर , इनके लिए फिल्मे और फिल्मी संसार
फ़िर गणेशोत्सव क्यों मनाते ? करते क्यों मुझ पर उपकार ?
मित्रो , गणेश विसर्जन के साथ गणेशोत्सव समाप्त हो गया , पर दुःख की बात है की लोकमान्य तिलक ने जिस उद्देश्य के साथ इसे शुरू किया उसकी पवित्रतता तो जाने कब की ख़त्म हो गयी है। अब लोग इस परम्परा को बस निभा रहे है ! उनमे वो श्रद्धा और भक्ति की भावना नही बची है । शेष भगवन मालिक है । गणपति बाप्पा मोरिया रे ......

मंगलवार, 1 सितंबर 2009

वाजपेयी का काव्य पाठ और खली पड़ी कुर्सियां !!

नमस्कार मित्रो,
पिछले दिनों १३ औगस्त को डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर (म०प्र०) के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी के जाने माने कवि, राजनयिक और पत्रकार डॉ अशोक वाजपेयी जी का काव्य पाठ aआयोजित किया गया था । पर हाय रे विडम्बना और विश्वविद्यालय प्रशासन की व्यवस्था की इतने नामी कवि का काव्य पाठ और उसकी सूचना तक आम लोगो को नही दी गयी । परिणामस्वरूप कार्यक्रम में जब डॉ वाजपेयी अपने जन्मस्थान में आयोजित इस कार्यक्रम में अपना काव्य पाठ कर रहे थे ,तो विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती हाल में बमुश्किल पचास लोग भी नही थे । अपने जन्म स्थान पर इतने नामी कवि के काव्य पाठ पर दिल रो आया , की विश्वविद्यालय प्रशासन ने अगर सिर्फ़ स्थानीय समाचार पत्रों में छोटी सी ख़बर भी दे दी होती तो डॉ वाजपेयी के हजारो प्रशंशक टूट पड़ते । डॉ वाजपेयी ने कार्यक्रम में अपनी १९ कविताये और सागर (म० प्र० ) शहर के अपने अनुभव सुनाये । पर उनकी आँखों में कही नामी भी नज़र आई कि जिस शहर कि तारीफ वो अपने हर कार्यक्रम में बड़ी शिद्दत के साथ करते है , उस शहर को हर जगह बड़े गर्व के साथ अपना जन्म स्थान बताते है । उस शहर ने उनके साथ इतनी बेरूखी दिखाई । पर मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से डॉ अशोक वाजपेयी जी को ये बताना चाहता हूँ कि बेरूखी सागर वासियो ने नही बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने की , वरना शहर के लोग अब भी आप को अपने शहर का गौरव मानते है । आज भी सागर वासी बड़े फक्र से बताते है , की डॉ अशोक वाजपेयी जी सागर शहर की देन है ।
बड़े शर्म की बात है की प्रशासन की गलतियाँ लोगो को भुगतनी पड़ती है , आज भी मुझ जैसे सैकडो लोगो को इस बात का रंज है , की हम डॉ वाजपेयी जी का काव्यपाठ नही सुन पाए ।
खैर दर्द सहने के लिए है ,मुल्क का आम इंसान
खुशियाँ तो खास लोगो की होती है , शान !
जब दर्द की बात चली है तो , आज आपसे कुछ दर्द और बाँटना चाहता हूँ। घबराइये मत जनाब मैं अपनी निजी समस्याए लेकर नही बैठ रहा हूँ । अमा मियां दुनिया में वैसे क्या कम पिरोब्लम है , जो मैं आपको अपनी पिरोब्लम में उलझाऊ । खामखा मेरी टाइम पास करने की आदत तो है , नही ! पिछली दो पोस्टो से मेरे कुछ पाठक मित्रो ने आदेश किया की जनाब थोडी बड़ी पोस्ट लिखा करो और कुछ फोटो शोतो भी लगाया करो !
अब मैं आपको बताऊ की पहली बात समय आभाव की है । और दूसरी ये की मैं ठहरा नया नया बिलागर !! मुझे अभी भी खुदा कसम अपनी पोस्ट में फोटू लगाना नही आया , एक बार उड़नतश्तरी वाले समीर जी से पूछा था , मगर उनकी बताई बातें मेरे भेजे के ऊपर से निकल गई , इसमे समीर का कोई दोषः नही , मैं ही अल्पबुद्धि जो ठहरा । समीर जी तो बड़े परोपकारी है , मेरी बुद्धि में जरा तकनिकी बातें देर से आती है , इसलिए चाहकर भी मैं अपनी पोस्ट में फोटू नही दे पा रहा हूँ । अगर आप में कोई सज्जन जरा सरल भाषा में मेरी मदद करे तो उसका मैं आभारी रहूँगा । लो मियाँ मुआफ करना मैं नादाँ अपनी ही लेके बैठ गया ।
अभी आज के अखबार में एक अच्छी ख़बर पढने को मिली की , अपने पड़ोसी देश भूटान में स्थानीय चुनावो में उम्मेद्वारो की न केवल लिखित परीक्षा होगी , और उनका मौखिक साक्षात्कार भी होगा जिसमे में उनसे प्रशासनिक, राजनेतिक और सामाजिक सवाल पूछे जायेंगे !
इश्वर से प्राथना कीजिये की हमारे नेताओ को सद्बुद्धि दे ताकि वे भी कोई इसी तरह का कानून बनाये ! अरे भाई जब पाकिस्तान में भी जब चुनाव लड़ने की योग्यता स्नातक है , तो हम यार इतने गये गुजरे नही है ?! खैर अपनी तो हमें मालूम है , नेताओ की खुदा जाने ? क्यो आप ही कुछ बोले ?

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

कभी बाढ़ कभी सूखा , भारत भूखा का भूखा

नमस्कार दोस्तों,
देर के लिए क्षमा चाहता हूँ। दरअसल मैं इन दिनों में बिहार ,बंगाल, उडीसा और आन्ध्र परदेस की सैर पर था । इन राज्यों की सैर में मैंने अतुल्य भारत की असली छवि देखि । जहाँ आंध्र की चमक देखि वही उडीसा की उधासी भी आँखों में आंसू लेन के लिए काफी थी । बिहार में बदलाव की आहात सुनी तो आमार सोनार बांगला भी देखा । चिल्का झील की विराटता देखि विशाखापत्तनम में जीवन में पहली बार सागर दर्शन भी किया । दोस्तों , अभी वरिश का मौसम चल रहा है , लेकिन देश के २५० से ज्यादा जिलो में सूखा फैला है । जमीन में पड़ी दरारों को देख कर किसानो की छाती फट पड़ने को आतुर है , आँखों में पानी हाई मगर आसमान सूना है । ये कहर कम नही था , रही सही कसार महंगाई ने पुरी कर दी । दाल १०० रूपये किलो बिकी तो शक्कर ४० रूपये किलो । देश के कुछ इलाको में पानी इतना गिरा की sailab सब कुछ भा ले gya । बिहार के ३८ में से 26 सूखा grast है तो baaki १२ baadhgrast है । हाँ वरिश पर मेरी कविता "pahli fuhaar " hind yugm के july के padcast kvi sammelan में jarur सुने ।
.podcast.hindyugm.कॉम

रविवार, 16 अगस्त 2009

देशभक्ति से बस इतना नाता है, दीवालों पे लिख देते है दिवाली में पुत जाता है

नमस्कार
तो कल आप सभी ने जम कर स्वतंत्रता दिवस की खुशियाँ मनाई, है न ! मगर आज मैंने जब सड़के और गलियां देखि तो दिल रो उठा । जी हाँ जिस तिरंगे झंडे की शान में कल अखबारों, टी० वी० और रेडियो में कई नगमे , तराने गए जा रहे थे । आज हालत-ऐ-बयाँ कुछ और थी । जी हाँ सडको , नालियो और जाने कहाँ -कहाँ हमारे देश की आन बान और शान तिरंगा पड़ा हुआ था । जी हाँ , कल अभिवावकों ने अपने बच्चो को तिरंगे तो खरीद के ले दिया , मगर उसकी इज्ज़त करना उन्हें नही बताया । उन्हें ये नही बताया की इस तिरंगे की खातिर हमारे देश के लोगो ने कितनी कुर्बानिया दी है। ये हमारे देश का प्रतीक है । हमें इस पर नाज़ होना चाहिए ।
हर साल हम जोर शोर से १५ अगस्त और २६ जनवरी मानते है ,मगर दूसरे दिन नालियो सडको पर हजारो कागज और पोलीथिन के तिरंगे फटे हुए बेकार हालत में मिल जाते है । क्या हम अपने देश की इस आन की रक्षा नही कर सकते है ?
मेरा आप सभी से अनुरोध है की तिरंगे को इस हाल से बचने के लिए आप और हम मिलकर कुछ कदम उठा सकते सकते है । :-
* बच्चो को तिरंगे की अहमियत के बारे में बताये ।
* बच्चो को तिरंगे और स्वंतंत्रता की कहानिया सुनाये ।
* हो सके तो कागज या पोलीथिन की जगह कपड़े का तिरंगा ख़रीदे , जो न केवल ज्यादा दिन चलेगा बल्कि उसका अपमान भी होने की कम सम्भावना है ।
* आप इस बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगो को बताये , की भारतीय राष्ट्र ध्वज के अपमान से सम्बन्धी ध्वज संहिता बनी है । उल्लंघन प्र सजा हो सकती है

शनिवार, 15 अगस्त 2009

न बिजली न पानी , फ़िर भी खुश हम हिन्दुस्तानी !!

जय हो ,
भारत भाग्य बिधाता !!
आप सभीको देश की स्वतंत्रता की ६३ वी वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाये ?!!
भाई सब कह रहे है तो हमने भी कह दिया । ऐसा नही की हमें देश से प्यार नही है , देश के लिए मेरा दिल बेकरार नही है । फ़िर आप सोच रहे होंगे की मैं ऐसा क्या कह रहा हूँ ? अरे भाई इन ६२ सालो में हमने अपने देश के लिए क्या किया है , जो हम आज देश भक्ति का झंडा आज बुलंद किए है । आप कहेंगे की की देश ने बहुत तरक्की कर ली है । अमाँ मिया ये तो सबको मालूम है , मगर ईमानदारी से दिल पर हाथ रख कहिये आप ने अपनी और से देश के लिए क्या किया है ? कभी देश में फैले भ्रस्ताचार के खिलाफ आवाज़ उठाई है , जब आपका कोई स्वार्थ नही था ? कभी किसी अनपढ़ को पढ़कर देश में साक्षरता की दर बढ़ाने में कोई मदद की है ? या कभी किसी को कोई ग़लत काम करते हुए रोका है ,जब वो या उससे पीड़ित आपका कोई pahchan wala नही था ? ऐसे dhero swal खड़े है ? फ़िर इन्हे सोचे और कुछ करे देश के लिए तभी सही azadi का utsav होगा । ये मेरे विचार है vicharo से jarur avgat karaye ।
जय hind

शनिवार, 25 जुलाई 2009

आज भी आधी आबादी संघर्षरत है .

आज सुबह ही पटना (बिहार) पंहुचा । सुबह जब अख़बार देखा तो एक मुख्या ख़बर मुह चिढा रही थी। पटना में पिछले दो दिन में व्यस्तम बाजारों में हुई महिलाओ के साथ की तीन घटनाये सचमुच दिल को झकझोर देने वाली थी । कल पटना के अति व्यस्त बाज़ार एक्सिबिसन रोड में एक युवती को कुछ लोगो ने सरे आम न केवल पीटा ,बल्कि बे-आबरू भी किया । लोग वहन बस तमाशबीन बने देखते रहे। घटनास्थल से गाँधी मैदान थाना मात्र ५०० मीटर की दुरी पर है । पुलिस को भनकतक न लगी काफी देर बाद पुलिस आई । दूसरी ख़बर कदमकुआ क्षेत्र में कुछ महिलाओ ने मात्र एक चोरी के आरोप के चलते एक महिला को सरे आम पीटा बल्कि उसके कपड़े भी फाड़ डाले । यहाँ भी लोग तमाशबीन बने थे । तीसरी घटना थोडी सी अलग है , पटना में ही एक महिला ने अपनी बेटी को छेड़ रहे युवक को न केवल पीटा बल्कि उसको कलर पकड़ कर घसीटते हुए

ये तीनो खबरें दिल को आहात करने वाली है । एक और जहाँ देश में महिलाये नित नये प्रतिमान रच रही है वही इस तरह की घटनाये दिल को आहत करती है । ये ख़बर उसी बिहार की है , जहाँ से भारत की पहली महिला लोक सभा स्पीकर हाल ही में मीरा कुमार जी बनी , बिहार ही भारत का पहला राज्य है जिसने सबसे पहले पंचायती राज में महिलाओ को ५०% आरक्षण दिया।

मित्रो आज भी देश में इस तरह की घटनाये हो रही है , जब देश चाँद को छू रहा है , कब तक ऐसा होता रहेगा ? शायद जब तक हम मूक दर्शक बने रहेंगे !

रविवार, 19 जुलाई 2009

वाह वाह नेताजी !!

नमस्कार मित्रो ,
हमारे देश के नेताओ के बारे में कहने को जी नही करता है, पूछे क्यो अरे भाई कुछ अच्छा करे तो लिखे , अब उनकी करनी पर लानत भेजने से कुछ होने वाला तो है नही । खैर आज नारद मुनि जी ने प्रेरित किया तो लिखने बैठ ही गये । हमारे नेता लोग जितना सरकारी धन का दुरूपयोग करते है , उतना दुनिया में शायद ही कही होता होगा। गलती पूरी उन्ही की नही है , हम ही तो उन्हें चुन के भेजते है । अब जब ग़लत लोगो को चुनेगे तो काम भी तो गलत ही करेंगे वो । अब जरा कुछ हमारे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के छेदों पर गौर फरमाए ।
*हमारे यहाँ चुनाव लड़ने की कोई योग्यता निर्धारित नही है , जबकि बिना स्नातक किए कोई पाकिस्तान में चुनाव नही लड़ सकता है ।
* हमारे यहाँ चुनाव प्रत्यासियो का चरित्र का सत्यापन नही किया जाता है, जबकि एक चपरसी की नौकरी लगने पर भी उसका चरित्र सत्यापन जहाँ -जहाँ वो रहा है वहां की पुलिस से करवाया जाता है ।
*आप को किसी प्रत्याशियों को नकारने का कोई प्रावधान नही है।
* हम ख़ुद मतदान के प्रति जबाबदार नही है , मत देना हमर फ़र्ज़ नही है शायद !
और भी कई बातें है मगर आज इतना ही बाकि फ़िर कभी , खैर इन में कुछ सवाल आपके के छुपे है ,उनके जवाब जरुर देना । शुक्रिया नारद जी

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

ब्लोगिंग आख़िर एक फुरसतिया काम है !!.......जवाब दो

ब्लोस्कर दोस्तों,
मेरे एक मित्र है ,जो इंटरनेट के भी अच्छे जान कार है । बहुत दिनों बाद उनसे मुलाकात हुई तो हाल चाल जानने की ओपचारिकता के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि भाई आजकल क्या चल रहा है ? मैंने भी ये जानते हुए कि वो इंटरनेट के जानकार है , इसलिए कहा कि आजकल ब्लोगिंग कर रहे है। लेकिन ये क्या ब्लोगिंग की सुनकर वो उल्टे मुझ पर भड़क उठे ! अरे ब्लोगिंग तो उन लोगो का काम है जिन्हें कोई काम नही होता,और उन्हें छपत की बिमारी होती है । मैंने कहा ऐसी बात नही है, आजकल ब्लोगिंग में बहुत अच्छा साहित्य और पत्रकारिता लिखी जा रही है । फ़िर जनाब जरा ऊँचे स्वर में बोले- अरे छोडो ये ब्लोगिंग वाले क्या जाने साहित्य लिखना और पत्रकारिता करना । जिनकी रचनाये किसी पत्र-पत्रिका में नही छपी तो वो ब्लॉग पर अपनी रचना पोस्ट कर साहित्यकार हो गया, जिन्हें किसी सनचार पत्र या न्यूज़ चेनल वालो ने किसी काम का नही समझा वो ब्लॉग पर पत्रकार बन गया। मैं खूब समझता हूँ इन ब्लोगेर्स को दो चार लेने लिख कर अपने आप को जाने क्या समझते है । एक तो इन्हे पढता ही कौन है ? सरे ब्लोगेर्स एक-दुसरे की रचनाओ पर झूठी टिप्पणिया देते है , वो इसलिए ताकि ताकि कोई उनके ब्लॉग पर आकर अपनी तारीफ के जवाब में एक अच्छी सी टिप्पणी कर जाए। बस सरे फुर्सतियो की फौज है ब्लोगिंग । हुंह कोई काम नही तो ब्लोगेर बन जाओ । तुम भी किस चक्कर में पड़े हो , अपने काम में मन लगाओ ।
रही बात तुम्हारी कविताओ और अभिव्यक्ति की तो छोडो भी , क्या रखा है हिन्दी साहित्य में ?
प्रेमचंद भी भूख से मर गए ! क्या दिया उन्हें हमने जिन्दा रहते हुए ? जिन्दगी मर दूसरो की पीड़ा लिखते रहे पर कभी उनकी पीड़ा को कोई समझा ?
लिखना है तो dear english में likho कहाँ हिन्दी के चक्कर में हो एक पैसे का munafa नही होने wala ।
चूँकि we मुझसे umra में बड़े थे , इसलिए उनसे कुछ नही कह paya पर मन में बहुत baicheni हो रही थी । सोचा aapse ही अपनी पीड़ा bant loo !

बुधवार, 15 जुलाई 2009

चुपके-चुपके भाग -१

चुपके-चुपके-१
गली से गुजरा तुम्हारी, मैं एक शाम चुपके-चुपके
दिल को बैचैन कर गई, तुम्हारी मुस्कान चुपके-चुपके
तुम्हारी मुस्कुराहटों ने घायल कर दिया, इस संगदिल को
बना लो हमे अपना सनम , होगा तुम्हारा एहसान चुपके-चुपके
कब तुम ओगी, है इंतजार इस दिल-ऐ-महफ़िल को
पलके बिछाए खड़े है हम, बन जाओ मेरे मेहमान चुपके-चुपके
आंखे थकने न पाए ,कुछ तो तरस आए मेरी मंजिल को
बता दो कि कब पुरा करोगी , मेरा ये अरमान चुपके-चुपके
राह-ऐ-मोहब्बत के सफर में बन जाओ हमसफ़र तुम
बनके हमदम ,हम दे देंगे तुम्हारी खातिर जान चुपके-चुपके
जिन्दगी में मेरी आकर दे देना एक डगर तुम
बाकि न रहेगा कुछ जिन्दगी में ,होगा एक मुकाम चुपके-चुपके
हालत क्या है हमारे, डाल देना एक नज़र तुम
इंतज़ार तेरी खुशबू का इस "चंदन" को, महकेगा सारा जहाँ चुपके-चुपके
इस रचन में आपने एक लड़के की ख्वाहिश और गुजारिश देखि है , मगर उसकी प्रेमिका का जबाब भी उसे बड़े जोरदार तरीके से मिलता है। प्रेमिका का जबाब मैं आपको अगली पोस्ट में इस शर्त में लिखूंगा की ये रचना आपको पसंद आई इसका प्रमाण आपकी टिप्पणियों से जरुर मिलेगा , इसी आशा के साथ आपका हर बार की तरह स्नेहिल मुकेश पाण्डेय "चंदन"

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

छोटू

बड़ी बेपरवाही से, आवाज़ आई , क्यो बे छोटू
बाल मन गिलास धोये, या जूठे बर्तन समेंटू
हर नुक्कड़,हर चौराहे, हर चाय की दूकान पर
बर्तन मांजते, डांट सुनते बाज़ार या मकान पर
ग्राहकों की झिड़की और मालिक की डांट
खाली गिलासों सी जिन्दगी, जूठन में कहाँ ठाठ
हर ढाबे-दूकान में पिसता छोटू का मासूम बचपन
मासूमियत खोयी, बस बचा कप-प्लेट और जूठन
कब तक मिलेंगे ये छोटू, चाय बेचते, कचरा बीनते
आख़िर क्यों ? हम उनका बचपन छीनते
छोड़ के पाठशाला, कब तक बनेंगे जिन्दगी के शिष्य
सोच लो ! ये छोटू ही कल बनेंगे देश का भविष्य
आपका अपना ही मुकेश पाण्डेय "चंदन"

सोमवार, 13 जुलाई 2009

प्रेम मर रहा है !

आज क्षितिज सा हुआ प्यार
बस भ्रम मिलन का बचा संसार
गगन छू रहा है बसुधा को
पर यथार्थ विरह है सर्वदा को
अब बची कहाँ प्रतीक्षा मिलन की
बस क्षुधा ही क्षुधा है तन की
दूषित हो चुकी है हर भावना
कहाँ है पवित्रता की सम्भावना
नही है यहाँ विरह की वेदना
मर चुकी जहाँ प्रेम की संवेदना
प्रिय की कमी नही है जीवन में
कमी है तो प्रेम की हर मन में
प्रेम मर रहा ही कोई सुने पुकार
बस भ्रम मिलन का बचा संसार
आपका अपना मुकेश पाण्डेय "चंदन "

रविवार, 12 जुलाई 2009

गरीब की बेटी

न तन पर है पूरे कपड़े, न खाने को है रोटी
क्योंकि मैं हूँ एक गरीब की बेटी
सारी इच्छाए मेरी अधूरी रह गयी
गरीबी, मेरे सपनो की दूरी बन गयी
मेरे पास भी है, इच्छायों अ अनंत आकाश
मेरे भी है कुस्छ सपने, है कुछ करने की आस
काश, मैं भी किसी बड़े घर में पैदा होती
न तन पर है पूरे कपड़े , न खाने को है रोटी
हर जगह निगाहें, तन को है तरेरती
पर मदद के वक्त, आंखे है फेरती
न जाने क्यों किया, ये अन्याय उसने मेरे साथ
दे दिया जीवन , पर कुछ भी नही है मेंरे हाथ
दुनिया बड़ी जालिम है, न जीने न मरने देती
क्योंकि मैं हूँ एक गरीब की बेटी
आपका ही मुकेश पाण्डेय "चंदन"

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

समलैंगिगता की भयावहता और भविष्य

सभी बुद्धिजीवियो को जय राम जी ,
अरे भाई जब से दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिगता पर अपना निर्णय क्या दिया पुरे देश में हल्ला हो गया , सरे न्यूज़ चैनल , अख़बार बस इसी को लेकर बहस जरी किए है । मुस्लिम संगठनो ने इसे इस्लाम विरोधी बताया तो संघ परिवार इसे भारतीय परम्पर के खिलाफ घोषित कर रहा है । बाबा राम देव भी इसके खिलाफ मोर्चा खोले बैठे है । अब तो सुप्रीम कोर्ट में भी इसके खिलाफ याचिका दायर हो गई है। अब जब चारो तरफ़ इसी का बोल बाला है तो मैंने सोचा क्यों न मैं भी अपनी तुच्छ बुद्धि से कुछ विचार प्रगट करू ।
समलैंगिगता कुछ मानसिक रूप से विकृत लोगो का शौक है। कुछ लोग कहते है कि समलैंगिग लोग जन्मजात ही होते है इसलिए इसे मान्यता देनी चाहिए । मेरे ख्याल से ये प्रक्रिया कुदरती तो बिल्कुल नही है , क्योंकि प्रकृति ने ऐसी कोई व्यवस्था नही की। और तो और जानवर भी इस तरह का व्यवहार नही करते यानि समलैंगिक लोग जानवरों से भी गए गुजरे है ! खैर कुछ लोग ऐसा चाहते है , इसलिए उसे कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए ये कोई तर्क नही है , क्योंकि कुछ लोग तो अपराध और आतंकवाद भी फैलाना चाहते है , तो क्या उन्हें भी कानूनी मान्यता दे दी जानी चाहिए ?
अब जनाब ! सोचिये अगर भविष्य में संलैंगिगता को कानूनी मान्यता मिल गई तो कैसे कैसे नज़ारे होंगे ।
१.एक पिता बड़ी मुश्किल से पैसे जुटा के अपने एकलौते बेटे को पढने किसी बड़े शहर भेजता है। जब बेटा पढ़ाई पुरी कर के वापस लौटता है तो उसके साथ एक लड़का भी आता है , तो पिता पूछता है - बेटा ये तुम्हारा दोस्त है क्या ?
बेटा- नही पिताजी ये आपकी बहू है। मैंने और इसने शादी कर ली है !

२.एक पिता अपनी एकलौती लड़की की शादी के कई सपने संजोये बैठा है। उसने कई जगह रिश्ते तलासने शुरू कर दिए है । एक जगह बात पक्की होती है । अब लड़के वाले लड़की देखने आते है। लड़की ने शादी से इनकार करदिया ! कारन पूछने पर बताया की वो अपनी एक सहेली को प्यार करती है , और उसी से शादी करेगी !!

३.एक आदमी की पत्नी अपने पति से तलाक लेना चाहती है। जब वकील ने तलाक लेने का कारन पूछा तो उसने बताया की उसके पति को उसमे कोई दिलचस्पी नही है , क्योंकि वो समलैंगिक है !

४.लड़कियों को नै परशानी शुरू हो गई , अब उन्हें लड़के न तो देखते है और न ही छेड़ते है ,क्योंकि अब उन्हें अपने पुरूष दोस्तों से ही अपनी इच्छा की पूर्ति हो रही है । हाँ कुछ लड़को ने जरुर अपने पुरूष दोस्तों को आकर्षित करने के लिए सजना संवरना शौर कर दिया है !

५.केन्द्र सरकार सन २०२१ की जनगणना के नतीजो से चिंतित है। क्योंकि देश की आबादी अब बढ़ने की वजाय घट रही है ! देश में परिवार नामक सामाजिक संस्था अब धीरे धीरे लुप्त हो रही है। देश में समलैंगिको की बढती आबादी देश की आबादी घटने की सबसे बड़ा कारन है ।

ये मेरे अपने विचार है , आपका इनसे सहमत होना बिल्कुल जरुरी नही है । मगर अपने विचार भी जरुर प्रस्तुत करे ........आपका ही मुकेश पाण्डेय "चंदन"

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

मोबाईल सस्ते हो गए! अब होंगे ऐसे नज़ारे .......

नमस्कार दोस्तों,
आप ने भी बजट में ये देखा-पढ़ा होगा की मोबाईल सस्ते हो गए है । अब वैसे ही भारत में घर घर मोबाईल नामक बला पहुच गई है .(मोबाईल प्रेमियों से क्षमा ) लेकिन अब नए बजट के अनुसार और मोबाईल सस्ते होने से कुछ नए नज़रो से दो चार होना पड़ सकता है । जैसे -
१.
भिखारी - मेमसाब दो दिन से भूखा हूँ , कुछ खाने को देदो ...
मेमसाब- अभी खाना नही बना है ।
भिखारी- कोई बात नही मेमसाब आप मेरा मोबाईल नंबर ले लीजिये , जब खाना बन जाए तो मिस्ड काल कर देना ।
२.
एक भिखारी मोबाईल पर दुसरे से क्यो भाई हनुमान मन्दिर में ज्यादा भीड़ नही है , यार तू बता मजार पे आज धंदा कैसा चल रहा है।
दूसरा भिखारी यार आज जुम्मा है , मजार पर धंदा मस्त चल रहा है । तू अगर फुर्सत मेंहै तो यहाँ आजा मुझे पैसे गिनने के लिए एक असिस्टेंट की जरुरत है। मंगल को मैं तुम्हारे यहं आ जाऊंगा ।

रविवार, 5 जुलाई 2009

एक अजब मुग़ल बादशाह की गजब कहानी !!

नमस्कार मित्रो,
अपने रोचक इतिहास श्रृंख्ला के तहत मैं फ़िर हाजिर हूँ, आज मैं आपको एक मुग़ल बादशाह की रोचक दास्तान बताना चाहता हूँ। हाँ बही मुग़ल बादशाह जिसमे सबसे पहले बाबर जो अपने दोनों हाथो पर दो सैनिको को लटका के किले की बुर्ज पर दौड़ लगा सकता था । उसका बेटा हुमायूँ जो दर-दर की ठोकरे खता रहा और आख़िर में पुस्कालय की सीढियो से ठोकर खा के गिर के मर गया। मगर हुमायूँ का बेटा अकबर हिंदुस्तान का ही नही सारी दुनिया का महानतम शासको में से एक था। अरे भाई हाँ वही अकबर जिसके दरवार में बीरबल, तानसेन जैसे नवरत्न थे। बिल्कुल सही पहचाना आपने जोधा-अकबर वाला । उसका बेटा जहागीर जिसकी बेगम नूरजहाँ थी , क्या कहा आपने ? अरे भाई अनारकली का इतिहास में कोई जिक्र नही है , वो तो मुग़ल-ऐ-आज़म वाले के० आसिफ की कल्पना थी । जिसके नाम से लाहौर में कब्र और बाज़ार भी है। सलीम का बेटा शाहजहाँ हुआ । जी हाँ अबकी बार आप सही है मुमताज और ताजमहल वाला ही । फ़िर औरंगजेब ने अपने बाप को कैद कर गद्दी हथिया ली।
ओफ्फो ! ये कहाँ एक अजब मुग़ल की कहानी सुनानी थी , मगर मैं तो पुरे खंडन को लेके बैठ गया । माफ़ करना जनाब भूल इन्शानो से ही होती है । हाँ तो अपनी बात शुरू होती है सन १७२१ और १७४८ ई० के बीच क्योंकि यही इन मुग़ल बादशाह का शासन काल था । इनका नाम था मुहम्मद शाह लेकिन इनके रंगीन मिजाज के चलते इतिहासकार इन्हे मुहम्मद शाह रंगीला के नाम से जानते है । तो बादशाह का अधिकांस वक्त अपने हरम में बीतता था । इनका हरम भी मीलो में फैला हुआ था , जब बादशाह हुजुर अपने हरम में तशरीफ़ लेट तो महीनो बाद ही निकलते थे । इनके हरम में पुरुषों को जाने की मनाही थी । हाँ महिलाये और हिजडो को जाने में कोई रोक टोक नही थी । बादशाह हुजुर इतने आशिक मिजाज थे की दिल्ली शहर में अगर को महिला इन्हे पसंद आ जाए तो उसे उठवा के अपने हरम में ले आते थे । इनसे ट्रस्ट हो कर दिल्ली की जनता ने महिलाओ ऐ घर से जाने पर रोक लगा दी , अगर महिलाये बहार जाती भी थी ,तो हिंदू महिलाये लंबा घूंघट और मुस्लिम महिलाये बुरका पहनती थी । दिल्ली के सरे घरो की दीवारे ऊँची कर दी गयी थी ताकि बादशाह या उनके लोग घरो में तक झांक न कर सके । बादशाह को महिलाओ और हिजडो का साथ अधिक पसंद था ।
बादशाह का मन राज काज में बिल्कुल नही लगता था , देश तो अल्लाह के भरोसे था । बचा खुचा काम बादशाह के वजीर और सिपहसालार कर देते थे। मुहम्मद शाह रंगीला के समय ही भारत पर इरान के आक्रमणकारी नादिरशाह का हमला १७३९ में हुआ । नादिरशाह ने दिल्ली को खूब लूटा और बेशकीमती हीरा कोहिनूर लूट के ले गया । बादशाह रोते रह गए । नादिरशाह के सेनापति अहमदशाह अब्दाली ने भी भारत पर कई हमले किए जो १७६१ तक चलते रहे । मुग़ल बादशाह बस हाथ पर हाथ धरे देखते रहे ..................और इस तरह भारत गुलामी की राह पर चल पड़ा।
अब इन मुग़ल बादशाहों पर शर्म या गर्व करना आपके ऊपर छोड़ता हूँ । अगली बार फ़िर कोई इतिहास के पन्नो से नै रोचक कहानी लूँगा तब तक के लिए आपकी प्रतिक्रियाओ के इंतजार में आपका ही
मुकेश पाण्डेय "चंदन "

शनिवार, 4 जुलाई 2009

आंसू बहाता बादल

देख के आज के हालत, आंसू बहाता बादल
सीना छलनी कर धरा का,पानी के कतरे जमाता बादल
खोद-खोद धरती को , सारा पानी बहा दिया
था जो जीवन का आधार, उसे ही ढहा दिया
अब खली रुई के फाहों से बरसने की आशा करते हो
था जब पानी, खूब बहाया, अब प्यासे मरते हो
कभी मैं देख धरा की खुशहाली , खुशी के आंसू बहाता
नही बचा है ,अब उतना पानी, सोच के दिल घबराता
अभी समय है, संभलो, बचा लो जीवन की बूँद
बाद में पछताओगे, मर जाओगे जीवन को ढूंढ
उठो, जागो, कुछ करो, तुम सबको जगाता बादल
देख के आज ke haalaat , आंसू बहाता बादल

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

गाँधी जी के अन्तिम दिन !

प्रिय ब्लोगरिया दोस्तों,
अपने रोचक इतिहास श्रंखला के अर्न्तगत आपको गाँधी जी के अन्तिम दिनों की कुछ ऐसी बातो को बताना चाहता हूँ जो सामान्यतः लोगो को नही पता है। गाँधी जी की राष्ट्रिय आन्दोलनों में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की असफलता के बाद भूमिका कम हो गई थी। भले ही आम आदमी के लिए महात्मा जी बहुत बड़े नेता थे , मगर कोंग्रेस के बड़े नेताओ ने उन्हें तवज्जो देना बंद कर दिया था। हाँ वे सार्वजानिक मंचो पर गाँधी जी को आगे रखते थे , क्योंकि लोगो पर उनकी अभी भी मजबूत पकड़ थी। हम कुछ उदाहरणों से इसे समझ सकते है -
१- कांग्रेस के त्रिपुरी सम्मलेन में सुभाष चन्द्र बोस गाँधी जी के समर्थित प्रत्याशी पुत्ताभी सीतारमैया के खिलाफ कांग्रेस के अध्यक्ष पद हेतु खड़े हुए, जबकि वे इससे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष थे।
२- तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड वेवेल ने गाँधी जी को ७५% राजनेता, १०% संत और ५ % चिकित्सक कहा।
३- ब्रिटेन के प्रधान मंत्री बिस्तान चर्चिल ने दूसरे विश्व युद्ध के समय कहा की हम जब सारे विश्व में जीत रहे है तब एक बूढे के सामने हार नही मान सकते है ।
४- शिमला समझौते (1945) के समय गवर्नर जनरल ने भारत के सभी प्रमुख नेताओ को बुलाया मगर गाँधी जी के शिमला में रहते हुए भी नही बुलाया गया। जो उनकी तत्कालीन प्रभाव को दर्शाता है ।
५- हिंद-पाक विभाजन को रोकने के लिए जब गाँधी जी जिन्ना से मिलने गए तो जिन्ना ने कहा की आप किस हैसियत से मुझसे मिलने आए है , आप तो कांग्रस के चवन्निया सदस्य भी नही है ।
६- गाँधी जी जब कांग्रेस के नेताओ से तंग आ गए तो उन्हें मजबूरी में कहना पड़ा की - " मैं देश की बालू से कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोलन खड़ा कर सकता हूँ।
७- देश की आज़ादी के समय जब सारा देश जश्न मना रहा था , तो देश का ये अधनंगा फ़कीर नोआखाली में हिंदू-मुस्लिम दंगो को शांत करने के लिए प्रयास कर रहा था।
इस तरह और भी उधाहरण है की देश के लिए अपना सब कुछ लुटा देने वाला यह अहिंसा का पुजारी कांग्रेस के कुछ महत्वकांक्षी नेताओ की महत्वकांक्षा की भेंट चढ़ गया। खैर आज हम अपने देश के एक महान आत्मा को सिर्फ़ १५ अगस्त, २ अक्तूबर और २६ जनवरी को याद कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है। जबकि जरुरत है हमें उनके सिद्धांतो और जीवनचर्या को अपने जीवन में अपनाने की। आज भी गाँधी उतने ही प्रासंगिक है , जितने तब थे । आइये इस महापुरुष को उसका सही स्थान दिलाये......

मुझे इन्तजार रहेगा आपकी प्रतिक्रियाओ का ...........
आपका अपना ही मुकेश पाण्डेय "चंदन"

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

एक रोचक आन्दोलन

ब्लोग्स्कार,
इतिहास बहुत लोगो को बोर करता है, इसलिए इतिहास का छात्र होने के नाते सोचा की आप लोगो को इतिहास की कुछ रोचक जानकारियो से रु-ब-रु करू । इसी श्रंखला की पहली कड़ी में मैं आपको सविनय अवज्ञा आन्दोलन की कुछ रोचक जानकारियां देना चाहता हूँ। जी हाँ , वही सविनय अवज्ञा आन्दोलन जिसमे गाँधी जी ने दांडी यात्रा करते हुए नमक कानून तोडा था । इस आन्दोलन में गाँधी जी के कहने पर सारे देश में लोगो ने स्वदेशी वस्त्र अपनाना शुरू कर दिया । लेकिन एक रोचक घटना बिहार की छपरा जेल में हुई , वहां कैदियो ने अंग्रेजो द्वारा दिए विदेशी वस्त्रो को पहनने से इनकार कर दिया और निर्णय किया की जब तक उन्हें देशी वस्त्र नही दिए जायेंगे तब तक वे नंगे ही रहेंगे । जी हाँ वे कैदी देशी वस्त्र मिलने तक कई दिनों तक नंगे रहे , जब उन्हें देशी वस्त्र मिले तभी उन्होंने कपड़े पहने । इसे इतिहास में नंगी हड़ताल के नाम से जाना जाता है ।
तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड इर्विन से हुए समझौते के अनुसार गाँधी जी एस -राजपुताना जहाज से द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने लन्दन के लिए रवाना हुए , गाँधी जी अपने साथ एक बकरी ले गये थे, क्योंकि वे गाय और भैंस का दूध न पीने का संकल्प लिए थे । और दूसरी और इसी सम्मलेन में भाग लेने हिंदू महासभा की और से पंडित मदन मोहन मालवीय जी अपने साथ एक बड़े से कलश में गंगा जल और अलग चूल्हा ले गए थे , ताकि वे अपवित्र न हो जाए । इतिहास करो ने इसे शिव की बारात कहा था ।
इस तरह के इतिहास में कई रोचक प्रसंग है , जो सामान्यतः लोगो की जानकारी में नही है , अगर आपकी अच्छी प्रतिक्रियाए मिलती है , तो आगे भी मैं इसी तरह इतिहास के कई रोचक पहलुओ को आपसे रु-ब -रु करता रहूँगा ।
खैर सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने अंग्रेजो की नाक में दम कर दिया था , इसकी गवाही धरसना की महिलायों के साहस से पता चलता है । आज इतना ही बाकि अगली बार के लिए ..............जय जय

सोमवार, 29 जून 2009

पहली फुहार

मन को भिगो गई पहली फुहार
धरती पर बरस पड़ा, बादलों का प्यार
मेघो से न देखि गई, वसुधा की तपन
तर-बतर करके किया जल अर्पण
रिम झिम बूंदों में, मन मयूर सा नाचा
भीगकर सबने, राग मल्हार बांचा
सूनी आंखे भर आई , ख़त्म हुआ इंतजार
मन को भिगो गई पहली फुहार
किसान काका की आँखों में आई चमक
गरजे बादल , जब हुई बिजली की दमक
पानी नही उनके लिए अमृत बरसा
आओ झूमे ,नाचे, मिलके करे जलसा
पर याद रखना , पानी है जीवन का आधार
कल भी ये बरसे , मत जाने दो इसे बेकार
सभी लोगो को मानसून की पहली वारिश मुबारक हो ! दोस्तों इस बार मानसून जरा देर से आया है अगर हम पानी को न सहेजे तो हो सकता है कल मानसून आए ही न ! अतः सभी लोगो से करबद्ध निवेदन है की इस बार पानी को ज्यादा से ज्यादा जमीन में पहुचने की कोशिश करे । चाहे वो रेन वाटर हार्वेस्टिंग हो या कोई अन्य तरीका पर अपनी अगली पीढी के लिए पानी बचाए , जल है तो कल है !
- आपका स्नेहिल मुकेश पाण्डेय "चंदन"

शनिवार, 27 जून 2009

मैं एक आम इन्सान हूँ

मैं एक आम इन्सान हूँ
हर कदम जिन्दगी से परेशान हूँ
जन्म लेता हूँ, गंदे सरकारी अस्पतालों में
या फ़िर अंधेरे कमरों, सूखे खेतो या नालो में
पलता-बढ़ता हूँ , संकरी छोटी गलियों में
खेलता फिरता हूँ , मिटटी-कीचड और नालियों में
ऊँची इमारतो को देख , मैं हैरान हूँ !
मैं एक आम इन्सान हूँ
खंडहर से सरकारी स्कूलों की पढ़ाई
क्लास बनी प्लेग्राउंड, साथियों से होती लडाई
होश सँभालते ही, शुरू होती काम की तलाश
आँखों में सपने, होती कर गुजरने की आस
पर लगता मैं बेरोजगारी की शान हूँ
मैं एक आम इन्सान हूँ
जैसे तैसे मिलती रोजी-रोटी, चलती जीवन की गाड़ी
हर राह पर पिसता देश का ये खिलाड़ी
हर विपदा हमारे लिए होती, देखो जिन्दगी का खेल
हर बार हम होते बर्बाद, करती मौत हमसे ही मेल
बाढ़,सूखा,भूकंप,अकाल का मैं बरबाद हुआ सामान हूँ
मैं एक आम ......
आपका ही मुकेश पाण्डेय "चंदन "

गुरुवार, 25 जून 2009

मील का पत्थर

काफिले गुजरते रहे, मैं खड़ा रहा बनके मील का पत्थर
मंजिल कितनी दूर है, बताता रहा उन्हें जो थे राही-ऐ-सफर
आते थे मुसिर, जाते थे मुसाफिर , हर किसी पे थी मेरी नज़र
गर्मी,बरसात,और ठण्ड आए गए , पर मैं था बेअसर
हर भूले भटके को मैंने बताया , कहाँ है तेरी डगर
थके थे जो, कहा मैंने -मंजिल बाकि है,थामो जिगर
चलते रहो हरदम तुम, गुजर गये न जाने कितने लश्कर
मुसाफिर हो तुम जिन्दगी में, न सोचना यहाँ बनाने की घर
दिन गुजरना है, सबको यहाँ , नही है कोई अमर
गर रुक गए तो रुक जायगी जिन्दगी, चलते रहो ढूंढ के हमसफ़र
एक ही मंजिल पर रह ख़त्म न होगी, ढूंढो मंजिले इधर उधर
रह काँटों की भी मिलेगी तुम्हे, आते रहेंगे तुम पर कहर
मुश्किलों से न डरना , क्योंकि मिलेगा अमृत के पहले ज़हर
काफिले गुजरते रहे , मैं खड़ा रहा बनके.........मील का पत्थर
आपका अपना ही स्नेहिल
मुकेश पाण्डेय "chandan"














बुधवार, 24 जून 2009

अजन्मी की पुकार

सुना है माँ तुम मुझे , जीने के पहले ही मार रही हो
कसूर क्या मेरा लड़की होना , इसलिए नकार रही हो
सच कहती हूँ माँ , आने दो मुझे जीवन में एक बार
न मांगूंगी खेल-खिलौने , न मांगूंगी तुमसे प्यार
रुखी सूखी खाकर पड़ी रहूंगी, मैं एक कोने में
हर बात तुम्हारी मानूंगी , न रखूंगी अधिकार रोने में
न करुँगी जिद तुमसे , जिद से पहले ही क्यों फटकार रही हो
कसू क्या मेरा लड़की होना , इसीलिए नकार रही हो
माँ तुम भी तो लड़की थी, तो समझो मेरा दुःख
न करना मुझे दुलार, फ़िर भी तुम्हे दूंगी सुख
भइया से न लडूंगी , न छिनुंगी उसके खेल खिलौने
मेहनत मैं खूब करुँगी , पुरे करुँगी सपने सलौने
आख़िर क्या मजबूरी है , जो जीने के पहले मार रही हो
कसूर की मेरा लड़की होना , इसीलिए नकार रही हो
कहते है दुनिया वाले , लड़का-लड़की होते है सामान
तो फ़िर क्यों नही देखने देते , मुझे ये प्यारा जहाँ
आने दो एक बार मुझे माँ , फ़िर न तुम पछताओगी
है मुझे विश्वाश माँ, तुम मुझे जरूर बुलाउगी
क्या देख लू मैं सपने , जिसमे तुम मुझे दुलार रही हो
देकर मुझको जनम माँ, तुम मेरा जीवन सवांर रही हो
मेरे प्यारे दोस्तों मेरी ये कविता अब तक की श्रेष्ठतम एवं सर्वाधिक सराही गयी कविताओ में से एक है। इस कविता को लिखते समय मैंने अपने देश में हो रहे भ्रूण हत्याओं से लातार कम हो रही लड़कियों की मार्मिक दशा थी । सचमुच जिस देश में कन्या को देवी मन जाता हो वहां कन्या भ्रूण हत्या वाकई शर्म की बात है । मेरी कविता का उद्देश्य केवल सराहना पाना नही है , बल्कि मैं चाहता हूँ की कोई बदलाव की बयार बहे .................
इस बदलाव में आपका साथअप्र्क्षित है , अपना सहयोग अवश्य दे क्योंकि हम कल भी देख सके
इसी आशा के साथ आपका अपना ही अनुज
- मुकेश पाण्डेय "chandan"

मेरा दर्द

मेरी आँखों में एक छोटा सा समंदर बसा है ।
गम न जाने मेरे सीने के कितने अन्दर बसा है ।
भीड़ में भी रहकर मैं अन्हा अह जाता हूँ ।
कह कर भी दिल की बात न कह पाता हूँ ।
इस मुस्कुराहटो के पीछे न जाने कितने आंसुओं की दास्तान है ।
न जाने कहाँ मेरी मंजिल , न जाने कहाँ मेरा जहाँ है ।
दर्द दिखता नही वरना, मैं दुखों की खान हूँ ।
क्या और भी है ? या अकेला मैं ही ऐसा इंसान हूँ ।
मुस्कुराने से दर्द छिप तो जाता है , मगर मिटता नही है ।
लाख कोशिशों के बाद भी ये दर्द सिमटता नही है ।
सांपो से लिपटे "चंदन " का दर्द कोई समझ पायेगा ?
या यूँ ही ये कुल्हाडियों के वर सहता जाएगा ?
- मुकेश पाण्डेय "चंदन "

गुरुवार, 11 जून 2009

कबीरा खड़ा बाज़ार में ...

नमस्कार,
हिन्दी ब्लॉग की दुनिया के दोस्तों ।
६ जून को पूर्णिमा के दिन यानि कबीर जयंती को सौभाग्य से मैं कबीर के शहर बनारस में था । तब कबीर की खूब यद् आयी , सोचा की अगर आज कबीर होते तो क्या कहते ! बस इसी सोच विचार में कुछ कल्पना का खांका तैयार हुआ जो आपके सामने प्रस्तुत है । इसे मेरी ध्रष्टता ही समझिये की मुझ जैसा नामाकूल कबीर की तरह सोचने का दुस्साहस कर रहा है । इसके लिए क्षमा प्राथी हूँ ।
एक दिन कबीर आज के इस घोर कलयुग में स्वर्ग से उतरे । सबसे पहले वे एक बाज़ार में पहुचे तो उन्होंने देखा की सारे लोग एक दुसरे से बेपरवाह मोबाईल पर अति व्यस्त है । तो कबीर के मुह से निकल पड़ा -
कबीरा खड़ा बाज़ार में देखे कान से चिपका यन्त्र ।
हाय- हेल्लो के पीछे भूल गये राम नाम का मंत्र ।
कुछ दूर चलते चलते कबीर एक शोपिंग मार्केट पहुचे तो वहां अमीर घरो की लड़कियों के कपड़े देख कबीर ने माथा पीट लिया -
कबीरा खड़ा बाज़ार में देखे नंगो की भीड़ ।
ज्यो ज्यो पैसा बढे त्यों त्यों उतरे चीर ।
आगे कबीर बढे तो काफी भीड़ लगी थी , बाद में पता चला की वहां एक बहुत बड़े संत प्रवचन कर रहे थे । कबीर ने कुछ देर जब उनका प्रवचन सुना तो अनायास उनके मुंह से निकल पड़ा -
कबीरा खड़ा बाज़ार में देखे धरम का मेला ।
दोनों हाथ से लूट रहे है मिलके गुरु और चेला ।
कबीर बहुत गुस्से में थे , मगर इस जमाने में कौन उनकी सुनने वाला था ।
कुछ कदम आगे बढ़ने पर कबीर को एक मस्जिद दिखाई दी , कबीर ने वहां कुछ शब्द बुदबुदाये -
कबीरा खड़ा बाज़ार में सुने मस्जिद की अजान ।
रहीम को भूल मुल्ला दे बस फतवा और फरमान ।
कबीर अब तक बहुत परेशां हो चुके थे , उनके अजीबो गरीब पहनावे को देख कुछ आवारा कुत्ते उनके पीछे पड़ गए , मजबूरन कबीर को सर पर पैर रख के भागना पड़ा। आयर में उनके मुंह से निकल पड़ा -
कबीरा खड़ा बाज़ार में अब चलने की सोचो ।
यहाँ सब मतलबी है , अब अपने आंसू पोंछो ।
इस तरह से कबीर को आज के जमाने से बेआबरू होकर रुक्शत हुए ।
आपका अपना मुकेश पाण्डेय "चंदन "

मंगलवार, 12 मई 2009

बिन नौकरी सब सून !!

बिन नौकरी सब सून ॥!!
मैं पढा लिखा बेरोजगार
ढूंढ नौकरी हो गया लाचार
सोचा चलो , करलू भंगवान पर विश्वाश
शायद दिलवा दे कोई नौकरी ख़ास
तन मन से जुट गया करने उनकी तपस्या
दिन गुजरा गुजरी पूर्णिमा , आ गयी अमावस्या
अन्धकार का था घनघोर प्रदर्शन
इतने में प्रकाश चमका दिए भगवन ने दर्शन
बोले - वत्स ! मांग लो अपने मन का वरदान
ज्ञान , भक्ती मांग कार्लो अपना कल्याण
मैंने कहा प्रभु, ज्ञान भक्ती से पेट नही भरता
वह इन्सान, इन्सान नही जो नौकरी नही करता
बिन नौकरी सब सून , आते नही विवाह प्रस्ताव
मैं क्या करू अब आप ही दे कोई सुझाव
प्रभु- चाहे जितना मांग लो ज्ञान और भक्ति
पर इस बेरोजगारी में रोजगार देने की नही है मेरी शक्ति
ये तेरी ही नही मेरी भी परेशानी है
पत्नी कहे - कुछ करते क्यो नही ? क्या बैठे-२ रोटी खानी है
गया जमाना जब बैठे -२ रोटी मिल जाती
बिन नौकरी तो अब पत्नी भी पास नही आती
वत्स !! अगर कही हो नौकरी की भरती
तो अपने साथ लगा देना मेरी भी अर्जी !!

आपका ही मुकेश पांडे 'चंदन'

रविवार, 3 मई 2009

चिकल्लस

चिकल्लस
एक बुजुर्ग एक बच्चे को दुलार रहे थे ।
मेरा चिकल्लस , मेरा चिकल्लस पुकार रहे थे ।
मेरा चिकल्लस सुन मुझे हैरानी हुई ।
बच्चे का नाम चिकल्लस ये कैसी कहानी हुई ।
बुजुर्ग - मेरी बेटी विदेश गयी थी पढने अकेली।
अपनी डिग्री के साथ ले आयी ये पहेली ।
अब उसके साथ साथ ये मेरे लिए भी चिकल्लस बन गया ।
बस इसी तरह इसका नाम चिकल्लस पड़ गया ।
मैंने सोचा अगर बेटियाँ इसी तरह विदेश जायेंगी अकेली ।
और अपने साथ लेके आयेंगी चिकल्लस की पहेली।
तो आगे का ज़माना कुछ और होगा ।
शायद वो चिक्ल्ल्सो का दौर होगा !!

आपका ही मुकेश पांडे ' चंदन '

गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

वह रे मेरे देश ! अपराधी को भी आरक्षण !!

नमस्कार मित्रो,

आज सुबह सुबह जब दैनिक भास्कर पढ़ रहा था , तो अन्दर के पृष्ठ पर एक छोटी सी मगर चौका देने वाली ख़बर पढ़ी। जबलपुर हाई कोर्ट ने एक बलात्कार के आरोपी की १० वर्ष की सजा सिर्फ़ इसलिए कम कर दी क्योंकि आरोपी एक अनपढ़ और अनुसूचित जनजाति का था। गनीमत है की पीड़ित पक्ष सर्वोच्च न्यायलय की शरण में गया। सुप्रीम कौर्ट ने पीड़ित पक्ष को रहत देते हुए आरोपी की सजा बरक़रार राखी है।

धन्य है मेरे देश के लोग जो हर चीज को आरक्षण से जोड़ते है। सोचिये ! अगर अपराधियों को भी आरक्षण मिलने लगा तो देश का क्या हाल होगा ? आरक्षण के मामले को मैं सिर्फ़ इसलिए नही उठा रहा हूँ क्योंकि मैं सवर्ण या उच्च जाति से सम्बंधित हूँ। मैं आरक्षण के खिलाफ नही हूँ , बस तरीका गलत है। आरक्षण हो मगर जाति के आधार पर नही , बल्कि आर्थिक आधार पर होना चाहिए। इस बात को देश के कई जाने माने लोगो ने भी कहा है। नारायण मूर्ति (infosys) ने तो इस बात का प्रयोग सहित पुरजोर समर्थन किया है। हमारे देश के नेताओ को तो अपने वोट बैंक से मतलब है, मगर हम तो आज समझदार है । हम देख चुके है की आरक्षण के नाम पर एश का कितना नुक्सान हो चुका है । चाहे वो वी० पी० सिंह का मंडल कमंडल हो या अर्जुन सिंह का नया शिगूफा या फ़िर गुर्जरों का आन्दोलन । हमने कितना खोया कितना पाया है ?

अगर आप वंचितों को आरक्षण न देकर समुचित सुविधाए उपलब्ध कराते है तो शायद उन लोगो के साथ- साथ देश का भी भला हो सकता है। देश की आज़ादी के ६ धसक बाद भी दलित, मुस्लिम , आदिवासी पिछडे है ! क्यो नही वे आगे बढ़ पाए ? क्या हम फ़िर से नही सोच सकते की आख़िर कान्हा कमी है? आख़िर हम इस आरक्षण की ग़लत नीति के कारण उच्च जातियों को आरक्षित जातियों का दुश्मन नही बना रहे है ? आख़िर हम प्रतिभाओ का गला नही घोंट रहे है ?

कभी किसी पत्रिका में एक आरक्षण पढ़ी थी --

घोडो और गधो में हो रही थी रेस

अश्व थे आगे ,

गधे भी पीछे भागे ।

इतने में किसी ने लगाम खीची ,

अब गधे थे आगे और घोडे हुए पीछे ,

लगाम खीचने वाला कौन है ?

मेरे देश की संसद मौन है !

आरक्षण ! आरक्षण !!

ज़रा सोचे

आपका अपना ही मुकेश पाण्डेय

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

एल फॉर ...

kअविता: - एल फॉर

एक दिन मैं सड़क से जा रहा था।
मन में कुछ गुनगुना रहा था ।
इतने में एक सरकारी स्कूल मिला।
सोचा , चलो चलाये टाइम पास का सिलसिला
टीचर अंग्रेजी यूँ पढा रहे थे ,
मनो अंग्रेजी की धज्जिया उड़ा रहे थे।
बोले बच्चो होता है एल फॉर लालटेन
ये सुन मैं हो गया बैचैन
मैंने कहा एल फॉर लाइट के ज़माने में लालटेन पढा रहे हो,
क्या कंप्यूटर युग में भी टाईपराइटर चला रहे हो ।
टीचर बोले - एल फॉर लाइट ही नहीं रहेगी तो कंप्यूटर कंहा से चलेगा ?
जब तक होगी विद्धुत कटौती तब तक हर बच्चा एल फॉर लालटेन ही पढेगा ।
मुकेश पांडे "chandan"

अथ श्री जूता पुराण

नाम्सस्कार दोस्तों,
पंडित श्री १००८ मुकेश पांडे जी महराज के श्री मुख से जूता पुराण वाचन आरम्भ होता है।
मतदाता आचार्य श्री चुनाव चिन्तक महराज से पूछते है - महराज ये जूते में ऐसी कौन सी अद्भुत शक्ति है जो इसे इस घोर कलयुग में भी इतना लोकप्रिय बना रही है? इसकी लोकप्रियता तोह बड़े बड़े नेताओ को भी पीछे छोड़ रही है ।
महराज- वत्स ! इस जूते को तुम मामूली मत समझो ये बड़ा ही करामाती है !
मतदाता - वो कैसे ?
महराज- इसकी बहुत पुराणी कथा है प्रिये लोकतंत्र के प्यादे ! ये जूता प्राचीन काल में चरण पादुका कहलाता था । इसी के सहारे अयोध्या के रजा दशरथ के पुत्र भरत ने चौदह वर्ष काटे।
मतदाता- समझा नही प्रभु ?
महराज - भोले भले भारत के शोषित मतदाता, अरे अपने बड़े भाई राम के वन्बस जाने के बाद भरत ने राम की चरण पादुकाओ को राजसिंहासन पर रख कर उनकी पूजा की। और आज इन्ही पादुकाओ से राजनेताओ की पूजा की जा रही है।
मतदाता- प्रभु ! वर्तमान में जूते की गाथा सुनाये ।
महराज - सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े दयनीय प्राणी ! ये जूता बड़ा ही तेज अस्त्र- शास्त्र है।
मतदाता - महराज ! ये अस्त्र शास्त्र क्या होता है , जरा विस्तारित करे ।
महराज - देखो मूढ़मति मतदाता ! अस्त्र - वो हथियार जिसे फेक कर मारा जाए । और शास्त्र वो हथियार जिसका उपयोग हाथ में लेकर किया जाए ।
मतदाता- यानि महराज ये जूता का तो दोनों तरह से इस्तेमाल किया जा सकता ही।
महराज- बिल्कुल सही कहा मेरे मंदबुद्धि मतदाता ! मगर इस आम चुनाव में इसका सिर्फ़ शास्त्र की तरह ही उपयोग हो पाया है ।
आगे आधुनिक कल की कथा सुने: - आधुनिक काल में इसका सर्वप्रथम उपयोग इराक के पत्रकार जैदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति बुश पर किय, फ़िर ब्रिटेन में वह के लोगो ने चीन के प्र० म० इस महा प्रभावी हथियार का प्रयोग किया। भरत में इस का प्रथम प्रोयोग एक पत्रकार ने ही किया। जनरैल सिंह ने ग्र्सः मंत्री चिदम्वरम पे अपना जूता फेका, फ़िर इसके बाद इसके शिकार बने लोगो में नवीन जिंदल , लाल कृष्ण अडवानी , अभिनेता जीतेन्द्र, प्र० म० मनमोहन सिंह आदि आदि
वत्स ये परम्परा बहुत ही घटक है । इसका प्रयोग लोकतंत्र के साथ साथ सभी समाज के लिए भी घातक है । इश्वर हमारे कुकर्मी नेताओ को सद्बुधी दे ताकि उन्हें जूते न मिले।
आईटीआई श्री जूता पुराण समाप्त ..

रविवार, 26 अप्रैल 2009

परिचय ; बुंदेलखंड

दोस्तों ,
बुंदेलखंड एक भाषाई क्षेत्र है । जो दो राज्यों के कुछ जिलो में फैला हुआ है । म० प्र० के सागर , दमोह , छतरपुर, टीकमगढ़ , पन्ना , दतिया, गुना, नरसिंगपुर जिले तो उ० प्र० के झाँसी, ललितपुर , महोबा, उरई , जालौन, आदि जिलों में विस्तृत है । बुंदेलखंड नाम जो प्राकृतिक रूप में एक पत्थर ही लेकिन हम भाषाई बुंदेलखंड की बात कर रहे है वो कुछ भाग विंध्यांचल की खूबसूरत पहाडियों के बीच बसाहुआ है । इन पहाडियों से अनेक छोटी बड़ी नदिया निकलती है । जिनमे प्रनुख रूप से - बेतवा , केन, सोनार, धसान , बीना , बेबस आदि है । बेतवा नदी के किनारे विश्व प्रसिद्द स्थल "ओरछा " स्थित है । ओरछा में रामराजा का मंदिर जगत विख्यात है । कहते है की यंहा जो मूर्ती है वह ओरछा की महरानी अपने सपने के आधार पर खुद अयोध्या से लाई थी । विश्व में सिर्फ यंही भगवान् राम रजा के रूप में पूजे जाते है ।
छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के मंदिर भी विश्वविख्यात है , अपनी अद्भुत शिल्प के लिए विख्यात इन मंदिर समूहों का निर्माण ९ वी सदी से १० वी सदी में चंदेल वंश के राजाओ ने करवाया था। यंहा के मंदिरों की बाहरी दीवारों पर बहुत ही सुन्दर ढंग से सती - पुरुष और देवी देवताओ के कामुक रूप में आकृतियाँ उकेरी गस्यी है । इनका शिल्प देखते ही बँटा है । इन मंदिर समूहों में हिन्दू और जैन धर्मं के मंदिर है । सबसे बड़ा मंदिर कंदरिया महादेव का मंदिर है । ।
ओउद्यिगिक रूप से पिछडे इस क्षेत्र में हाल ही में सागर जिले के बीना जंक्शन के पास आगासौद में तेल रिफानरी लगाई गयी है। सागर में स्थित हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय जो म०प्र० का सबसे पुराना और बड़ा विश्वविद्यालय है , अब केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में परिणित किया गया है । इस विश्वविद्यालय की स्थापना प्रसिद्द वकील , संविधानविद और मनीषी डॉ हरी सिंह गौर ने १८ जुलाई १९४६ में की थी । ये एक ही व्यक्ति के दान से बना विश्वा का एकलौता उद्धरण है । आज ये अपनी शिक्षा के के कारन देश विदेश में विख्यात है । आचार्य रजनीश ओशो , अशोक वाजपेयी जैसे विद्यार्थियों को देने वाला विश्वविद्यालय आज भी अपनी परंपरा को जीवित किये हुए है।
सागर जिले में ही गुप्त कालीन स्थल airan है, जिसने गुप्त वंश की अनेक गुथियो को सुलझाया है। यहाँ मिली वराह प्रतिमा प्राचीन भारतीय इतिहास की अनमोल धरोहर है। airan से hee ५ वी सदी के abhilekh mile है जिनमे satee pratha का ullekh है । ये bahrat में satee prathaa के सबसे purane pramaan है।
mitro iske alawa भी bhut कुछ है है बुंदेलखंड में जो kisi को भी aakarshit कर sake , जैसे janshi की rani । नाम तो sunaa ही hoga haan bhai wahi jise subhadra kumaari chaohaan ने kaha है -
khoob ladi mardni थी, वो झाँसी wali rani थी .

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

प्रचार का तरीका !

दोस्तों,
सलाम नमस्ते ,
एक बार दो पुराने दोस्त एक ही जगह से दो अलग अलग पार्टी से चुनाव लड़े। संता को कांग्रेस ने टिकट दिया और बनता को भाजपा ने । दोनों जम के प्रचार करने लगे । एक दिन दोनों की मुलाकात एक होटल में दोपहर के समय हो गयी। दोनों अपने अपने समर्थको के साथ खाना खाने आए थे । दुआ सलाम के बाद दोनों ने एक दुसरे का हल हल पूछा ।
संता- क्यो भाई कैसे कर रहे हो प्रचार?
बनता- बस भाई कुच्छ खास नही , जैसे इस होटल में खाना खाने आया हूँ तो खाने के बाद होटल के खाने की जम की तारीफ करूँगा फ़िर बिल से ज्यादा पैसा चुकाऊंगा , बेतार को भी ज्यादा टिप दूंगा और आखिर में कहूँगा , भाई वोट भाजपा को देना ।
और तुम किस तरह अपना प्रहार कर रहे हो भाई ?
संता - बस कुछ तुम्हारी ही तरह है । जिसे मैं भी तुम्हारी तरह होटल में खाना खाने जाता हु । खाना खाने के बाद होटल और बेतार दोनों को जम के कोसता हूँ । सौ दो सौ गलिया देता हूँ । फ़िर हाथ जोड़ के कहता हूँ भाई सब वोट भाजपा ही को देना । !!

वाह रे लोकतंत्र ! कितने जूते ! कितने षद्यन्त्र

नमस्कार दोस्तों ,
आजकल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव यानि आम चुनाव की दौर है । परन्तु धन्य है भारत भाग्य बिधाता ! इस चुनाव में कोई मुद्दा ही नही है । कही जूता चल रहा है , तो कही चप्पल ! बड़े बड़े नामधारी नेता अपने विचार की जगह व्यभिच्चार पर तरजीह दे रहे है । बिपक्ष प्रधान मंत्री को कमजोर बता रहा है तो सत्ता पक्ष कंधार मामले के पीछे पड़ा है । कोई किसी के ऊपर रोड रोलर चलवा रहा है तो कोई किसी को पप्पी दे रहा है । अब न तो कोई नारा है और न ही कोई नेता । नारे की बात करे तो एक पार्टी अपने परिवार वाद की जे हो कर रही है । तो दूसरी पार्टी को जूतों की भय हो । मुद्दे तो गायब ही है बस एक दुसरे पर कीहद उछाले जा रहे है । किसी को देश की फिक्र है ही नही । आम चुनाव में आम आदमी तो बस चुनावी पोस्टर में ही बचा है । आम आदमी के मुद्दे तो गायब ही है , कौन ध्यान दे रही महगांई , भ्रष्टाचार , सड़क , पानी , शिक्षा पर ? एक पार्टी ने तो यंहा तक कह दिया अपने घोषणापत्र में की अगर हम सत्ता में आए तो कंप्यूटर , अंग्रेजी शिक्षा पर रोक लगा देंगे । धन्य है भारत माँ के लाल ! अब आपको सोंचना है की आप किसे चुनते है अपने देश के लिए ? मेरा कहना है की आप अपना वोट जरुर दे मगर सोंच समझ कर । शुक्रिया !!

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...