गुरुवार, 11 जून 2009

कबीरा खड़ा बाज़ार में ...

नमस्कार,
हिन्दी ब्लॉग की दुनिया के दोस्तों ।
६ जून को पूर्णिमा के दिन यानि कबीर जयंती को सौभाग्य से मैं कबीर के शहर बनारस में था । तब कबीर की खूब यद् आयी , सोचा की अगर आज कबीर होते तो क्या कहते ! बस इसी सोच विचार में कुछ कल्पना का खांका तैयार हुआ जो आपके सामने प्रस्तुत है । इसे मेरी ध्रष्टता ही समझिये की मुझ जैसा नामाकूल कबीर की तरह सोचने का दुस्साहस कर रहा है । इसके लिए क्षमा प्राथी हूँ ।
एक दिन कबीर आज के इस घोर कलयुग में स्वर्ग से उतरे । सबसे पहले वे एक बाज़ार में पहुचे तो उन्होंने देखा की सारे लोग एक दुसरे से बेपरवाह मोबाईल पर अति व्यस्त है । तो कबीर के मुह से निकल पड़ा -
कबीरा खड़ा बाज़ार में देखे कान से चिपका यन्त्र ।
हाय- हेल्लो के पीछे भूल गये राम नाम का मंत्र ।
कुछ दूर चलते चलते कबीर एक शोपिंग मार्केट पहुचे तो वहां अमीर घरो की लड़कियों के कपड़े देख कबीर ने माथा पीट लिया -
कबीरा खड़ा बाज़ार में देखे नंगो की भीड़ ।
ज्यो ज्यो पैसा बढे त्यों त्यों उतरे चीर ।
आगे कबीर बढे तो काफी भीड़ लगी थी , बाद में पता चला की वहां एक बहुत बड़े संत प्रवचन कर रहे थे । कबीर ने कुछ देर जब उनका प्रवचन सुना तो अनायास उनके मुंह से निकल पड़ा -
कबीरा खड़ा बाज़ार में देखे धरम का मेला ।
दोनों हाथ से लूट रहे है मिलके गुरु और चेला ।
कबीर बहुत गुस्से में थे , मगर इस जमाने में कौन उनकी सुनने वाला था ।
कुछ कदम आगे बढ़ने पर कबीर को एक मस्जिद दिखाई दी , कबीर ने वहां कुछ शब्द बुदबुदाये -
कबीरा खड़ा बाज़ार में सुने मस्जिद की अजान ।
रहीम को भूल मुल्ला दे बस फतवा और फरमान ।
कबीर अब तक बहुत परेशां हो चुके थे , उनके अजीबो गरीब पहनावे को देख कुछ आवारा कुत्ते उनके पीछे पड़ गए , मजबूरन कबीर को सर पर पैर रख के भागना पड़ा। आयर में उनके मुंह से निकल पड़ा -
कबीरा खड़ा बाज़ार में अब चलने की सोचो ।
यहाँ सब मतलबी है , अब अपने आंसू पोंछो ।
इस तरह से कबीर को आज के जमाने से बेआबरू होकर रुक्शत हुए ।
आपका अपना मुकेश पाण्डेय "चंदन "

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...