बुधवार, 24 जून 2009

मेरा दर्द

मेरी आँखों में एक छोटा सा समंदर बसा है ।
गम न जाने मेरे सीने के कितने अन्दर बसा है ।
भीड़ में भी रहकर मैं अन्हा अह जाता हूँ ।
कह कर भी दिल की बात न कह पाता हूँ ।
इस मुस्कुराहटो के पीछे न जाने कितने आंसुओं की दास्तान है ।
न जाने कहाँ मेरी मंजिल , न जाने कहाँ मेरा जहाँ है ।
दर्द दिखता नही वरना, मैं दुखों की खान हूँ ।
क्या और भी है ? या अकेला मैं ही ऐसा इंसान हूँ ।
मुस्कुराने से दर्द छिप तो जाता है , मगर मिटता नही है ।
लाख कोशिशों के बाद भी ये दर्द सिमटता नही है ।
सांपो से लिपटे "चंदन " का दर्द कोई समझ पायेगा ?
या यूँ ही ये कुल्हाडियों के वर सहता जाएगा ?
- मुकेश पाण्डेय "चंदन "

4 टिप्‍पणियां:

  1. sahi darde wyaan hai ........isame khubsoorati bhi hai to dard ke sath............uchit

    जवाब देंहटाएं
  2. waah waah chandanji..............bahut umda !
    yon laga mano shabdon me pran phoonk kar unhen sakshaat khada kar diya ho....
    baat hai...
    aapme baat hai.......
    BADHAAI !

    जवाब देंहटाएं
  3. मुकेश जी,

    चंदन ने भले ही कितने ही भुजंग देखों हो लिपटे हुये पर उसने कभी संगत नही की। कहा भी है ना " जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकै कुसंग, चंदन विष व्यापै नही लिपटत रहे भुजंग "

    यह समेटा हुआ दर्द जब कविता बन कर बहता है तो शीतलता प्रदान करता है, ऐसे ही रचना का झरना बहने दीजिये।

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...