रविवार, 27 सितंबर 2009

हर घर में रावण छिपा है !!

कितने पुतले जलाओगे, हर घर में रावण छिपा है
कितनी बार आग लगाओगे, हर पग पर तम जाल बिछा है
एक्पुतला जल जाने से, सारा पाप नही मर जाता
पुतले में आग लगाने से , हर नर राम नही बन जाता
जब होगा अहम् , तब तक रावण नही मरेगा
अहम् ब्रम्हास्मि मार्के भी रावण यही कहेगा
स्वार्थ, ईर्ष्या, घृणा, पाप चारो और यही मचा है
कितने पुतले जलाओगे हर घर में रावण छिपा है ।
हर दिन सीता का अपहरण हो रहा है
पुलिस प्रशासन कुम्भकरण सो रहा है
गीध जटायु मूक बनके सब छिपा है
कितने पुतले.................................
आज रावण एक नही , उसके रूप कई है
अन्याय , अत्याचार के बाद भी वह सही है
मारते मारते रावण को आज राम थक जायेंगे
इतने रावण है की कई राम भी न मार पाएंगे
कितने पुतले जलाओगे , हर घर में रावण छिपा है
कितनी बार आग लगाओगे , हर पग पर तम जाल बिछा

मित्रो आप को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाये । जैसा की हम जानते है की विजय दशमी बुराई
पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है । हम भारतीय ढोंग ज्यादा करते है, मतलब हम जो त्यौहार मानते है उनमे सन्देश तो बहुत अच्छे होते है , मगर वो सिर्फ लिखने कहने के लिए ही होते है । उन पर हम अमल करने की कंजूसी करते है । ऐसा क्यों ? हम इतने दोगले क्यों है ? सिर्फ परंपरा निर्वाह के लिए ही हम पर्व-त्यौहार कब तक मानते रहेंगे ?
मेरी ये बातें हो सकता है कुछ लोगो को जरुर बुरी लग सकती है ! मगर मुझे नादाँ समझ कर क्षमा करे क्योंकि सच यही है । जो कड़वा है । आप अपनी प्रतिक्रिया से जरुर अवगत कराये ताकि मुझे पता चल सके की मैं कितना सही और गलत हूँ ।
जय जय .......

बुधवार, 23 सितंबर 2009

ये जननी, ये माता !!

बड़ी तन्यमयता के साथ , सृजनहार कर रहे थे सृजन
इतने में नारद ने पूछा - क्या कर रहे हो भगवन ?
नारद, मैं आज बना रहा हूँ , ब्रम्हांड की अनमोल काया
जिसमे होगा प्यार का सागर , और मेरी माया
या कह सकते हो, की मैं बना रहा हूँ अपना प्रतिरूप
जो देगी सबको छाया, करके सहन जीवन की धूप
वो हंसकर झेलेगी कष्ट, पर फ़िर भी करेगी सृजन
सृजनहार भले ही मैं हूँ , पर वो देगी सबको जीवन
उसके बिना अकल्पनीय होगी , सारी सृष्टि
प्रेम का प्रतीक , होगी उसकी वात्सल्य पूर्ण दृष्टि
आज मैं करके उसका सृजन , अपने को धन्य पाता
मुझसे भी बढ़कर होगी, ये जननी, ये माता !!

जैसा की आप सभी जानते है की आजकल पूरे देश में आदि शक्ति जगत जननी दुर्गा का महापर्व नवरात्री मनाया जा रहा है । इस पर्व में लोग दुर्गा के नारी स्वरुप का पूजन करते है , कन्याओ को देवी मान कर उनकी पूजा करते है । मगर क्या हम सचमुच इस पर्व का औचित्य या मतलब समझ पाए है ? क्या हम झूठ मूठ ही नही देवी के दिखावे के लिए दर्शन प्रदर्शन नही कर रहे है ? क्या बड़ी बड़ी झांकिया और पंडाल सजाने से देवी प्रसन्न हो जायेगी ? क्या नो दिन भूखे रहने से देवी की हम पर कृपा हो जायेगी ?
जब तक इस परम पवित्र देव भूमि भारत वर्ष में कन्या भ्रूण हत्या , दहेज़ के लिए बहुओं की हत्या ,घटता लिंगानुपात , महिलाओ के प्रति बढती हिंसा, अश्लीलता आदि कई अपराध उपस्थित है , तब तक हमारी आराधना निश्फक ही होगी ! ये मेरे अपने विचार है आप भी अपने विचारो से जरूर अवगत कराये ।जय जय ............

सोमवार, 21 सितंबर 2009

कुछ बचपन की यादें, शायद आपके साथ भी ऐसा हुआ हो !

दोस्तों , बचपन बहुत ही निराला होता है । न कोई चिंता , न कोई फिकर बस अपने में मस्त ! मेरी इस बात से आप सभी सहमत होंगे ? हर किसी के बचपन की तरह मेरा बचपन भी बड़ा ही सुंदर रहा । मेरे बचपन की बड़ी प्यारी सी याद आपसे बांटने का जी कर रहा है । मेरा जन्म जरूर बिहार के बक्सर जिले में हुआ मगर चार साल की उम्र के बाद मैं सागर (म०प्र०) में ही खेला कूदा हूँ ।
मैं जिस कसबे में रहता था वहां हर साल कसबे के लोगो के द्वारा दशहरा के समय रामलीला खेली जाती थी । मेरे उम्र के भी कई बच्चे भी रामलीला में भाग लेते थे । मुझे भी राम लीला देखने में मजा आता और उसमे भाग लेने का मन करता था। कई बार कोशिश की मगर कोई फायदा नही हुआ । मुझे किसी पत्र के लायक नही समझा गया । पर अपनी किस्मत भी जोरदार थी , एक जब दशहरा के दिन रावन बध का मंचन होना था । रामलीला का यह प्रसंग देखने दूर दूर के गांवों से लोग आए थे । राम-हनुमान में जोरदारhओ रही थी । मैं रामलीला के प्रबंधक के यहाँ हर दिन की तरह एक आशा के साथ पंहुचा । मगर आज तो गजब हो गया इस विशेष दिन मुझे वानर सेना के एक वानर के रोल के लिए चुना गया। मैं स्वाभाविक रूप से बड़ा खुश !!
अब रामलीला शुरू राम और हनुमान के बीच युद्ध प्रारम्भ :
मैं मुह में लाल रंग पोते हाफपेंट लाल रंग के पहने और पीछे छोटी सी पुँछ लगाये मंच पर जेश्रीराम चिल्लाते हुए आया । मैं मन में सोच रहा था की शायद मेरा मुकाबला महाबली रावन से होगा । अपनी इस उपलब्धि पर मैं इतना खुश था , की शायद रामायण सीरियल के बानर भी इतने न हुए होंगे !
पर ये क्या हो गया !!
मेरे मंच पर आते ही विशालकाय शरीर वाले बड़ी मूछो वाले दुष्ट रावन ने अट्टहास किया -
हीही हां हा हा और मैं छोटा सा बानर कुछ डर सा गया ! फ़िर रावन मेरी तरफ़ लपका ...... मैं डर के मरे मंच के पीछे भगा ........ मगर बलिष्ट दुष्ट रावन ने मुझे पकड़ लिया । सरे दर्शक हस हस के लोट पोत हो रहे थे , मगर मेरी हाफ पेंट गीली हो रही थी !!
.....मैं मम्मी मम्मी चिल्लाया मगर उस दुष्ट को तरस न आया !......उसने मुझे उठाया ......और .......और....... फ़िर उठाकर हनुमान की तरफ़ फेक दिया ....हनुअमान ने लपका ... दर्शको ने जोरदार ताली बजाई । मुझे नानी याद आई ..... हनुमान जी ने भी गुस्सा दिखाया और ..... हाय ! मेरी फूटी किस्मत ........हनुमान जी ने भी मुझे लपक के रावन की ओरफेंका ....... संकट मोचन मेरे लिए संकट दायक हो गये!! ..... फ़िर रावन ने लपका ....फेका ... हनुमान ...लपका ..... फेका.... रावन ...... हनुमान .......रावन ......हनुमान ......रावन ........फ़िर अचानक रावन ने लपकने में ढील की मैं धडाम से नीचे गिरा... ... जान बची तो लाखो पाए !....... मैंने फ़िर आव देखा न तव ........फ़िर ऐसे भगा की सीधे अपने घर जाकर ही रुका !
हूउह अरे भाई साँस तो ले लेने दो ......जेश्रीराम

अब बस आज थक गया हूँ । अभी जब जब दशहरा आता है, या तेलेविसन पर रामायण चलती है तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है !!
तब से मैंने कभी रामलीला नही देखि !
आखिर में बचपन में खेली ज्ञऐ कुछ खेलो की लीने शायद आपने भी ये खेले हो ?
आजकल के होनहार तो कम्पूटर और मोबाईल से ही काम चला लेते है । जे जे ....

1.) मछली जल की रानी है,जीवन उसका पानी है।हाथ लगाओ डर जायेगीबाहर निकालो मर जायेगी।
2.) पोशम्पा भाई पोशम्पा,सौ रुपये की घडी चुराई।अब तो जेल मे जाना पडेगा,जेल की रोटी खानी पडेगी,जेल का पानी पीना पडेगा।थै थैयाप्पा थुशमदारी बाबा खुश।
3.) झूठ बोलना पाप है,नदी किनारे सांप है।काली माई आयेगी,तुमको उठा ले जायेगी।
4.) आज सोमवार है,चूहे को बुखार है।चूहा गया डाक्टर के पास,डाक्टर ने लगायी सुई,चूहा बोला उईईईईई।
5.) आलू-कचालू बेटा कहा गये थे,बन्दर की झोपडी मे सो रहे थे।बन्दर ने लात मारी रो रहे थे,मम्मी ने पैसे दिये हंस रहे थे।
6।) तितली उडी, बस मे चढी।सीट ना मिली,तो रोने लगी।।driver बोला आजा मेरे पास,तितली बोली " हट बदमाश "।
7.) चन्दा मामा दूर के,पूए पकाये भूर के।आप खाएं थाली मे,मुन्ने को दे प्याली में
क्यों आपको भी अपना बचपन याद आया की नही ? सही बताना !

रविवार, 20 सितंबर 2009

मजहब

मजहब सिखाता है , आपस में सब भाई भाई

तो भइया क्यो होती है , मजहब के नाम पे लडाई

क्या मजहब के बन्दों को मजहब का पाठ समझ न आया

क्यों मजहब के नाम पर, इन बन्दों ने खुनी रंग चढाया

इनको मजहब का पाठ पढ़ा दे कोई ज्ञानी

समझा दे इनको खून खून है , नही है पानी

अमन का संदेसा देकर इनको, बंद करवा दे मौत का तमाशा

होता रहा ये सब तो कुछ न बचेगा, न मजहब न खुनी प्यासा

मन्दिर के घंटे चीखे, चिल्लाएं मस्जिद की अजाने

मजहब की लडाई बंद कर दो, ओ मजहबी दीवाने

अपने मंसूबो की खातिर, क्यों करते हो मजहब बदनाम

एक संदेशे नानक ईसा के , एक ही आल्लाताला राम

मित्रो , आप सभी को नवरात्री और ईद की दिल से ढेर शुभकामनाये ।

रविवार, 13 सितंबर 2009

कुर्सी खामोश है !!

अजब सा हो गया है, देश का हाल
सबसे सस्ती कारऔर सबसे महंगी दाल
कहीं बाढ़ से लोग त्रस्त,कहीं पर सूखा
आम इन्सान परेशां खड़ा , नंगा और भूखा
जिन्दगी की साडी मिठास ले महँगी हुई चीनी
बची खुची इज्ज़त भी कुदरत ने छिनी
आंकडो में महंगाई और मुद्रास्फीति घट रही है
हकीकत में क़र्ज़ से किसान की छाती फट रही है
कहीं पानीसे तबाही, कहीं पानी की कमी
पर कुर्सी खामोश है, सलामत जो उसकी जमीं
मित्रो , देश के हालत आपसे छुपे नही है , मगर हमरी खाशी ही कुर्सी को खामोश किए है । आज बढती महंगाई के कारन एक आम आदमी को दाल रोटी भी ढंग से नसीब नही हो पा रही है , आम आदमी की सरकार के मंत्री तो फाइव स्टार होटलों में मजे कर रहे मगर आम आदमी .............?
यही हाल आम आदमी की भाषा हिन्दी का भी है , जिस तरह सत्तानशीं लोगो को आम आदमी की याद चुनावो में आती है , उसी तरह हिन्दी की याद भी सितम्बर के महीने आती है । कल हिन्दी की पुण्यतिथि ओफ्फ्हो क्षमा करना हिन्दी दिवस है । हम क्यों साल के कुछ दिन हिन्दी को कुछ दिन याद कर उसे श्रद्धांजलि देते है ? मैं आप सभी हिन्दी ब्लोगेर्स को नमन करता हूँ , जो हमेशा हिन्दी की लाज बचाए रखते है । उड़नतश्तरी वाले समीर जी तो विशेष रूप से नमन योग्य है जो परदेश में भी हिन्दी की अलख जगाये हुए है । खैर मुझ अज्ञानी से जो भी भूल हुई हो उसे क्षमा करना ! आप सभी को भारत की रास्त्रभाषा दिवस की कोटि कोटि शुभकामनाये ॥
जे हो हिन्दी , हिंदुस्तान की शान

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

भैंस चालीसा

भैंस चालीसा महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी।एम. बनवायो तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी भैंस
मित्रो ये मेरी रचना नही है , इसे किसी मित्र ने ही मुझे ऑरकुट पर स्क्रैप किया था , मुझे लगा की आप सभी को इससे रु-ब-रु करू। कैसी लगी जरुर बताना ।

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

भारत भी बन सकता है , शत प्रतिशत साक्षर !!

आज यानि ८ सितम्बर को विश्व साक्षरता दिवस है । आज का दिन हमें सोचने को मजबूर करता है , की हम क्यो १०० % साक्षर नही है ? यदि केरल को छोड़ दिया जाए तो बाकि राज्यों की स्थिति बहुत अच्छी नही कह जा सकती है । सरकार द्वारा साक्षरता को बढ़ने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड दे मील योजना , प्रोढ़ शिक्षा योजना , राजीव गाँधी साक्षरता मिशन आदि न जाने कितने अभियान चलाये गये , मगर सफलता आशा के अनुरूप नही मिली । मिड दे मील में जहाँ बच्चो को आकर्षित करने के लिए स्कूलों में भोजन की व्यवस्था की गयी , इससे बच्चे स्कूल तो आते है , मगर पढने नही खाना खाने आते है । शिक्षक लोग पढ़ाई की जगह खाना बनवाने की फिकर में लगे रहते है । हमारे देश में सरकारी तौर पर (वास्तव में ) जो व्यक्ति अपना नाम लिखना जानता है , वह साक्षर है । आंकड़े जुटाने के समय जो घालमेल होता है , वो किसी से छुपा नही है । अगर सही तरीके से साक्षरता के आंकडे जुटाए जाए तो देश में ६४.९ % लोग शायद साक्षर न हो । खैर अगर सरकारी आंकडो पर विश्वास कर भी लिया जाए तो भारत में ७५.३ % पुरूष और ५३.७ % महिलाये ही साक्षर है । मगर सच्चाई इससे अलग है । (ये आंकड़े साक्षरता के है , न की शिक्षित लोगो के नही है )
चलिए सरकार की खामिया बहुत है , जब सरे कुएं में भंग हो तो किसे दोष दे ?
अब बात करते है , की भारत १०० % साक्षर कैसे बने ? भारत में सबसे ज्यादा विश्वविद्यालय है । हमारे देश में हर साल लगभग ३३ लाख विद्यार्थी स्नातक होते है । उसके बाद बेरोजगारों की भीड़ में खो जाते है ! (अगर किस्मत या पैसे वाले न हो तो ) मेरे अनुसार हम हर साल स्नातक होने वाले विद्यार्थियो का सही उपयोग साक्षरता को बढ़ने में कर सकते है । स्नातक के पाठ्यक्रम में एक अतिरिक्त विषय जोड़ा जाए , जो सभी के लिए अनिवार्य हो । इस विषय मे सभी chhatro को एक व्यक्ति को साक्षर बनने की jababdari लेनी होगी । shikshako के द्वारा इसका mulyankan किया जाएगा । अन्तिम वर्ष मे mulyankan के aaadhar पर anksoochi मे इसके ank भी जोड़े जाए । इससे हर साल लगभग ३३ लाख लोग साक्षर होंगे । वो भी बिना किसी सरकारी kharch के !
इस vyawstha का ये फायदा होगा की , सरकार का bahumulya पैसा तो bhachega ही sath ही chhatro को uttardyitv की भावना भी utpan होगी ।
maaf कीजिये takniki gadbadi के karan मैं इस lekh को यही samapt करने को मजबूर हूँ ।

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

गणेशोत्सव और कांटा लगा !!

गणेश चतुर्थी के पहले लोग पंडाल सजा रहे थे
लेकिन धार्मिक की जगह, फिल्मी गीत बजा रहे थे
बंगले के पीछे कांटा लगा, बुद्धि विनायक सुन रहे थे
मनो काँटों से बचने के लिए जाल कोई बुन रहे थे
बेरी के नीचे लगा हुआ था, काँटों का अम्बार
लहूलुहान से बैठे गजानन , होके बेबस और लाचार
सोच रहे थे , कब अनंत चतुर्दर्शी आएगी ?
जाने कब बेरी के काँटों से मुक्ति मिल पायेगी ?
मुश्किल हो गया, इस लोक में शान्ति का ठिकाना
नाक में दम कर दिया , और कहते अगले बरस जल्दी आना !
मैं इसी बरस जल्दी जाने की सोच रहा हूँ
अपने फिल्मी भक्तो के लिए अपने आंसू पोछ रहा हूँ
मुझसे बढ़कर , इनके लिए फिल्मे और फिल्मी संसार
फ़िर गणेशोत्सव क्यों मनाते ? करते क्यों मुझ पर उपकार ?
मित्रो , गणेश विसर्जन के साथ गणेशोत्सव समाप्त हो गया , पर दुःख की बात है की लोकमान्य तिलक ने जिस उद्देश्य के साथ इसे शुरू किया उसकी पवित्रतता तो जाने कब की ख़त्म हो गयी है। अब लोग इस परम्परा को बस निभा रहे है ! उनमे वो श्रद्धा और भक्ति की भावना नही बची है । शेष भगवन मालिक है । गणपति बाप्पा मोरिया रे ......

मंगलवार, 1 सितंबर 2009

वाजपेयी का काव्य पाठ और खली पड़ी कुर्सियां !!

नमस्कार मित्रो,
पिछले दिनों १३ औगस्त को डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर (म०प्र०) के हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी के जाने माने कवि, राजनयिक और पत्रकार डॉ अशोक वाजपेयी जी का काव्य पाठ aआयोजित किया गया था । पर हाय रे विडम्बना और विश्वविद्यालय प्रशासन की व्यवस्था की इतने नामी कवि का काव्य पाठ और उसकी सूचना तक आम लोगो को नही दी गयी । परिणामस्वरूप कार्यक्रम में जब डॉ वाजपेयी अपने जन्मस्थान में आयोजित इस कार्यक्रम में अपना काव्य पाठ कर रहे थे ,तो विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती हाल में बमुश्किल पचास लोग भी नही थे । अपने जन्म स्थान पर इतने नामी कवि के काव्य पाठ पर दिल रो आया , की विश्वविद्यालय प्रशासन ने अगर सिर्फ़ स्थानीय समाचार पत्रों में छोटी सी ख़बर भी दे दी होती तो डॉ वाजपेयी के हजारो प्रशंशक टूट पड़ते । डॉ वाजपेयी ने कार्यक्रम में अपनी १९ कविताये और सागर (म० प्र० ) शहर के अपने अनुभव सुनाये । पर उनकी आँखों में कही नामी भी नज़र आई कि जिस शहर कि तारीफ वो अपने हर कार्यक्रम में बड़ी शिद्दत के साथ करते है , उस शहर को हर जगह बड़े गर्व के साथ अपना जन्म स्थान बताते है । उस शहर ने उनके साथ इतनी बेरूखी दिखाई । पर मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से डॉ अशोक वाजपेयी जी को ये बताना चाहता हूँ कि बेरूखी सागर वासियो ने नही बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने की , वरना शहर के लोग अब भी आप को अपने शहर का गौरव मानते है । आज भी सागर वासी बड़े फक्र से बताते है , की डॉ अशोक वाजपेयी जी सागर शहर की देन है ।
बड़े शर्म की बात है की प्रशासन की गलतियाँ लोगो को भुगतनी पड़ती है , आज भी मुझ जैसे सैकडो लोगो को इस बात का रंज है , की हम डॉ वाजपेयी जी का काव्यपाठ नही सुन पाए ।
खैर दर्द सहने के लिए है ,मुल्क का आम इंसान
खुशियाँ तो खास लोगो की होती है , शान !
जब दर्द की बात चली है तो , आज आपसे कुछ दर्द और बाँटना चाहता हूँ। घबराइये मत जनाब मैं अपनी निजी समस्याए लेकर नही बैठ रहा हूँ । अमा मियां दुनिया में वैसे क्या कम पिरोब्लम है , जो मैं आपको अपनी पिरोब्लम में उलझाऊ । खामखा मेरी टाइम पास करने की आदत तो है , नही ! पिछली दो पोस्टो से मेरे कुछ पाठक मित्रो ने आदेश किया की जनाब थोडी बड़ी पोस्ट लिखा करो और कुछ फोटो शोतो भी लगाया करो !
अब मैं आपको बताऊ की पहली बात समय आभाव की है । और दूसरी ये की मैं ठहरा नया नया बिलागर !! मुझे अभी भी खुदा कसम अपनी पोस्ट में फोटू लगाना नही आया , एक बार उड़नतश्तरी वाले समीर जी से पूछा था , मगर उनकी बताई बातें मेरे भेजे के ऊपर से निकल गई , इसमे समीर का कोई दोषः नही , मैं ही अल्पबुद्धि जो ठहरा । समीर जी तो बड़े परोपकारी है , मेरी बुद्धि में जरा तकनिकी बातें देर से आती है , इसलिए चाहकर भी मैं अपनी पोस्ट में फोटू नही दे पा रहा हूँ । अगर आप में कोई सज्जन जरा सरल भाषा में मेरी मदद करे तो उसका मैं आभारी रहूँगा । लो मियाँ मुआफ करना मैं नादाँ अपनी ही लेके बैठ गया ।
अभी आज के अखबार में एक अच्छी ख़बर पढने को मिली की , अपने पड़ोसी देश भूटान में स्थानीय चुनावो में उम्मेद्वारो की न केवल लिखित परीक्षा होगी , और उनका मौखिक साक्षात्कार भी होगा जिसमे में उनसे प्रशासनिक, राजनेतिक और सामाजिक सवाल पूछे जायेंगे !
इश्वर से प्राथना कीजिये की हमारे नेताओ को सद्बुद्धि दे ताकि वे भी कोई इसी तरह का कानून बनाये ! अरे भाई जब पाकिस्तान में भी जब चुनाव लड़ने की योग्यता स्नातक है , तो हम यार इतने गये गुजरे नही है ?! खैर अपनी तो हमें मालूम है , नेताओ की खुदा जाने ? क्यो आप ही कुछ बोले ?

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...