बुधवार, 23 सितंबर 2009

ये जननी, ये माता !!

बड़ी तन्यमयता के साथ , सृजनहार कर रहे थे सृजन
इतने में नारद ने पूछा - क्या कर रहे हो भगवन ?
नारद, मैं आज बना रहा हूँ , ब्रम्हांड की अनमोल काया
जिसमे होगा प्यार का सागर , और मेरी माया
या कह सकते हो, की मैं बना रहा हूँ अपना प्रतिरूप
जो देगी सबको छाया, करके सहन जीवन की धूप
वो हंसकर झेलेगी कष्ट, पर फ़िर भी करेगी सृजन
सृजनहार भले ही मैं हूँ , पर वो देगी सबको जीवन
उसके बिना अकल्पनीय होगी , सारी सृष्टि
प्रेम का प्रतीक , होगी उसकी वात्सल्य पूर्ण दृष्टि
आज मैं करके उसका सृजन , अपने को धन्य पाता
मुझसे भी बढ़कर होगी, ये जननी, ये माता !!

जैसा की आप सभी जानते है की आजकल पूरे देश में आदि शक्ति जगत जननी दुर्गा का महापर्व नवरात्री मनाया जा रहा है । इस पर्व में लोग दुर्गा के नारी स्वरुप का पूजन करते है , कन्याओ को देवी मान कर उनकी पूजा करते है । मगर क्या हम सचमुच इस पर्व का औचित्य या मतलब समझ पाए है ? क्या हम झूठ मूठ ही नही देवी के दिखावे के लिए दर्शन प्रदर्शन नही कर रहे है ? क्या बड़ी बड़ी झांकिया और पंडाल सजाने से देवी प्रसन्न हो जायेगी ? क्या नो दिन भूखे रहने से देवी की हम पर कृपा हो जायेगी ?
जब तक इस परम पवित्र देव भूमि भारत वर्ष में कन्या भ्रूण हत्या , दहेज़ के लिए बहुओं की हत्या ,घटता लिंगानुपात , महिलाओ के प्रति बढती हिंसा, अश्लीलता आदि कई अपराध उपस्थित है , तब तक हमारी आराधना निश्फक ही होगी ! ये मेरे अपने विचार है आप भी अपने विचारो से जरूर अवगत कराये ।जय जय ............

2 टिप्‍पणियां:

  1. मुकेश जी,

    अपनी बात को दैविय प्रतीकों के माध्यम से वर्तमान को हालातों को जोड़ एक सुविचारित लेख में को प्रभावी रूप में सामने रखी है।

    आपसे सहमत हैं कि नारी पर हि रहे अत्याचारों के बीच यह कैसी देवि आराधना है?

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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