शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

लता जी ; अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो ?!

नमस्कार,
पिछले दिनों आपने भी ये ख़बर पढ़ी सुनी होगी की लता मंगेशकर जी ने कहा - अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो ! उनकी ये बात हमारे कई जख्म कुदेर गयी , जब लता मंगेशकर जी जिन पर सरे भारत को ही नही वल्कि समूचे विश्व को गर्व है , उनके मुह से ये बात सुन्नी पड़ रही है । मतलब आप समझ सकते है, की देश में बेटियों की क्या हालत है ?
वाह रे मेरे देश तुने अपनी बेटियों को क्यो इस हाल पे छोड़ दिया की उन्हें मजबूरन कहना पड़ रहा है - अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
आज भी हमारे देश बेटियों की हालत बद से बदतर है !
आज भी हमारे घरो में बेटियों को दोयम दर्जे का समझा जाता है !
आज भी हमारी माँ और दादी बेटियों को सलीके से रहने को कहती जबकि बेटा भले ही कैसा घूमे !
आज भी अपने हिस्से से बेटियों को ही कम दिया जाता है !
आज भी बेटियों को अपने सपनो का दम घोटना पड़ता है , क्योंकि भइया का सपना पूरा हो सके !
आज भी बेटिया पैदा होते ही पराया धन समझी जाती है !
आज भी कोई लता, कोई किरण , कोई उषा, कोई आशा, कोई कल्पना ,कोई प्रतिभा बेबस होके कहती है -अगले जनम मोहे बिटियाँ न कीजो ? !
आख़िर क्यों ?????????????????????????
गलती किसकी है ? हमारी और आपकी ही है न ?
चलो अपनी ! galti sudhare !
अब पुछल्ले की बारी .....
जैसा की आप जानते ही है की जवाहर सिंह "झल्लू" एक प्रतिभा शाली वैज्ञानिक है ।
इस बार झाल्लुजी ने नोट छपने की मशीन इजाद कर ली , लगे धडाधड नोट छपने लगे !
लेकिन एक बार गलती से १५ रूपये का नोट छप गया !
झल्लू जी ने सोचा चलो इसे किसी गाँव में चलाया जाए क्योंकि शहर में तो शायद ही कोई इसे लेगा ।
jhallu ji ek kirane ki dukaan pe gye , dukaandaar ko not diya aur kaha- ek gutkha dedo bhai .
dukaan dar ne not liya gutkha dekar bola, abhi khulle lata hoon !
jhallu ji khush !
thodi der baad dukaan dar aaya aur 7-7 ke do not dekar bola lo bhaiya aapke 14 rupye.!
jai raam ji

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

सब गड़बड़ है पर नो प्रोब्लम !!

भइया अब तो हद हो गयी ! नोबल वाले का सठिया गये जो मात्र ०९ माह के कार्यकाल में ओबामा उन्हें शान्ति के मसीहा नजाए आ गये ! हमें तो ठीक ख़ुद ओबामा को भी हैरानी हो गयी , की ससुरा कुछ बहुतै जल्दी नही हो गया !
हमारे राष्ट्रपिता गाँधी जी का पॉँच बार नोबल शान्ति के लिए नामांकन हुआ , पर नोबल समिति वालो को वो इस पुरूस्कार के लायक नही लगे , उनके चेलो तक को नोबल शान्ति मिला (नेल्सन मंडेला, अंग सन सू की , मार्टिन लूथर किंग आदि ) , चलो कोई बात नही पर गाँधी के नये चेले ने ऐसा क्या गुल खिला दिया की नोबल वाले उन पर मोहित हो गये । भइया कुछ गड़बड़ जरुर है !!
सुना था की अपने इहाँ कुछ फिल्मी कलाकार अवार्ड फंक्सन में फिक्सिंग करके अवार्ड ले जाते थे ! मगर दुनिया के सबसे बड़े और निष्पक्ष पाने जाने वाले नोबल में ऐसा होगा ........................
देश के दक्षिणी इलाको में बाढ़ का कहर जारी है, लाखो लोग बेघर हो गये है , हजारो अनाथ , सैकडो काल के गाल में समा गये है। केन्द्र सरकार ने १००० करोड़ रु० की सहायता की घोषणा की है, मेरा आप सभी से करबद्ध निवेदन है की इस संकट की घडी में हमारे बाढ़ पीड़ित भाई बहनों की सहायता जरुर करे , साथ ही साथ अन्य लोगो को भी सहायता करने के लिए प्रेरित करे ।
मेरा मानना है की इस बार दिवाली सादगी से मानकर हम अपने भाई बहनों की सहायता के लिए आराम से पैसे जोड़ सकते है। हाँ इस बार उन लोगो के लिए भी कुछ दिए जरुर जलाये जो इस बार दिवाली नही मन पाएंगे ।
मेरे मन में विश्वास है की आप मेरी बात जरुर मानेंगे । अरे-----रे रे , सॉरी एक बात मैं भूल ही गया की ये मेरी हाफ सेंचुरी यानि पचासवी पोस्ट है ! आज से अपनी पोस्ट में एक न्य आयटम जोड़ रहा हूँ जिसका नाम दिया है मैंने पुछल्ला , इस में अपनी बात के आख़िर में एक गुदगुदाती सी बात कहने की कोशिश करूँगा। अगर पुछल्ला पसंद आए तो सूचित जरुर करे। तो पेश है आज का पुछल्ला
एक नए नवेले वैज्ञानिक (प्रतिभाशाली ) जवाहर सिंह 'झल्लू' ने न्यूटन के गति के तीन नियमो में अपना एक नया चौथा नियम जोड़ा है।
" लूज मोशन कभी भी स्लो मोशन में नही होता है "

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

एक भारतवंशी को नबल पुरूस्कार !! खुश होए या शर्मशार !!!!

नमस्कार , मित्रो
आप सभी लोग मीडिया के किसी न किसी माध्यम से ये जान ही चुके होंगे की भारत वंशी वैज्ञानिक श्री वेंकटरमण रामकृष्णन को राइबोसोम के अध्यनन के लिए रसायन शास्त्र के नोबल पुरूस्कार के लिए चयनित किया गया है । श्री रामकृष्णन जी ने बडोदरा विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर किया है। फ़िर निकल गये विदेश !
अब उनके नोबल मिलने पर जैसा की हर भारतीय को खुशी होनी चाहिय खुशी हुई .मगर मेरे हिसाब से हमें शर्म आणि चाहिए की हम अपने देश के आजाद होने ६० सालो के बाद भी ऐसी परिस्थितिया नही पैदा कर सके की , ऐसी प्रतिभाये अपने ही देश में रहकर अपने देश का नाम ऊँचा कर सके ?१! श्री रामकृष्णन देश के चौथे भारतीय या भारतवंशी वैज्ञानिक है जिन्हें नोबल पुरुस्कार मिला। इन चारो वैज्ञानिको में सिर्फ़ डॉ सी० वी० रामन को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकि तीन (डॉ एस चंद्रशेखर, डॉ हरगोविंद खुराना और अब वी रामकृष्णन ) वैज्ञानिक भारतीय नही भारतवंशी है । आख़िर क्यो इन्हे भारत से बाहर जाना पड़ा ? कभी हमारी सरकारों ने सोचा है ?
हम क्यों नही ऐसी सुविधाए उपलब्ध करा सके ताकि इस प्रतिभा पलायन को रोका जा सके ? क्यों देश आजाद होने के बाद हम किसी भारतीय को नबल पुरूस्कार नही दिला पाए ? क्या हमारे यहाँ प्रतिभाये नही है ? (शायद ऐसा नही है )
एक बार सी वी रमन के भतीजे डॉ एस चंद्रशेखर (दोनों नोबल विजेता ) ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से अपने शोध के लिए सुविधाए जुटाने की बात की थी , मगर नेहरू जी तब ब्भारत के गरीब होने की बात कहकर अपनी असमर्थता जाहिर की थी । परिणामस्वरूप डॉ चंदार्शेखर अमेरिका गये , खगोल विज्ञानं में अपना शोध पुरा किया और नोबल भी जीता । क्या हम इस नोबल को एक भारतवंशी की जगह एक भारतीय के नाम नही कर सकते थे? अगर नेहरू जी की बात मान भी ले की उस वक्त भारत की आर्थक हालत ठीक नही थी । तो आज तो ये स्थिति नही है , भारत विश्व की उभरती ताकत बन रहा है । तब क्यो नही हम शिक्षा , शोध और प्रतिभाओ को बढावा देने वाली योजनाये बनाते है ? क्यों नही हमारे विश्वविद्यालयो में मौलिक पी एचडी होती है
खैर मौका खुशी का है , भले किसी और मुल्क ने हमें ये अवसर दिया हो । हम खुशिया तो मन ही ले , इसके सिवा हमें और आता ही क्या है ? (भारत में सबसे ज्यादा छुट्टियाँ और त्यौहार होते है, यानि साल में सबसे कम काम भी होता है )
डॉ रामकृष्णन को हार्दिक बधाई !
आप सभी को भी आने वाले त्योहारों की शुभकामनाये !
जय जय

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

वाह रे ! राष्ट्रिय नाम देखे कितना करेगा काम !

भारत सरकार ने गंगा की डालफिन को राष्ट्रिय जलजीव घोषित कर दिया है। इसके फहले गंगा को राष्ट्रिय नदी घोषित किया गया था। मगर इस तरह राष्ट्रिय घोषित करने से होगा क्या ? इससे पहले भी सरकार ने मोर को राष्ट्रिय पक्षी , बाघ को राष्ट्रिय पशु घोषित किया , उनके संरक्षण के लिए तमाम योजनाये चलायी । मगर फायदा क्या हुआ ? बाघ दिनों दिन कम हो रहे है , मोर १९४९ की तुलना में आधे ही बचे है । गंगा की तो बात ही क्या करे जबसे राष्ट्रिय नदी शायद ही सरकार ने कोई ध्यान देने वाला काम किया हो ! मुझे तो ये समझ में नही आता की आखिर सरकार राष्ट्रिय शब्द जोड़कर अपनी जबब्दारियो से मुह क्यो मोड़ना चाहती है ? अगर वास्तव में सरकार को इनके लिए कुछ करना है तो सबसे पहले लोगो को जागरूक बनाना होगा । मैंने ख़ुद अपने कालेज के ज़माने मेंनौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य के द्वारा आयोजित वन्यजीव संरक्षण सप्ताह प्रतियोगिताओ में भाग लिया और कई पुरूस्कार भी जीते मगर वह वन अधिकारियो का वन और वन्यजीवों के प्रति रवैया देखकर पता चला क्यो सरकार की ये योजनाये फेल हो जाती है ।
सरकार अगर वाकई इन हमारी प्राकृतिक धरोहरों के प्रति गंभीर है तो उसे सबसे पहले अपने विभागों का नजरिया और कार्य पद्धति बदलनी होगी ।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

गाँधी के बहाने.... दुनिया के तराने

गाँधी के बहाने
दुनिया के तराने
लोग चले भुनाने
कुछ भोले , कुछ सयाने
थरूर- छुट्टी बंद हो !
मोंट-ब्लेक - महंगा पेन हो !
जो अहिंसा के लिए मरा
वो हिंसा की जड़ नोट पे छपा
जब बिग अपना काम हो
तो बनाने गाँधी का नाम हो
हाड़ मांस पे आधी धोती है
वही राजनेताओ की बपौती है
हर शहर में उसके नाम पे सड़के
तीन दिन के लिए हर नेता फडके
अब बेटा सगे बाप को नही पूछता
तो कौन राष्ट्र पिता को पूजता ?
बस दिखाने को कर देते रस्म अदायगी
जाने कब हमें शर्म आएगी ?
जब जिन्दा था वो महात्मा तो अपनों ने ही मार दिया
और हमने तोडके उसके उसपे कितना उपकार किया ?
अब गाँधी, तवा है ! अपनी अपनी रोटी सेंक लो
जब रोटी सिक जाए तो गाँधी को फेंक दो !!
प्रिय मित्रो , मेरा सौभाग्य समझ्यिये की मैं भी गाँधी और शास्त्री की तरह २ अक्तूबर को पैदा हुआ हूँ। मगर आज मुझे बड़ा दुःख होता है की लोग गाँधी को अपने स्वार्थ को साधने के लिए इस्तेमाल कर रहे है ! और शास्त्री जी जैसे महँ नेताओ को तो आजकल अखबार और मीडिया भी अब तबज्जो नही देता । बड़ी शर्म की बात है ! पर क्या करे हम तो मूलतः बे-शर्म है ही ! अगर हमें शर्म आती तो इतहास में हमारे ऊपर इतने लोगो ने शासन किया होता ?
जिनको शर्म आई वो लड़े और मरे हमने कुछ दिन याद किया और फ़िर सकूली किताबो में छपकर बे-शर्म हो गये । दोस्तों माफ़ करना अगर आप की भावनाए आहात हो रही हो तो ....? मैं कुछ सच्चाई बयां कर रहा हूँ । पर क्या करना किसी को कोई पचासक साल पहले कुच्छ लोगो ने लड़-मर कर देश को आजाद कराया ? हम तो बे-शर्म है ही ! अगर आप को कुछ अपने दिल या मन में कुछ महसूस हो रहा हो तो मुझे जरुर बताये
बकौल दुष्यंत कुमार -
तमाशा खड़ा करना मेरा मकसद नही , बस तस्वीर बदलनी चाहिए
जो आग मेरे सीने में है , हर दिल में जलनी चाहिए .........

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...