शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

एक भारतवंशी को नबल पुरूस्कार !! खुश होए या शर्मशार !!!!

नमस्कार , मित्रो
आप सभी लोग मीडिया के किसी न किसी माध्यम से ये जान ही चुके होंगे की भारत वंशी वैज्ञानिक श्री वेंकटरमण रामकृष्णन को राइबोसोम के अध्यनन के लिए रसायन शास्त्र के नोबल पुरूस्कार के लिए चयनित किया गया है । श्री रामकृष्णन जी ने बडोदरा विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर किया है। फ़िर निकल गये विदेश !
अब उनके नोबल मिलने पर जैसा की हर भारतीय को खुशी होनी चाहिय खुशी हुई .मगर मेरे हिसाब से हमें शर्म आणि चाहिए की हम अपने देश के आजाद होने ६० सालो के बाद भी ऐसी परिस्थितिया नही पैदा कर सके की , ऐसी प्रतिभाये अपने ही देश में रहकर अपने देश का नाम ऊँचा कर सके ?१! श्री रामकृष्णन देश के चौथे भारतीय या भारतवंशी वैज्ञानिक है जिन्हें नोबल पुरुस्कार मिला। इन चारो वैज्ञानिको में सिर्फ़ डॉ सी० वी० रामन को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकि तीन (डॉ एस चंद्रशेखर, डॉ हरगोविंद खुराना और अब वी रामकृष्णन ) वैज्ञानिक भारतीय नही भारतवंशी है । आख़िर क्यो इन्हे भारत से बाहर जाना पड़ा ? कभी हमारी सरकारों ने सोचा है ?
हम क्यों नही ऐसी सुविधाए उपलब्ध करा सके ताकि इस प्रतिभा पलायन को रोका जा सके ? क्यों देश आजाद होने के बाद हम किसी भारतीय को नबल पुरूस्कार नही दिला पाए ? क्या हमारे यहाँ प्रतिभाये नही है ? (शायद ऐसा नही है )
एक बार सी वी रमन के भतीजे डॉ एस चंद्रशेखर (दोनों नोबल विजेता ) ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से अपने शोध के लिए सुविधाए जुटाने की बात की थी , मगर नेहरू जी तब ब्भारत के गरीब होने की बात कहकर अपनी असमर्थता जाहिर की थी । परिणामस्वरूप डॉ चंदार्शेखर अमेरिका गये , खगोल विज्ञानं में अपना शोध पुरा किया और नोबल भी जीता । क्या हम इस नोबल को एक भारतवंशी की जगह एक भारतीय के नाम नही कर सकते थे? अगर नेहरू जी की बात मान भी ले की उस वक्त भारत की आर्थक हालत ठीक नही थी । तो आज तो ये स्थिति नही है , भारत विश्व की उभरती ताकत बन रहा है । तब क्यो नही हम शिक्षा , शोध और प्रतिभाओ को बढावा देने वाली योजनाये बनाते है ? क्यों नही हमारे विश्वविद्यालयो में मौलिक पी एचडी होती है
खैर मौका खुशी का है , भले किसी और मुल्क ने हमें ये अवसर दिया हो । हम खुशिया तो मन ही ले , इसके सिवा हमें और आता ही क्या है ? (भारत में सबसे ज्यादा छुट्टियाँ और त्यौहार होते है, यानि साल में सबसे कम काम भी होता है )
डॉ रामकृष्णन को हार्दिक बधाई !
आप सभी को भी आने वाले त्योहारों की शुभकामनाये !
जय जय

1 टिप्पणी:

  1. सच में ये गर्व का नहीं शर्म का विषय है!हम प्रतिभा पलायन को रोक नहीं पाए तो अब किस मुंह से गर्व करें...

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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