मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

बूँद











कौन कहता है ,कि बूँद छोटी होती है

वो अपने अन्दर सागर समेटे होती है


जीवन की शुरुआत बूँद से ही होती है


बूँद के बिना कहाँ आँख रोती है ?


बूँद से बादल, बादल से वर्षा होती है


वर्षा की बूँद, बीजों में जीवन बोती है


करते श्रम तो पसीने की बून्द निकलती है


बूँद जीवन का सत्य लेकर मचलती है


छोटी होकर बड़ा होना , बूँद सिखलाती है



संगठन ही जीवन है, ये बूँद दिखलाती है





- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'

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