सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

चिर ऋणी रहूँगा गुरुवर का ....











परम पूज्य स्वामी श्री सुकान्तानंद जी के श्री चरणों में सादर समर्पित !


जब चारो तरफ था अँधेरा, माँ थी मुझसे दूर

जिन्दगी उलझनों से घिरी, मैं था मजबूर

राह कोई सूझी नही, प्यास मेरी बुझी नही

जीवन में थी एक कमी, और आँखों में थी नमी

किस डगर पर चालू , कैसे जीवन में संभालू

मन में थे कई विचार , पर मैं न था तैयार

तब किसी ने हाथ थमा , जिन्दगी को दिया अमलीजामा

अब तक था मैं गुमराह , फिर मिली मुझे सही राह

दूर हटी परेशानियों की छाया , जीवन में उजाला आया

भटकते- भटकते पहुंचा जहाँ , अहसान है उस दर का

आगे अब शब्द नही, चिर ऋणी रहूँगा गुरुवर का


आपका चरण सेवक

मुकेश पाण्डेय "चन्दन "

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

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