बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

मैं और जिन्दगी ........!!!!!!!


















जिन्दगी ने मुझसे कहा- तू चाहता क्या है ?






मैंने कहा- तू ही मेरी चाहत , तुझसे दिल लगाना चाहता हूँ






तू औरो को आजमाती है, मैं तुझे आज़माना चाहता हूँ






जिन्दगी- इतनी आसान नही मैं, जितना तुम समझ बैठे






मेरी चाहत में न जाने कितने , मौत को गले लगा बैठे






मैं- गर तू आसन होती , तो मेरी चाहत न होती






मौत तो मिलेगी ही, उससे कहाँ राहत होती ?






मौत तो मंजिल है , मगर सफ़र तो तू है






दिल्लगी न समझना , ये इश्क की खुशबू है






जिन्दगी- मेरे सफ़र में, सब इश्क जाओगे भूल






कोई खुशबु नही यहाँ , न ही कोई है फूल






मैं- होगा ये तुम्हारा नजरिया ,पर तुम बहुत खूबसूरत हो






लाख समझाओ मुझे, पर तुम मेरी जरुरत हो






जिन्दगी- मैं असीम हूँ, जैसे कोई सागर






मिल भी गयी , तो करोगे क्या मुझे पाकर






मैं-तुम्हारे सहारे, बहुत से नज़रिए बदलने है






बहुतो की जिन्दगी में , "चन्दन " के फूल खिलने है !

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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