सोमवार, 17 दिसंबर 2012

जानिए देहभाषा (बॉडी लेङ्गुएज ) से दूसरो की अनकही बातें ..!

मित्रो ,
क्षमा सहित  नमस्कार ,
                    आजकल  मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी में व्यस्त होने के कारण ब्लॉग जगत को समय नही दे पा रहा हूँ . परीक्षा के नए पैटर्न में प्रारंभिक परीक्षा के द्वितीय प्रश्न पत्र में  मैंने संचार कौशल टॉपिक के अंतर्गत देहभाषा (बॉडी लेङ्गुएज ) के बारे में कई रोचक बातें पढ़ी . जो कि हमारे दैनिक जीवन में भी बहुत उपयोगी है . तो मैंने सोचा क्यों न इसे आप सभी से बांटा जाये . हैं न ?
              शाब्दिक भाषा के विकास के पूर्व मानव अपने विचारों एवं भावनाओं का विनिमय संकेतों अथवा देहभाषा के माध्यम से ही करता था .यह भाषा अचेतन मन को समझने हेतु अत्यंत उपयोगी होती है . अगर हम देहभाषा को समझना जान ले , तो लोगों की उन बातों को भी जान सकते है , जो वो हमें बताना नही चाहते  है. या फिर हमसे कोई बात छुपा रहे हो .हालाँकि कुछ चतुर और धूर्त लोग देहभाषा के माध्यम से बेबकूफ बना सकते है . मगर सामान्यतः हम देहभाषा से लोगों के मनोभावों को समझ सकते है .
तो चलिए जानते है , कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
- अँगुलियों को मोड़ना या चटकाना व्यक्ति के अंतर्द्वंद को बताता है .
- हथेलियों को रगड़ना (जब ये ठण्ड के कारण नही हो ) प्रतीक्षा या शुभ फल की आशा का संकेत है .
- जब व्यक्ति अपने हाथ टेबल पर रखकर उनकी संयुक्त मुट्ठी बनाये  और इस पर पर्याप्त जोर रखे तो यह स्थिति विचार- भिन्नता का सूचक है . इतना ही नही ऐसी स्थिति व्यक्ति अपने विचारो को व्यक्त करने के लिए व्यग्र रहता है .
- जब बांहों को छाती के इर्द-गिर्द बांधना नकाराक्त्मकता , बोझिलता व् उदासीनता का परिचायक है . कभी-कभी व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थिति के कारण जब व्यक्ति अचानक सोचने हेतु विवश होता है , तो भी ऐसा करता है .
- यदि किसी व्यक्ति का चेहरा सामान्य अवस्था में है तथा चेहरा मुड़ा हुआ है , तो यह मानिये कि वह आपसे ऊब चुका है.
- यदि व्यक्ति का चेहरा सामान्य अवस्था में है , उसके ओंठों पर कृत्रिम मुस्कान नही है , और ठुड्डी आगे की ओर है , तो वह आपकी उपस्थिति को महत्व दे रहा है
- व्यक्ति के आयताकार या चौड़ी मुस्कान का अर्थ होता है , कि वह अपनी इच्छा के विपरीत न चाहते हुए भी विन्रमता प्रदर्शित करता है .इस मुस्कान में ओंठ ऊपरी व् निचले दांतों पर आयताकार रूप लेते हुए खिंच जाते है . प्रायः ऐसा किसी अधिकारी के कार्यालय भ्रमण के दौरान उसके अधिनस्थो द्वारा किया जाता है.
- आत्मविश्वास से परिपूर्ण व्यक्ति आँखों में आँखें डालकर बात करता है .ऐसा व्यक्ति वार्ता के दौरान पलकें भी कम झपकाता है .
-कम आत्मविश्वास वाले व्यक्ति बात करते समय अधिक देर तक आँखे नही मिला पाते है , जो लोग कुछ छुपाना चाहते है , वे भी आँखे मिलाने से कतराते है . (हालाँकि कुछ लोग शर्म के कारण भी आँखे नही मिलाते )
 - ऊपर की ओर उठी हुई भौहें व्यक्ति के अविश्वास और ईर्ष्या को प्रकट करती है .
-जो लोग अपनी भुजाओं को तेजी से झुलाते हुए ( परेड करते सैनिको जैसे ) वे अपने लक्ष्य को यथाशीघ्र प्राप्त करने वाले होते है .
- जिन लोगो का स्वाभाव अपनी जेबों में हाथ डालकर चलने का होता है , भले ही सर्दी का मौसम  न हो, वे सामान्यतः विचित्र व् रहस्यमय स्वाभाव वाले होते है . ये मौका पड़ने पर शैतान का भी पक्ष ले सकते है . इनका प्रयास हमेशा दूसरों को झुकाने का होता है .
- खुले हुए हाथो के द्वारा स्पष्टता के भाव की अभिव्यक्ति होती है . खुले हुए हाथो के साथ कंधे उचकाते हुए दोनों हथेलियों को आगे कर देना यह भाव व्यक्त करता है , की - " तुम मेरा क्या कर लोगे "
- भुजाओं को अपने सीने पर क्रॉस  के रूप में बांध लेना एक सुरक्षात्मक भाव भंगिमा है . इसके अतिरिक्त जब कोई व्यक्ति किसी मांग या निवेदन को स्वीकार नही करना चाहता , तब भी वह अपने हाथों की कैंची के रूप में सीने पर बांध लेता है .
- गाल पर हाथ रख कर बैठने  की मुद्रा किसी विचार में लीन होना दर्शाता है
- जब कोई व्यक्ति कोई ऐसी बात  सुनता  है , जिसमे उसकी रूचि होती है , तो वह अपने सर को थोडा ऊपर उठा लेता है .
- यदि श्रोता का सर तिरछे आकार में झुका हुआ नही है , तो इसका मतलब वे सुनने में रूचि नही ले रहे है .
- यदि कोई व्यक्ति (स्वाभाव वश नही ) बड़ी कोमलता से अपना चश्मा उतारकर सावधानीपूर्वक उसका लेंस साफ़ करता है  (यदि लेंस पहले से ही साफ़ है ) , तो वह टाल-मटोल करने के भाव को प्रकट करता है . ऐसा व्यक्ति अधिक स्पष्टीकरण मांगने या प्रश्न पूछने के लिए समय चाहता है .
- आँखों को बंद कर नाक के सिरे को दबाने का अर्थ है , कि अंतिम निर्णय पर गहन विचार चल रहा है .
- नाक को धीरे से छूना या मलना ( यदि जुकाम  न हो तो ) अपनी अनिच्छा , अरुचि , नापसंदगी या नकारात्मकता को व्यक्त करता है .
-कोट के बटन खोलकर बैठने की भंगिमा यह प्रकट करती है , कि व्यक्ति आपके विचारों को ध्यानपूर्वक सुन रहा है .
- श्रोता का तिरछा सर यह प्रकट करता है , कि वह वक्ता के शब्दों में गहन रूचि ले रहा है .
- अपने हाथों को कस कर और एक-दुसरे से जकड़कर बैठना संदेह की मुद्रा है .
- अपनी तर्जनी ( अंगूठे के पास वाली अंगुली )    उठाकर बात करने वाले व्यक्ति महत्वाकांक्षी होते है .
- अपनी वरिष्ठता या प्रधानता का प्रदर्शन करते समय व्यक्ति कुछ तन जाता है . 
- अपने दोनों हाथों को पीछे करके या पकड़कर  चलने का अर्थ है , कि व्यक्ति परेशां या तनावग्रस्त है  .
- बाल पेन का खोलना या बंद करना - व्यक्ति की व्याकुलता  का परिचायक होता है. इसी प्रकार हथेली  पर सर टिकाकर आँखे अधमुंधी कर लेना भी ऊब  या उदासीनता का प्रतीक है .
              इन  तथ्यों का दैनिक जीवन में बहुत उपयोग है . आपको ये पोस्ट कैसी लगी  ..जरुर बताएं ...ताकि मैं इसी तरह और भी महत्वपूर्ण जानकारियां लाता रहूँ .


जय - जय
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सोमवार, 10 दिसंबर 2012

हाईटेक नही होना चाहता , मेरा गाँव !!

हाईटेक नही होना चाहता , मेरा गाँव 
न धन-दौलत , न  सोना चाहता है मेरा गाँव 
 भरी बरसात में  , जब खेत होते लबालब
किसी घर में प्रसव पीड़ा, सुन कांपते सब 
चारपाई पे रख के दौड़ते ,जब  चार कंधे 
कीचड़ -पानी सब भूल , भागे जाते बनके अंधे 
किस्मत हुई तो , सही वक़्त पे मदद देगा दूजा गाँव 
वरना उन्ही चार कंधो पर , लौटेगा बिलखता बहाव 
सुनसान रातों में , किसी बुजुर्ग को चलती खांसी 
धड़कने तेज , बच पायेगा  या लग जाएगी फांसी 
आज़ादी के इतने साल बाद , हो गया इंडिया शाईन 
पर मेरे गाँव में आज भी बसते, ओझा और डाईन
बिन सड़क, बिन अस्पताल, कैसे चले विकास की नाव    

मित्रो , मेरा गाँव बिहार के बक्सर जिले के सिमरी प्रखंड (ब्लाक ) के अंतर्गत 'गोप भरवली'  है . कहने को तो मेरा गाँव ब्लाक से १ कि०मि० की दुरी पर है , मगर लगभग १००० की आबादी आजादी के ६५ सालों बाद भी विकास की सारी सुविधाओ से दूर है . आज भी सड़क ( कच्ची या पक्की ) न होने के कारण मेरा गाँव बाकि देश - दुनिया से कटा  है  . सड़क बनवाने के लिए ग्रामवासियों ने बी०डी 0 ओ० से लेकर माननीय मुख्यमंत्री ' सुशासन बाबु ' तक अर्जी लगाई, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात. आज भले ही प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी योजना पुरे देश में चल  रही है , मगर मेरे गाँव से वो दूर ही है . अगर विकास को ढूँढा जाये तो मेरे गाँव में दो प्राथमिक  विद्यालय , कुछ टूटी- फूटी  सिन्धु घाटी  सभ्यता के अवशेषों की तरह  पक्की नालियों  
मेरे गाँव के जांबाज़ युवा जो मिटटी में आनंद ढूंढ रहे !
के अवशेषों के अलावा कुछ नही मिलता . हाँ बिजली आ गयी  है , जिसकी सूचना देता राजीव गाँधी की फोटो व राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना का बोर्ड गाँव की शुरुआत में ही लगा है . इसके अलावा मनरेगा के कार्य तो बस खानापूर्ति की तरह होते है . हा आधुनिकता की चाह ने लोगो को मोबाइल फोन्स से जरुर जोड़ दिया है , जिसमे प्रोढ़ भोजपुरी गाने देखते-सुनते रहते है , तो युवा पीढ़ी आधुनिक नौकरियों से बेपरवाह फेसबुक और इंटरनेट की रंगीनियों के जाल में फंसा है .गाँव के  कुछ जागरूक लोगो ने गाँव की प्रगति और विकास के लिए अपनी क्षमता अनुसार प्रयास किये ...यहाँ तक कि माननीय मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन भी दिया ....आधिकारियो , जनप्रतिनिधियों के आगे गुहार लगाई ...मगर मिला तो बस आश्वासन ...गाँव की समस्याओं का निराकरण न हो पाने का मूल कारण स्वयं की ग्राम पंचायत न हो पाना है , क्योंकि अभी हमारा गाँव 'आशा पड़री ' ग्राम पंचायत में आता है , जहाँ हमारे गाँव की साडी आशाएं पड़ी रहती है ...क्योंकि पंचायत में हमारे गाँव से केवल एक मात्र वार्ड मेंबर है , जिसकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती बनके रह जाती है . अब तो गाँव के लोग अपनी  इस आदिम जिन्दगी के आदि हो गये है , और इसी में खुश है.  

सोमवार, 5 नवंबर 2012

अबकी दिवाली ऐसी मनाना !

अबकी दिवाली ऐसी मनाना
दीयों में नहीं , दिल में भी ज्योत जलाना 
दूर हो मन का अँधेरा  , ऐसा हो प्रकाश
बस घरों में ही नहीं , जीवन में भी हो उजास
दीप मालाओं सा, प्रकाशित हो जीवन 
दूर हो अँधेरा , उज्जवल  हो मन 
अपने ही नहीं , दूजों के जीवन में खुशियाँ लाना 
 अबकी दिवाली ऐसी मनाना
खुशियों से उन्हें भर दो , जो दिल है खाली 
 खुद तक सीमित न रखना ये दिवाली 
 रोशन हो उनके घर भी, जिनकी  सूनी है थाली 
सबके घर हो रोशन , ऐसी हो दिवाली 
दीयों में नहीं , दिल में भी ज्योत जलाना 
अबकी दिवाली ऐसी मनाना

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

कितने रावण जलाओगे , हर घर में रावण छुपा है !

अभी हाल में पूरे देश में धूम धाम से रावण  का पुतला जलाया गया . समाचार पत्रों और टी ० वी० न्यूज चैनलों पर " बुराई पर अच्छाई की जीत " ," जीत गयी अच्छाई ", " हो गया बुराई का अंत "  जैसे जुमले प्रयोग हुए . लेकिन क्या सचमुच बुराई ख़त्म हो गयी ? बहुत पहले दशहरा पर एक कविता लिखी थी , जो शायद आज भी प्रासंगिक है . उस पर अपने विचार जरुर दें -
कितने रावण जलाओगे , हर घर में रावण छुपा है 
कितनी बार आग लगाओगे  , हर पग पर तम जाल बिछा है 
एक पुतला जल जाने से , सारा पाप नही मर जाता 
पुतले में आग लगाने से , हर नर राम नही बन जाता 
जब होगा अहम् , तब तक रावण नही मरेगा 
'अहम् ब्रम्हास्मी ' मरके भी यही कहेगा 
स्वार्थ, ईर्ष्या, घृणा , पाप चारो और यही मचा है  
कितने रावण जलाओगे , हर घर में रावण छुपा है 
हर दिन सीता का अपहरण हो रहा है 
पुलिस, प्रशासन कुम्भकरण सो रहा है 
गीध-जटायु ,मूक हुए , मनो सब छिपा है 
आज रावण एक नही , उसके रूप कई है 
अन्याय , अत्याचार के बाद भी , वह सही है 
मारते-मारते रावण को , आज राम भी थक  जायेंगे 
इतने रावण है , कि कई राम भी मार न पाएंगे 
कितने रावण जलाओगे , हर घर में रावण छुपा है 
कितनी बार आग लगाओगे  , हर पग पर तम जाल बिछा है 




रविवार, 21 अक्तूबर 2012

तीन रूप में दर्शन देने वाली माँ हरसिद्धि !

माँ हरसिद्धि


नमस्कार मित्रो ,
अभी पुरे देश में शारदीय नवरात्र बड़े धूम - धाम से मनाया जा रहा है , हिन्दू लोग माँ दुर्गा की उपासना  में रत है . आज मैं आप को बुंदेलखंड की एक प्रसिद्द देवी स्थल " माँ हरसिद्धि , रानगिर " के बारे में बताना चाहता हूँ .
माँ हरसिद्धि स्वयं प्रकट होने के साथ ही , सभी की मनोकामना पूर्ण  करने के लिए विख्यात है . मनोकामना पूर्ण करने के कारन ही उन्हें हरसिद्धि कहा जाता है . मान्यता है कि माँ हरसिद्धि एक दिन में तीन रूप में लोगो दर्शन देती  है . सुबह बालिका  के रूप में , दोपहर में युवती के रूप में और शाम  के समय वृद्धा के रूप में माँ हरसिद्धि की प्रतिमा से दर्शन होते है .वर्तमान में नया भव्य  मंदिर बना है , जबकि इसके पूर्व एक किले (गढ़ ) के रूप में था .  
माँ हरसिद्धि मंदिर
माता के प्रकट होने के बारे में एक कथा प्रचलित है - बहुत पहले रानगिर गाँव में बच्चों के साथ जंगल की ओर से एक दिव्य बालिका खेलने आती थी .गाँव के बच्चे घर जाकर उस दिव्य बालिका की चर्चा करते तो ग्रामीणों को आश्चर्य होता . एक बार सभी ने उस बालिका के बारे में पता लगाने का निश्चय किया , नियत समय पर बालिका खेलने आई , तो ग्रामीणों ने उसे पकड़ने का प्रयास किया . लेकिन वो बालिका अंतर्धान हो गयी . फिर कुछ दिनों बाद ग्रामीणों को सपने में बालिका आई और बताया मैं हरसिद्धि माता हूँ , और गाँव स्थित कुएं में मेरी प्रतिमा है , जिसे कच्चे सूत से निकलकर उसकी स्थापना करो , हाँ ध्यान रखना एक बार जहाँ रख डोज मैं वही स्थापित हो जाउंगी . दुसरे दिन ग्रामीणों ने कुएं में कच्चा सूत डाला तो एक प्रतिमा उसमे चिपक कर बाहर आई . लोगो में पास में ही एक नीम के पेड़ के नीचे प्रतिमा रखा , तो प्रतिमा वही स्थापित हो गयी , बाद में ग्रामीणों द्वारा बहुत प्रयास किये गए , कि किसी तरह गड्ढा खोद कर  भी प्रतिमा निकाल ली जाये , ताकि व्यवस्थित तरीके से मंदिर बना कर प्रतिमा प्रतिष्ठापित की जाये . लेकिन सारे प्रयास विफल रहे . आज भी गड्ढा खोदे जाने के कारण मंदिर में प्रवेश करने हमें प्रतिमा सामान्य धरातल से नीचे दिखती है . माँ हरसिद्धि की प्रतिमा का मुख नदी और जंगल की ओर है .(जहाँ से वह बालिका आती थी ) मंदिर काफी प्राचीन बताया जाता है .  
                                                            एक जनश्रुति के अनुसार - पहले नवरात्री में ब्रम्ह मुहूर्त में बाघ माँ के दर्शन करने आता  था और बिना किसी को हानि पहुचाये जंगल लौट जाता था . हालाँकि अब न तो घना जंगल बचा है , और न ही जंगल में बाघ बचे  है . बारहमासी  सड़क बन जाने से  जंगल तेजी कटा . मैं जब बचपन में जाता था , और अब जाने पर फर्क साफ़ नज़र आता है . जंगल वन्यजीवों के नाम पर बन्दर, लंगूर और सियार ही दिखते  है. हाँ पक्षियों के कुछ दुर्लभ प्रजातियाँ थोड़े प्रयास से जरुर दिख जाती है . मंदिर के किनारे ही देहार नदी का विहंगम तट है . वैसे तो ये एक छोटी नदी है , लेकिन अद्भुत है , इसके किनारों पर जब आप बड़ी-बड़ी नदी द्वारा काटी गयी चट्टानों को देखते है , तो लगता है , कि शायद चट्टानों को भी इसने हार दी , इसीलिए इसे " दे हार " कहा गया . नदी के दोनों किनारों पर बंदरों और लंगूरों की अठखेलियाँ मन मोह लेती है . गौर करने की बात है , कि यहाँ के बन्दर शैतान नहीं है . 
                                                           नदी के दुसरे ओर घने जंगल में " बूढी रानगिर " देवी का मंदिर है . जो स्टाप डेम पर करके जाया जाता है . जंगल में और भीतर  जाने पर " गौरी दांत " नामक देवी स्थल है . कहा जाता है , कि भगवान् शिव जब माता सती का शव लेकर विलाप कर रहे थे , और भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से  शव के ५१ टुकड़े गिरे , जहाँ बाद में ५१ शक्ति पीठो की स्थापना हुई . उन्ही में से यह भी एक स्थल है , यहाँ सती का दांत गिरा था , इसलिए इसे गौरिदांत कहा जाता है . हालाँकि यह स्थान दुर्गम होने के कारण सामान्य जन की पहुच से दूर है . इस स्थान पर प्रागैतिहासिक काल के साक्ष्य भी है . जो इसकी प्राचीनता का प्रमाण है .  
दर्शनार्थियों की भीड़
                                           रानगिर में प्रतिवर्ष चैत्र माह की नवरात्री में मेला लगता है . जिसमे बुंदेलखंड ही नहीं दूर -दूर से लोग आते है .     माँ हरसिद्धि का धाम मध्य प्रदेश के सागर जिला मुख्यालय से ५० किमि० दूर विंध्यांचल पर्वतमाला की सुरम्य पहाड़ियों के मध्य देहार नदी के तट पर स्थित है . यहाँ पहुचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन सागर है , जो बीना -कटनी रेलखंड पर है . सागर से नवरात्री के समय बस और जीप आसानी से मिल जाती है .लेकिन अन्य दिनों लोग स्वयं के वाहन या निजी वाहन रिजर्व करके जाते है . सागर से राष्ट्रिय राजमार्ग क्र० २६ (झाँसी -लखनदों ) पर नरसिहपुर की तरफ लगभग ३० किमि० पर बांये ओर 8 किमि० जंगल  में पक्की सड़क से जाया जा सकता  है .

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

अक्टूबर माह की महानता !

नमस्कार  मित्रो ,
आज एक बात आप सभी से शेयर करना चाहता हूँ , खैर हो सकता है  , आप मेरी बात बातसहमत न हो मगर मेरी बात सुनकर अपनी राय तो दे सकते है . तो मैं ये कहना चाहता हूँ , कि अक्तूबर ( क्वांर -कातिक ) माह में पैदा होने वाले लोग अधिक विशेष होते है . इसका पर्यावरणीय कारण ये है , कि ये महिना संधि काल होता है , मतलब वर्षा ऋतु के जाने का और शीत ऋतु के आने का होता है . अतः वातावरण की सर्वश्रेष्ठ अनुकूल जलवायु और तापमान होता है, जिससे पैदा हुए बच्चे के लक्षणों ( जो दैहिक कोशिकाओ द्वारा नियंत्रित होते है , न कि जनन कोशिकाओ द्वारा नियंत्रित लक्षण , क्योंकि जनन कोशिकाओ के लक्षण तो आनूवंशिक होते है , और माता -पिता से प्राप्त होते है  )  पर विशेष प्रभाव डालते है . हिन्दू मान्यताओ में भी इस काल को पवित्र मान कर इसमें जगत्जननी माँ दुर्गा की आराधना नवरात्री में की जाती है . इस माह में पैदा हुए कुछ महापुरुषों के बारे में जानते है . 
अकबर महान- १५ अक्टूबर १५४२ 
महत्मा गाँधी - २ अक्टूबर १८६९ 
लाल बहदुर शास्त्री - २ अक्टूबर १९०२ 
जयप्रकाश नारायण - ११ अक्टूबर १९०२
अमिताभ बच्चन - ११ अक्टूबर १९४२ 
रेखा - १० अक्टूबर 
शर्मीला टैगोर- २ अक्टूबर 
महराजा  अग्रसेन - १६ अक्टूबर  
जिम्मी कोर्टर ( अमेरिकी राष्ट्रपति  ) - 1 अक्टूबर 
केट विंसलेट (हालीवुड अभिनेत्री  )-5 अक्टूबर 
बिशप डेसमंड टूटू (राष्ट्रपति -द० अफ्रीका )- 7 अक्टूबर 
मेरियन जोन्स (महान एथलीट  )-१२ अक्टूबर   
दीपक चोपड़ा (मेनेजमेंट गुरु )- २२ अक्टूबर 
केटी  पैरी  (हालीवुड गायिका   )- २५ अक्टूबर 
हिलेरी  क्लिंटन (अमेरिकी विदेश मंत्री )- २४ अक्टूबर 
बिल गेट्स ( दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति )-२८ अक्टूबर  
 मित्रो इन पंक्तियों का लेखक भी सौभाग्य से २ अक्टूबर के महान दिन पैदा हुआ था . इसके अलावा अक्टूबर माह से और भी कई विशेष बातें जुडी हुई है.अक्टूबर महत्त्व  को  इस लिंक पर भी आप देख सकते है . 
तो भैया सबको ram ram !
































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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

हो रहा भारत निर्माण ( व्यंग्य कविता )

 १२ सितम्बर को साहित्य अकादमी , मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद्  भोपाल तथा  हिंदी विभाग , डॉ हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय , सागर द्वारा आयोजित ' पद्माकर समारोह ' काव्यपाठ हुआ . जिसमे कई बड़े कवि-कवियत्रियो के साथ मैंने भी अपनी कवितायेँ पढ़ी . उनमे से एक कविता आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ .
हो रहा भारत निर्माण  !

ऐ जी , ओ जी , लो जी  , सुनो जी 
हम करते रहे जी -जी , वो कर गए 2  जी 
महंगाई का चढ़ा पारा , बिगड़ी वतन की हेल्थ 
सब मिल के खा गए , खेला ऐसा कामनवेल्थ 
दुनिया करे छि-छि , हो कितना भी अपमान 
अबे चुप रहो ! हो रहा भारत निर्माण ..... 
पेट्रोल इतना महंगा , पकड़ो अब टमटम
खी-खी करके , कर गए वे स्पेक्ट्रम 
हम मरें भूख , महंगाई, गरीबी , बदहाली से 
और वो ख़ामोशी ओढ़े  ,कोयले की दलाली से 
दाग अच्छे है ! कोयले से भी न टूटा ईमान
अबे चुप रहो ! हो रहा भारत निर्माण .....  
कार्टून बनाने पर , मचा दिया कार्टूनों ने बवाल 
फिर कैसी ख़ामोशी , कौआ चले हंस की चाल 
होते रहे आतंकी हमले , जीते रहे नक्सलवादी 
खामोश रहना ही भला , ऐसी मिली आज़ादी 
आये चाहे बाढ़ या सूखा , मरते रहे चाहे किसान 
अबे चुप रहो ! हो रहा भारत निर्माण ..... 


बुधवार, 19 सितंबर 2012

कांटा लगा !!!!!

 बहुत पहले गणेश चतुर्थी के समय ये कविता लिखी थी , आज आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ .

गणेश चतुर्थी के पहले लोग पंडाल सजा रहे थे
लेकिन धार्मिक की जगह , फ़िल्मी गीत बजा रहे थे
बंगले के पीछे कांटा लगा, बुद्धि विनायक  सुन रहे थे
मानो काँटों से बचने के लिए , जाल कोई बुन रहे थे
बेरी के नीचे लगा हुआ था, काँटों का अम्बार
लहूलुहान से गजानन , होके बेबस और लाचार
सोच रहे थे कब अनंत चतुर्दशी आएगी
जाने कब इन  बेरी के काँटों से मुक्ति मिल पायेगी
मुश्किल हो गया , इस लोक में शांति का ठिकाना
नाक में दम कर दिया ,और कहते अगले बरस जल्दी आना
मैं इसी बरस जल्दी जाने की सोच रहा हूँ
अपने फ़िल्मी भक्तों के लिए , अपने आंसू पोछ रहा हूँ
मुझसे भी बढ़कर है , इनके लिए फिल्मे और फ़िल्मी संसार
फिर गणेशोत्सव क्यों मानते , करते क्यों मुझ पर उपकार ?
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन '
गणेश चतुर्थी और पर्युषण पर्व की शुभकामनाएं

रविवार, 9 सितंबर 2012

इंडियन मीडिया सेंटर :उज्जैन यात्रा

भस्म आरती के लिए पंक्तिबद्ध
नमस्कार मित्रो , बहुत दिनों बाद आप से रु-ब-रु हो रहा हूँ . मैं मालवा दौरे में व्यस्त रहा . इस दौरे में उज्जैन में 'इंडियन  मीडिया सेंटर ' के मध्य प्रदेश चैप्टर में शामिल हुआ . जहाँ उज्जैन के चर्चित ब्लोगर ' श्री सुरेश चिपलूनकर ' से मुलाकात हुई . इसके अलावा कार्यक्रम में साधना न्यूज के संपादक श्री एन 0 के ० सिंह , माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रिय पत्रकारिता विश्वविद्यालय , भोपाल के कुलपति  श्री  बी ० के ० कुठियाला और अन्य कुछ बड़े पत्रकारों से मिला . 
महाकाल का प्रसाद लिए हुए , पृष्ठभूमि में महाकाल मंदिर
काल भैरव मंदिर के बाहर  शराब बिकते   हुए ....साथ ही पुलिस वाले भी अपनी ड्यूटी में  !
अब अपनी यात्रा के बारे में कुछ बताता हूँ . मैंने अपने मैराथन दौरे के दौरान उज्जैन - इंदौर -ओम्कारेश्वर - इंदौर - धार- मांडू का सफ़र तय किया . इस दौरान जहाँ उज्जैन -ओम्कारेश्वर जैसे धार्मिक तीर्थ स्थल गया तो वही धार -मांडू (मांडव ) जैसे ऐतिहासिक शहर भी देखे . अब मैं दौरे के बारे में कुछ  विस्तार से बताता हूँ . मैं रात के ११ बजे 'महाकाल की नगरी '  उज्जैन पंहुचा . सुबह ४ बजे महाकाल की भस्म आरती (इसमें भगवान महाकाल की भस्म से श्रृंगार किया जाता है ) में शामिल होना था , इसलिए जल्द खाना खा कर सो गया .भस्म आरती में शामिल होने एक दिन पहले पंजीयन करना पड़ता  है .भस्म आरती में शामिल होने के लिए पुरुष केवल धोती (सोला ) और महिलाएं केवल साड़ी ( बिना पेटीकोट के ) में जा सकती है .हालाँकि महिलाओ वाली बात मुझे अटपटी जान पड़ी , क्योंकि मंदिर के अन्दर महिला पुलिस महिलाओं की साड़ी उठाकर उनके पेटीकोट चेक कर रही थी . भस्म आरती लगभग एक घंटे चलती है . जब भगवान् महाकाल को भस्म का विशेष श्रृंगार किया जाता है , तब नंदी हाल में उपस्थित महिलाओं  को घूँघट करने को कहा जाता है , ताकि वो भगवान् का ये विशेष श्रृंगार न देखे ! भगवान् महाकाल द्वादश ज्योतिर्लिंगों में विशेष माने जाते है, क्योंकि कहा जाता है , कि जो एक बार महाकाल के दर्शन कर लेता है , वो जीवन में अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाता है . महाकाल को उज्जैन का राजा और रक्षक मन जाता है . सावन के सोमवार को महाकाल की शाही सवारी निकलती है , जिसमे मध्य प्रदेश शासन महाकाल को बन्दूको की सलामी ( गार्ड ऑफ़ ऑनर ) दी जाती है 
क्षिप्रा के किनारे राम घाट
                                                                        . उज्जैन को मंदिरों की नगरी कहा जाता है , क्योंकि यहाँ हर गली- चौराहे पर आपको मंदिर मिल जायेंगे . महाकाल परिसर में ही कई मंदिर है . इसके अलावा उज्जैन के अन्य प्रसिद्द मंदिरों में काल भैरव मंदिर जो कि भगवन शिव का क्रुद्ध अवतार है , इन्हें शराब का भोग लगता है , आश्चर्य की बात ये है , कि काल भैरव इसका सेवन करते हुए दिखाई पड़ते है , जब  पुजारी एक प्याले में शराब डाल कर काल भैरव की मूर्ति के मुख के पास  रखते है,  तो प्याले में से मदिरा धीरे-धीरे ख़त्म हो जाती है ! अन्य मंदिरों में हरसिद्धि देवी मंदिर , सिद्धवट , गढ़कालिका , मंगलनाथ ,चार धाम  मंदिर , बड़े  गणेश , क्षिप्रा घाट आदि . इसके अलावा एतिहासिक स्थानों में राजा भ्रत हरि की गुफा , किला , जंतर-मंतर ( ये पृथ्वी के केंद्र पर है ) , संदीपनि आश्रम ( जहाँ कृष्ण-बलराम और सुदामा पढ़े ) आदि .
सिंहासन   बत्तीसी जल कुम्भी भरे गंदे तालाब के नीचे है , हालाँकि  इसमें बगुले सैर कर रहे है !

सिंहासन बत्तीसी वाले तालाब के किनारे हष्ट-पुष्ट भिखारी
महाकाल मंदिर से हरसिद्धि मंदिर की और जाते समय रास्ते में एक गन्दा तालाब सा मिला , जिसमे बहुत सारी जलकुम्भी लगी थी , बताते इस स्थान पर राजा विक्रमादित्य का सभागार था ,यहीं सिंहासन बत्तीसी  है . भारत के हर तीर्थ स्थान की तरह उज्जैन  में भी भांति -भांति के भिखारी है , जिसमे  कुछ बड़े ही हष्ट-पुष्ट मिले . विक्रम विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में 'इंडियन मीडिया सेंटर ' के कार्यक्रम के पश्चात् हम लोग उज्जैन भ्रमण पर निकले , जिसमे काल-भैरव , गढ़ कालिका , भरथरी की गुफा , सिद्ध   वट , मंगल नाथ होते हुए महाकाल धर्मशाला पहुचे ........फिर दुसरे दिन सुबह इंदौर होते हुए ओम्कारेश्वर की यात्रा पर निकल गए ..उसकी कहानी अगली  पोस्ट में    

बुधवार, 22 अगस्त 2012

राग दरवारी :हिंदी साहित्य का व्यंग्य का सर्वश्रेष्ठ और कालजयी उपन्यास

नमस्कार मित्रो ,

बहुत दिनों बाद मैं आज ब्लॉग लिखने बैठा हूँ . कुछ दिन सोचा इन्टरनेट की दुनिया से दूर होकर साहित्य की दुनिया की सैर की जाये . इस लिए मैं पिछले हफ्ते हिंदी  साहित्य का व्यंग्य का सर्वश्रेष्ठ और कालजयी उपन्यास " राग दरवारी " पढने में व्यस्त था . सच पूछो तो श्रीलाल शुक्ल जी का लिखित उपन्यास हर भारतीय को पढना चाहिए . इस उपन्यास में शुक्ल जी ने एक कसबे 'शिवपालगंज ' और उसके निवासियों ( जिन्हें उपन्यास में गंजहा कहा गया है ) के बहाने भारतीय संस्कृति और मानसिकता पर करारा व्यंग्य किया है . जैसे :- " वर्तमान शिक्षा पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है , जिसे कोई भी लात मार सकता है . "
स्व० श्रीलाल शुक्ल जी
शुक्ल जी ने शिवपालगंज कसबे के बहाने देश  की लगभग हर समस्या को जोरदार तरीके से उठाते है . यही कारण है, कि 1960 के दशक में लिखा  गया ये उपन्यास आज भी प्रासंगिक  है. शुक्ल जी जिस सरल भाषा शैली में अपनी बात रखते  है ,वह लाजवाब है ! उदहारण के लिए  इस देश के निवासी परंपरा से कवि है , चीज  को समझने से पहले वे उस पर मुग्ध होकर कविता कहते है . भाखड़ा नांगल बांध को देखकर वे कह सकते है 'अहा ! अपना चमत्कार दिखाने  के लिए , देखो प्रभु ने फिर से भारतभूमि को चुना . '
मेरे अभी तक पढ़े गए साहित्य में निश्चय ही 'राग दरवारी ' सर्वश्रेष्ट है . राग दरवारी के पात्र वैद्य जी , रंगनाथ , रुप्पन बाबु , बद्री पहलवान , प्रिंसपल साहब , खन्ना मास्टर , सनीचर , लंग्गड़  और अन्य पात्र हमारे आस-पास के ही लगते है . और उपन्यास को पढ़ते समय हम भी उन्ही में शामिल हो जाते है . लगता है शुक्ल जी हमारी ही कहानी कह रहे है . आज भी ग्रामीण भारत 'राग दरवारी ' के शिवपाल गंज कि तरह है . आज देश के लोग वैद्य जी तरह देश को अच्छाई का मुखौटा पहन कर लूट रहे है , आज भी प्रिंसिपल साहब जैसे चापलूस देश की व्यवस्था को चूस रहे है . आज भी सत्ता का विरोध करने वालों  को खन्ना मास्टर की तरह परेशान किया जा रहा है . आज भी लंग्गड़ जैसे कई ईमानदार लोग अपनी जमीन  की नक़ल लेने  के लिए तहसीली  का चक्कर काट रहे है. आज भी बद्री पहलवान जैसे गुंडे सत्ता के उत्तराधिकारी बन रहे है . आज भी गयादीन जैसे सीधे-सादे  लोग  अपनी बेटी की इज्जत बचाने के लिए पलायन कर रहे है . आज भी सनीचर जैसे लोग सत्ता की कठपुतली बन कर दुसरो की उंगलियों पर नाच रहे है . आज भी देश के लोग भंग और गांजे के नशे में धूत्त होकर मतदान कर रहे है , आज भी रुप्पन बाबु और रंगनाथ  जैसे पढ़े लिखे हम जैसे लोग शुरूआती विरोध का भ्रम रच कर बाद में उसी सड़ी हुई व्यवस्था का अंग बनने को  बेबस है !!!
स्वर्गीय श्रीलाल शुक्ल जी को नमन !
इन्टरनेट प्रेमियों के लिए खुशखबरी ' राग दरबारी ' जो कि राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है , अब ऑनलाइन भी उपलब्ध है .

रविवार, 12 अगस्त 2012

यही तो देश का कष्ट है


यही तो देश का कष्ट है
कि सारे नेता भ्रष्ट है
राजनीती तो अब नष्ट है
तब भी नेता स्वस्थ्य है
वे घोटालो के अभ्यस्त है
और आम जनता त्रस्त है
सारे मौका परस्त है
सब अपने में मस्त है
वतन कि हालत पस्त है
खुशहाली अस्त-व्यस्त है
यही तो देश का कष्ट है
कि अब सब ध्रतराष्ट्र  है
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

बूंदों में जाने क्या ......नया है ?

अले याल फिल पानी गिलने लगा ,...तू भी तो अपने पापा से छतरी मँगा !

छई छप्पा छई ...चलो उठो ...फिर से खेलते है छई छप्पा छई !
अक्सर बच्चे ही बारिश की बूंदों का मजा ले पाते ....हमारे भीतर तो बचपना बचा ही नही है . अब देखो न कितने मजे से खेल रहे बच्चो के झुण्ड में जब एक बच्चा गिर जाता है , तो बाकि उसे उठाने को दौड़ पड़े है . और हम इसे देख कर बस इतना कह पाते है ........काश !
बरसे चाहे कितना भी  पानी , पर माँ कहती पढने से न करना आना-कानी
बारिश में सबसे बुरा लगता है , स्कूल जाना ! लेकिन मन मार कर जाना पड़ता है . और जब मम्मी मेरे लिए इतनी परेशान हो सकती है , तो मैं तो उनका लाडला राजकुमार स्कूल क्यों  नही जाऊंगा ? एएँ !
गिरा अबकी खूब पानी ...सड़क पे आ गयी जल की रानी लाओ बंसी पकडे मछली खूब सारी, माँ भी होगी खुश बनेगी इसी की तरकारी
अरे यार छोडो स्कूल ...वहां भी तो पानी टपक रहा है , चलो  मछली पकड़ते है .........देखो कौन सबसे ज्यादा मछली पकड़ता है ? अरे ...वो  देखो मछ्....छ्ली !!!!!!!!!!!
हम तो है बाल मजदूर , हर हाल में काम करने को मजबूर
माँ बीमार है , घर में पानी भरा है , बापू का पता नही , माँ की दवा लेने  के लिए पैसे की व्यवस्था भी तो करनी है . अब काम तो करना ही होगा ........घर पर माँ इन्तजार कर रही होगी ......मुझे नही खेलना .......लाया साब ....गर्म ही ला रहा हूँ !
बारिश चाहे करें कितनी भी खटपट , पर अपना धंधा न होने दूंगा  चौपट 
अरे साब , बारिश आप बड़े लोगो को ख़ुशी देती होगी , अपने लिए तो मुसीबत ही होती है ....अब देखो न , कल रात हुई तूफानी बारिश में दुकान बह गयी .किसी तरह  काम तो करना होगा , वरना पेट कैसे भरेगा ?
जब बारिश हो जोरदार , तब ऐसी करें आड़ , जय भारत और जय जुगाड़



सीप न सही मकड़ी होके भी है स्वाति की चाह , बोलो वाह वाह

बूंदों में जाने क्या ......नया है ?

एक बूंद में समायी सारी कायनात .......

मगर आजकल शहरी आपा-धापी में ऐसे नज़ारे देखने वाले लोग बारिश की खुबसूरत कहानियो को कहाँ पढ़ पाते है ?
आपको इन चित्रों के माध्यम से सुनाई गयी कहानियों में से कौन सी कहानी अच्छी लगी ? जरुर बताना

शनिवार, 4 अगस्त 2012

इत्तफाक (कविता )

तब बारिश हो रही थी , था शायद सावन का महिना 
जब भीगता देख मुझे , मुस्कुराई थी एक हसीना 
उसकी मुस्कराहट , दिल में हलचल मचा गई 
एक पल में ही न जाने , कितने सपने सजा गई 
पास आते उसके कदमो ने , दिल में उमंग जगाई 
मन ख़ुशी से झूमा , मनो उसके कदमों में दुनिया समाई 
कदम-दर-कदम दिल की धड़कन तेज हो रही थी 
आँखे उसकी कुछ उम्मीदों का बीज बो रही थी 
होंठ मानो उसके कुछ कहने को थे बेताब
इधर हम जागी आँखों से देख रहे थे ख्वाब 
जिन्दगी भीगते-भागते कर गयी मजाक 
पर कैसे मानू  की ये हकीकत थी या इत्तफाक 
  उसकी छुअन  से तन में एक बिजली समाई 
हाथ में राखी लिए बोली , आज रक्षाबंधन है मेरे भाई !!!!

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

तुम्हारे जाने से .........

सभी ब्लोगेर्स साथियों को पावन रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाये . रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक अनूठा त्यौहार है . इस दिन का सभी बहनों को बड़ी बेसब्री से इन्तजार होता है . लेकिन इस बार रक्षाबंधन के दिन मैं अपनी बहन को राखी बंधवाने के बाद  उसे जब स्टेशन छोड़ने जा रहा था , तो मन बड़ा व्यथित था .अभी तक तो सभी रक्ष्बंधन साथ मनाये थे , लेकिन उसकी शादी के बाद ये विछोह ...पुरानी यादों को फिल्म की रील की तरह फ्लेश बैक में ले जा रहा था . बचपन की बातों से लेकर अब तक की सारी बातें एक एक करके याद आ रही थी . वो बात -बात में लड़ना -झगड़ना , रूठना-मनाना और न जाने कितनी बातें ............
तुम्हारे जाने से, जीवन में एक कमी सी तो है 
आँखे कुछ ढूंढे  , इनमे भी नमी सी तो है 
दुनिया की रीत है, एक दिन था तुम्हे जाना 
आखिर क्यों कोई अपना , हो जाता बेगाना 
वो बचपन की बातें , वो होती तकरार 
बस तेरी याद बची , कहाँ  तेरा प्यार ?
मेरे लिए सब कुछ थी तुम , अब जाने कहाँ गुम
वो तुम्हारी बकबक , अब तुम्हारी तस्वीर गुमसुम 
हर पल हर लम्हा तुम्हारी याद दिलाता 
अब जाना, कि ये रिश्ता क्या कहलाता 
मुझे पता है , वहां तुम्हारी आँखों में भी होगा पानी 
 पर शायद , मिलना-बिछड़ना ही है जिंदगानी 
कैसे भूलूं , कैसे याद करूँ , प्यारी बहना 
जब बोलते आंसू , तो जुबाँ से कहना 
सोच के तुम्हारी मुस्कराहट , आंसू निकल आते 
काश ! फिर कहीं से वो बीते पल मिल जाते

सोमवार, 30 जुलाई 2012

सरदार को एक रुपया भीख दे देना..!

कुछ दोस्त मिलकर डेल्ही घूमने का प्रोग्राम बनाते है और रेलवे
स्टेशन से बहार निकलकर एक टेक्सी किराए पर लेते है , उस
टेक्सी का ड्राइवर बुढ्ढा सरदार था,

यात्रा के दौरान बच्चो को मस्ती सुजती है और
सब दोस्त मिलकर बारी बारी सरदार पर बने
जोक्स को एकदुसरे को सुनाते है

उनका मकसद उस ड्राइवर को चिढाना था . लेकिनवो बुढ्ढा सरदार चिढाना तो दूर पर उनके साथ
हर जोक पर हस रहा था ,
सब साईट सीन को देख बच्चे वापस रेलवे स्टेशन आ जाते है ...और तय
किया किराया उस सरदार को चुकाते है , सरदार
भी वो पैसे ले लेता है , पर हर बच्चे को अपनी और से एक एक
रूपया हाथ में देता है

एक लड़का बोलता है "पाजी हम सुबह से आपकी कोम
पर जोक मार रहे है , आप गुस्स्सा तो दूर पर हर जोक में
हमारे साथ हस रहे थे , और जब ये यात्रा पूरी हो गई आप हर लडके
को प्यार से एक-एक रूपया दे रहे है , ऐसा क्यों ? "

सरदार बोला " बच्चो आप अभी जवान
हो आपका नया खून है आप मस्ती नहीं करोगे तो कौन
करेगा ? लेकिन मेने आपको एक- एक रूपया इस लिए दिया के जब
वापस आप अपने अपने शहर जाओगे तो ये रूपया आप उस सरदार
को दे देना जो रास्ते में भीख मांग रहा हो ,
इस बात
को दो साल हो गए है और जितने लडके डेल्ही घूमने गए थे सब
के पास वो एक रुपये का सिक्का आज भी जेब में
पड़ा है ...उन्हें कोई सरदार भीख
मांगता नहीं  मिला .

 

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

बाकी रह गये कुछ निशाँ....

जिन्दगी में कुछ छूट जाता है , जाने कहाँ 
होता है सब कुछ साथ, है पर दिल तनहा 
अतीत  की होती है , कुछ रंगीली यादें
कुछ खाली पन्ने , तो कुछ अधूरे फ़लसफ़ा
मन करता है, कि फिर लौट चले पीछे 
 पर बाकी है, अभी देखना आगे का जहाँ 
हम तनहा ही चले थे , इस सफ़र में 
फिर तनहा , छूटे जाने कितने कारवां 
ख़ुशी सी होती नही , पर गम भी नही
निकले कितने अश्क, लगे कितने कहकहा 
 लहरें यूँ ही आती रही , साहिल पे खड़े हम 
आखिर समंदर में , डूब ही गया ये आसमाँ
टूट गये वो बनाये हुए रेत के महल
पर अभी भी बाकी रह गये कुछ निशाँ

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

ब्राह्मणों की कहानी ........

नमस्कार ,
मित्रो आज हम इतिहास से कुछ खोज कर बड़ी ही मजेदार चीज लाये है !
अरे भाई ! इतना जल्दी क्या है ?
जब खोज कर लाये है , तो आप को भी बताएँगे ही , यहाँ तो आप ही के लिए आते है न !
आज हम ब्राह्मणों के बारे में कुछ ज्ञान खोज के लाये है ! हां लेकिन ये सब आपकी जानकारी के लिए है , इसमें कोई जातिवाद नही है.
तो भैया तो सबसे पहले ब्राह्मण शब्द का प्रयोग अथर्वेद के उच्चारण कर्ता ऋषियों के लिए किया गया था . फिर प्रत्येक वेद को समझनेके लिए ग्रन्थ लिखे गये उन्हें भी  ब्रह्मण साहित्य कहा गया है . 
अब देखा जाये तो भारत में सबसे ज्यादा विभाजन या वर्गीकरण ब्राह्मणों में ही है . जैसे :- सरयू पारीण, कान्यकुब्ज , जिझौतिया , मैथिल , मराठी , बंगाली ,भार्गव ,कश्मीरी , सनाढ्य , गौड़ , महा-बामन और भी बहुत कुछ . इसी प्रकार ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा उपनाम (सरनेम या टाईटल )  भी प्रचलित है , तो इन्ही  में कुछ लोकप्रिय उपनामों और उनकी उत्पत्ति के बारे में जानते है . 
एक वेद को पढने  वाले ब्रह्मण को पाठक कहा गया 
दो वेद पढने वाले को द्विवेदी कहा गया , जो कालांतर में दुबे हो गया 
तीन वेद को पढने वाले को त्रिवेदी/ त्रिपाठी  कहा गया , जो कालांतर में तिवारी हो गया 
चार वेदों को पढने वाले चतुर्वेदी कहलाये , जो कालांतर में चौबे हुआ 
शुक्ल यजुर्वेद को पढने वाले शुक्ल या शुक्ला  कहलाये 
चारो वेदों , पुराणों और उपनिषदों के ज्ञाता को पंडित कहा गया , जो आगे चलकर पाण्डेय .पाध्याय ( ये कालांतर में उपाध्याय हुआ ) बने .
इनके अलावा प्रसिद्द ऋषियों के वंशजो ने अपने  ऋषिकुल या गोत्र के नाम को ही उपनाम की तरह अपना लिया , जैसे :- 
भगवन परसुराम भी भृगु कुल के थे
भृगु कुल के वंशज भार्गव कहलाये , इसी तरह गौतम , अग्निहोत्री , गर्ग . भरद्वाज  आदि 


इन्हें तो आप पहचान गये होंगे ! अगर नही पहचाने तो जानकारी के लिए बता दे ये इन पंक्तियों का लेखक है .

शास्त्र धारण करने वाले या शास्त्रार्थ करने वाले शास्त्री की उपाधि से विभूषित हुए . बहुत से ब्राह्मणों को अनेक शासको  ने भी कई  तरह की उपाधियाँ  दी  , जिसे बाद में उनके  वंशजो ने उपनाम   की तरह उपयोग  किया . इस  तरह से ब्राह्मणों के उपनाम प्रचलन में आये . बाकि अगली किसी पोस्ट में ............
तब तक के लिए राम राम 

सोमवार, 9 जुलाई 2012

हिंदी की रोचक लोकोक्तिया / कहावतें !



हम अक्सर अपने बड़े- बुजुर्गो से लोकोक्तिया / कहावतें  सुनते आये है , इन  कहावतो में जहाँ रोचकता, मधुरता होती  है , वही इनके साथ कोई कहानी और सन्देश भी छुपा रहता है .आजकल तो इनका प्रयोग बहुत कम सुनने में मिलता है . अक्सर लोग कहावतों और लोकोक्तियों को एक ही समझते है . मगर इनमे भी कुछ अंतर है . जहाँ कहावतें किसी के भी द्वारा कही गयी होती है , वही अधिकांश लोकोक्तियाँ  विद्वानों के द्वारा कही गयी होती है . कहावतों और लोकोक्तियों में थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह दिया जाता है . और भाषा में प्रांजलता , प्रवाहमयता , सजीवता के साथ ही कलात्मकता  का प्रवेश हो जाता है .कहावतों और लोकोक्तियों का आधार घटनाये, परिस्थितियां और दृष्टान्त होते है .
आज मैं  भी हिंदी और उसकी बोलियों से कुछ रोचक कहावतें सहेज कर आपके लिए लाया हूँ
* नोट- इन कहावतों  में जाति सूचक शब्दों का भी प्रयोग हुआ है , इन्हें किसी जाति से जोड़े .बल्कि उनके अर्थो पर ध्यान दे . सधन्यवाद  ! 
# अढाई हाथ की ककड़ी , नौ हाथ का बीज - अनहोनी बात होना
जैसे- पाकिस्तान द्वारा शांति के कार्य करना वैसे ही है - कि  अढाई हाथ की ककड़ी , नौ हाथ का बीज

# अटका बनिया देय उधार- दबाव पड़ने पर सब कुछ करना पड़ता है .
जैसे- राष्ट्रपति पद के समर्थन के लिए यु पी   बंगाल को अधिक राशि जारी करके यही जाता रही है , कि अटका बनिया देय उधार.

# अपना ढेंढार देखे नही , दुसरे की फुल्ली निहारे - अपने अधिक  दुर्गुण को छोड़ कर दुसरे के कम अवगुण को देखना
जैसे - कांग्रेस द्वारा दुसरे दलों के भ्रष्टाचार की बात करने को तो यही कहा जा सकता है , कि  अपना ढेंढार देखे नही , दुसरे की फुल्ली निहारे

# अपनी नाक कटे तो कटे , दुसरे का सगुन तो बिगड़े - दुसरो को हानि पहुचाने के लिए स्वयं की हानि को भी तैयार रहना .
जैसे - दिग्विजय सिंह के बयानों से तो ऐसा लगता है , कि अपनी नाक कटे तो कटे , दुसरे का सगुन तो बिगड़े

# अपनी गरज बावली - स्वार्थी मनुष्य दुसरो की चिंता नही करता है
जैसेसांसदों द्वारा महामंदी के दौर में भी अपना वेतन बढ़ाने को लोगो ने कहा - अपनी गरज बावली

# अपने पूत को कोई काना नही कहता - अपनी चीज को कोई ख़राब नही कहता  है
जैसे - उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव  में राहुल गाँधी के प्रचार के बाद भी हुई हार के बाद jab राहुल को कुछ नही कहा गया तो मजबूरन यही  कहना पड़ा  - अपने पूत को कोई काना नही कहता .

# आंख एक नही और कजरौटा दस- दस - व्यर्थ का आडम्बर  
जैसे - योजना आयोग में 35  करोड़ का शौचालय बनने पर कहना ही पड़ा कि   आंख एक नही और कजरौटा दस- दस .

# आठ  कनौजिया , नौ चूल्हे - मेल रहना  
जैसे - आज भाजपा के हाल देख कर  लगता है  , आठ  कनौजिया , नौ चूल्हे

# आई तो रोजी नही तो रोजा - कमाया तो खाया , नही तो भूखे ही सही
जैसे - भारत में आज भी गरीब लोग है , जिनका जीवन इस कहावत को चरितार्थ करता है - आई तो रोजी नही तो रोजा.

# आस-पास बरसे , दिल्ली पड़ी तरसेजिसको जरुरत हो , उसे मिले
जैसे - सरकार के गोदामों में सड़ रहे अनाज और देश में भूखे मरते लोगो को देख यही लगता है , कि  आस-पास बरसे , दिल्ली पड़ी तरसे .



# इक नागिन अरु पंख लगायीएक दोष के साथ दुसरे का जुड़ जाना
जैसे -


orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...