शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

आज एक प्रण ठाना है......


आज एक प्रण ठाना है
कुछ बनके सबको दिखाना है
चाहे आये आंधी , या जाये तूफ़ान
सबसे टकरा जाऊँगा, बनके मैं चट्टान
लक्ष्य बिसरित होगा मन से
चाहे
संघर्ष कितना भी हो जीवन से
सच्ची लगन और होगा अटल इरादा
तिनके सी उड़ जाएगी, राह की हर बाधा
मिलेंगे
राह में जाने कितने कंटक-शूल
पर सिवाय लक्ष्य के जाऊँगा सब भूल
चाँद से भी उस पर जाना है
कुछ बनके सबको दिखाना है
मित्रो मैंने अपनी ये कविता ८ अगस्त २००५ को उस समय लिखी थी, जब मैं इलाहबाद में सिविल सर्विस की तैयारी करने पंहुचा ही था । तब से आज सफलता मिलने तक लगभग साढ़े ६ वर्ष का समय लग गया , मगर कभी भी हार नही मानी , बस लगा रहा अपनी मंजिल की और पहुचने में ............आज भले ही मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से आबकारी उप निरीक्षक पद जरुर मिला गया है , मगर अभी तो सफ़र में एक मील का पत्थर मिला है , मंजिल तो बाकि है ...............

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