बुधवार, 22 अगस्त 2012

राग दरवारी :हिंदी साहित्य का व्यंग्य का सर्वश्रेष्ठ और कालजयी उपन्यास

नमस्कार मित्रो ,

बहुत दिनों बाद मैं आज ब्लॉग लिखने बैठा हूँ . कुछ दिन सोचा इन्टरनेट की दुनिया से दूर होकर साहित्य की दुनिया की सैर की जाये . इस लिए मैं पिछले हफ्ते हिंदी  साहित्य का व्यंग्य का सर्वश्रेष्ठ और कालजयी उपन्यास " राग दरवारी " पढने में व्यस्त था . सच पूछो तो श्रीलाल शुक्ल जी का लिखित उपन्यास हर भारतीय को पढना चाहिए . इस उपन्यास में शुक्ल जी ने एक कसबे 'शिवपालगंज ' और उसके निवासियों ( जिन्हें उपन्यास में गंजहा कहा गया है ) के बहाने भारतीय संस्कृति और मानसिकता पर करारा व्यंग्य किया है . जैसे :- " वर्तमान शिक्षा पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है , जिसे कोई भी लात मार सकता है . "
स्व० श्रीलाल शुक्ल जी
शुक्ल जी ने शिवपालगंज कसबे के बहाने देश  की लगभग हर समस्या को जोरदार तरीके से उठाते है . यही कारण है, कि 1960 के दशक में लिखा  गया ये उपन्यास आज भी प्रासंगिक  है. शुक्ल जी जिस सरल भाषा शैली में अपनी बात रखते  है ,वह लाजवाब है ! उदहारण के लिए  इस देश के निवासी परंपरा से कवि है , चीज  को समझने से पहले वे उस पर मुग्ध होकर कविता कहते है . भाखड़ा नांगल बांध को देखकर वे कह सकते है 'अहा ! अपना चमत्कार दिखाने  के लिए , देखो प्रभु ने फिर से भारतभूमि को चुना . '
मेरे अभी तक पढ़े गए साहित्य में निश्चय ही 'राग दरवारी ' सर्वश्रेष्ट है . राग दरवारी के पात्र वैद्य जी , रंगनाथ , रुप्पन बाबु , बद्री पहलवान , प्रिंसपल साहब , खन्ना मास्टर , सनीचर , लंग्गड़  और अन्य पात्र हमारे आस-पास के ही लगते है . और उपन्यास को पढ़ते समय हम भी उन्ही में शामिल हो जाते है . लगता है शुक्ल जी हमारी ही कहानी कह रहे है . आज भी ग्रामीण भारत 'राग दरवारी ' के शिवपाल गंज कि तरह है . आज देश के लोग वैद्य जी तरह देश को अच्छाई का मुखौटा पहन कर लूट रहे है , आज भी प्रिंसिपल साहब जैसे चापलूस देश की व्यवस्था को चूस रहे है . आज भी सत्ता का विरोध करने वालों  को खन्ना मास्टर की तरह परेशान किया जा रहा है . आज भी लंग्गड़ जैसे कई ईमानदार लोग अपनी जमीन  की नक़ल लेने  के लिए तहसीली  का चक्कर काट रहे है. आज भी बद्री पहलवान जैसे गुंडे सत्ता के उत्तराधिकारी बन रहे है . आज भी गयादीन जैसे सीधे-सादे  लोग  अपनी बेटी की इज्जत बचाने के लिए पलायन कर रहे है . आज भी सनीचर जैसे लोग सत्ता की कठपुतली बन कर दुसरो की उंगलियों पर नाच रहे है . आज भी देश के लोग भंग और गांजे के नशे में धूत्त होकर मतदान कर रहे है , आज भी रुप्पन बाबु और रंगनाथ  जैसे पढ़े लिखे हम जैसे लोग शुरूआती विरोध का भ्रम रच कर बाद में उसी सड़ी हुई व्यवस्था का अंग बनने को  बेबस है !!!
स्वर्गीय श्रीलाल शुक्ल जी को नमन !
इन्टरनेट प्रेमियों के लिए खुशखबरी ' राग दरबारी ' जो कि राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है , अब ऑनलाइन भी उपलब्ध है .

रविवार, 12 अगस्त 2012

यही तो देश का कष्ट है


यही तो देश का कष्ट है
कि सारे नेता भ्रष्ट है
राजनीती तो अब नष्ट है
तब भी नेता स्वस्थ्य है
वे घोटालो के अभ्यस्त है
और आम जनता त्रस्त है
सारे मौका परस्त है
सब अपने में मस्त है
वतन कि हालत पस्त है
खुशहाली अस्त-व्यस्त है
यही तो देश का कष्ट है
कि अब सब ध्रतराष्ट्र  है
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

बूंदों में जाने क्या ......नया है ?

अले याल फिल पानी गिलने लगा ,...तू भी तो अपने पापा से छतरी मँगा !

छई छप्पा छई ...चलो उठो ...फिर से खेलते है छई छप्पा छई !
अक्सर बच्चे ही बारिश की बूंदों का मजा ले पाते ....हमारे भीतर तो बचपना बचा ही नही है . अब देखो न कितने मजे से खेल रहे बच्चो के झुण्ड में जब एक बच्चा गिर जाता है , तो बाकि उसे उठाने को दौड़ पड़े है . और हम इसे देख कर बस इतना कह पाते है ........काश !
बरसे चाहे कितना भी  पानी , पर माँ कहती पढने से न करना आना-कानी
बारिश में सबसे बुरा लगता है , स्कूल जाना ! लेकिन मन मार कर जाना पड़ता है . और जब मम्मी मेरे लिए इतनी परेशान हो सकती है , तो मैं तो उनका लाडला राजकुमार स्कूल क्यों  नही जाऊंगा ? एएँ !
गिरा अबकी खूब पानी ...सड़क पे आ गयी जल की रानी लाओ बंसी पकडे मछली खूब सारी, माँ भी होगी खुश बनेगी इसी की तरकारी
अरे यार छोडो स्कूल ...वहां भी तो पानी टपक रहा है , चलो  मछली पकड़ते है .........देखो कौन सबसे ज्यादा मछली पकड़ता है ? अरे ...वो  देखो मछ्....छ्ली !!!!!!!!!!!
हम तो है बाल मजदूर , हर हाल में काम करने को मजबूर
माँ बीमार है , घर में पानी भरा है , बापू का पता नही , माँ की दवा लेने  के लिए पैसे की व्यवस्था भी तो करनी है . अब काम तो करना ही होगा ........घर पर माँ इन्तजार कर रही होगी ......मुझे नही खेलना .......लाया साब ....गर्म ही ला रहा हूँ !
बारिश चाहे करें कितनी भी खटपट , पर अपना धंधा न होने दूंगा  चौपट 
अरे साब , बारिश आप बड़े लोगो को ख़ुशी देती होगी , अपने लिए तो मुसीबत ही होती है ....अब देखो न , कल रात हुई तूफानी बारिश में दुकान बह गयी .किसी तरह  काम तो करना होगा , वरना पेट कैसे भरेगा ?
जब बारिश हो जोरदार , तब ऐसी करें आड़ , जय भारत और जय जुगाड़



सीप न सही मकड़ी होके भी है स्वाति की चाह , बोलो वाह वाह

बूंदों में जाने क्या ......नया है ?

एक बूंद में समायी सारी कायनात .......

मगर आजकल शहरी आपा-धापी में ऐसे नज़ारे देखने वाले लोग बारिश की खुबसूरत कहानियो को कहाँ पढ़ पाते है ?
आपको इन चित्रों के माध्यम से सुनाई गयी कहानियों में से कौन सी कहानी अच्छी लगी ? जरुर बताना

शनिवार, 4 अगस्त 2012

इत्तफाक (कविता )

तब बारिश हो रही थी , था शायद सावन का महिना 
जब भीगता देख मुझे , मुस्कुराई थी एक हसीना 
उसकी मुस्कराहट , दिल में हलचल मचा गई 
एक पल में ही न जाने , कितने सपने सजा गई 
पास आते उसके कदमो ने , दिल में उमंग जगाई 
मन ख़ुशी से झूमा , मनो उसके कदमों में दुनिया समाई 
कदम-दर-कदम दिल की धड़कन तेज हो रही थी 
आँखे उसकी कुछ उम्मीदों का बीज बो रही थी 
होंठ मानो उसके कुछ कहने को थे बेताब
इधर हम जागी आँखों से देख रहे थे ख्वाब 
जिन्दगी भीगते-भागते कर गयी मजाक 
पर कैसे मानू  की ये हकीकत थी या इत्तफाक 
  उसकी छुअन  से तन में एक बिजली समाई 
हाथ में राखी लिए बोली , आज रक्षाबंधन है मेरे भाई !!!!

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

तुम्हारे जाने से .........

सभी ब्लोगेर्स साथियों को पावन रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाये . रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक अनूठा त्यौहार है . इस दिन का सभी बहनों को बड़ी बेसब्री से इन्तजार होता है . लेकिन इस बार रक्षाबंधन के दिन मैं अपनी बहन को राखी बंधवाने के बाद  उसे जब स्टेशन छोड़ने जा रहा था , तो मन बड़ा व्यथित था .अभी तक तो सभी रक्ष्बंधन साथ मनाये थे , लेकिन उसकी शादी के बाद ये विछोह ...पुरानी यादों को फिल्म की रील की तरह फ्लेश बैक में ले जा रहा था . बचपन की बातों से लेकर अब तक की सारी बातें एक एक करके याद आ रही थी . वो बात -बात में लड़ना -झगड़ना , रूठना-मनाना और न जाने कितनी बातें ............
तुम्हारे जाने से, जीवन में एक कमी सी तो है 
आँखे कुछ ढूंढे  , इनमे भी नमी सी तो है 
दुनिया की रीत है, एक दिन था तुम्हे जाना 
आखिर क्यों कोई अपना , हो जाता बेगाना 
वो बचपन की बातें , वो होती तकरार 
बस तेरी याद बची , कहाँ  तेरा प्यार ?
मेरे लिए सब कुछ थी तुम , अब जाने कहाँ गुम
वो तुम्हारी बकबक , अब तुम्हारी तस्वीर गुमसुम 
हर पल हर लम्हा तुम्हारी याद दिलाता 
अब जाना, कि ये रिश्ता क्या कहलाता 
मुझे पता है , वहां तुम्हारी आँखों में भी होगा पानी 
 पर शायद , मिलना-बिछड़ना ही है जिंदगानी 
कैसे भूलूं , कैसे याद करूँ , प्यारी बहना 
जब बोलते आंसू , तो जुबाँ से कहना 
सोच के तुम्हारी मुस्कराहट , आंसू निकल आते 
काश ! फिर कहीं से वो बीते पल मिल जाते

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...