शनिवार, 4 अगस्त 2012

इत्तफाक (कविता )

तब बारिश हो रही थी , था शायद सावन का महिना 
जब भीगता देख मुझे , मुस्कुराई थी एक हसीना 
उसकी मुस्कराहट , दिल में हलचल मचा गई 
एक पल में ही न जाने , कितने सपने सजा गई 
पास आते उसके कदमो ने , दिल में उमंग जगाई 
मन ख़ुशी से झूमा , मनो उसके कदमों में दुनिया समाई 
कदम-दर-कदम दिल की धड़कन तेज हो रही थी 
आँखे उसकी कुछ उम्मीदों का बीज बो रही थी 
होंठ मानो उसके कुछ कहने को थे बेताब
इधर हम जागी आँखों से देख रहे थे ख्वाब 
जिन्दगी भीगते-भागते कर गयी मजाक 
पर कैसे मानू  की ये हकीकत थी या इत्तफाक 
  उसकी छुअन  से तन में एक बिजली समाई 
हाथ में राखी लिए बोली , आज रक्षाबंधन है मेरे भाई !!!!

7 टिप्‍पणियां:

  1. :-)

    फिर मिलेगी...कोई और...किसी और एहसास के साथ...

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. हाथ में राखी लिए बोली,आज रक्षाबंधन है मेरे भाई,,,,

    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी संवेदनाएँ आपके साथ है. इस दुर्घटना के लिये.

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. दिगंबर जी , फंसने के बाद ही तो निकलने के रास्ते मिलते है !

      हटाएं

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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