जिन्द्गी न जाने , क्यूँ खफा हो गयी है
हैतन्हाई के आलम में , ख़ुशी बेवफा हो गयी है
जो लिखे मोहब्बत के तराने , आज हुए बेगाने
दिल में बसी तेरी खुशबु , जाने कहाँ दफा हो गयी है
सोचा था , एक दिन पूरी होगी मोहब्बत की किताब
अफ़सोस , बचे कुछ पन्ने, कुछ फलसफा हो गयी
जेहन में बची यादें, दिल भी वीरान हुआ
दफन हो सब बातें , जिंदगी भी सफा हो गयी
महक न रह गयी बाकि, चली ऐसी आंधियां
वीरान 'चन्दन' के दरख्त , अब ऐसी फ़िज़ा हो गयी है .
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'
अति सुन्दर..अति सुन्दर..क्या प्रबल भाव है.. बस अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अमृता जी , इसी तरह स्नेह बनाए रखे
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अना जी , इसी तरह स्नेह बनाए रखे
हटाएंइस खुशी को अपने आस पास ढूंढना होता है .. मिल जाती है ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दिगंबर जी , इसी तरह स्नेह बनाए रखे. सच कहा आपने ...लेकिन कभी- कभी ढूंढने पर भी ख़ुशी नही मिल पाती है. वैसे मेरी कोशिश यही होती है .
हटाएंशुक्रिया शास्त्री जी , इसी तरह स्नेह बनाए रखे
जवाब देंहटाएंशुक्रिया हर्षवर्धन जी , इसी तरह स्नेह बनाए रखे
जवाब देंहटाएंjmane ke sawalo ko main hanske tal jata hu, nami aankho ki kehti h mujhe tum yaad aate ho.
जवाब देंहटाएंसुन्दर एहसासों से लबरेज ..
जवाब देंहटाएंसोचा था , एक दिन पूरी होगी मोहब्बत की किताब
अफ़सोस , बचे कुछ पन्ने, कुछ फलसफा हो गयी
खुबसूरत पंक्तियाँ ..बधाई
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंBahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार लोकेश जी
हटाएंआभार लोकेश जी
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