गुरुवार, 14 जनवरी 2016

आखिर भीमकुण्ड में ऐसा क्या रहस्य है ?

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जटाशंकर से दर्शन करने के बाद मैं और योगेन्द्र फिर अपनी बाइक से वापिस विजावर की ओर  आये।  बिजावर  दूसरी दिशा में भीमकुण्ड के लिए सड़क गयी है। सड़क की हालत देखकर लगता नही कि किसी दर्शनीय स्थल का रास्ता है।  कई जगह सड़क विलुप्त हो गयी।  कई बार  लगा कहीं गलत रास्ता तो नही पकड़ लिया है।  इसलिए कई जगह पूछ पूछ कर आगे बढ़ रहे थे।  रास्ता सुनसान और जंगली था।  खैर जब ओखली में सर डाल ही लिया तो मूसल से क्या डरना ! आखिर भीमकुण्ड में ऐसा क्या रहस्य है ? कि आखिर डिस्कवरी चैनल वाले भी चले आये लेकिन ये रहस्य उनसे भी नही उजागर हो पाया !
भीमकुण्ड की जानकारी पुराणों में भी मिलती है।  ऐसी जनश्रुति है, कि अपने अज्ञातवास के समय जब पाण्डव जेजाकभुक्ति ( वर्तमान बुन्देलखण्ड ) के जंगलों में छिपते-छिपाते घूम रहे थे , तो उसी समय द्रोपदी को बड़ी जोर से प्यास लगी।  लेकिन आसपास कही भी पानी का कोई स्रोत न मिला।  तब महाबली भीम ने एक पहाड़ पर अपनी गदा से जोर से प्रहार किया तो धरती फट गयी और सीधे पाताल से पानी की धार लग गयी।  जो आज भीमकुण्ड के रूप में विद्यमान है।  इस कुण्ड की सबसे बड़ी विशेषता यह है , कि पूरे विश्व में कहीं भी भूकम्प या सुनामी आती है , तो उससे पूर्व भीमकुण्ड की लहरें तेजी से कई मीटर ऊपर उछलने लगती है।  मैंने स्वयं कई बार अख़बार में ये खबर पढ़ी की  " भीमकुण्ड में लहरें ऊँची उठी " और दूसरे दिन उसी अख़बार में कही न कही भूकम्प या  सुनामी पढ़ी है ! स्थानीय लोग इसका कारण भीमकुण्ड का पाताल से जुड़ना बताते है।  चूँकि भूकम्प या सुनामी भूगर्भीय हलचलों के कारण आते है , तो इन बातों पर विश्वास करना पड़ता है।
भीमकुण्ड की सत्यता पता करने के लिए एक बार डिस्कवरी चैनल की टीम भी आ चुकी है।  उनकी टीम ने कुण्ड की गहराई पता करने का बहुत प्रयास किया , मगर एक सीमा के बाद वे भी असफल रहे।  भीमकुण्ड का पानी बिलकुल नीला और बहुत स्वच्छ है।  बताते है , कि भीमकुण्ड के जल में नहाने से चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है।  सूर्य अस्तांचल की ओर बढ़ चला था।  हम लोगो  भी अब ज्यादा देर रुकना उचित नही समझा , क्योंकि वापिस टीकमगढ़ भी लौटना था।  फोटो बहुत ज्यादा नही ले पाये , क्योंकि एक मोबाइल कैमरे का प्रयोग कर रहे थे और रौशनी कम होने लगी थी।  चलिए अगली पोस्ट जल्दी लिखने  वादे के साथ फिर मिलते है।  

भीमकुण्ड का प्रवेश द्वार। ..और स्थानीय बच्चे 

भीमकुण्ड में नहाते हुए लोग ( फोटो नेट से साभार )

नीला स्वच्छ जल.... 

ऊपर से दिखता भीमकुण्ड का विशाल छिद्र 

भीमकुण्ड परिसर में बने विद्यालय का नरसिंह मंदिर 

भीमकुण्ड के बाद। ..मिलते है , नयी पोस्ट पर 

27 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया

    अगली पोस्ट की प्रतीक्षा

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  2. वाह एक और नए स्थान से परिचय कराया आपने

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    1. हर्षिता जी, आभार
      जल्द कुछ और नए स्थानों से परिचय कराउंगा .

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  3. उत्तर
    1. नीरज जी, बुंदेलखंड में कई रहस्य छुपे है . अब कई जगह रेल भी पहुँच गई है, कभी इधर का भी रूख करिये ! स्नेह बनाये रखे :-)

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  4. बहुत ही बढ़िया और एक दम नयी जानकारी देने के लिए शुक्रिया

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "६८ वें सेना दिवस की शुभकामनाएं - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. बहुत बढिया जानकारी, अब हम भीम कुंड भी जाएगें।

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  7. जब ये पाताल तक गहरी है तो सुरक्षा के क्या नियम है। ऊपर से छेद में गिरने के चांस है ।कुण्ड भी पहाड़ तोड़कर बना है इतना विशाल कुण्ड आश्चर्य है।

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    उत्तर
    1. कुछ दिन पहले ही ऊपर के छेद के चारो तरफ जाली लगाई गयी है . बुआ जी

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  8. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  9. पानी का रंग वास्तव में सम्मोहित करने वाला है।

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  10. बहुत बढ़िया,लेख,बुंदेलखंड में कहाँ,पर है?

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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

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