गुरुवार, 21 सितंबर 2017

हेलीकॉप्टर से माता वैष्णो देवी की यात्रा (भाग 1)

नमस्कार मित्रों, बहुत दिनों के बाद ब्लॉग लिखने बैठा हूँ।  इस 29 जुलाई को मेरे पिताजी असमय ही एक दुर्घटना में हम सब को छोड़कर अनंत यात्रा पर निकल गए। इस कारण  मन बड़ा ही अशांत और दुखी है।  आज की यह पोस्ट मैं अपने पापा जी को समर्पित कर रहा हूँ।  हो सकता है, कि मेरी इस पोस्ट में भावनाएं ज्यादा हो।  पापा जी के साथ पूरे परिवार  ने एक साथ आखिरी यात्रा  इस अप्रैल को की थी।  इस बार मेरे सबसे छोटे भाई अभिषेक (मोनू ) के कारण  ही माता वैष्णो देवी की यात्रा का कार्यक्रम बन पाया था।  हम लोग वैष्णो देवी की यात्रा पर दूसरी बार जा रहे थे।  पिछली बार मोनू अपनी परीक्षा के कारण  पूरे  परिवार के साथ वैष्णो देवी नहीं जा पाया था।  इसलिए पिछले कई वर्षों से वह सपरिवार यात्रा के लिए प्रयासरत था।  लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से माता का बुलावा नहीं आ पा रहा था।  खैर इस बार भी जैसे-तैसे कई विघ्नो के बाद अंततः 9  अप्रैल  जाने का तय हो गया था।  मम्मी -पापा , मंझला भाई निकेश (सोनू ) और मोनू  हिमगिरि एक्सप्रेस से बक्सर से आ रहे थे  मैं ,  मेरी पत्नी निभा , एक वर्षीय पुत्र अनिमेष और नाना जी ओरछा से लखनऊ पहुंचे।  वहां से हमने हिमगिरि एक्सप्रेस में पूरे परिवार का संग पा लिया।  हमारी ट्रैन अपनी रफ़्तार से चली जा रही थी , और साथ ही चल रहा था , यादों का कारवां ! हमारा पूरा परिवार एक साथ बहुत काम ही मौकों पर मिल पाता है।  इसलिए ये यात्रा भी हमारे  लिए किसी उत्सव से कम नहीं थी।  पूरे परिवार के साथ मेरी पत्नी और नन्हे बालक अनिमेष की पहली यात्रा थी।  अनिमेष के लिए तो नाना जी, पापा जी और मम्मी के साथ सोनू-मोनू हाथों हाथ लिए थे।  खैर 10 अप्रैल को हम सभी लोग जम्मू तवी रेलवे स्टेशन उतरे।  पिछली बार हमने जम्मू में ही होटल लिया था , फिर बस से कटरा गए थे।  लेकिन इस बार तो जम्मू से कटरा के लिए रेल लाइन चालू हो गयी थी।  तो फिर बस और टैक्सी  वालों की छुट्टी हो गयी।  हमारे वाहट्सएप्प और फेसबुक ग्रुप "घुमक्कड़ी दिल से "  सदस्य और मित्र प्रकाश यादव जी की सलाह से हमने भी कटरा रुकने का निश्चय किया।  प्रकाश जी ने अपने संपर्क से कटरा में हमारे लिए होटल भवानी इंटरनेशनल में कमरे  तक बुक करा दिया।  जम्मू से हमने भी ट्रैन पकड़ी।  रस्ते में उधमपुर  स्टेशन  पड़ा , यहां हमारे ग्रुप के ही एक बुजुर्ग सदस्य रमेश शर्मा जी रहते है।  पर जम्मू कश्मीर  में अन्य राज्यों के प्रीपेड सिम काम नहीं करते , इसलिए उनसे नहीं मिल पाए।  खैर कटरा बस स्टैंड के पीछे बने होटल में हम लोग शाम को पहुंचे। रास्ते की थकावट के कारण हमने सुबह चढ़ाई करने  फैसला लिया।  सुबह नानाजी की उम्र और मेरी श्रीमती जी द्वारा चढ़ाई चढ़ने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण हमने हेलीकॉप्टर सेवा से जाने का फैसला किया । सुबह जब हेलीकॉप्टर सेवा टिकट काउंटर पर पहुंचे तो काफी भीड़ लगी हुई थी और सिर्फ सीनियर सिटीजन और उनके साथ एक अटेंडेंट कोही टिकट दिया जा रहा था। हालांकि जिन लोगों ने ऑनलाइन टिकट बुक किया था उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई सीधे हेलीपैड पर पहुंच कर बजन कराया और टिकट लेकर उड़ते बने । खैर कुछ देर इंतजार करने के बाद एक आशा बंधी। 1070 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से हमने टिकट खरीदें। यहां आपको एक उचित सलाह देना चाहूंगा कि यदि आपको भी माता वैष्णो देवी हेलीकॉप्टर से जाना है तो अपने साथ जितने भी लोग हैं सभी की आइडेंटी प्रूफ विशेषकर आधार कार्ड जरूर साथ रख ले क्योंकि मेरी मम्मी और श्रीमती के पास कोई आइडेंटी प्रूफ नहीं था जिसे कारण थोड़ी सी परेशानी हुई । पहले से ऑनलाइन टिकट करवाने पर यहां के 3-4 घंटे बच जाते हैं । टिकट कटवाने के बाद हम लोग ऑटो करके हेलीपैड पहुंचे जहां दो अलग अलग हेलीकॉप्टर सेवाओं के लिए दो अलग काउंटर बने हुए थे अलग हमारी टिकट पर हेलीकॉप्टर कंपनी का नाम दर्ज था इसलिए उस कंपनी के काउंटर पर पहुंचे वहां बजन कराया क्योंकि वजन के हिसाब से ही एक बार में सवारियां ले जा रहे थे। ज्यादा वजन के लोग तो कम सवारी और कम वजन के लोग तो ज्यादा सवारी वैसे अधिकतम एक बार में 6 सवारी ही ले जा रहे थे। काउंटर से हम हेलीकॉप्टर कंपनी की गाड़ियों से ऊपर पहाड़ी पर बने हेलीपैड पर पहुंचे। हम 6 लोग दो हेलीकॉप्टर में बैठे । जब हेलीकॉप्टर ऊपर उठना चालू हुआ तो किसी बड़े झूले में बैठने का जो अनुभव होता है उस तरह का अनुभव हमें भी हुआ। हालांकि थोड़ा सा डर भी लग रहा था क्योंकि नीचे बड़े बड़े पहाड़ और खाई थी अगर अगर गिरे तो नीचे नहीं सीधे ऊपर पहुंचते। खैर माता रानी का नाम लिया और डर दूर और हम उड़न छू। सामने सफेद बर्फ की चादर ओढ़े पीरपंजाल की खूबसूरत पहाड़ियां दिख रही थी बहुत ही मनमोहक नजारा था लेकिन जब तक हम इन नजारों को जी भर कर देखते तब तक हम सांझीछत पर बने हेलीपैड पर लैंड करने वाले थे। कुल 15 मिनट की इस हवाई यात्रा का अनुभव निराला था, हमारे 1 साल के सुपुत्र भी इस यात्रा के सहयात्री थे। हमसे पहले वाले हेलीकॉप्टर में मेरे दोनों भाई निकेश और अभिषेक  हेली पैड पर पहुंच चुके थे और अभिषेक ने तो फोटोग्राफी प्रतिबंधित होने के बावजूद हमारे लैंड होने का वीडियो अपने मोबाइल में बनाया। हेलीपैड पर उतरने के बाद लगभग 2 से ढाई किलोमीटर पैदल यात्रा की चढ़ाई बाकी थी । हम लोग जय माता दी के नारे लगाते हुए माता के दरबार की ओर बढ़ने लगे । मेरे साथ एक समस्या यह थी कि मेरा 1 साल का बेटा मेरे अलावा किसी और के पास जा ही नहीं रहा था इसलिए मुझे उससे अपनी गोद में लेकर चढ़ाई करनी पड़ी ।
अब मातारानी क दरबार पहुँचने के  पूर्व उनकी कथा संक्षेप में जानते है।


 वैष्णो देवी उत्तरी भारत के सबसे पूजनीय और पवित्र स्थलों में से एक है। यह मंदिर पहाड़ पर स्थित होने के कारण अपनी भव्यता व सुंदरता के कारण भी प्रसिद्ध है। वैष्णो देवी भी ऐसे ही स्थानों में एक है जिसे माता का निवास स्थान माना जाता है। मंदिर, 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हर साल लाखों तीर्थ यात्री मंदिर के दर्शन करते हैं।यह भारत में तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थस्थल है। वैसे तो माता वैष्णो देवी के सम्बन्ध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं लेकिन मुख्य 2 कथाएँ अधिक प्रचलित हैं।
Mata Vaishno devi ki kahani
माता वैष्णो देवी की  कथा
मान्यतानुसार एक बार पहाड़ों वाली माता ने अपने एक परम भक्तपंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी लाज बचाई और पूरे सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह नि:संतान होने से दु:खी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुँवारी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गई पर माँ वैष्णो देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं- ‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस – पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहुँचा दिया। वहाँ से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया। भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांववासी अचंभित थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गांववासी आकर भोजन के लिए एकत्रित हुए। तब कन्या रुपी माँ वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया।
भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई। तब उसने कहा कि मैं तो खीर – पूड़ी की जगह मांस भक्षण और मदिरापान करुंगा। तब कन्या रुपी माँ ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता। किंतु भैरवनाथ ने जान – बुझकर अपनी बात पर अड़ा रहा। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकडऩा चाहा, तब माँ ने उसके कपट को जान लिया। माँ ने वायु रूप में बदलकरत्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली। भैरवनाथ भी उनके पीछे गया। माना जाता है कि माँ की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी थे। मान्यता के अनुसार उस वक़्त भी हनुमानजी माता की रक्षा के लिए उनके साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से श्रद्धालुओं की सारी थकावट और तकलीफें दूर हो जाती हैं।





इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की। भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है। इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्धक्वाँरी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते – भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। फिर भी वह नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गई। तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरव से युद्ध किया।
भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी जब वीर हनुमान निढाल होने लगे, तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा’ अथवा ‘भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (मध्य) और माँ लक्ष्मी (बाएँ) पिंडी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है। इन तीन भव्य पिण्डियों के साथ कुछ श्रद्धालु भक्तों एव जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व नरेशों द्वारा स्थापित मूर्तियाँ एवं यन्त्र इत्यादी है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी।



माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी, उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद 8 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर भैरवनाथ के दर्शन करने को जाते हैं। इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था, अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे, उन्होंने कई विधियों से ‘पिंडों’ की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली, देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं, वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।
लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन के बाहर
निर्माणाधीन चारबाग मेट्रो स्टेशन 
दादा अपने पोते की तस्वीर उतारते हुए 
रास्ते के नजारे 


रास्ते  में एक नदी का दृश्य 
सुरंग से गुजरती हमारी ट्रैन 
हरियाली और रास्ता 
जम्मू से कटरा जाते हुए बीच में मिला उधमपुर स्टेशन 
आखिरकार पहुँच  ही गए 
खूबसूरत कटरा स्टेशन (पीछे त्रिकूट पर्वत )
एक सेल्फी कटरा स्टेशन के बाहर 
रात्रि में कटरा से दिखता  माँ का दरबार 
होटल भवानी इंटरनेशनल , कटरा (जहाँ  हम लोग रुके )

माता के दरवार का रास्ता 
हेलीकाप्टर के लिए पहली पर्ची 

हेलिपैड पर बने काउंटर 
हमारे उड़नखटोले का टिकट 
हमारे उड़नखटोले के पहले दर्शन 
उड़ने की तैयारी 
सांझी छत पर उतरने के बाद माता के दरबार  की ओर  
आज की पोस्ट में इतना ही अगली पोस्ट में माता के दरबार तक की यात्रा। .. तब तक के लिए जय माता दी 

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...