नमस्कार मित्रों,
इस बार फिर से अपने ससुराल यानी गया से की गई यात्रा के बारे में आपको परिचित कराने जा रहा हूं जैसा की आप सभी को पता है कि मेरी पिछली यात्रा जो ससुराल से की थी, वह प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र नई दुनिया में प्रकाशित हो चुकी है । आप इस लिंक पर क्लिक करके इस यात्रा को पढ़ सकते हैं। तो बात वर्ष 2017 के जून महीने की है । जब मैं अपनी पत्नी को छोड़ने गया गया । अपनी पिछली यात्राओं में मैं गया और बोधगया घूम चुका था इसलिए इस बार नालंदा और राजगीर भ्रमण का कार्यक्रम आनन-फानन में बनाया गया । और इस बार मैंने अपने साथ अपने बड़े साले ध्रुव उपाध्याय, जो कि दिल्ली में सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हैं को साथ लेकर उनकी बाइक से राजगीर और नालंदा नापने की तैयारी कर ली ।
इस बार फिर से अपने ससुराल यानी गया से की गई यात्रा के बारे में आपको परिचित कराने जा रहा हूं जैसा की आप सभी को पता है कि मेरी पिछली यात्रा जो ससुराल से की थी, वह प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र नई दुनिया में प्रकाशित हो चुकी है । आप इस लिंक पर क्लिक करके इस यात्रा को पढ़ सकते हैं। तो बात वर्ष 2017 के जून महीने की है । जब मैं अपनी पत्नी को छोड़ने गया गया । अपनी पिछली यात्राओं में मैं गया और बोधगया घूम चुका था इसलिए इस बार नालंदा और राजगीर भ्रमण का कार्यक्रम आनन-फानन में बनाया गया । और इस बार मैंने अपने साथ अपने बड़े साले ध्रुव उपाध्याय, जो कि दिल्ली में सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हैं को साथ लेकर उनकी बाइक से राजगीर और नालंदा नापने की तैयारी कर ली ।
गया से राजगीर की दूरी गहलौर होकर 60 किलोमीटर है और उसके आगे नालंदा है । इसलिए हम लोग सुबह से ही बाइक से निकल पड़ी परंतु गया शहर में ही विष्णुपाद मंदिर के पास ही बारिश शुरू हो गई और हम लोगों को आसपास की दुकानों में शरण लेनी पड़ी । बारिश का होना हमारे लिए शुभ संकेत था क्योंकि अच्छे कार्यों में बाधा तो आती है । खैर एकाध घंटे के इंतजार के बाद बारिश थम गई और हमारी बाइक चल पड़ी । रास्ते में फल्गु नदी का पुल मिला । मोक्षदायिनी फल्गु जिसके किनारे पर लोग पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंडदान करते हैं । फल्गु नदी एक बरसाती नदी है । इस में बरसात के बाद पानी ना के बराबर होता है, परंतु एक आश्चर्यजनक बात यह है कि ऊपर से सूखी देखने वाली फल्गु की रेत को जब खोदा जाता है, तो अंदर पानी अवश्य मिलता है । कहा जाता है कि माता सीता के श्राप से फल्गु का यह हाल हुआ । ऐसी जनश्रुति है कि जब भगवान राम माता सीता और भैया लक्ष्मण के साथ अपने पिता दशरथ जी का पिंडदान करने गया में आए तो माता सीता को फल्गु के तट पर छोड़कर पूजन सामग्री लेने चले गए । तभी पितर रूप में दशरथ जी आए और सीता जी से पिंड दान करने को कहा और जल्दबाजी में सीता जी ने भगवान राम को ना आता देख कर रेत के पिंड बनाकर ही दशरथ जी को पिंडदान किए और उससे तृप्त होकर दशरथ जी मोक्ष को प्राप्त कर लिए । जब भगवान राम और लक्ष्मण पूजन सामग्री लेकर वापस लौटे तो सीता जी ने उन्हें पूरा किस्सा सुनाया । भगवान राम को इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ कि पिता श्री दशरथ रेत के पिंडदान से तृप्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर गए । तब उन्होंने माता सीता से इस घटना के प्रत्यक्षदर्शियों और प्रमाण की बात कही । माता सीता ने 4 प्रत्यक्षदर्शियों को बताया । जिनमें पिंडदान कराने वाला ब्राह्मण, फल्गु नदी, पास में खड़ी गौमाता और दूब को प्रत्यक्षदर्शी बताया । दूब के अलावा ब्राह्मण फल्गु नदी और गौ माता सीता जी की बात से असहमत हुए । यह सुनकर सीता जी ने क्रोध में इन तीनों को श्राप दिया । उस पर आप के परिणाम स्वरुप ब्राह्मण चिरभिक्षुक हुए, फल्गु नदी अंतः सलिला बनी और गौ माता विस्टा खाने वाली । जबकि दूब किसी भी परिस्थिति में जीवित रहने का आशीर्वाद से लाभान्वित हुई । सूखी पड़ी फल्गु नदी में ट्रैक्टर और डंपर रेत खनन के कार्य लगे हुए थे ।
बारिश के बाद मौसम सुहाना हो चला था और नीलेआसमान में छोटे छोटे सफेद बादल बहुत खूबसूरत लग रहे थे । हम अपनी बाइक से मस्ती के साथ चले जा रहे थे । आगे गहलौर घाटी से गुजरे । गहलौर घाटी का नाम तो सुना ही होगा । माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने इसी गहलौर घाटी में पहाड़ को अकेले चीरकर रास्ता बनाया । लोग कहते हैं कि भारत में प्रेम की सबसे बड़ी मिसाल शाहजहां और मुमताज के प्रेम की निशानी ताजमहल है । परंतु चौदहवी बार प्रसव पीड़ा के दर्द को झेलती हुई मुमताज मर जाती है और शाहजहां उसकी बहन से शादी कर लेता है । तो यहां कैसे सच्चा प्रेम हुआ ? मेरे विचार से तो सच्चे प्रेम की सबसे बड़ी निशानी यह गहलौर घाटी है जहां एक गरीब दशरथ मांझी अपनी पत्नी के प्रेम में पूरे पहाड़ को सिर्फ छैनी और हथोड़े से काट डालता है । इस प्रेम कहानी पर हिंदी फिल्म माउंटेन मैन भी बन चुकी है जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने दशरथ मांझी का किरदार बहुत ही अच्छे तरीके से निभाया है । आप में से कुछ लोगों ने यह फिल्म देखी ही होगी । क्षेत्र से गुजरने पर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है । समयाभाव में इस बार गहलोत घाटी को छोड़ कर हम प्राचीन मगध की राजधानी राजगृह की ओर चल पड़े...
बारिश के बाद मौसम सुहाना हो चला था और नीलेआसमान में छोटे छोटे सफेद बादल बहुत खूबसूरत लग रहे थे । हम अपनी बाइक से मस्ती के साथ चले जा रहे थे । आगे गहलौर घाटी से गुजरे । गहलौर घाटी का नाम तो सुना ही होगा । माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने इसी गहलौर घाटी में पहाड़ को अकेले चीरकर रास्ता बनाया । लोग कहते हैं कि भारत में प्रेम की सबसे बड़ी मिसाल शाहजहां और मुमताज के प्रेम की निशानी ताजमहल है । परंतु चौदहवी बार प्रसव पीड़ा के दर्द को झेलती हुई मुमताज मर जाती है और शाहजहां उसकी बहन से शादी कर लेता है । तो यहां कैसे सच्चा प्रेम हुआ ? मेरे विचार से तो सच्चे प्रेम की सबसे बड़ी निशानी यह गहलौर घाटी है जहां एक गरीब दशरथ मांझी अपनी पत्नी के प्रेम में पूरे पहाड़ को सिर्फ छैनी और हथोड़े से काट डालता है । इस प्रेम कहानी पर हिंदी फिल्म माउंटेन मैन भी बन चुकी है जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने दशरथ मांझी का किरदार बहुत ही अच्छे तरीके से निभाया है । आप में से कुछ लोगों ने यह फिल्म देखी ही होगी । क्षेत्र से गुजरने पर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है । समयाभाव में इस बार गहलोत घाटी को छोड़ कर हम प्राचीन मगध की राजधानी राजगृह की ओर चल पड़े...
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अन्तः-सलिला फल्गु नदी |
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और हम चल पड़े अपने दोपहिया से |
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रास्ते के नजारे |
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राजगीर का स्वागतद्वार |
सही बात है कि अच्छे कार्य बिना बाधा के नहीं होते। फल्गु नदी के बारे में अच्छी कहानी बतायी आपने। वैसे जब मोटरसाइकिल से थे तो माउंटेन मैन के गांव भी घूम ही लेना चाहिए था। मैं गया,राजगीर वगैरह अभी नहीं जा सका हूँ। जाने की इच्छा है लेकिन आपका यात्रा विवरण पढ़ने के बाद ही जाऊँगा। अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंअगर गहलौर जाते तो राजगीर या नालंदा में से कोई एक जगह छूट जाती ।
हटाएंआभार डॉ साहब
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ओ. पी. नैय्यर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआभार हर्षवर्धन
हटाएंराजगीर देखा हुआ है। चलिए आपके साथ हम भी चल रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंअब मेरी नजरों से देखिए बुआ जी
हटाएंफल्गु नदी के बारे में पहली बार सुना, बहुत अच्छा लगा ।👍👍👍
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंसुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट।👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओम भाई
हटाएंwould u like to share your article with www.headline09.com.we can publish it as it is with your name .
जवाब देंहटाएंplz contact with us on info@headline09.com
Thanks
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जवाब देंहटाएंजय हो...प्रभु
जवाब देंहटाएंजय हो
हटाएंफाल्गु नदी की जानकारी अच्छी लगी...शायद गया से राजगीर जहानाबाद होकर रास्ता था लेकिन माउंटेन मैन की वजह से यह रास्ता बना है...,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रतीक भाई । रास्ते का पता करके बताता हूँ ।
हटाएंपाण्डेय जी , पोस्ट अच्छी है लेकिन बेहद छोटी .तस्वीरें भी कम हैं . राम सीता की कहानी निकाल दें तो कुछ नहीं बचता . अगली पोस्ट में इसकी पूर्ति जरूर करना .
जवाब देंहटाएंजी, नरेश जी ।
हटाएंआभार
बहुत बढ़िया तीर्थ महिमा की जानकारी
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंननिहाल है गया... इसलिये बचपन में घूम चुका हूँ...वालिदा घर है.. पर अब तक नहीं घूम पाया हूं... राजगीर काफी छोटा था तब गया था... गर्म सोतों की याद है बस
जवाब देंहटाएंअब घूम आइए ।
हटाएंआभार
बहुत बढ़िया पांडेय जी। माउंटेन मैन दशरथ मांझी को कौन भूल सकता है !! बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार योगी जी
हटाएंNice line, publish online book with best
जवाब देंहटाएंHindi Book Publisher India