सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

आहिस्ता आहिस्ता.....(ग़ज़ल)


यूँ ही जिंदगी गुजरती जा रही है, आहिस्ता -आहिस्ता
जैसे सुबह की धुप पसरती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
रात गुजर गयी पर ख्वाब तक आये
जिन्दगी में मशरूफियत ठहरती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता

जुबान तो जाने कबसे खामोश है
पर
दिल की धड़कने बढती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
जेहन में खयालो का समंदर सा हो गया है
पर ये आँखे बरसती जा रही आहिस्ता-आहिस्ता
थम गये है, वो सारे सिलसिले अब
पर ये जिंदगी गुजरती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता

3 टिप्‍पणियां:

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...