विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
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रविवार, 12 अगस्त 2012
यही तो देश का कष्ट है
यही तो देश का कष्ट है कि सारे नेता भ्रष्ट है राजनीती तो अब नष्ट है तब भी नेता स्वस्थ्य है वे घोटालो के अभ्यस्त है और आम जनता त्रस्त है सारे मौका परस्त है सब अपने में मस्त है वतन कि हालत पस्त है खुशहाली अस्त-व्यस्त है यही तो देश का कष्ट है कि अब सब ध्रतराष्ट्र है - मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'
जनता भी तो धृतराष्ट्र से कम नहीं, जो हर बार उन्हें ही ले आती है
जवाब देंहटाएंkajal ji maine bhi janta ko hi kaha .
हटाएंअति सुंदर कृति
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
1. DISQUS 2012 और Blogger की जुगलबंदी
2. न मंज़िल हूँ न मंज़िल आशना हूँ
3. ज़िन्दगी धूल की तरह
bilkul...sneh banaye rakhiye
हटाएंयही तो कष्ट है .... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंshukriya sangeeta ji
हटाएंयही तो कष्ट है ..कैसे ये दूर हो ..सब अपने में मस्त है ..सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंaabhar maheshwari ji
हटाएंआपकी रचना के भाव उत्कृष्ट है ,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
सुन्दर और समयानुकूल.
जवाब देंहटाएंकेलव धृतराष्ट्र नहीं उनके उपजाये सौ, उनसे भी एक कदम आगे !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सन्देशपरक रचना!
जवाब देंहटाएंइस बीमारी का इलाज कैसे हो पायेगा?