मेरी आँखों में एक छोटा सा समंदर बसा है ।
गम न जाने मेरे सीने के कितने अन्दर बसा है ।
भीड़ में भी रहकर मैं अन्हा अह जाता हूँ ।
कह कर भी दिल की बात न कह पाता हूँ ।
इस मुस्कुराहटो के पीछे न जाने कितने आंसुओं की दास्तान है ।
न जाने कहाँ मेरी मंजिल , न जाने कहाँ मेरा जहाँ है ।
दर्द दिखता नही वरना, मैं दुखों की खान हूँ ।
क्या और भी है ? या अकेला मैं ही ऐसा इंसान हूँ ।
मुस्कुराने से दर्द छिप तो जाता है , मगर मिटता नही है ।
लाख कोशिशों के बाद भी ये दर्द सिमटता नही है ।
सांपो से लिपटे "चंदन " का दर्द कोई समझ पायेगा ?
या यूँ ही ये कुल्हाडियों के वर सहता जाएगा ?
- मुकेश पाण्डेय "चंदन "
sahi darde wyaan hai ........isame khubsoorati bhi hai to dard ke sath............uchit
जवाब देंहटाएंwaah waah chandanji..............bahut umda !
जवाब देंहटाएंyon laga mano shabdon me pran phoonk kar unhen sakshaat khada kar diya ho....
baat hai...
aapme baat hai.......
BADHAAI !
shukriya janab
जवाब देंहटाएंमुकेश जी,
जवाब देंहटाएंचंदन ने भले ही कितने ही भुजंग देखों हो लिपटे हुये पर उसने कभी संगत नही की। कहा भी है ना " जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकै कुसंग, चंदन विष व्यापै नही लिपटत रहे भुजंग "
यह समेटा हुआ दर्द जब कविता बन कर बहता है तो शीतलता प्रदान करता है, ऐसे ही रचना का झरना बहने दीजिये।
मुकेश कुमार तिवारी