औरत और आंसू , है कितनी समानता
दोनों सुख-दुःख के साथी, लेके महानता
सुख दुःख का पर्याय , नयन-नीर और नारी
छलक पड़ते दोनों, सुख हो या दुःख भरी
आजीवन ही नारी की आँखों में होता पानी
हर मुस्कान और तीस से जुडी दोनों की कहानी
बिन आंसू के आँखे , कहलाती संवेदनहीन
बिन नारी के कहाँ समाज भी कहलाता कुलीन
औरत के लिए कब किसने आंसू बहाए ?
औरत के आंसू पर समाज ने खूब गीत गाये
दूजो के लिए ही तो औरत व् आंसू काम आये
अपने लिए भी बह सके , कभी तो ऐसी शाम आये ...
पुछल्ला ;- )
जवाहर सिंह "झल्लू " जब घर पहुचे तो देखा उनका बेटा रो रहा था , जब झल्लू जी ने उससे रोने का कारन पूछा तो उसने रोते-रोते बताया - पापा आज मुझे फिर से मम्मी ने मारा है। अब बहुत हो गया मेरा बा आपकी बीबी के के साथ गुजारा नही हो सकता है। मैं जा रहा हूँ ।
नव वर्ष की पुनः शुभकामनाओ के साथ आपका ही
मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
बेचारा झल्लु का बेटा....
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