मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

क्रांकीट के जंगल


इन क्रांकीटो के जंगलो में जिंदगी, जाने कहाँ गम हो गयी
हंसती- गाती जिन्दगी सीमेंट के दरख्तों में गुमसुम हो गयी
भागमभाग की लहरों के साथ बहता दरिया कोलतार का
भोर होते शुरू होता कलरव, ट्रकों , बसों , गाडियों और कार का
चलती जब बयार तो झूम उठते तरु इस्पात के
टिमटिमा उठती सितारों सी बत्तियां होते ही रात के
मुसकान लापता है, चीखो के साथ ये जिंदगी बदनाम हो गयी
इन क्रांकीटो के जंगलो में जिंदगी , जाने कहाँ गम हो गयी
कीड़ो सी जिंदगी जीते लोग, जिनका कोई हिसाब है
मुखोटो पे मुखोटे लगाती जिंदगी, खेल ये लाजवाब है
हर तबस्सुम के पीछे छुपा राज, पर गम बेनकाब है
खिलती है कलियाँ अब मशीनी, मशीने ही आफताब है
थी कभी जो 'चन्दन' , वो जिन्दगी आज मशरूम हो हो गयी
इन क्रांकीटो के जंगल में जिंदगी जाने कहाँ गम हो गयी

1 टिप्पणी:

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...