नक्सली क्षेत्र में बम बने हम
अब नुकीले पत्थरों के बीच उतराई शुरू हो गयी थी । बहुत संभल संभल कर उतरना पड़ रहा था, क्योंकि असावधानी पर चोट लगने का खतरा था, और अगर चोट लगी तो आसपास तो ठीक दूर दूर तक कोई मेडिकल सुविधा नही थी । तभी देखा हमारे बगल से युवाओं का एक दल तेजी से नीचे उतरा । उनकी तेजी देखकर मैं आश्चर्य में था । मैंने कहा ये स्थानीय लोग होंगे, जो पहाड़ों पर रोज ही चढ़ते-उतरते होंगे । अभिषेक बोला - भैया यही तो नक्सली लोग तो नही है !
मैंने कहा हो सकता है । नक्सली भी तो लोकल में से है, कोई अलग से थोड़े होते है ।
तभी हमारा ड्राइवर बोला - भैया, ये जो भी हो, इनकी तेजी का कारण फुक्की थी ।
मतलब ?
ये लोग गांजा फूंक कर नशे में आगे बढ़ रहे है ।
तुम्हे कैसे पता ?
भैया, मैंने इन्हें चिलम फूंकते हुए देखा था । यहाँ आधे से ज्यादा लोग इसी तरह के है । बोल बम बोलकर चिलम पीते है !
इसलिए तो सिंगल हड्डी डबल बैटरी बने है ।
इतनी देर से मैं अपनी धीमी चाल पर दुखी था, अब इन सबकी हवाई चाल का राज समझ आया । लेकिन अब और सतर्कता से चलना पड़ रहा, क्योंकि हवाई यात्रियों के लिए रास्ता छोड़ना पड़ रहा था। अन्यथा हम हवाई दुर्घटना के शिकार हो सकते थे ।
तभी फिर से एक काफिला बोल बम का नारा लगाता हुआ बगल से गुजर गया । कांवर यात्रा में जो-जो व्यक्ति कांवर लिये होते है, वो परस्पर एक दूसरे को 'बम' नाम से संबोधित करते है । इस यात्रा में लोग कांवर तो नही लिये थे, मगर प्लास्टिक की कुप्पियों में गंगा जल लिये हुये है । इन बम से हम बम सावधान होकर चल रहे थे, कि कोई बम विस्फोट न हो जाये ।
खैर फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए हम खड़ी उतराई आखिरकार उतर आये । चढ़ाई से ज्यादा उतराई खतरनाक हो गयी थी । अभी मंजिल दूर थी । नीचे उतरते ही कुछ दूर समतल जगह में चलना बड़ा अच्छा लग रहा था । आगे एक चाय की दुकान मिली । वहाँ मिली नींबू चाय ने कुछ थकान मिटाई । इस दुकान में चिलम भी मिल रही थी । इस बात ने टिंकु की बात को प्रमाणित कर दिया । हम जमीनी बम ही ठीक थे, हमे हवाई बम नही बनना था । अब हिम्मत जुटाकर आगे बढ़े । तो आगे नदी मिल गयी । नदी पर स्थानीयों ने बांस और लकड़ियों से पुल बना रखा था । नदी के बीच में दो सीमेंट के पिलर बना दिये थे, उन्ही के सहारे लकड़ियों का पुल बनाया गया था । पुल पार करने के लिए 10 रुपये का प्रति व्यक्ति टोल भी लिया जा रहा था । जिन्हें टोल नही देना था, वो कमर भर पानी वाली नदी चलकर पार करनी थी । तो हवाई लोग नदी में से पार हो रहे थे । मैंने पुल की फ़ोटो लेने के लिए मोबाइल निकाला तो टोल वसूल रहे व्यक्ति ने फ़ोटो के लिए मना किया । इस दुर्गम क्षेत्र में इनसे पंगा लेना ठीक नही । फिर भी जल्दबाजी में एक फ़ोटो निकाल ही ली । हमने टोल देकर पुल पार किया ।
रास्ते में मिल रही छोटी-छोटी झोपड़ियों में खुली अस्थायी दुकानों में चाय, बिस्किट, नमकीन आदि से पेट पूजा चल रही थी । खैर चरैवेति चरैवेति का पालन करते हम हँसी-मजाक करते हुये चल रहे थे । सबसे आगे टिंकु सिंगल हड्डी डबल बैटरी चल रहा था । सबसे पीछे संजय जी और उनसे पहले मैं चल रहा था । संजय जी पस्त हो गये थे । बोले हम लोग दो दिन में यह यात्रा करते थे । आप लोगो के साथ एक ही दिन में हो जायेगी । रास्ते में एक दुकान पर पुछा कि गुफा कितनी दूर है । तो जवाब मिला बस आ ही गये । यह जवाब पिछले कई किलोमीटर से मिल रहा था । खैर हम लोग गुप्तेश्वर धाम पहुँच ही गये । यहाँ भी एक नदी मिली, मगर इसमें घुटनों तक ही पानी था, तो बिना टोल दिये हम नदी पार किये । सामने पूरा मेला लगा हुआ था । खाने-पीने की दुकानें बड़ी संख्या में लगी थी । पूजा-पाठ की भी दुकानें लगी थी । रोजमर्रा की सामग्री भी मिल रही थी, बच्चों के खेल खिलौनों की दुकाने भी थी । अब मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा, कि हम बड़ी मुश्किल से यहाँ तक पहुँचे और ये लोग दुकानों का इतना सामान लेकर कैसे पहुँचे ? एक दो जगह ट्रेक्टर ट्राली सहित दिखे । अब मेरा मन थकान के बावजूद तेजी से चलने लगा । कही हम जबरन तो इतनी मेहनत कर के तो नही आये ? कोई दूसरा रास्ता सड़क वाला तो नही है ? जब ट्रेक्टर आ सकते है, तो कार भी आ ही जाती है । कार नही भी आती तो सड़क वाले रास्ते से हम आसानी से आ ही जाते ? कही संजय जी गलत रास्ते से तो नही लेकर आये ? हो सकता है उन्हें इस रास्ते की जानकारी ही न हो ! इसका जवाब एक दुकानदार ने ही दिया । भैया, हम दुकान का अपना सामान ट्रेक्टर पर लाद के बरसात के पहिले ही ले आते है । बरसात शुरू होते ही नदी में पानी आने से कच्चा रास्ता बंद हो जाता है । ये ट्रेक्टर आये तो बारिश के पहिले थे, मगर बारिश होने यही रह गये, अब जब नदी में पानी कम होगा तभी जा पायेंगे । ये सुनकर बड़ी राहत मिली । हम भारतीय अपने दुख से दुखी नही होते, बल्कि दूसरे के सुख से दुखी होते है ।
अब स्नान कर गुप्ता बाबा के दर्शन करना था । इसके भी दो विकल्प थे । पहला जो नदी हमने अभी पार की है, उसी में स्नान किये जायें । या फिर कुछ दूरी पर इसी नदी के स्रोत शीतल कुण्ड पर स्नान किया जाये । अब और चलने का मन नही था, लेकिन जब पता चला कि शीतल कुण्ड एक जलप्रपात है, तो भारी कदम से उस तरफ चल पड़े । दुकानों पर बिक रहे प्लास्टिक के लोटा नुमा जलपात्र हमने भी खरीद लिये । शीतल कुण्ड पहुँचने पर देखकर ही मन शीतल हो गया । जब झरने के नीचे खड़े हुये तो सारी थकान छू मंतर हो गयी । बोल बम के नारे यहाँ भी गूंज रहे थे । बड़ी देर तक सबने नहाया । यहाँ पुरुषों के साथ-साथ महिलायें भी नहा रही थी । हम ने नहाकर यही झरने से जल भरा और चल पड़े गुप्ता बाबा की गुफा की तरफ । बहुत बम गीले ही जल लेकर गुफा की तरफ जा रहे थे । पता नही हवाई बम थे या जमीनी बम ।
गुफा के सामने हम पहुँचे तो बाहर ऑक्सीजन के सिलेंडर पड़े हुये थे । कारण पता किया तो पता चला कि गुफा के अंदर ऑक्सिजन की कमी से कई बार लोगो को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है । तब की आपातकालीन व्यवस्था है । कुछ लोग गुफा के थोड़े अंदर जाते ही वापिस आ रहे थे, उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी । ये देखकर हमें भी थोड़ी घबराहट सी हुई । मगर बोल बम कहते हुए हमने गुफा में प्रवेश किया । गुफा काफी लंबी और ऊंचाई में कम थी । मुहाने को छोड़कर अंदर अंधेरा है । हमारी चीनी टॉर्च यहाँ भी काम आयी । अंदर ऑक्सीजन की कमी तो लगी मगर इतनी भी कम नही । कुछ लोग अंधेरे से ही डरकर रास्ते ही लौट रहे थे । कुछ लोग तो रास्ते में पत्थर को शिवलिंग समझ वही जल चढ़ा कर लौट आये , इस कारण नीचे पानी भी भर गया । आखिरकार हम गुप्तेश्वर बाबा तक पहुँच गये । यहाँ ऑक्सिजन की कमी महसूस होने लगी थी, इसलिए जल चढ़ाकर जल्दी ही प्रणाम कर हम भी वापिस हुये । गुफा आगे भी विस्तृत थी, बताते है, कि आज तक किसी को गुफा की लंबाई का पता ही नही चला । जो पता भी करने गया फिर उसका भी पता नही चला । यह एक प्राकृतिक गुफा है, जो चूने के निक्षेप से बनी है । शिवलिंग का निर्माण भी चूने के निक्षेप से ही हुआ है । पवित्र गुफा के द्वार पर जाने के बाद सीढि़यों के सहारे नीचे उतरना पड़ता है। गुफा में लगभग 363 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है। जिसमें सालों भर पानी भरा रहता है। इसे स्थानीय निवासी पातालगंगा कहते हैं। एक बात बड़ी बुरी लगी लोग प्लास्टिक के जल पात्र जल चढ़ाने के बाद वही गुफा में फेंक रहे थे । जो आने-जाने वालों के पैरों में लग रहे थे । हम अपने जल पात्र साथ ही लाये ।
दर्शन के बाद हम गुफा के बाहर निकले तो पेट में चूहे कबड्डी के बाद फुटबॉल खेलने लगे थे । एक पूड़ी सब्जी की दुकान पर बैठे । पूछा पूड़ी कैसे दिये ?
दुकानदार बोला - कितने किलो चाहिए ? 100 रुपये किलो है ।
पूड़ी और किलो में ? तब पूछा कि एक किलो में कितनी पूड़ी चढ़ेगी ?
दुकानदार ने तराजू में तौलकर दिखाई । 8-10 पूड़ी चढ़ी । सब्जी पूड़ी के साथ मुफ्त थी ।
इतनी तेज भूख में कुछ भी खाते तो अच्छा ही लगता । कुछ देर के आराम के बाद फिर चल पड़े वापिस । वापिसी कुछ आसान लगी क्योंकि रास्ते अब पहचान के थे ।
इस तरह गुप्तेश्वर बाबा के दर्शनों के लिए हम नक्सली क्षेत्र में बम बने । बोल बम । यह कुल 21 किमी लंबी पैदल यात्रा थी, जिसमे हमने पाँच पहाड़ियों को और दुर्गावती नदी को पांच बार पार किया था । सासाराम जिला मुख्यालय से लगभग 65 किमी की दूरी है । अब सड़क तो बनी है, मगर वन क्षेत्र होने से बहुत अच्छी नही है । सासाराम रेलवे लाइन से जुड़ा है । मुगलसराय-गया रेलखण्ड । सासाराम NH 2 यानी ग्रान्ट ट्रंक रोड से जुड़ा है । नजदीकी हवाई अड्डा पटना और वाराणसी है ।
नोट :- यह यात्रा जुलाई 2016 में की गयी थी, तबसे अब तक वहाँ की परिस्थितियों में बहुत परिवर्तन हो गया है । यात्रा पहले की तुलना में सुगम हो गयी है ।
ऑक्सिजन सिलेंडर |
गुफा के सामने लगी दुकानें |
टोल वाले पुल को पार करते हुऐ |
गुफा के द्वार पर खड़े हम |
गुप्तेश्वर बाबा शिवलिंग |
जलप्रपात के पास हम लोग |
रास्ते में छोटे छोटे झरने खूब मिले |
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ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...