शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

उफ़ ! ये नई मुसीबत आ गई .....?

नमस्कार जी,
सबसे पहले सॉरी जी , इतने दिनों जो ब्लॉग जगत से जो गायब रहा । खैर कुछ परेशानिया तो आती ही रहती है। लेकिन आज मैं जो मुसीबत की बात करने वाला हूँ, वो आम नही कुछ खास है। अब अपने सीधे सादे परधन मंत्री जी की मुसीबत बढ़ गयी है, जनाब जिस अमेरिका से परमाणु समझौता करने के लिए उन्होंने अपनी सरकार तक दांव पर लगा दी। उसी अम्रीका के राष्ट्रपति ओबमाओ (ओबामा+माओ)जो शायद दिखने के लिए हनुमान जी की प्रतिमा अपने साथ रखते है, गाँधी जी की फोटू अपने ऑफिस में लगाते है, व्हाईट हाउस में दिवाली मनाते है. और चीन जाकर इंडो-पाक विवाद में चीन का हस्तक्षेप जरुरी मानते है !
खैर, हिंदुस्तान अपने मसले ख़ुद सुलझाने की समझ रखता है , बशर्ते पाक इसके लिए तैयार हो ?!
अब दुनिया दारी छोडो और मेरी एक कविता पढ़िए ......
नवजीवन
अस्त होते-होते सूर्य क्षितिज से बोला - कि तात
तनिक प्रतीक्षा और कर लेती, ये अंधकारमयी रात
आपके पुत्रो को दिवसभर दिया, ऊर्जा और प्रकाश
अभी मन भरा ही न था कि आपने दे दिया अवकाश
क्षितिज मेघ झरोखा हटाते बोला - कि वत्स
है प्रकृति का नियम यही, है हम-तुम विवश
कल तुम आना , नव ऊर्जा और शक्ति से सम्पूर्ण होके
देना इन्हे नवजीवन , कि विस्मित होके जग देखे
सब लगते निज निज कर्मो से आते ही तुम्हारे
दिवस परिश्रम से थक्के , करते आराम जाते ही तुम्हारे
नियम टूटे या न टूटे, पर मत इनको थकने देना
है आराम भी जरुरी, अब आने दो मधुरिम रैना
नवजीवन लेकर आऊंगा, अब मैं नित्य
क्षितिज से कहते-कहते, अस्त हुआ आदित्य
ये तो हुई कविता जाहिर आपको अच्छी लगी हो , और आप अपनी टिप्पणी भी देंगे ! अब बात करते है , अपने जवाहर सिंह "झल्लू" मतलब पुछल्ले की
एक बार जल्लू जी एक अमेरिकी से मिले । तो अमेरिकी ने कहा कि - मेरे यंहा इतनी स्वतंत्रता है कि आप व्हेइत हाउस के सामने खड़े होकर हमारे प्रेसिडेंट को गाली दे सकते है।
तो जल्लू जी बोले इसमे कौन सी बड़ी बात है , आप हमारे राष्ट्रपति भवन के सामने खड़े होकर भी अपने प्रेसिडेंट को गालियाँ दे सकते है !

orchha gatha

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