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सोमवार, 2 अप्रैल 2012

अथ श्री गर्दभ कथा ........


कल मुर्ख दिवस पर कई ब्लोगों की सैर की . कुछ दुसरो को मुर्ख घोषित करने में लगे , तो कुछ खुद को ही महामूर्ख घोषित करवाना चाह रहे थे। मुर्ख शब्द सुनने के बाद इंसानों (अगर कुछ लोग नाराज न हो तो ) के बाद जिस जीव का नाम आता है , वो है बैशाखनंदन गर्दभराज जिसे हम आप बोलचाल की भाषा में गधा (कुछ मनुष्य भी इसी श्रेणी में आते है )कहते है। खैर यह जीव बहुत ही मेहनती होता है (बुरा न माने तो कुछ ब्लोगर भी मेहनती होते है ।) बिना सोचे विचारे अथक परिश्रम करता रहता है । इसके गधे होने के कई किस्से प्रसिद्ध है (लेकिन इसमें मेरा कोई योगदान नही है ), जैसे- धोबी (कृपया इसे जाति सूचक शब्द न समझे ) अपने गधे को रस्सी से नही बंधता बल्कि , उसे झूठ-मूठ बांधने का उपक्रम करता है , और यह जीव निर्विकार भाव से 'जैसे थे " की भावना से अपनी जगह पर बिना हिले डुले खड़ा रहता है । इसलिए इसे गधा कहा जाता है ।
इसके गधा कहे जाने का एक किस्सा ये है, कि यह जीव ग्रीष्मकाल में जब बाकी जीव घास कि कमी के कारन दुबले होते है , वही ये गधा यह सोचकर मोटा होता है , कि मैंने सारी धरती की घास खाली , और अब कहीं भी घास ही नही बची ! इसी तरह यह बर्ष ऋतू में चारो तरफ हरियाली देख कर दुबला हो जाता है , कि मैं कुछ भी नही खा पाया हूँ।
खैर कारन जो भी हो , अगर गधा ऐसा नही भी होता तो भी उसे गधा ही कहा जाता । अब पता नही किस गधे (मतलब इंसानी गधे ने ) गधे का पर्याय मुर्ख मान लिया ।किसी कवि ने लिखा है (विश्वास करिए मैंने नही लिखा )
फसल जो खाए वो फसली गधा होता है
जो माईक पे चीखे वो असली गधा होता है
अब इधर कवि महोदय ने ये सपष्ट नही किया , कि माईक पर छेखने वाला प्राणी कौन है , बहुत से मनुष्य माईक पर चीखते है , हमारे सम्मानीय नेता गण (यहाँ मानहानि के दावे के पूर्व ही क्षमा याचना ), आज के रॉकस्टार, कुछ गायक नुमा लोग , कवि सम्मलेन वाले कवि इत्यादि अनेक लोग । खैर इसमें गधे का कोई दोष नही , उसे तो शायद मालूम ही नही , कि मनुष्य उसके बारे में ऐसा सोचता है, वरना वो भी जंतर-मंतर मैदान पर अनशन पर बैठा होता । (कृष्ण चंदर के गधे की बात नही कर रहा हूँ , और न ही शरद जोशी जी के गधे की) ।
खैर छोडिये .......मैंने भी एक जगह कुछ गधे और उनकी पत्नियों (माफ़ कीजिये मुझे नही पता कि मादा गधे को क्या कहते है ) कि कुछ राग रागनियाँ सुनी थी , उसी को कविता के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ

तानसेन कि समाधि पर हो रहा था एक समारोह
सोचा चलकर देखे , तानसेन के चेलों के आरोह-अवरोह
वहां के हालात देखकर , आँखे नाम हो गयी
क्या ? तानसेन की चहेतों की संख्या कम हो गयी
समारोह में कुछ सफेदी चेहरे वाले प्राणी थे
शायद अब यही तानसेन के रक्षक और वाणी थे
समाधि पर फूलों की जगह लहलहा रही थी घास
मनो उसे भी थी, संगीत के उत्थान की आस
जिसकी तान से जल जाते थे कई दीपक
आज, किसी ली उसकी सुधि तक
वापस आते-आते सुनाई दे गयी , कद्रदानों की वाणी
और हम कान पर हाथ रखे सुन रहे थे, गर्दभ -रागिनी

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...