विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012
ये कैसा बसंत आया ?
ये कैसा बसंत आया ?
हर दिन एक यौवना पे किसी ने सितम ढाया
प्रेम , उल्लास के मौसम में कैसी रुत आई
जाने क्यों हवस हर तरफ छाई
गर ऐसा हो बसंत तो मत आना अबकी बार
पतझर ही अच्छा , ऐसा बसंत बेकार
हे ऋतुराज ! क्यों आये ऐसे इस बार
क्या यही है ? ऋतुराज का ऐसा दरबार
धरती को आज भी है तुम्हारा इन्तजार
पर अब न आना ऐसे , जैसे आये इस बार
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'
सोमवार, 27 फ़रवरी 2012
आहिस्ता आहिस्ता.....(ग़ज़ल)
यूँ ही जिंदगी गुजरती जा रही है, आहिस्ता -आहिस्ता
जैसे सुबह की धुप पसरती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
रात गुजर गयी पर ख्वाब तक न आये
जिन्दगी में मशरूफियत ठहरती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
जुबान तो न जाने कबसे खामोश है
पर दिल की धड़कने बढती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
जेहन में खयालो का समंदर सा हो गया है
पर ये आँखे बरसती जा रही आहिस्ता-आहिस्ता
थम गये है, वो सारे सिलसिले अब
पर ये जिंदगी गुजरती जा रही है आहिस्ता-आहिस्ता
उसका सपना ..
खेल रहे थे, हिल मिल कर तीन बच्चे
पूंछ रहे थे , किसने देखे सपने अच्छे
मैंने देखा सपना सलोना, लाला का बेटा बोला
सारी दुनिया मैं गुम, बिना बस्ता बिना झोला
ये भी कोई सपना होता है , मेरा सपना है सबसे सुन्दर
मास्टर का हूँ बेटा, पर चला रहा था मैं मोटर
तुम्हारे सपने तो है , पुरे बकवास
सुनो तो मेरा सपना है, कितना ख़ास
भले गरीब का हूँ बेटा, पर सपने में बदली रंगत
खूब पुआ-पूरी खाई, थी पकवानों की सांगत
इतना अच्छा सपना भी मेरे आंसू रोक न पाए
था ये झूठ, क्योंकि भूखे पेट नींद न आये
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012
जिंदगी और मेरा संवाद !
जिन्दगी ने मुझसे पूछा- तू चाहता क्या है ?
मैंने कहा- तू ही मेरी चाहत, तुझसे दिल लगाना चाहता हूँ तू औरो को आजमाती होगी, मैं तुझे आजमाना चाहता हूँ
जिंदगी - इतनी आसन नही मैं, जितना तुम समझ बैठे मेरी चाहत में न जाने कितने मौत को गले लगा बैठे
मैं- गर तू आसान होती, तो मेरी चाहत न होती
मौत तो मिलेगी ही ,उससे कहाँ राहत होती
मौत तो मंजिल है, पर सफ़र तो तू है
दिल्लगी न समझना , ये इश्क की खुशबु है
जिन्दगी - मेरे सफ़र में , सब इश्क जाओगे भूल
कोई खुशबु नही यहाँ, न ही कोई फूल
मैं- होगा ये तुम्हारा नजरिया , पर तुम खूबसूरत हो
लाख समझाओ मुझे, पर तुम मेरी जरुरत हो
जिंदगी- मैं असीम हूँ, जैसे कोई सागर मिल गयी ,
तो करोगे क्या मुझे पाकर
मैं - तुम्हे सहरे , बहुत नज़रिये बदलने है
बहुतो की जिंदगी में 'चन्दन' के फूल खिलने है
हो खुशियों की बारिश , उस नए आँगन में
हो खुशियों की बारिश, उस नए आँगन में
मनचाहा प्यार मिले, प्रियतम मनभावन में
हर ख्वाहिश पूरी हो, ससुराल में हो इतना सुख
राज करो ऐसे, कि बाबुल को न हो दुःख
योगेश से ऐसा हो योग हो , हो वर्षा का अभिनन्दन
परिणित जीवन ऐसे महके, जैसे हो कोई चन्दन
लाड-प्यार से पली गुडिया, वहां भी मिले प्यार
मायके का चिराग , रोशन करें वहां का घर संसार
हर पल, हर क्षण खुशियाँ हो, न हो दुखो का सामना
उज्जवल हो परिणित जीवन , है यही शुभकामना
मेरी प्यारी मुहबोली बहन वर्षा शर्मा को वैवाहिक जीवन कि हार्दिक शुभकामनाएं
बुधवार, 22 फ़रवरी 2012
ख्वाबो में तुम आते हो .....
हर गुजरती रात में ख्वाबो में तुम आते हो
और हर ख्वाब में दिल में आग तुम लगाते हो
आखिर क्या खता की हमने जो हमें ये सिला मिला
दिन-ब-दिन क्यों मुझ पर इतने सितम ढाते हो
पल दो पल के लिए मिलती है कुछ खुशियाँ
क्यों दो पल का एक अहसास तुम जागते हो
ये मुस्कुराहते कभी हो पायेगी हकीकत
या सिर्फ ख्वाबो में ही तुम मुस्कुराते हो
वो ख्वाबो की तुम्हारी हसीं अदाएं
आखिर क्यों दिल में एक आरज़ू तुम जगाते हो
है उस हसीं पल का इंतज़ार, जब होगी मुलाकात
या फिर सिर्फ ख्वाबो के ' चन्दन' महकाते हो
सोमवार, 20 फ़रवरी 2012
अनादि काल से पूजते आ रहे है शिव !
सर्वप्रथम आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं !
"शिव " का शाब्दिक अर्थ होता है , कल्याण । अर्थात शिव कल्याण के देवता है । (शिव का संहारक रूप भी पुनः नव सृष्टि के लिए होता है ) शिव को महादेव कहा जाता है , क्योंकि सभी देवो में महँ शिव ही है । बाकि देवताओ और शिव में सबसे बड़ा अंतर ये है , कि शिव सभी (देव , दानव , मानव, किन्नर , नाग , भूत-पिशाच आदि ) में सामान रूप से लोकप्रिय और पूज्य है । शिव की पूजा के साक्ष्य इतिहास में सिन्धु घाटी सभ्यता (२३५०-१७५० ई० पू० ) से ही मिलना प्रारंभ हो जाते है । सिन्धु घाटी में लोग शिव की पूजा लिंग रूप में तो करते ही थे , साथ ही यहाँ से शिव के पशुपति रूप की मुद्राएं भी मिली है है । सिन्धु घाटी में लिंग-योनी के मृदा स्वरुप बहुतायत से प्राप्त हुए है ।
सिन्धु घाटी सभ्यता के बाद आर्य (वैदिक ) सभ्यता में भी शिव की पूजा का वर्णन मिलता है । चूँकि वैदिक सभ्यता पशुपालन पर आधारित थी , और शिव का सम्पूर्ण परिवार ही इसका समर्थन करता है ( शिव का वाहन -बैल, पारवती का सिंह , गणेश का मूषक , कार्तिकेय का मयूर ) ।
हर काल में शिव का पूजन अन्य देवताओ से अधिक होता रहा । एक कारन यह भी है , कि शिव का पूजन अन्य देवी देवताओ से सरल भी है , और शिव जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता है । यही कारन है कि हमरे देश में महिलाएं सोलह सोमवार , सावन सोमवार , हरितालिका तीज आदि त्यौहार बड़ी मात्रा में रखती है । और पुरुष भी शिव को अपना आराध्य मानते है । हर गाँव में आपको सबसे ज्यादा शिव के ही मंदिर मिल जायेंगे ।
जय जय शिव शंकर
बम बम भोले
गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012
करवटें बदलते रहे .........
आँखों में आंसू , दिल में कासक लिए करवटें बदलते रहे
पर वो न आये जिनके लिए , हम कबसे मचलते रहे
यूँ ही इन्तजार में कट गयी , न जाने कितनी रातें
और बस तन्हाईयों से होती रही हमारी मुलाकातें
इन्तहा हो रही है, हर घडी हमारे इन्तजार की
आखिर कब पूरी होगी , चाहत उनके दीदार की
जगी आँखों से ही हम कितने ख्वाब बुनते रहे
पर वो न आये , जिनके लिए हम कबसे मचलते रहे
अब सूख चूका है , इन आँखों का भी पानी
सोचा था हसीं होगी दास्तान , पर बनी दुःख भरी कहानी
हर पल आँखे ताकती है , उस डगर को
आखिर कब तरस आएगा , मेरे हमसफ़र को
हर शाम कितने चिराग जलते और बुझते रहे
पर वो न आये जिनके लिए , हम कबसे मचलते रहे
मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
रविवार, 12 फ़रवरी 2012
ऐसी निभाना तुम प्रीत .........
सब भूल जाना चाहता हूँ , तुम्हारी बांहों में
रच-बस जाना चाहता हूँ, तुम्हारी निगाहों में
स्वर भी तुम हो , ह्रदय का स्पंदन भी तुम हो
तीर्थ सा पावन सरस, चन्दन भी हो तुम
तुम से शुरू होकर , तुम पर ही ख़त्म हो जीवन
मन में बसी एक सुन्दर सी मूरत हो प्रियतम
मेरा सर्वस्य तुम, और मैं हूँ पर्याय तुम्हारा
रीत भले ही कुछ हो , पर तुम पर ही सब कुछ हारा
जिन्दगी भी तुम्हारे बिना, ख़त्म हो जाएगी
दम निकलने के बाद, मिलने की आरज़ू रह जाएगी
गीत अब तुम्हारे लिए होंगे. तुम जीवन का संगीत
हो अमर अपना बंधन . ऐसी निभाना तुम प्रीत
मुकेश पाण्डेय " चन्दन "
रच-बस जाना चाहता हूँ, तुम्हारी निगाहों में
स्वर भी तुम हो , ह्रदय का स्पंदन भी तुम हो
तीर्थ सा पावन सरस, चन्दन भी हो तुम
तुम से शुरू होकर , तुम पर ही ख़त्म हो जीवन
मन में बसी एक सुन्दर सी मूरत हो प्रियतम
मेरा सर्वस्य तुम, और मैं हूँ पर्याय तुम्हारा
रीत भले ही कुछ हो , पर तुम पर ही सब कुछ हारा
जिन्दगी भी तुम्हारे बिना, ख़त्म हो जाएगी
दम निकलने के बाद, मिलने की आरज़ू रह जाएगी
गीत अब तुम्हारे लिए होंगे. तुम जीवन का संगीत
हो अमर अपना बंधन . ऐसी निभाना तुम प्रीत
मुकेश पाण्डेय " चन्दन "
शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012
आज एक प्रण ठाना है......
आज एक प्रण ठाना है
कुछ बनके सबको दिखाना है
चाहे आये आंधी , या आ जाये तूफ़ान
सबसे टकरा जाऊँगा, बनके मैं चट्टान
लक्ष्य न बिसरित होगा मन से
चाहे संघर्ष कितना भी हो जीवन से
सच्ची लगन और होगा अटल इरादा
तिनके सी उड़ जाएगी, राह की हर बाधा
मिलेंगे राह में जाने कितने कंटक-शूल
पर सिवाय लक्ष्य के जाऊँगा सब भूल
चाँद से भी उस पर जाना है
कुछ बनके सबको दिखाना है
मित्रो मैंने अपनी ये कविता ८ अगस्त २००५ को उस समय लिखी थी, जब मैं इलाहबाद में सिविल सर्विस की तैयारी करने पंहुचा ही था । तब से आज सफलता मिलने तक लगभग साढ़े ६ वर्ष का समय लग गया , मगर कभी भी हार नही मानी , बस लगा रहा अपनी मंजिल की और पहुचने में ............आज भले ही मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से आबकारी उप निरीक्षक पद जरुर मिला गया है , मगर अभी तो सफ़र में एक मील का पत्थर मिला है , मंजिल तो बाकि है ...............
अब दिल में एक आरजू है
अब दिल में एक आरजू है
कुछ करने की जुस्तजू है
लगा के पंख उड़ना है आसमान में
करके कुछ दिखाना है इस जहाँ में
सबसे अलग मंजिल पानी है
बस कुछ जुदा करने की ठानी है
कदमो के के नीचे करना है आफताब
क़ल होगी ये हकीकत ,न होगा ये ख्वाब
दरिया के साथ , हम नही बहने वाले
हम तो है, दरिया का रुख मोड़ने वाले
दुनिया देखेगी हमारी परवाज
सबसे अलग होगा "चन्दन" का अंदाज
मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
बुधवार, 1 फ़रवरी 2012
तन्हाईयाँ ..........
बहुत कुछ आदमी को सिखा जाती है तन्हाईयाँ
जिन्दगी के सफ़र की मंजिल दिखा जाती है तन्हाईयाँ
जिन्दगी के कई राज़ अपने में छुपा लेती है तन्हाईयाँ
ऊंचों-ऊंचों को भी झुका देती है तन्हाईयाँ
किसी की हमदम बन जाती है तन्हाईयाँ
तो किसी को हर कदम याद आती है तन्हाईयाँ
कभी लाख जिल्लतो से बचाती है तन्हाईयाँ
तो कभी मन में उथल पुथल मचाती है तन्हाईयाँ
कभी किसी की याद दिला जाती है तन्हाईयाँ
कभी किसी की फ़रियाद सुना जाती है तन्हाईयाँ
तनहा करके भी भीड़ में गम कर जाती है तन्हाईयाँ
हँसते हुए भी आँखे नाम कर जाती है तन्हाईयाँ
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