मंगलवार, 18 जून 2013

हर कसौटी पर कम निकले ....

हार गये सारी बाजी, हर कसौटी पर कम निकले 
अब आरज़ू है , कि किसी तरह बस दम निकले 
हर तरह की आजमाईश , हमने की हर तरकीब 
क्या पता था ? हमरी कोशिशें उन पर सितम निकलें 
जीने की आरज़ू नही अब , ख़त्म हो गया जहाँ 
खुश रहे वो , जब कभी हमारा कफ़न निकलें 
हो गये तबाह , पर अब गम क्या करें ,
 मिले खुशियाँ  उन्हें , जब-जब हमारा सनम निकलें
महक बाकि रहेगी ताउम्र, मेरी मोहब्बत की 
चिता की राख को संभल के रखना , क्या पता वो 'चन्दन 'निकले

गुरुवार, 13 जून 2013

मालवा का स्वर्ग है , मांडू ( मांडवगढ़ )

 चलिए आज आपको मालवा के स्वर्ग यानि मांडू अथवा मांडवगढ़ की सैर पर ले चलते है . क्या कहा ? ये मालवा कहाँ है ?  तो बताते है ...भाई सब बताते है ..काहे इतनी जल्दी किये हो .....अब बताने के लिए ही तो ये पोस्ट लिखे है . तो मध्य प्रदेश भारत के कुछ प्राकृतिक सुन्दरता वाले राज्यों में से एक है . पश्चिमी मध्य प्रदेश जिसमे इंदौर , उज्जैन , रतलाम , झाबुआ , धार और देवास  आदि  वाला हिस्सा मालवा के नाम से प्रसिद्द है .  ,
 
बस स्टेंड पहुचते ही थोड़े आगे यह अशर्फी महल दिखाई देता है . कहते है बेगम ने जब इस ऊंचाई पर बने महल में चढ़ने से इंकार कर दिया , तो सुल्तान महमूद खलजी ने उन्हें हर एक सीढ़ी चढ़ने पर एक अशर्फी देने का लालच दिया , और तब से इसे अशर्फी महल कहा जाने लगा . इसके अन्दर विजय स्तम्भ और महमूद खलजी की कब्र है .
सामने आपको हुशंग शाह का मकबरा दिखाई दे रहा है . आज ये खंडहर बताते है , कि एक दिन सबको चले जाना है ...और सब यहीं छोड़कर !

रानी रूपमती से विवाह के बाद जब बाज़ बहादुर को रूपमती ने बताया , कि वो बिना नर्मदा दर्शन के भोजन नही करती , तो बज बहादुर ने २४ घंटो के अन्दर मांडू के इस सबसे ऊँचे टीले पर रूपमती महल का निर्माण कराया . यहाँ से नर्मदा के दर्शन करने के बाद ही रूपमती भोजन करती थी .

हाँ, वही उज्जयनी जहाँ विश्व के सर्वश्रेष्ठ कवियों में शुमार कालिदास ने अपने महान अतुलनीय महाकाव्य और नाटक रचे . यही सिंहासन बत्तीसी की गाथा पैदा हुई . चन्द्रगुप्त के नवरत्न भी इसी भूमि में हुए . बाद में कविकुल शिरोमणि अत्यंत प्रतिभाशाली राजा भोज भी तो इसी माटी में पैदा हुए . ये तो इतिहास की बातें है , वर्तमान में मालवा मध्य प्रदेश का सर्वाधिक संपन्न क्षेत्र है . .....लो कल्लो बात ...अपन को चलना था , मांडू और अपन अटक के रह गए मालवा में ...मालवा की कहानी फिर कभी ..अभी तो बस मांडू की ही बात करते है 
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रानी रूपमती के महल से दूसरी ओर बाज बहादुर का महल दिखाई देता है .

शायद यही पर बैठकर रानी रूपमती नर्मदा के दर्शन करती होंगी..थोड़ी कोशिश तो मैंने भी की थी ..लेकिन धुंध के कारण नर्मदा तो नही लेकिन प्रकृति के सुन्दर नज़ारे जरुर दिखे .

रूपमती के महल देखने के बाद बज बहादुर के महल के भी दर्शन कर लिए जाये . कहते है . यही बैठ कर बज बहादुर सितार बजाकर रूपमती को रिझाता था . पर आज सन्नाटा पसरा रहता है .
हाँ तो मांडू मध्य प्रदेश के धार जिले का एक खुबसूरत सा क्षेत्र है , जिसे मांडव गढ़ के नाम से भी जाना जाता है . राजा भोज के समय से इसका विकास हुआ , लेकिन मांडू ने अपना यौवन मध्यकाल में खिलजी या खलजी वंश के समय पाया . इसके रूप श्रृंगार को निखारने में होशंगशाह का भी योगदान रहा है .
ये है इको पॉइंट ! आज से बहुत पहले की दूर संचार व्यवस्था . किसी खास पॉइंट पर खड़े होकर आवाज़ देने पर अपनी आवाज़ फिर से सुने देती है . इसी तरह पहले राजा लोग अपने सन्देश इनके माध्यम से धार तक बिना किसी आदमी या हरकारा के सिर्फ आवाज़ से ही पंहुचा देते थे . ये दुनिया का सर्वश्रेष्ठ इको पॉइंट है .

इको पॉइंट के सामने बैठे हमारे ये पूर्वज बड़े प्यार से हमारे हाथो से चने आदि खाते है .

अकबर के आराम के लिए बनवाई गयी ये ईमारत आज नीलकंठ महादेव मंदिर है . वास्तु शैली मुग़ल है , पर ये हिन्दू मंदिर है .यहाँ से सामने विंध्यांचल की सुन्दर घाटियाँ दिखाई देती है .
इतने सारे महल (किले नही )आपको और कहीं नही देखने मिलेंगे  मांडू के कोने-कोने में स्थापत्य का वैभव बिखरा पड़ा है . और प्राकृतिक सुन्दरता भी इसमें चार चाँद लगा देती है . विन्ध्य की खुबसूरत वादियों में बसा मांडू अपने स्थापत्य के साथ-साथ रानी रूपमती और बाज बहादुर की प्रेम गाथा के लिए जाना जाता है . कहते है , आज भी मांडू की फिजाओं में उनकी प्रेम कहानियां सुमधुर लहरियों के साथ घूम रही है .
इस हिस्से को प्रकृति ने बड़े ही प्यार से पाला- पोसा है . उत्तर की ओर विंध्यांचल की उपत्यकाएं ...दक्षिण की ओर सतपुड़ा के घने जंगल इन दोनों का विभाजन करती नर्मदा इस क्षेत्र की खूबसूरती में चार चाँद लगाती है . गुप्त काल में जब चीनी यात्री फाहियान भारत की यात्रा पर आया था , तो उसने मालवा की जलवायु को विश्व की सर्वश्रेष्ठ जलवायु बताया था . तब महान प्रतापी शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की राजधानी यहीं मालवा में उज्जयनी (वर्तमान में उज्जैन ) थी
ये है , मांडू के सबसे प्रसिद्द इमारत जो बहुत ही खुबसूरत है , इसके दोनों ओर बने तालाब जहाँ इसकी खूबसूरती को बढ़ाते है , वही इसके नाम  " जहाज महल " को भी सार्थक करते है . 

झूले जैसी संरचना के कारण इस महल को " हिंडोला महल " कहा जाता है .

सुन्दर बगीचे इन महलो की खूबसूरती को और अधिक खुबसूरत बनाते है .

जहाज महल का एक और दृश्य !

मांडू में एक दुकान पर राखी जहाज महल और रानी रूपमती की पेंटिंग

ये है मांडू की इमली , जो पुरे भारत में सिर्फ यही मिलती है , मांडू जाओ तो इसे जरुर चखना .

विदेशी सैलानी भारतीय संस्कृति को अपने कैमरे में कैद करते हुए ...

वैसे मांडू में चारो ओर स्थापत्य कला और प्राकृतिक छटा जगह -जगह  बिखरी है , लेकिन अब थक गया हूँ भाई ! अब क्या बच्चे की जान लोगो  ? फ़िलहाल इतना ही ....आगे फिर कभी ..राम राम

गुरुवार, 6 जून 2013

अमीर खुसरो : एक अद्भुत महान हिंदुस्तानी

जब कभी किसी ग़ज़ल की गहराई में डूबता हूँ , या फिर किसी कब्बाली को सुनते हुए दिल झूम उठता है , या किसी भी भारतीय संगीत को सुनते हुए ढोलक - तबले की थाप या सितार की झंकार से दिल नाचने लगता है , तो मन उस महान आत्मा के सम्मान में अपने आप नतमस्तक हो जाता है , जिसकी पहेलियाँ बचपन में खूब बुझी थी . जी हाँ , आज मैं बात  कर रहा हूँ , भारतीय इतिहास के उस महान व्यक्ति की जो अपने आप को " तूती -ए- हिन्द " यानि  हिंदुस्तान का तोता कहता था . क्योंकि रोम -रोम  में हिन्द बसा था . कभी -कभी जब सोचता हूँ , अमीर खुसरो के बारे में तो लगता है , कि क्या सचमुच कोई व्यक्ति इतना प्रतिभाशाली हो सकता है ? या फिर ये इतिहास की कोरी गप्प है ? 
मगर  जब मैंने  इतिहास की कई किताबो को खंगाला तो मालूम चला , कि सचमुच खुसरो इतने प्रतिभाशाली थे  .  खुसरो का जन्म एटा जिले के पटियाली   ( उत्तर  प्रदेश   ) में 1253 ईस्वी में हुआ  था .खुसरो का पूरा नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरौ था . दुनिया खुसरो को सितार , ढोलक ,तबले जैसे वाद्य यंत्रो  और ग़ज़ल , कव्वाली   तथा  कौल , तलबाना, तराना , और   ख्याल  के अविष्कारक के नाम से जानती है , मगर खुसरो अपने वतन हिंदुस्तान से बेइंतिहा मोहब्बत करते थे . भले ही खुसरो के पूर्वज मध्य एशिया से आये तुर्क  हो मगर खुसरों खुद को " हिंदुस्तान का तोता " (तुते-ए- हिन्द ) कहलाना पसंद करते थे . 
खुसरो अपने पीर (गुरु ) सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया को बहुत मानते थे . कहते है , कि जिस दिन
हज़रत निजामुद्दीन औलिया इस दुनिया से रुखसत हुए , और ये खबर खुसरो को पता चली तो खुसरों ने भी अपने प्राण त्याग  दिए. आज भी दिल्ली में  हज़रत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह  के बगल में खुसरों की भी मजार बनी है . खुसरो की मृत्यु १३२५ ईस्वी में हुई थी . 
खुसरों को हिंदी , फारसी , अरबी , पंजाबी और संस्कृत भाषाएँ आती थी , और उर्दू के तो खुसरो जनक ही कहे जाते है . खुसरों जितने भारत में लोकप्रिय है , उतने ही आज भी पाकिस्तान में भी लोकप्रिय है . नुसरत फ़तेह अली खान जैसे कई बड़े गायकों ने खुसरों की गजलें और कब्बालियाँ  गायीं है .  खुसरो लोक काव्य में भी काफी लोकप्रिय रहे है . जहाँ उनके सूफी कलाम आध्यात्मिकता की ओर ले जाते है , वही उनकी मुकरियां और पहेलियाँ आज भी जनमानस के मन से रची बसी है . मैंने तो बचपन में खुसरो की कई पहेलियाँ रट रखी थी . उनमे से कई तो आज भी याद है - 
१- एक थाल मोती से भरा , सबके सर पे औंधा धरा 
थाल चारो ओर फिरे, मोती उसमे से एक न गिरे . 


२- सावन - भादों बहुत चालत है , माघ-पूष में थोरी 
एरी सखी मैं तुझसे पूछूं ,  बूझ  पहेली मोरी  

३- हरी थी , मन भरी थी , 
राजा जी के बाग़ में दुशाला ओढ़े खड़ी थी  
( आपने भी ये पहेलियाँ पढ़ी - सुनी होगी , इसलिए इनके जवाब मैं नही लिख रहा हूँ . देखते है , कितने लोग इनके जवाब दे पाते है , अगर आपको नही पता तो दुसरो से पूछिए ....) 

खुसरों बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति होने के साथ ही हाजिर जवाब भी थे . एक बार खुसरों कहीं जा रहे थे , तो उन्हें प्यास लगी गाँव के पनघट में चार पनिहारिन पानी भरती हुई उन्हें नज़र आई , तो खुसरो ने उनसे पानी पिलाने की प्रार्थना की . खुसरो की राजसी पोषक देखकर पनिहारिनों ने खुसरों से परिचय पूछा . तो खुसरों ने जब अपना परिचय दिया . लेकिन पनिहारिनें ये मानने तैयार ही न थी , कि उनके सामने अमीर खुसरो खड़े है . फिर पनिहारिनों  ने खुसरो को कविता सुनाने को कहा , तो खुसरो ने उनसे विषय पूछा . तब एक ने खीर , दूसरी ने चरखा , तीसरी ने कुत्ता और चौथी ने ढोल पर कविता सुनाने को कहा . खुसरों ने तुरत दो पंक्तियाँ बनाकर सुना दी - 
खीर बनाई जतन से , चरखा दिया चलाय
आया कुत्ता खा गया , तू बैठी ढोल बजाय 
और खुसरो पानी पीकर चलते बने . खुसरों मध्यकालीन इतिहास के एकमात्र व्यक्ति है , जिन्होंने सात सुल्तानों का न केवल शासन काल देखा , बल्कि उनके दरबारी भी रहे है . खुसरो की सबसे ज्यादा पूछ-परख मोहमद - बिन - तुगलक के समय रही है . 
खुसरों की मुकरियां भी लोगों में लोकप्रिय रही है , इनमे से एक आपके समक्ष प्रस्तुत है - 

रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥

नंगे पाँव फिरन नहिं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥

पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥

वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय॥

मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥

जब माँगू तब जल भरि लावे। मेरे मन की तपन बुझावे॥

मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥

बेर-बेर सोवतहिं जगावे। ना जागूँ तो काटे खावे॥

व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥

अति सुरंग है रंग रंगीलो। है गुणवंत बहुत चटकीलो॥

राम भजन बिन कभी न सोता। क्यों सखि साजन? ना सखि तोता॥

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...