शनिवार, 14 सितंबर 2019

भेड़ाघाट का प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर !

नमस्कार मित्रों,
इस 17 जुलाई को जबलपुर उच्च न्यायालय एक केस के सिलसिले में जाना हुआ , उच्च न्यायालय से जल्दी फुरसत होने पर भेड़ाघाट की ओर रुख किया । हालाँकि पहले भी कई बार भेड़ाघाट स्थित धुंआधार जलप्रपात की खूबसूरती देखी है, लेकिन इस बार चौसठ योगिनी मंदिर जाना मुख्य उद्देश्य था ।
                                                                                     जबलपुर के पास स्थित भेड़ाघाट नर्मदा नदी के विहंगम जलप्रपात धुंआधार और संगमरमर की खूबसूरत चट्टानों के बीच बहती नर्मदा के खूबसूरत दृश्यों के लिए प्रसिद्द है । लेकिन भेड़ाघाट में एक प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर भी महत्वपूर्ण स्थल है । जिसकी जानकारी बहुत कम लोगो को होती है । पूरे भारत में कुछ ही प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर है, जिनमे से तीन मध्य प्रदेश में ही है । एक चौसठ योगिनी मंदिर मुरैना जिले के मितावली गांव में स्थित है । गोलाकार आकृति में बने इस मंदिर को भारतीय संसद के स्थापत्य की प्रेरणा कहा जाता है । मितावली स्थित चौसठ योगिनी मंदिर 9 वीं सदी में गुर्जर प्रतिहार शासक देवपाल गुर्जर में बनवाया था। इसके अलावा चौसठ योगिनी मंदिर, छतरपुर जिले में विश्व विरासत स्थल खजुराहो में भी चौसठ योगिनी का एक ध्वस्त मंदिर है। यह खजुराहो का सबसे प्राचीन मंदिर है, जो अब भी विद्यमान है। किन्तु यह अकेला ऐसा मन्दिर है जिसका आकार गोल न होकर आयताकार है। यह 9 वीं सदी में चंदेल शासकों द्वारा बनवाया गया था । ये तो हुए मध्य प्रदेश के चौसठ योगिनी मन्दिरो की बात अब मध्य प्रदेश के बाहर स्थित मंदिरों की बात करें तो उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट हीरापुर तथा बोलनगीर के निकट रानीपुर में हैं। इस तरह से देखा जाये तो पूरे भारत में कुल 5 प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर है । जिनमे 4 गोलाकार और 1 आयताकार आकृति में बने है । इन पांचों का निर्माण काल 9-10  सदी है । लेकिन सभी अलग अलग शासकों द्वारा बनवाये गये है । 
                                              आमतौर पर हिन्दू मंदिर वर्गाकार होते हैं और इनका विन्यास रेखीय होता है। अधिकतर मंदिरों में ईश्वर का मुख पूर्व दिशा की ओर होता है। दूसरी ओर गोलाकार योगिनी मंदिरों में ईश्वर का मुंह हर दिशा की ओर होता है। हालांकि, कुएं जैसी इन संरचनाओं का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर ही है। मंदिरों की आम पहचान गुम्बद, शिखर या विमान इन मंदिरों में नहीं हैं। वास्तव में इन मंदिरों की तो छत ही नहीं है। उड़ीसा के हीरापुर तथा रानीपुर के योगिनी मंदिरों की अंदरूनी दीवारों पर योगिनियों की प्रतिमाएं हैं, सभी का मुंह केंद्र में बने मंदिर की ओर है। मध्यप्रदेश के भेड़ाघाट और मितावली मंदिरों में सभी योगिनियों के अलग-अलग मंदिर हैं जिनकी छतें तो हैं परंतु वे सभी गोलाकार प्रांगण की ओर खुलते हैं। योगिनियों की प्रतिमाएं हीरापुर, रानीपुर तथा भेड़ाघाट के मंदिरों में अच्छी हालत में हैं। खजुराहो के मंदिर में केवल तीन प्रतिमाएं बची हैं, जबकि मुरेना के मितावली मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। 
                                                                            ये तो हुआ भारत में बने चौसठ योगिनी मन्दिरों के बारे में परिचय । अब हम बात करते है , अपनी चौसठ योगिनी मन्दिर की यात्रा की । उच्च न्यायालय के कार्य से मुक्त होते ही हम चल पड़े अपनी कार से भेड़ाघाट की ओर । मौसम भी सुहावना होकर हमारा साथ दे रहा था । बादल छाए हुए थे, और हवा चल रही थी । हम गूगल मैप की सहायता से मुख्य सड़क से न होकर गलियों से होकर भेड़ाघाट पहुँचे । कई बार गूगल महाराज पर गुस्सा भी आया कि कहां गलियों में भटका रहा है , लेकिन अंत भला तो सब भला । अभी मानसून आने में देरी थी , गर्मी अपने चरम पर थी , इसलिए भेड़ाघाट के धुआंधार जलप्रपात में पानी कम ही था । यहां एक बात बताना चाहूंगा कि भेड़ाघाट जगह का नाम है, जबकि नर्मदा नदी के जलप्रपात का नाम धुंआधार है । इस बार हमने रोप वे का प्रयोग करके नर्मदा के शानदार नजारे देखे । हालांकि जलप्रपात के भ्रमण के बारे में अगली पोस्ट में विस्तार से लिखूंगा । फिलहाल चौसठ योगिनी मन्दिर की यात्रा पर ही वापिस आते है । जलप्रपात देखने के बाद हम भेड़ाघाट शहर (कस्बा नुमा) की ओर आगे बढ़े । और एक पहाड़ी पर पत्थर की सीढ़ियां चढ़ कर हम चौसठ योगिनी मन्दिर पहुंचे । पसीने से लथपथ जब ऊपर पहुंचे तो वहां से नर्मदा नदी का दृश्य अद्भुत था । किसी ने बताया कि जल्दी दर्शन कर ले , अन्यथा मन्दिर बंद होने वाला है । उनकी बात मानते हुए हम मन्दिर के अंदर प्रवेश किये । गोलाकार आकृति में बने मन्दिर की बाहरी दीवालों पर चौसठ योगिनियों की अद्भुत प्रतिमाएँ बनी हुई है । यह देखकर दुख हुआ, कि सभी प्रतिमाएँ खण्डित है । कहानी वही मुस्लिम आक्रमण कारियों द्वारा इन प्रतिमाओं को खंडित किये जाने की । खैर योगिनियों की फ़ोटो लेने के बाद मन्दिर के बीचोबीच बने गर्भ गृह की ओर बढे । गर्भगृह के ऊपर लगा ध्वज बता रहा था, कि ये जाग्रत मन्दिर है, अर्थात यहां नियमित पूजा होती है । मतलब गर्भ गृह की मूल प्रतिमा खण्डित नही है । अंदर पहुँचे तो देखा गर्भ गृह में भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी पार्वती जी नंदी बैल पर सवार है । मन्दिर के पुजारी के अनुसार यह विश्व में इस तरह की एकमात्र ऐसी प्रतिमा है । मैंने भी कभी इस तरह नन्दी आरूढ़ उमा-महेश्वर की प्रतिमा देखी या सुनी नही है । सामान्यतः शिव मंदिर में शिवलिंग ही प्रतिष्ठित होते है । प्रतिमा भी बड़ी आकर्षक थी । शिव-पार्वती  के बगल में में ही कार्तिकेय और गणेश की प्रतिमाएं विराजमान थी, मतलब पूरा शिव परिवार ही विराजमान था।  
                                                                                   मन्दिर के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगे थे, और मन्दिर के अंदर की फ़ोटो न खींचने की मनाही वाली चेतावनी लिखी थी । चेतावनी पढ़कर मन मायूस हुआ , मगर एक कोशिश करने में क्या हर्ज है ?  यही सोचकर मैंने पुजारी जी से फ़ोटो खीचने के बारे में पूछा तो उन्होंने सीसीटीवी की पहुँच से बाहर होकर फ़ोटो खींचने की अनुमति दे दी । अंधा क्या चाहे दो आंखे ! हमने भी मोबाइल से ही जल्दी जल्दी कुछ फोटो ली । फिर भगवान को प्रणाम कर बाहर निकल आये । आज बड़ी पुरानी इच्छा पूर्ण हुई । अभी तक दो चौसठ योगिनी मन्दिर देख लिए एक खजुराहो वाला और दूसरा ये भेड़ाघाट का । अब मुरैना और ओडिसा के मंदिर बाकी है । 

चौसठ योगिनी मंदिर की बाहरी बनावट 
मंदिर के भीतरी प्रांगण में स्थित शिव मंदिर 
मंदिर के गर्भगृह में नंदी पर आरूढ़ शिव-पार्वती और बगल में उनका परिवार



योगिनी की खंडित खंडित प्रतिमा 
























मंदिर में स्थित शिवलिंग 














मंदिर के बाहर  मैं 
इस पोस्ट में इतना ही अगली पोस्ट में धुआंधार जलप्रपात के खूबसूरत नजारें देखेंगे।

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...