अभी हाल में पूरे देश में धूम धाम से रावण का पुतला जलाया गया . समाचार पत्रों और टी ० वी० न्यूज चैनलों पर " बुराई पर अच्छाई की जीत " ," जीत गयी अच्छाई ", " हो गया बुराई का अंत " जैसे जुमले प्रयोग हुए . लेकिन क्या सचमुच बुराई ख़त्म हो गयी ? बहुत पहले दशहरा पर एक कविता लिखी थी , जो शायद आज भी प्रासंगिक है . उस पर अपने विचार जरुर दें -
कितने रावण जलाओगे , हर घर में रावण छुपा है
कितनी बार आग लगाओगे , हर पग पर तम जाल बिछा है
एक पुतला जल जाने से , सारा पाप नही मर जाता
पुतले में आग लगाने से , हर नर राम नही बन जाता
जब होगा अहम् , तब तक रावण नही मरेगा
'अहम् ब्रम्हास्मी ' मरके भी यही कहेगा
स्वार्थ, ईर्ष्या, घृणा , पाप चारो और यही मचा है
कितने रावण जलाओगे , हर घर में रावण छुपा है
हर दिन सीता का अपहरण हो रहा है
पुलिस, प्रशासन कुम्भकरण सो रहा है
गीध-जटायु ,मूक हुए , मनो सब छिपा है
आज रावण एक नही , उसके रूप कई है
अन्याय , अत्याचार के बाद भी , वह सही है
मारते-मारते रावण को , आज राम भी थक जायेंगे
इतने रावण है , कि कई राम भी मार न पाएंगे
कितने रावण जलाओगे , हर घर में रावण छुपा है
कितनी बार आग लगाओगे , हर पग पर तम जाल बिछा है