सोमवार, 17 दिसंबर 2012

जानिए देहभाषा (बॉडी लेङ्गुएज ) से दूसरो की अनकही बातें ..!

मित्रो ,
क्षमा सहित  नमस्कार ,
                    आजकल  मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी में व्यस्त होने के कारण ब्लॉग जगत को समय नही दे पा रहा हूँ . परीक्षा के नए पैटर्न में प्रारंभिक परीक्षा के द्वितीय प्रश्न पत्र में  मैंने संचार कौशल टॉपिक के अंतर्गत देहभाषा (बॉडी लेङ्गुएज ) के बारे में कई रोचक बातें पढ़ी . जो कि हमारे दैनिक जीवन में भी बहुत उपयोगी है . तो मैंने सोचा क्यों न इसे आप सभी से बांटा जाये . हैं न ?
              शाब्दिक भाषा के विकास के पूर्व मानव अपने विचारों एवं भावनाओं का विनिमय संकेतों अथवा देहभाषा के माध्यम से ही करता था .यह भाषा अचेतन मन को समझने हेतु अत्यंत उपयोगी होती है . अगर हम देहभाषा को समझना जान ले , तो लोगों की उन बातों को भी जान सकते है , जो वो हमें बताना नही चाहते  है. या फिर हमसे कोई बात छुपा रहे हो .हालाँकि कुछ चतुर और धूर्त लोग देहभाषा के माध्यम से बेबकूफ बना सकते है . मगर सामान्यतः हम देहभाषा से लोगों के मनोभावों को समझ सकते है .
तो चलिए जानते है , कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
- अँगुलियों को मोड़ना या चटकाना व्यक्ति के अंतर्द्वंद को बताता है .
- हथेलियों को रगड़ना (जब ये ठण्ड के कारण नही हो ) प्रतीक्षा या शुभ फल की आशा का संकेत है .
- जब व्यक्ति अपने हाथ टेबल पर रखकर उनकी संयुक्त मुट्ठी बनाये  और इस पर पर्याप्त जोर रखे तो यह स्थिति विचार- भिन्नता का सूचक है . इतना ही नही ऐसी स्थिति व्यक्ति अपने विचारो को व्यक्त करने के लिए व्यग्र रहता है .
- जब बांहों को छाती के इर्द-गिर्द बांधना नकाराक्त्मकता , बोझिलता व् उदासीनता का परिचायक है . कभी-कभी व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थिति के कारण जब व्यक्ति अचानक सोचने हेतु विवश होता है , तो भी ऐसा करता है .
- यदि किसी व्यक्ति का चेहरा सामान्य अवस्था में है तथा चेहरा मुड़ा हुआ है , तो यह मानिये कि वह आपसे ऊब चुका है.
- यदि व्यक्ति का चेहरा सामान्य अवस्था में है , उसके ओंठों पर कृत्रिम मुस्कान नही है , और ठुड्डी आगे की ओर है , तो वह आपकी उपस्थिति को महत्व दे रहा है
- व्यक्ति के आयताकार या चौड़ी मुस्कान का अर्थ होता है , कि वह अपनी इच्छा के विपरीत न चाहते हुए भी विन्रमता प्रदर्शित करता है .इस मुस्कान में ओंठ ऊपरी व् निचले दांतों पर आयताकार रूप लेते हुए खिंच जाते है . प्रायः ऐसा किसी अधिकारी के कार्यालय भ्रमण के दौरान उसके अधिनस्थो द्वारा किया जाता है.
- आत्मविश्वास से परिपूर्ण व्यक्ति आँखों में आँखें डालकर बात करता है .ऐसा व्यक्ति वार्ता के दौरान पलकें भी कम झपकाता है .
-कम आत्मविश्वास वाले व्यक्ति बात करते समय अधिक देर तक आँखे नही मिला पाते है , जो लोग कुछ छुपाना चाहते है , वे भी आँखे मिलाने से कतराते है . (हालाँकि कुछ लोग शर्म के कारण भी आँखे नही मिलाते )
 - ऊपर की ओर उठी हुई भौहें व्यक्ति के अविश्वास और ईर्ष्या को प्रकट करती है .
-जो लोग अपनी भुजाओं को तेजी से झुलाते हुए ( परेड करते सैनिको जैसे ) वे अपने लक्ष्य को यथाशीघ्र प्राप्त करने वाले होते है .
- जिन लोगो का स्वाभाव अपनी जेबों में हाथ डालकर चलने का होता है , भले ही सर्दी का मौसम  न हो, वे सामान्यतः विचित्र व् रहस्यमय स्वाभाव वाले होते है . ये मौका पड़ने पर शैतान का भी पक्ष ले सकते है . इनका प्रयास हमेशा दूसरों को झुकाने का होता है .
- खुले हुए हाथो के द्वारा स्पष्टता के भाव की अभिव्यक्ति होती है . खुले हुए हाथो के साथ कंधे उचकाते हुए दोनों हथेलियों को आगे कर देना यह भाव व्यक्त करता है , की - " तुम मेरा क्या कर लोगे "
- भुजाओं को अपने सीने पर क्रॉस  के रूप में बांध लेना एक सुरक्षात्मक भाव भंगिमा है . इसके अतिरिक्त जब कोई व्यक्ति किसी मांग या निवेदन को स्वीकार नही करना चाहता , तब भी वह अपने हाथों की कैंची के रूप में सीने पर बांध लेता है .
- गाल पर हाथ रख कर बैठने  की मुद्रा किसी विचार में लीन होना दर्शाता है
- जब कोई व्यक्ति कोई ऐसी बात  सुनता  है , जिसमे उसकी रूचि होती है , तो वह अपने सर को थोडा ऊपर उठा लेता है .
- यदि श्रोता का सर तिरछे आकार में झुका हुआ नही है , तो इसका मतलब वे सुनने में रूचि नही ले रहे है .
- यदि कोई व्यक्ति (स्वाभाव वश नही ) बड़ी कोमलता से अपना चश्मा उतारकर सावधानीपूर्वक उसका लेंस साफ़ करता है  (यदि लेंस पहले से ही साफ़ है ) , तो वह टाल-मटोल करने के भाव को प्रकट करता है . ऐसा व्यक्ति अधिक स्पष्टीकरण मांगने या प्रश्न पूछने के लिए समय चाहता है .
- आँखों को बंद कर नाक के सिरे को दबाने का अर्थ है , कि अंतिम निर्णय पर गहन विचार चल रहा है .
- नाक को धीरे से छूना या मलना ( यदि जुकाम  न हो तो ) अपनी अनिच्छा , अरुचि , नापसंदगी या नकारात्मकता को व्यक्त करता है .
-कोट के बटन खोलकर बैठने की भंगिमा यह प्रकट करती है , कि व्यक्ति आपके विचारों को ध्यानपूर्वक सुन रहा है .
- श्रोता का तिरछा सर यह प्रकट करता है , कि वह वक्ता के शब्दों में गहन रूचि ले रहा है .
- अपने हाथों को कस कर और एक-दुसरे से जकड़कर बैठना संदेह की मुद्रा है .
- अपनी तर्जनी ( अंगूठे के पास वाली अंगुली )    उठाकर बात करने वाले व्यक्ति महत्वाकांक्षी होते है .
- अपनी वरिष्ठता या प्रधानता का प्रदर्शन करते समय व्यक्ति कुछ तन जाता है . 
- अपने दोनों हाथों को पीछे करके या पकड़कर  चलने का अर्थ है , कि व्यक्ति परेशां या तनावग्रस्त है  .
- बाल पेन का खोलना या बंद करना - व्यक्ति की व्याकुलता  का परिचायक होता है. इसी प्रकार हथेली  पर सर टिकाकर आँखे अधमुंधी कर लेना भी ऊब  या उदासीनता का प्रतीक है .
              इन  तथ्यों का दैनिक जीवन में बहुत उपयोग है . आपको ये पोस्ट कैसी लगी  ..जरुर बताएं ...ताकि मैं इसी तरह और भी महत्वपूर्ण जानकारियां लाता रहूँ .


जय - जय
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सोमवार, 10 दिसंबर 2012

हाईटेक नही होना चाहता , मेरा गाँव !!

हाईटेक नही होना चाहता , मेरा गाँव 
न धन-दौलत , न  सोना चाहता है मेरा गाँव 
 भरी बरसात में  , जब खेत होते लबालब
किसी घर में प्रसव पीड़ा, सुन कांपते सब 
चारपाई पे रख के दौड़ते ,जब  चार कंधे 
कीचड़ -पानी सब भूल , भागे जाते बनके अंधे 
किस्मत हुई तो , सही वक़्त पे मदद देगा दूजा गाँव 
वरना उन्ही चार कंधो पर , लौटेगा बिलखता बहाव 
सुनसान रातों में , किसी बुजुर्ग को चलती खांसी 
धड़कने तेज , बच पायेगा  या लग जाएगी फांसी 
आज़ादी के इतने साल बाद , हो गया इंडिया शाईन 
पर मेरे गाँव में आज भी बसते, ओझा और डाईन
बिन सड़क, बिन अस्पताल, कैसे चले विकास की नाव    

मित्रो , मेरा गाँव बिहार के बक्सर जिले के सिमरी प्रखंड (ब्लाक ) के अंतर्गत 'गोप भरवली'  है . कहने को तो मेरा गाँव ब्लाक से १ कि०मि० की दुरी पर है , मगर लगभग १००० की आबादी आजादी के ६५ सालों बाद भी विकास की सारी सुविधाओ से दूर है . आज भी सड़क ( कच्ची या पक्की ) न होने के कारण मेरा गाँव बाकि देश - दुनिया से कटा  है  . सड़क बनवाने के लिए ग्रामवासियों ने बी०डी 0 ओ० से लेकर माननीय मुख्यमंत्री ' सुशासन बाबु ' तक अर्जी लगाई, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात. आज भले ही प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी योजना पुरे देश में चल  रही है , मगर मेरे गाँव से वो दूर ही है . अगर विकास को ढूँढा जाये तो मेरे गाँव में दो प्राथमिक  विद्यालय , कुछ टूटी- फूटी  सिन्धु घाटी  सभ्यता के अवशेषों की तरह  पक्की नालियों  
मेरे गाँव के जांबाज़ युवा जो मिटटी में आनंद ढूंढ रहे !
के अवशेषों के अलावा कुछ नही मिलता . हाँ बिजली आ गयी  है , जिसकी सूचना देता राजीव गाँधी की फोटो व राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना का बोर्ड गाँव की शुरुआत में ही लगा है . इसके अलावा मनरेगा के कार्य तो बस खानापूर्ति की तरह होते है . हा आधुनिकता की चाह ने लोगो को मोबाइल फोन्स से जरुर जोड़ दिया है , जिसमे प्रोढ़ भोजपुरी गाने देखते-सुनते रहते है , तो युवा पीढ़ी आधुनिक नौकरियों से बेपरवाह फेसबुक और इंटरनेट की रंगीनियों के जाल में फंसा है .गाँव के  कुछ जागरूक लोगो ने गाँव की प्रगति और विकास के लिए अपनी क्षमता अनुसार प्रयास किये ...यहाँ तक कि माननीय मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन भी दिया ....आधिकारियो , जनप्रतिनिधियों के आगे गुहार लगाई ...मगर मिला तो बस आश्वासन ...गाँव की समस्याओं का निराकरण न हो पाने का मूल कारण स्वयं की ग्राम पंचायत न हो पाना है , क्योंकि अभी हमारा गाँव 'आशा पड़री ' ग्राम पंचायत में आता है , जहाँ हमारे गाँव की साडी आशाएं पड़ी रहती है ...क्योंकि पंचायत में हमारे गाँव से केवल एक मात्र वार्ड मेंबर है , जिसकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती बनके रह जाती है . अब तो गाँव के लोग अपनी  इस आदिम जिन्दगी के आदि हो गये है , और इसी में खुश है.  

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...