शीर्षक देख चौंके नही ..........कभी आपने बांस के सूखे हुए पत्ते को बांस पर से गिरते हुए देखा है ? अगर नही तो अब कभी मौका मिले तो देखना ! अभी कुछ दिनों पहले मैं अपने गाँव ( गाँव- भरौली, पोस्ट - सिमरी, जिला बक्सर , बिहार ) गया हुआ था . मेरे घर के पीछे बांसों का एक छोटा सा जंगल जिसे भोजपुरी में कोठी कहते है . इस बार गरम दोपहरी में जब मैं दुवार (घर के बाहर बिहार में पुरुषो के बैठक खाने को कहते है ) में लेटा रहता था ( मजबूरन बिजली न होने के कारण ) , तो मैंने बांस के पत्तो को बांस से गिरते हुए देखा , देखा तो पहले भी था, मगर कभी इस तरह से नही देखा था . बांस के पत्ते आम पेड़-पौधो की तरह नही सीधे जमीन पर गिरते है . बल्कि बांस के पत्ते जब सूख कर बांस से नीचे गिरते है , तो हवा में कलाबाजियां खाते हुए ऐसे गिरते है , जैसे अपनी मृत्यु पर नृत्य कर रहे हो .............इस संसार सागर से छूटने का उत्सव मना रहे हो . ..बांस के पत्ते जब बांस से नीचे गिरते है , तो कभी सीधे नही गिरते, वे हवा को काटते हुए..........नाचते से धीरे-धीरे जमीन को ओर बढ़ते है .
अब इस पर कुछ वैज्ञानिक सोच के लोग कहेंगे कि.....बांस के पत्ते सामान्य पत्तो कि अपेक्षा पतले होते है , और सूखने पर किनारों से मुड़ जाते है . और उनकी संरचना इस तरह कि बन जाती है , कि वो हवा को काट सके .और हवा को काटने के क्रम में वो जमीन पर सीधे न गिर कर घुमते हुए जमीन पर ऐसे गिरते है , मानो नाच रहे हो !
मैं इनकी बात सही होते हुए भी मानने से इनकार कर दूंगा , क्योंकि विज्ञान कितना भी तर्कपूर्ण हो , मगर वह हरदम संवेदना को नही जान पाता है . वरना इतने विनाशक हथियार ही क्यों बनते ? मैं तो बांस के सूखे पत्तो के गिरने में एक कवि की तरह संवेदना को बार - बार निहारूंगा !
बांस के पत्ते जब सूख कर गिरते है डाल से
तो नाचते हुए कहते है काल से
रे काल मुझे कब थी जिन्दगी प्यारी
पर तुझे पाने की थी बेकरारी
अब इस पर कुछ वैज्ञानिक सोच के लोग कहेंगे कि.....बांस के पत्ते सामान्य पत्तो कि अपेक्षा पतले होते है , और सूखने पर किनारों से मुड़ जाते है . और उनकी संरचना इस तरह कि बन जाती है , कि वो हवा को काट सके .और हवा को काटने के क्रम में वो जमीन पर सीधे न गिर कर घुमते हुए जमीन पर ऐसे गिरते है , मानो नाच रहे हो !
मैं इनकी बात सही होते हुए भी मानने से इनकार कर दूंगा , क्योंकि विज्ञान कितना भी तर्कपूर्ण हो , मगर वह हरदम संवेदना को नही जान पाता है . वरना इतने विनाशक हथियार ही क्यों बनते ? मैं तो बांस के सूखे पत्तो के गिरने में एक कवि की तरह संवेदना को बार - बार निहारूंगा !
बांस के पत्ते जब सूख कर गिरते है डाल से
तो नाचते हुए कहते है काल से
रे काल मुझे कब थी जिन्दगी प्यारी
पर तुझे पाने की थी बेकरारी
अपनी राय से अवश्य अवगत करायें...........इन्तजार रहेगा