गुरुवार, 31 मई 2012

भारत बंद !

आज भाजपा ने रखा भारत बंद
जो संसद में खाते  रहे कलाकंद
इतने घोटाले, इतनी महंगाई
फिर इनके मुह में लगी थी जंग
आपस में लड़ने से फुर्सत नही
और सड़क पर झंडा बुलंद
इतनी नाकारा  है सरकार
फिर भी न लगा सके  पेबंद
बस आम    आदमी हो परेशान
इसी शान में करते रहो भारत बंद
टू जी, आदर्श, कॉमन  वेल्थ
महंगाई , भ्रष्टाचार ,के कितने रंग
बस तुम करते रहना , भारत बंद
बंद की जगह , खोलो दिमाग  के ताले
तब देश का सुधरेगा रंग ढंग
फिर भी कुछ न कर सके
तो कार्लो अपनी दुकान बंद
-मुकेश पाण्डेय "चन्दन"  

रविवार, 27 मई 2012

अब मर रहे रहे है, ताल-तलैया

अब मर रहे रहे है, ताल-तलैया 
कहाँ गए  ?  उनमे थे जो नाव खिवैया
 नदियों के भी आंसू सूख गये 
अब कठौती में होती, जय गंगा मैया 
माँ थी कभी सारी नदिया 
आज मात् हंता बने हम सब भैया 
धरती का सीना, चीर के चूसा 
अब पानी को करते ता-ता थैया 
मार के कुल्हाड़ी अपने पैरो पर 
 समझदार बने है, आज सैंया
सारे जंगल काट दिए है हमने 
 और ढूंढ  रहे , क्रांकीट में छैंया
अब तो जागो , कुम्भकरणो
डूब रही है , चन्दन की नैया
-mukesh pandey "chandan"

शुक्रवार, 25 मई 2012

मैं एक आम इन्सान हूँ

मैं एक आम इन्सान हूँ 
हर कदम जिन्दगी से परेशान हूँ
मैं जन्म लेता हूँ , गंदे सरकारी अस्पतालों में 
या फिर अँधेरे कमरों, सूखे खेतो या नालो में 
पलता-बढ़ता  हूँ, संकरी-छोटी गलियों में 
खेलता फिरता हूँ, मिटटी-कीचड़ और नालियों में 
ऊँची इमारतों को देखकर , मैं हैरान हूँ 
मैं एक आम इन्सान हूँ 
खंडहर  से सरकारी स्कूलों से की पढाई 
 क्लास बनी मैदान ,साथियों  से होती लडाई   
होश सँभालते ही, शुरू होती काम की तलाश 
आँखों में सपने , होती कर गुजरने की आस 
पर लगता मैं बेरोजगारी की शान हूँ 
मैं एक आम इन्सान हूँ 
जैसे-तैसे मिलती रोजी-रोटी, चलती जीवन की गाड़ी 
हर राह  पर पिसता , इस देश का ये खिलाडी 
 हर विपदा हमारे लिए होती, देखो जिंदगी का खेल 
हर बार हम  होते बर्बाद, करती मौत हमसे मेल 
बाढ़, सुखा, भूकंप, अकाल का मैं बर्बाद हुआ सामान हूँ 
मैं एक आम इन्सान हूँ  
- मुकेश पाण्डेय "चन्दन" 

 

गुरुवार, 24 मई 2012

आई जेठ की दुपहरी

झुलसते से पेड़ खड़े हो जाते   , आई जेठ की दुपहरी 
 पंछी भी निश्वास  हो जाते , आई जेठ की दुपहरी 
आसमान से मनो बरस रहे हो, आग के गोले 
ताप इतना है, कि लगे सूर्य अनलकोष होले 
नंदिनी गाय पेड़ टेल बैठी, पर वहां भी आराम  कहाँ 
भूरी कुतिया जीभ निकाले ,ढूँढती मानो शाम कहाँ
ताल-नदी सब सूखे, कालू कुआ ढूंढ रहा है पानी 
सांवली भैंस कीचड़ से लथपथ. सबसे ज्यादा उसे परेशानी 
हवा भी बहती नही , मिले कैसे गर्मी से छुटकारा 
अब जाये कहाँ सब, जल रहा है जग सारा 
पुसी बिल्ली आराम फरमाती , छोड़ चूहों कि चिंता 
सब चुपचाप दुबके , पंख न फैलाये कोई परिंदा 
सारा तन पसीना से नहाये,आई जेठ की दुपहरी 
सब जन है अलसाये , आई जेठ की दुपहरी      
 - मुकेश पाण्डेय "चन्दन"

गुरुवार, 17 मई 2012

दार्जलिंग की यात्रा

नमस्कार , 

मित्रो आज मैं अपनी दार्जलिंग यात्रा से आप सभी लोगो को रु-ब -रु  करना चाहता हूँ . हालाँकि मेरी ये यात्रा पिछले साल अप्रेल में हुई थी , लेकिन याद अभी भी ताजा ताजा है .मुझे बिहार लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा का केंद्र बिहार-बंगाल की सीमा पर  किशनगंज मिला था . मैंने  चलो इसी बहाने यहाँ  से नज़दीक विश्व प्रसिद्द पर्यटन स्थल दार्जलिंग की सैर कर ली जाये . तो 17 अप्रैल को मैं , मेरा  भाई और उसका एक  दोस्त किशनगंज से बस से सिलीगुड़ी  लिए रवाना हुए .(सिलीगुड़ी के पास राजगंज में हमारे रिश्तेदार रहते है ) अगर ट्रेन से जाना हो तो नजदीकी स्टेशन न्यू जलपाईगुडी  है .  दुसरे दिन 18 अप्रेल को बंगाल में विधानसभा चुनाव थे , इसलिए वाहन  कम ही मिल रहे थे . बस के ऊपर बैठकर हम लोग गये .सिलीगुड़ी के नजदीक पहुचते ही आसपास चाय के बागान दिख रहे थे .
बस से ..... चाय के बागान 

सिलीगुड़ी से दार्जलिंग जाते हुए रस्ते का  मनोरम नजारा ! ऊँचे  पहाडो की गहरी घाटियों में से झांकते हुए लम्बे- लम्बे चीड और देवदार के पेड़ इन खूबसूरत वादियों में हमारा स्वागत कर रहे थे .  रास्ता बहुत ही घुमावदार है , पलक झपकते ही गाड़ी दूसरी दिशा में घूम जाती है .
यूनेस्को की विश्व विरासत सूचि में शामिल  दार्जलिंग हिमालयन रेलवे का बाष्प चालित इंजन , जो आज भी नैरो गेज की पटरियों पर पर्यटकों को इस फिजा के दर्शन करता है . 
                      ये है विश्व धरोहर  रेलवे की खूबसूरत बोगी , बैठने का लोभ कौन छोड़ पायेगा !
और ये है , दार्जलिंग का छोटा सा  खूबसूरत स्टेशन , जो मेरे ख्याल से भारत का एकलौता स्टेशन होगा , जहाँ अन्दर तक चार पहिये वाहन आ जाते है . चित्र में आप देख सकते है .
  पहले दिन हम लोग पद्मजा नायडू हिमालयन जूलोजिकल पार्क एवं हिमालयन  माउंटेरिंग इन्स्टीटयुट को देखने पहुचे . चलिए आप को भी इसकी सैर करते है !
तो ये देखिये तंदुआ जो जाली  के  पास आकर हमसे दोस्ती करना चाह रहा है . ...दोस्ती करेंगे ?
अरे ध्यान से देखो ! वो दूर... जंगल का राजा शेर खड़ा है , दिखाई दिया ? राजा की शान में कौन  गुस्ताखी करें ! हम आगे बढे .......
ये जो पेड़ो  की डाल  पर  घूम रहा है , ये है दुर्लभ हिमालयन  लाल पांडा जो  बांस की पत्तियों को  मजे  से खाता है . और भी बहुत  से वन्यजीव  थे , मगर सबके चित्र लेना  संभव नही था .
अब आते है , पार्क में ही बने हिमालयन  माउंटेरिंग इन्स्टीटयुट को देखने के लिए ..इसे देखने के लिए पार्क के लिए टिकट लेते समय  से टिकट अलग से टिकट लेना पड़ता है . इस  संस्थान  में पर्वतारोहन की ट्रेनिंग दी जाती है . यही पर एक म्यूजियम भी है , जहाँ पर्वतारोहण से  सम्बंधित चित्र और सामग्रियां संग्रह  की गयी है . 
बहुत ही  सुन्दर  है न . ये  पहाड़ी फूल ?
लीजिये हम पहुच गए चाय के बागानों में ,जिसके  लिए दार्जलिंग मशहूर  है ! वाह !
ये लो जब हम चाय के बागानों को निहार रहे थे , तो  जाने कहाँ  से ये आवारा बादल आ गये ! और हमें  गीला    करके  चलते बने ! दार्जलिंग में ये आम  है !
चाय के  के पास ही लोग किराये से पहाड़ी पहनावा  के फोटो खिचवा रहे थे . इनमे महिलाये चाय बागान की  महिला  मजदूरो की ड्रेस में फोटो  खीचा रही थी . 
ये है सेंट जोसेफ स्कूल जहाँ पर "मेरा नाम जोकर " फिल्म के पहले भाग की शूटिंग हुई थी . दार्जलिंग में " मैं हूँ न " जैसी कई फिल्मो की शूटिंग हुई है . 
दुसरे दिन हम सुबह सुबह मुह अँधेरे निकले टाईगर  हिल के लिए ...दार्जलिंग से पास ही   स्थित टाईगर हिल से सूर्योदय देखने का मजा ही कुछ और  है! हालाँकि इसके लिए होटल से सुबह तीन-साढ़े तीन बजे अँधेरे में ही निकलना पड़ता है . हमारा  दुर्भाग्य ही , था, कि  उस दिन सूर्य देव बादलो की ओट  में छुपे रहे . मगर दूसरी और हमने टाईगर हिल से दूर कोहरे  और बादलों के  बीच कंचनजंघा का स्वर्गीय नजारा देखा तो ख़ुशी के मारे पैर जमीन पर नही थे .     
ये है टाईगर हिल के दुसरे छोर का  नजारा ....पहाड़ ....बादल....फिर पहाड़ ...और फिर बादल ! टाईगर हिल से  भारत की दूसरी सबसे ऊँची छोटी कंचनजंघा के दर्शन होते है . सुबह बादलो के कारन हमें नही हो पाए .. 
                                               लौटते  में   " घूम " में बौद्ध मठ  पहुचे
बौद्ध मठ  के अन्दर का दृश्य .....बहुत ही शांतिमय वातावरण ! मैं पहली  किसी बुद्ध  मठ में गया था . बुद्धं शरणम गच्छामि !
तिब्बतियों का पूजा के समय घुमाया जाने वाला यन्त्र 
अब तैयार हो  एक स्वर्गीय अनुभूति के लिए ,
जी  हाँ! जब हमने बतासिया लूप से ये नजारा देखा तो देखते ही रह गए . सामने हिम की चादर ओढ़े कंचनजंघा !  अद्भुत !
बतासिया लूप पर ही दार्जलिंग वार मेमोरियल  बना  हुआ है, और इस  मूर्ति  को देख  कर  है, मन में विचार आता है , कि  देश इन्ही के कारन सुरक्षित है ...........  
सीढ़ीदार जंगल ......
और आखिर में फिर से कंचनजंघा के दर्शन ........हमने तो सैकड़ो फोटो खीची फिर भी मन नही भरा ! सचमुच अनुपम !
   
 तो कैसी लगी ये दार्जलिंग की यात्रा .......जरुर  बताये .

शनिवार, 12 मई 2012

जिन्दगी की पहली डगर होती है माँ















कहते है कि  भगवान  से भी  बढ़कर होती है माँ 
जिन्दगी   की   पहली    डगर    होती     है   माँ 

सबसे पहले मैंने, तुम्हारी  आँखों से देखा था 
जब  तुम बनी मेरी पहली नज़र माँ 

जब मैं रोते-रोते, इस दुनिया में आया 
तो पहली हंसी में था, तुम्हारा असर  माँ

जब मैं  रात को करता बिस्तर गीला 
 तुमने गुजारी कई रातें जागकर  माँ 

जब मैं घुटनों  के बल चलता था 
तुमने चलना सिखाया, हाथ थामकर माँ

आज मुझे तुम्हारी जरुरत है माँ 
आ जाओ , अपने साथ बचपन बांधकर  माँ 

                मित्रो , माँ के विषय में बात करते समय समय मैं अक्सर भावुक हो , जाता हूँ , क्योंकि  साढ़े चार साल की उम्र से ही मैं अपनी नानी के पास रहने लगा था। हालाँकि नानी ने माँ की कमी को पूरा करने की पूरी  या कहे उससे ज्यादा प्यार दिया . मगर माँ तो माँ होती है . साल भर में जब  माँ आती तो ये कमी ये कमी दूर होती . आज भी जब माँ आती है ,तो मैं अपना बचपना जीना चाहता हूँ , और माँ के सामने एक छोटा सा बच्चा बन जाता हूँ . माँ आज भी कहती है , कि  तुम  सबसे बड़े नही सबसे छोटे बच्चे हो . माँ के सामने तो ताउम्र बच्चा ही रहना चाहता हूँ , . उम्र कितनी भी बढती जाये  ! इस  " मदर्स  डे  " पर माँ के लिए एक छोटी सी श्रद्धांजलि ...........................
दुनिया में किसी भी देश में लोग चाहे जैसे हो मगर माँ एक सी होती है . सभी माँ  को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि 

सोमवार, 7 मई 2012

अजन्मी की पुकार

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अजन्मी की पुकार

सुना है माँ तुम मुझे , जीने के पहले ही मार रही हो
कसूर क्या मेरा लड़की होना , इसलिए नकार रही हो
सच कहती हूँ माँ , आने दो मुझे जीवन में एक बार
न मांगूंगी खेल-खिलौने , न मांगूंगी तुमसे प्यार
रुखी सूखी खाकर पड़ी रहूंगी, मैं एक कोने में
हर बात तुम्हारी मानूंगी , न रखूंगी अधिकार रोने में
न करुँगी जिद तुमसे , जिद से पहले ही क्यों फटकार रही हो
कसू क्या मेरा लड़की होना , इसीलिए नकार रही हो
माँ तुम भी तो लड़की थी, तो समझो मेरा दुःख
न करना मुझे दुलार, फ़िर भी तुम्हे दूंगी सुख
भइया से न लडूंगी , न छिनुंगी उसके खेल खिलौने
मेहनत मैं खूब करुँगी , पुरे करुँगी सपने सलौने
आख़िर क्या मजबूरी है , जो जीने के पहले मार रही हो
कसूर की मेरा लड़की होना , इसीलिए नकार रही हो
कहते है दुनिया वाले , लड़का-लड़की होते है सामान
तो फ़िर क्यों नही देखने देते , मुझे ये प्यारा जहाँ
आने दो एक बार मुझे माँ , फ़िर न तुम पछताओगी
है मुझे विश्वाश माँ, तुम मुझे जरूर बुलाउगी
क्या देख लू मैं सपने , जिसमे तुम मुझे दुलार रही हो
देकर मुझको जनम माँ, तुम मेरा जीवन सवांर रही हो


मेरे प्यारे दोस्तों मेरी ये कविता अब तक की श्रेष्ठतम एवं सर्वाधिक सराही गयी कविताओ में से एक है। इस कविता को लिखते समय मेरे मन में  देश में हो रहे भ्रूण हत्याओं से लगातार  कम हो रही लड़कियों की मार्मिक दशा थी ।इसे मैं पूर्व में भी अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर चूका हूँ .  सचमुच जिस देश में कन्या को देवी माना जाता हो वहां कन्या भ्रूण हत्या वाकई शर्म की बात है । मेरी कविता का उद्देश्य केवल सराहना पाना नही है , बल्कि मैं चाहता हूँ की कोई बदलाव की बयार बहे .................
इस बदलाव में आपका साथ अपेक्षित  है , अपना सहयोग अवश्य दे क्योंकि हम कल भी देख सके
इसी आशा के साथ आपका अपना ही अनुज
- मुकेश पाण्डेय "चन्दन "

शनिवार, 5 मई 2012

जिन्दगी तुम्हारे आने के बाद ........

जिन्दगी तुम्हारे आने के बाद कितनी बदल गयी है
क्या  कहे जिंदगी भटकी या फिर संभल गयी है  
पहले जिंदगी  ही चलती  रही थी जा रही थी 
पर अब तुमसे , मिलने जिन्दगी ठहर गयी है 
धड़कने धड़कती है , बस तुम्हारे लिए ही 
और सांसें , तो बस तुम्हारे लिए मचल गयी है 
जिन्दगी की , रह की मंजिल हो गयी हो  तुम
अब तो इस महकते 'चन्दन' की  बदल गयी है 

गुरुवार, 3 मई 2012

कुदरत के हर रंग में तुम

हर फूल में होती है, तुम्हारी खुशबू
हर बहार में होता है, तुम्हारा जादू
हर कली में दिख जाती है, तुम्हारी मुस्कान
हर भंवरे  से करता हूँ ,  तुम्हारा अरमान
कुदरत के हर रंग में दिख जाती तुम
बादलों में भी बिजली सी आती जाती तुम
ठंडी हवा से मुझे सहलाती तुम
बारिश की बूंदों में जी बहलाती तुम
चाँद भी हर रात करता, तुम्हारा ही अहसास
सुबह की पहली किरण सी ताजा तुम्हारी आस 
बहते झरने की कलकल सी तुम्हारी प्यास 
शबनम की ठंडक में है, तुम्हारा विश्वास 
कोंपल sa प्रफुल्लित , है तुम्हारा मन 
सरिता का निर्मल जल है , तुम्हारा दर्पण 
बस तुम्हारे लिए , मैं भटकता वन-उपवन 
और तुम महकती , मेरे भीतर बनके 'चन्दन'      
 
 

मंगलवार, 1 मई 2012

सत्यमेव जयते !

जब भी तनहा रहता हूँ , तो जीवन के बारे में सोचता हूँ . थोडा सा अध्यात्मिक सा होने लगता हूँ . सोच जन्म-मरण से भी आगे जाने लगती है . कभी भाग्य पर चिंतन होता है , तो कभी कर्म पर , कभी जीवन के औचित्य पर ही मन खुद से  सवाल करने लगता है . कभी जवाब  मिलते है तो कभी नही भी .....इसी उधेड़ बुन में लगा था, कि ये कुछ पंक्तियाँ उत्पन्न हुई .....

सत्यमेव जयते  !
हम हरदम ये कहते
पर आखिर क्या है सत्य ?
रहता जो शाश्वत
ये जीवन, ये धरा
ये ब्रम्हांड, ये परा
सब तो है नश्वर
बस सत्य है ईश्वर
लौकिक सत्य के पीछे क्यों भागें
 जब सब मिथ्या है , उसके आगे
बस सत्य सनातन !!
क्या प्राचीन, क्या अधुनातन ?
जन्म-मृत्यु आनी जानी है 
हम तुम बस झूठी कहानी है
 जीवन का क्या औचित्य है
राम नाम ही सत्य है !

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...