बुधवार, 25 मार्च 2020

मध्य प्रदेश की एक खूबसूरत अनछुई जगह पन्ना

 आपको पन्ना जिले के मेरे अनुभव से यात्रा करवाते है ।

मेरा स्थानांतरण जब मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में हुआ , तो अधिकांश व्यक्तियों ने नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की । क्योंकि पन्ना मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र का सबसे पिछड़ा जिला है । खैर काम कही करना है, तो हम 2 सितंबर को पन्ना जिले में जॉइन करने निकल पड़े ।  अपनी कार से जब छतरपुर से सतना मार्ग पर  बमीठा (यहाँ से 9 किमी दूरी पर खजुराहो है ।)  से आगे निकला तो सड़क के दोनों किनारे सागौन का जंगल शुरू हो गया । जगह जगह पन्ना टाइगर रिजर्व के साइन बोर्ड जिन पर बाघ के होने की चित्रमय सूचना दी थी , मिलने शुरू हो गए । मेरे ड्राइवर ने मुझसे पूछा - सर यहां से सचमुच शेर गुजरते है या वन विभाग ने डराने के लिए ये बोर्ड लगाए है ।  मैंने अपना ज्ञान बघारते हुए कहा -  नही, यहां 50 से ऊपर बाघ है । एक समय यहां बाघ समाप्त हो गए थे, फिर 2009 में बाघ पुनर्स्थापना की शुरुआत हुई और तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर मूर्ति जी और स्टॉफ की कड़ी मेहनत ने पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से बाघों से आबाद किया । और आज दूसरी जगहों पर पन्ना से बाघ भेजे गए । पन्ना टाइगर रिजर्व दुनिया पहला और इकलौता टाइगर रिजर्व है , जहाँ बाघों की संख्या शून्य होने के बाद उनका पुनर्वास सफलता पूर्वक किया गया है , बल्कि अब दुनिया भर के टाइगर रिजर्व यहाँ इस बात का प्रशिक्षण लेने आते है । पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के अलावा तेंदुआ, रीछ, लकड़बग्घा, जंगली सुअर, सांभर , चीतल, नीलगाय जैसे जानवर बहुतायत में है । यहां के सांभर अनुकूल परिस्थितियों के कारण आकार में बड़े और हष्ट पुष्ट होते है । सांभर बाघों का प्रिय भोजन है । हालांकि हमे भी सांभर बड़ा पसंद है, लेकिन डोसा और इडली के साथ । 
                                              
                         अब हम पांडव गुफा और जलप्रपात के पास से गुजर रहे थे । मैंने 2013 में यह स्थान देखा था । यहाँ खूबसूरत झरने के पास कुछ गुफाएं भी बनाई गई है । जिनके बारे में कहा जाता था, कि इन्हें पांडवों ने अपने अज्ञातवास में बनाया था । खैर पांडव प्रपात से थोड़े आगे घाटी चढ़े ही थे, कि सड़क किनारे एक गाड़ी खड़ी लेकिन उसमें से कोई व्यक्ति बाहर नही निकला । सब खिड़की से जंगल की तरफ झांक रहे थे । तभी एक वन विभाग की बोलेरो आई और वो भी जंगल की तरफ देखने लगे । हम भी उत्सुकता वश रुक गए  और पूछा क्या हुआ ? तो गाड़ी वाले एक व्यक्ति ने जंगल की तरफ इशारा करके कहा - वहाँ टाइगर है ! फिर क्या था , हमारी बांछे (शरीर मे जहाँ भी होती हो ) खिल उठी । और हमने न केवल जी भर टाइगर देखा बल्कि उसका भरी दोपहरी में मोबाइल से वीडियो बनाया । बाद में मुझे पता चला कि हमने जो बाघ देखा था, उसका नाम कन्हैया है । इसके नामकरण की भी रोचक दास्तान है । किसी अन्य बाघ के साथ इलाके की लड़ाई में इसकी एक आंख नही रही । इसलिये इसे काणा (एक आंख वाला) नाम दिया , कुछ लोगों ने काणा को कान्हा समझा । फिर कान्हा को सुधार कर कन्हैया कर दिया गया । यह एक आंख होने के कारण अंदर घने जंगल में न रहकर सड़क किनारे के क्षेत्र में रहने लगा है, क्योंकि यहाँ कम मेहनत में आसपास के गांवों के पालतू पशु आसानी से मिल जाते है । और दूसरे किसी बाघ का इलाका न होने के कारण सुरक्षित भी है ।  कन्हैया बाघ के जाने के बाद हम भी चल पड़े , अपना दिन बन चुका था । जहाँ लोगो को हजारों खर्च करने के बाद बाघ नही दिखता हम मुफ्त में ही सड़क किनारे बाघ देख लिए वो भी तब जब टाइगर रिजर्व बन्द रहता है । (जुलाई से सितम्बर तक)
                                  अब हम पन्ना शहर में प्रवेश किये और पन्ना के सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पूज्यनीय मन्दिर जुगलकिशोर मन्दिर पहुँचे । मध्यकालीन बुंदेला शैली में बना भव्य मंदिर के अंदर गर्भगृह में कृष्ण और राधा की प्रतिमा है । कहते है कि कृष्ण जी की प्रतिमा की मुरली और मुकुट में हीरे जड़े है । बात सही भी है, क्योंकि पूरे भारत में सिर्फ पन्ना जिले में ही हीरे की खदानें है । यहाँ की एशिया की सबसे बड़ी हीरे खुली खदान यही पर मझगंवा में है , जिसका संचालन राष्ट्रीय खनन विकास कॉर्पोरेशन (एन एम डी सी) द्वारा किया जाता है । दर्शन पश्चात हमने अपनी नौकरी जॉइन की ।
                                 अगले दिन हम पन्ना के दूसरे प्रसिद्ध मंदिर बलदेव जी के मन्दिर गए । इस मंदिर की बड़ी तारीफ सुनी थी, और यह उससे भी ज्यादा खूबसूरत निकला । यह दुनिया का इकलौता मन्दिर है, जो चर्च की स्थापत्य शैली में बना है । इसके वास्तुकार इटली के मेल्स है, जिन्होंने 1921 में राजा रुद्रदेव के आदेश पर यह बेहद खूबसूरत मन्दिर बनाया । 16 कलाओं के स्वामी बलराम को समर्पित इस मंदिर में 16 गुम्बद, 16 दरवाजे, 16 खिड़कियां, 16 स्तंभ, 16 सीढ़ियां है । अंदर चमकदार काले ग्रेनाईट से बलराम जी की सुंदर मूर्ति है, पीछे शेषनाग बने हुए है । इस मंदिर का स्थापत्य हर किसी को मोहित कर सकता है । इसके पास में ही दो भव्य मंदिर है । जिनमे से एक जगन्नाथ स्वामी मंदिर है , जो बना तो बुंदेला स्थापत्य शैली में है , मगर अंदर प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृति ही है । यहां पुरी की तरह ही भव्य रथयात्रा निकाली जाती है । बलदेव जी मन्दिर के दूसरी तरह गोविंद जी का मन्दिर है । जहाँ भगवान कृष्ण की सुंदर प्रतिमा स्थापित है ।
                              तीसरे दिन आफिस के बाद हम फिर शहर घूमने निकल पड़े । इस बार पड़ाव था , प्राणनाथ मन्दिर । दुनिया का मकबरा शैली में संगमरमर से बना यह शानदार मन्दिर प्रणामी सम्प्रदाय के संत प्राणनाथ जी को समर्पित है । प्राणनाथ जी बुंदेला वीर शासक महाराज छत्रसाल के आध्यात्मिक गुरु थे । प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा पर बहुत बड़ा मेला लगता है , जिसमें प्रणामी सम्प्रदाय के लाखों अनुयायी देश-विदेश से आते है । इसके बाद गली से निकलते ही पुराना कलेक्ट्रेट भवन मिला । महेंद्र भवन के नाम से विख्यात यह इमारत एक समय पन्ना राजघराने का महल था, जिसे प्रशासनिक भवन बना दिया गया । यह मध्य प्रदेश का सबसे खूबसूरत कलेक्ट्रेट भवन था । अब नई इमारत बनने से इसे खाली कर दिया गया है , भविष्य में इसमे  हेरिटेज होटल बनना प्रस्तावित है । इससे थोड़े आगे चलने पर रामजानकी मन्दिर है । इस मंदिर में अंदर दीवारों पर तुलसीकृत रामचरित मानस की सभी चौपाइयां, दोहे आदि लिखे हुए है । गर्भगृह में राम जानकी की मनमोहक प्रतिमा है ।
अब अगले दिन रविवार पड़ गया । छुट्टी के दिन क्या करें ? तो गूगल महाराज का सहारा लिया तो पता चला नए कलेक्ट्रेट के पास ही किलकिला नदी पर कलकल जलप्रपात है । शहर के इतने पास जलप्रपात देख बड़ी खुशी हुई । बायपास रोड पर जब कलकल जलप्रपात पहुँचे तो मजा आ गया । जलप्रपात के पास ही चट्टानें इस तरह है, मानो कोई महापाषाणीय समाधि हो । पास में शिवमंदिर भी है । वही एक व्यक्ति से जलप्रपात के बारे में पूछताछ करने पर पता चला कि इसी नदी पर आगे 2 किमी जंगल में  कौआसेहा जलप्रपात इससे भी बड़ा और खूबसूरत है । अंधा क्या चाहे दो आंखे और हम अकेले ही गड्डी लेकर निकल पड़े जंगल की ओर । तब किलकिला नदी ने ही हमारा रास्ता रोका । पास से गुजर रहे लकड़हारे लड़के से मैंने कौआसेहा जलप्रपात जाने के अन्य विकल्प का पूछा तो उसने बताया रास्ता तो यही है , वैसे नदी में पानी ज्यादा नही है, गाड़ी आसानी से पार हो जाएगी । लेकिन मेरी हिम्मत नही हुई, तो उसे पहले नदी पार करने को कहा जब वो नदी पार हो गया तब हमने अपनी गाड़ी पार की । कुछ देर बाद जब हम जलप्रपात के नजदीक पहुँचे तो नजारा अविस्मरणीय था । स्थानीय भाषा में सेहा का अर्थ कुंड या प्रपात होता है । कौआसेहा जलप्रपात देखने ने छत्तीसगढ़ के तीरथगढ़ जलप्रपात जैसा लगता है । शहर के इतने नजदीक जंगल मे इतना शानदार जलप्रपात होने के बाद भी भीड़ न होना आश्चर्यजनक है । बाद में इसका कारण पता चला कि मॉनसून में पन्ना और आसपास ढेर सारे झरने जाग्रत हो जाते है ।
                             अब अगले दिन जब मैंने अपने कार्यालय के सहयोगियों को दोनो झरनों की फ़ोटो दिखाई तो उन्होंने कहा - अभी आपने बृहस्पति कुण्ड का झरना तो देखा ही नही । उसके आगे पन्ना के सारे झरने बच्चे है । अब बृहस्पति कुण्ड देखने की इच्छा जोर मारने लगी । इंटरनेट पर मैंने बृहस्पति कुण्ड खोज कर देखा वास्तव में बड़ा खूबसूरत झरना है । अगले दिन सुबह सुबह अपने उन्ही सहयोगियों के साथ पन्ना से 35 किमी दूर बृहस्पति कुण्ड पहुँचे । वहाँ का दृश्य देखकर दिल गार्डन गार्डन सॉरी झरना झरना हो गया । बाघिन नदी पर बना यह एक ज्वालामुखी कृत जलप्रपात है । घोड़े के नाल की आकृति में बाघिन नदी जब नीचे घाटी में गिरती है, तो गिरने से पहले दिल लूट लेती है । बृहस्पति कुंड जलप्रपात का क्षेत्र प्राकृतिक रूप से तो मनभावन है ही , साथ ही धार्मिक-पौराणिक, ऐतिहासिक,आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण है  । एक कथा अनुसार देवगुरु बृहस्पति ने यहां पर यज्ञ किया था । ऋषि मुनियों के अनेक आश्रम भी यहाँ रहे है । त्रेता युग में भगवान राम अपने चित्रकूट वनवास काल में सीता और लक्ष्मण के साथ यहाँ ऋषि-मुनियों के दर्शन करने आये । ( चित्रकूट यहां से जंगल के रास्ते से लगभग 50 किमी होगा।) यहाँ की गुफाओं और चट्टानों पर आदिमानवों द्वारा हजारों साल पहले बनाये शैलचित्र है । एक शैलचित्र में तो जिराफ जैसे जानवर को देखकर आश्चर्यचकित रह गया । चूंकि भारत का प्रायद्वीपीय भाग पहले अफ्रीका से जुड़ा था, तो हो सकता है यहां जिराफ रहे हो । अधिकांश शैलचित्रों में शिकार , आदिमानवों की तत्कालीन गतिविधियाँ और वन्य जीवों के चित्र है । आर्थिक महत्व के रूप में इस जलप्रपात के आसपास हीरे की खदानें भी है । खदान का नाम सुनते ही हमारे जेहन में बड़ा सा गड्ढा सामने आता है । जबकि पन्ना में हीरे ही 3-4 फुट की उथली खदानें है । पन्ना के आसपास किम्बरलाइट चट्टाने बहुतायत में पाई जाती है । जिनमें हीरे पाए जाते है । जमीन में जिन जगहों पर किम्बर लाइट के पत्थर ज्यादा होते है , वहाँ लोग जमीन के हिस्से का हीरे उत्खनन का लाइसेंस ले लेते है, फिर वहाँ की मात्र 3-4 फुट की खुदाई कराई जाती है , पत्थरों के बीच हीरा खोजा जाता है । यहाँ उत्कृष्ट किस्म का हीरा मिलता है । सबसे अच्छी बात भारत का कोई भी नागरिक हीरा खोदने का लाइसेंस ले सकता है, वो भी कुछ हजार रुपयों में ।
                                  पन्ना जिले में राम वनगमन पथ के स्थानों में वृहस्पति कुंड के अलावा सुतीक्ष्ण मुनि आश्रम सारंगधर, अगस्त्य मुनि आश्रम सलेहा, अग्निजिह्वा आश्रम आदि स्थल है । ऐसी मान्यता है, कि भगवान राम अपने वनवास काल में इन स्थानों पर ऋषि मुनियों के दर्शन करने आये थे । रामायण काल के अलावा पन्ना जिले में महाभारत कालीन स्थलों में पाण्डव गुफा और जलप्रपात , अमानगंज के पास पन्डवन है, जहाँ केन नदी पाँच चट्टानों में से गुजरती है । यही से लगभग 30 किमी दूरी पर भीमकुण्ड है, जिसका पानी बिल्कुल नीला है । दुनिया में कही भी भूकम्प या सुनामी आती है, तो भीमकुण्ड के जल में अपने आप ऊंची लहरें उठने लगती है ।
पन्ना जिला अभी भी अपनी ठेठ बुंदेली संस्कृति को बचाकर रखे है । खानपान पर अभी भी शहरी मुलम्मा नही चढ़ा है ।  पन्ना में खान पान और संस्कृति पूरी तरह बुंदेली है । यहां भोजन में दाल-बाटी के साथ भटा का भर्ता, चीला, बरा, मंगोड़ा, बिजौरा, बरी, खोवा की जलेबी, रायता, बिर्रा की रोटी आदि स्वादिष्ट व्यंजन लोकप्रिय है । यह तो पन्ना  संक्षिप्त परिचय था , जल्द ही अगले पोस्ट में विस्तार से लिखने का प्रयास करूँगा।  20 फ़रवरी को दैनिक जागरण  राष्ट्र्रीय संस्करण में सप्तरंग परिशिष्ट में पन्ना पर मेरा आलेख प्रकाशित चुका है।  जिसे आप दैनिक जागरण की वेबसाइट पर पढ़ सकते है।  
अब आप चित्रों का आनंद लीजिये 
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में सांभर 

जुगल किशोर जी मंदिर 

चर्च जैसा बलदेव जी मंदिर 

पन्ना टाइगर रिज़र्व में चीतल 

बृहस्पति कुण्ड जलप्रपात 

जलप्रपात का एक और खूबसूरत नजारा 

बृहस्पति कुण्ड के पास प्राचीन शैलचित्र जिसमे जिराफ भी दिख रहा है।  

मस्जिद जैसा प्राणनाथ मंदिर 

कउआसेहा जलप्रपात 

कलकल जलप्रपात 
अजयगढ़ घाटी 

बक्चुर जलप्रपात 

नवीन कलेक्ट्रेट भवन 

पुराना कलेक्ट्रेट महेंद्र भवन 
गुप्तकालीन नचने कुठार का मंदिर 

अजयगढ़ किले से सूर्यास्त 
20 फ़रवरी 2020 को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित मेरा आलेख 

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...