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गुरुवार, 17 मई 2012

दार्जलिंग की यात्रा

नमस्कार , 

मित्रो आज मैं अपनी दार्जलिंग यात्रा से आप सभी लोगो को रु-ब -रु  करना चाहता हूँ . हालाँकि मेरी ये यात्रा पिछले साल अप्रेल में हुई थी , लेकिन याद अभी भी ताजा ताजा है .मुझे बिहार लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा का केंद्र बिहार-बंगाल की सीमा पर  किशनगंज मिला था . मैंने  चलो इसी बहाने यहाँ  से नज़दीक विश्व प्रसिद्द पर्यटन स्थल दार्जलिंग की सैर कर ली जाये . तो 17 अप्रैल को मैं , मेरा  भाई और उसका एक  दोस्त किशनगंज से बस से सिलीगुड़ी  लिए रवाना हुए .(सिलीगुड़ी के पास राजगंज में हमारे रिश्तेदार रहते है ) अगर ट्रेन से जाना हो तो नजदीकी स्टेशन न्यू जलपाईगुडी  है .  दुसरे दिन 18 अप्रेल को बंगाल में विधानसभा चुनाव थे , इसलिए वाहन  कम ही मिल रहे थे . बस के ऊपर बैठकर हम लोग गये .सिलीगुड़ी के नजदीक पहुचते ही आसपास चाय के बागान दिख रहे थे .
बस से ..... चाय के बागान 

सिलीगुड़ी से दार्जलिंग जाते हुए रस्ते का  मनोरम नजारा ! ऊँचे  पहाडो की गहरी घाटियों में से झांकते हुए लम्बे- लम्बे चीड और देवदार के पेड़ इन खूबसूरत वादियों में हमारा स्वागत कर रहे थे .  रास्ता बहुत ही घुमावदार है , पलक झपकते ही गाड़ी दूसरी दिशा में घूम जाती है .
यूनेस्को की विश्व विरासत सूचि में शामिल  दार्जलिंग हिमालयन रेलवे का बाष्प चालित इंजन , जो आज भी नैरो गेज की पटरियों पर पर्यटकों को इस फिजा के दर्शन करता है . 
                      ये है विश्व धरोहर  रेलवे की खूबसूरत बोगी , बैठने का लोभ कौन छोड़ पायेगा !
और ये है , दार्जलिंग का छोटा सा  खूबसूरत स्टेशन , जो मेरे ख्याल से भारत का एकलौता स्टेशन होगा , जहाँ अन्दर तक चार पहिये वाहन आ जाते है . चित्र में आप देख सकते है .
  पहले दिन हम लोग पद्मजा नायडू हिमालयन जूलोजिकल पार्क एवं हिमालयन  माउंटेरिंग इन्स्टीटयुट को देखने पहुचे . चलिए आप को भी इसकी सैर करते है !
तो ये देखिये तंदुआ जो जाली  के  पास आकर हमसे दोस्ती करना चाह रहा है . ...दोस्ती करेंगे ?
अरे ध्यान से देखो ! वो दूर... जंगल का राजा शेर खड़ा है , दिखाई दिया ? राजा की शान में कौन  गुस्ताखी करें ! हम आगे बढे .......
ये जो पेड़ो  की डाल  पर  घूम रहा है , ये है दुर्लभ हिमालयन  लाल पांडा जो  बांस की पत्तियों को  मजे  से खाता है . और भी बहुत  से वन्यजीव  थे , मगर सबके चित्र लेना  संभव नही था .
अब आते है , पार्क में ही बने हिमालयन  माउंटेरिंग इन्स्टीटयुट को देखने के लिए ..इसे देखने के लिए पार्क के लिए टिकट लेते समय  से टिकट अलग से टिकट लेना पड़ता है . इस  संस्थान  में पर्वतारोहन की ट्रेनिंग दी जाती है . यही पर एक म्यूजियम भी है , जहाँ पर्वतारोहण से  सम्बंधित चित्र और सामग्रियां संग्रह  की गयी है . 
बहुत ही  सुन्दर  है न . ये  पहाड़ी फूल ?
लीजिये हम पहुच गए चाय के बागानों में ,जिसके  लिए दार्जलिंग मशहूर  है ! वाह !
ये लो जब हम चाय के बागानों को निहार रहे थे , तो  जाने कहाँ  से ये आवारा बादल आ गये ! और हमें  गीला    करके  चलते बने ! दार्जलिंग में ये आम  है !
चाय के  के पास ही लोग किराये से पहाड़ी पहनावा  के फोटो खिचवा रहे थे . इनमे महिलाये चाय बागान की  महिला  मजदूरो की ड्रेस में फोटो  खीचा रही थी . 
ये है सेंट जोसेफ स्कूल जहाँ पर "मेरा नाम जोकर " फिल्म के पहले भाग की शूटिंग हुई थी . दार्जलिंग में " मैं हूँ न " जैसी कई फिल्मो की शूटिंग हुई है . 
दुसरे दिन हम सुबह सुबह मुह अँधेरे निकले टाईगर  हिल के लिए ...दार्जलिंग से पास ही   स्थित टाईगर हिल से सूर्योदय देखने का मजा ही कुछ और  है! हालाँकि इसके लिए होटल से सुबह तीन-साढ़े तीन बजे अँधेरे में ही निकलना पड़ता है . हमारा  दुर्भाग्य ही , था, कि  उस दिन सूर्य देव बादलो की ओट  में छुपे रहे . मगर दूसरी और हमने टाईगर हिल से दूर कोहरे  और बादलों के  बीच कंचनजंघा का स्वर्गीय नजारा देखा तो ख़ुशी के मारे पैर जमीन पर नही थे .     
ये है टाईगर हिल के दुसरे छोर का  नजारा ....पहाड़ ....बादल....फिर पहाड़ ...और फिर बादल ! टाईगर हिल से  भारत की दूसरी सबसे ऊँची छोटी कंचनजंघा के दर्शन होते है . सुबह बादलो के कारन हमें नही हो पाए .. 
                                               लौटते  में   " घूम " में बौद्ध मठ  पहुचे
बौद्ध मठ  के अन्दर का दृश्य .....बहुत ही शांतिमय वातावरण ! मैं पहली  किसी बुद्ध  मठ में गया था . बुद्धं शरणम गच्छामि !
तिब्बतियों का पूजा के समय घुमाया जाने वाला यन्त्र 
अब तैयार हो  एक स्वर्गीय अनुभूति के लिए ,
जी  हाँ! जब हमने बतासिया लूप से ये नजारा देखा तो देखते ही रह गए . सामने हिम की चादर ओढ़े कंचनजंघा !  अद्भुत !
बतासिया लूप पर ही दार्जलिंग वार मेमोरियल  बना  हुआ है, और इस  मूर्ति  को देख  कर  है, मन में विचार आता है , कि  देश इन्ही के कारन सुरक्षित है ...........  
सीढ़ीदार जंगल ......
और आखिर में फिर से कंचनजंघा के दर्शन ........हमने तो सैकड़ो फोटो खीची फिर भी मन नही भरा ! सचमुच अनुपम !
   
 तो कैसी लगी ये दार्जलिंग की यात्रा .......जरुर  बताये .

शनिवार, 30 अप्रैल 2011

दार्जलिंग के चोर........












































दार्जलिंग
की खूबसूरत वादियों में
प्रकृति की गोद, बादलों की आबादियों में
शुभ्र धवल कंचनजंघा की चोटी
हिमालय के भाल का मोती
देवदार के लम्बे ऊँचे पहरेदार
पुकारते, आओ बारम्बार
खेलो बादलों के खिलोनो से
प्रकृति के अद्भुत नमूनों से
है मौन निमंत्रण , न कोई शोर
दिल चुरा ले गया, दार्जलिंग का




हिमालय की खूबसूरत चोटियों में से एक कंचनजंघा जो दार्जलिंग से बड़ी ही ख़ूबसूरती से दिखाई देती है। सचमुच अद्भुत अनुभव .....बादलो के बीच गुजरना ..............ऊँचे पहाड़ो की सुन्दर सर्पीली राहों से चाय के बागानों को निहारना .........
जरा सोचिये आप अपने होटल के कमरे में खिड़की खोले बैठे हो और ....
तभी कोई बादल चोरो की तरह आपके कमरे में आये और तब....
आपकी ख़ुशी की सीमा न रहेगी .... ये बादल आपका सचमुच दिल चुरा ले जायेगा ......
सुबह सुबह जब आप टाईगर हिल से जब सूर्योदय होते देखेंगे तो सब भूल जायेंगे .............बादलो के ऊपर टाईगर हिल से आप जब सूर्योदय के समय जब दूर हिमाच्छादित कंचनजंघा पर नजर डालेंगे तो ....मनो स्वर्ग का अनुभव होगा ..... तब ऐसा लगेगा की इस नज़ारे को हमेशा के लिए आँखों में कैद कर लें .

orchha gatha

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