मंगलवार, 7 जनवरी 2020

वृहस्पति कुंड में आदि मानव के बनाये शैल चित्र

हजारों साल पुराने शैल चित्र ! 
बी एस सी की पढ़ाई के दौरान मानव विज्ञान (Anthropology)  विषय रहा । तब से आदि मानव से आधुनिक मानव का विकास क्रम सिलेबस का हिस्सा रहा । मगर मुझे शैल चित्रों ने सदैव आकर्षित किया । मध्य प्रदेश में यूनेस्को की विश्व धरोहर भीमबेटका शैल चित्रों के लिए विश्वविख्यात है, मगर दुर्भाग्य से वहां तक जा न पाया । खैर पन्ना जिले में पदस्थापना के दौरान कई जगहों पर शैल चित्रों के होने की जानकारी मिली तो दिल खुशी से नाच उठा । उसी यात्रा का पहला पड़ाव प्रस्तुत है । 
मनुष्य प्रारम्भ से अन्य जीवों से अधिक मस्तिष्क वाला रहा है । प्रारम्भ में जब मानव बानरो की भांति पेड़ पर रहता था, तब उसे कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता था , क्योंकि प्रकृति ने उसे अन्य जीवों की तरह कोई विशेष अंग नही दिए जिससे वह अपनी रक्षा या बचाव हेतु अनुकूलन कर सके । न तो मांसाहारी जीवों की तरह नुकीले नाखून, लंबे दांत दिए और न ही शाकाहारी जीवों की तरह सींग या खुर दिए । पेड़ों पर रहने के लिए पूंछ का भी सहारा न रहा । बेचारा मजबूरी में पेड़ से नीचे उतरा । अब समस्या ये कि चार पैर (तब हाथ का प्रयोग पैर के रूप में ही था ) पर चलने पर लम्बी घास के कारण ज्यादा दूर तक नही दिख पाता था । अब खूंखार जंगली जानवरों के बीच निरीह मानव अपने अगले पैरों को हवा में रख पिछले पैरों पर खड़ा हुआ । यह क्रांतिकारी घटना थी । क्योंकि यही से मानव अन्य जीवों से अलग विशिष्ट श्रेणी की ओर उन्मुख हुआ । अगले पैर अब हाथ के रूप में विकसित हुए , हाथ का अंगूठा अंगुलियों के समकोण पर आया, जिससे चीजों को पकड़ना आसान हुआ । सिर सीधा होने से मष्तिष्क के लिए ज्यादा जगह बनी । बड़ा मस्तिष्क मतलब बड़ी सोच  और बड़ी सोच मतलब बड़ा बदलाव । इतनी कहानी सुनाने का मतलब ये है कि इसी बड़े मस्तिष्क ने कल्पनाओं और विचारों को जन्म दिया । अब पेड़ से उतर आये थे, और हाथ में पत्थर के औजार आ गए थे । तो शिकार भी करने लगे । हालांकि शिकार सामूहिक रूप से हो पाता था । कई बार गलती से बड़ा शिकार हाथ लग जाता तो बचे माँस को सुरक्षित और संग्रहित करने की जरूरत पड़ी । तो बड़े जानवरों की प्राकृतिक गुफाओं पर कब्जा किया गया । संग्रहित शिकार की सुरक्षा के लिए पहरेदार भी बिठाए गए । अब पहरेदार दिनभर बैठे बैठे क्या करे ?  तो गुफाओं की दीवारों पर पत्थरों से आड़ी तिरछी रेखाएं खींची । जब साथ वालों ने तारीफ की तो उन रेखाओं के विकास कर आसपास की गतिविधियों को उकेरा । फिर वनस्पतियों के रस से रंग बनाया । अब तो गुफ़ाओं की दीवारों पर रंगीन चित्रकारी होने लगी । यही से आदि मानव द्वारा बनाये गए शैल चित्रों की शुरुआत हुई । जो आज हजारों साल बाद भी गुफाओं में मिलते है । 
मध्य प्रदेश में भीमबेटका के शैलचित्र को यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल हो गए । मगर आज भी मध्य प्रदेश में बहुत सी जगहों पर ये उपेक्षित पड़े है , और समय की मार से बचकर आज के मानव की मार से खराब हो रहे है । इसी तरह के शैलचित्र मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के पहाड़ीखेड़ा गांव के पास बृहस्पति कुंड जलप्रपात के आसपास बहुतायत में है । मगर सरंक्षण के अभाव में नष्ट होने की कगार पर है । बहुत से शैल चित्र धुंधले पड़ गए है । इन शैल चित्रों में आदि मानव ने तत्कालीन परिस्थितियों और जीवों की चित्रित किया है । इन चित्रों में वन्य जीव, आखेट, नृत्य आदि का चित्रण लाल रंगों से किया गया है । आगे भी शैल चित्रों की खोज जारी रहेगी ....
- मुकेश पाण्डेय 




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