रविवार, 22 जनवरी 2017

ओरछा महामिलन :साउंड एंड लाइट शो , परिचय ,तुंगारण्य में वृक्षारोपण


अभी तक आपने ओरछा महामिलन का पहले दिन का विवरण पढ़ा।  सभी लोग तय कार्यक्रम के अनुसार निश्चित समय पर रामराजा मंदिर पहुँच चुके थे।  आरती शुरू हो चुकी थी, मगर मैं अभी तक घर पर था। जब अनिमेष गोद  से उतरने  का नाम ही नही ले रहा था , तो उसे साथ ही लेकर कार से मंदिर पहुंचा ...


ओरछा का साउंड और लाइट शो 


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अभी तक आपने ओरछा महामिलन का पहले दिन का विवरण पढ़ा।  सभी लोग तय कार्यक्रम के अनुसार निश्चित समय पर रामराजा मंदिर पहुँच चुके थे।  आरती शुरू हो चुकी थी, मगर मैं अभी तक घर पर था। जब अनिमेष गोद  से उतरने  का नाम ही नही ले रहा था , तो उसे साथ ही लेकर कार से मंदिर पहुंचा , तो देखा ग्रुप के अधिकांश पुरुष सदस्य रामराजा के दर्शन कर चुके है।  हाँ महिलाये जरूर लाइन में लगकर दर्शन की प्रतीक्षा में थी।  पुरुष दूर से ही दर्शन बिना लाइन में लगे कर चुके थे।  ओरछा के रामराजा मंदिर में यह अच्छी व्यवस्था है, कि अगर आप लाइन में नही लगना चाहते है , तो दूर से मंदिर के आंगन से भी बड़े आराम से दर्शन कर सकते है।  दूसरी तरफ वी आइ पी दर्शन की व्यवस्था भी है , इसके लिए मंदिर के पदेन प्रवन्धक यानि टीकमगढ़ कलेक्टर  / निवाड़ी  एस  डी एम /ओरछा के तहसीलदार से अनुमति  लेकर दर्शन किये जा सकते है।  वैसे स्थानीय प्रशासन में जान-पहचान भी काम आ जाती है।  मैं भी सबको वी आई पी दर्शन की फ़िराक में था।  पर रामराजा को शायद ये मंजूर न था।  अब मंदिर के बाहर सब महिलाओं का इंतजार कर रहे थे , तो कुछ सदस्य  मंदिर के बाहर अपने कैमरे का सदुपयोग कर रहे थे।  ( मंदिर के अंदर फोटोग्राफी / वीडियोग्राफी प्रतिबंधित है। )  अनिमेष को देखकर डॉ प्रदीप त्यागी जी पास आये , और उसे गोद में उठाकर खिलाने  लगे।  
                                                    अब साउंड एंड लाइट शो का समय होने वाला था।  अगर आपको ओरछा घूमने का सही आनंद लेना है , तो पहले साउंड एंड लाइट शो को देखिये , जिससे ओरछा और इसके इतिहास , पुरातत्व और महत्व की जानकारी मिल जाएगी।  अब आप बिना गाइड के भी ओरछा में घूम सकते है।  क्योंकि ओरछा की महत्वपूर्ण इमारतों और इतिहास के बारे में मोटी -मोटी बातें  आपको पता ही चल जाएगी।  हाँ अब अगर आपको छोटी-छोटी बातें भी जननी है , तो आप आराम से गाइड कर सकते है।  सर्दियों में एक घंटे का हिंदी का शो 7 :45 शाम से शुरू होता है।  जब देर होती देखी  तो मैंने संजय कौशिक जी को कहा कि जितने लोग दर्शन कर चुके है , वो पहले चले बाकी लोग गाड़ियों से आ जायेंगे।  हम अधिकांश लोग पैदल ही रामराजा मंदिर से सीधे राजा महल के बहरी हिस्से दीवान -ए -आम से सटे मैदान में पहुँच गए।  सब लोग जो आ चुके थे , उन्हें अंदर बिठाया , तभी मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल शीश महल और होटल बेतवा रिट्रीट के प्रबंधक और मेरे मित्र अमित कुमार मिल गए।  तो बाकी लोगों का इंतजार करते हुए उनसे गप्पे की।  फिर जब सचिन त्यागी जी बाकी बचे हुए सदस्यों को साथ लेकर आये।  सबके बैठने के बाद मैंने टिकट कटवाई।  ( भारतियों के लिए 100 रूपये और विदेशियों के लिए 250 रूपये )  . मध्य प्रदेश में अभी तक ग्वालियर , खजुराहो के अलावा सिर्फ ओरछा में ही साउंड एंड लाइट शो होता है।  जिन लोगों ये तीनो शो देखा है, उनके अनुसार इनमे ओरछा का शो सबसे अच्छा है।  क्योंकि इसमें कई कहानियां  है।  ओरछा के शो में बुन्देलाओं के उद्भव से लेकर उत्कर्ष तक की कहानियाँ  बड़े ही सुन्दर तरीके से बताई गयी है।  इन कहानियों में ओरछा की स्थापना  , रामराजा का अयोध्या से ओरछा  आना , वीरसिंह जूदेव की जहांगीर से दोस्ती, उनके यशस्वी कार्य, रायप्रवीण का सौंदर्य और ओरछा की नियति ,हरदौल के लोकदेवता बनने की कथा, बदरुनिशां (औरंगजेब की बेटी ) का चतुर्भुज मंदिर को बचाना , छत्रसाल और बाजीराव पेशवा की विजय आदि बड़े ही रोचक तरीके से बताया गया है।  ओरछा में ये साउंड एंड लाइट शो मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के हेरिटेज होटल शीशमहल के माध्यम से संचालित होता है।  ये राजमहल के दीवान-ए -आम के सामने बने खुले मैदान में होता है।  अब मैं अपने आभासी  माध्यम (ब्लॉग/फेसबुक ) से बने मित्रो यथा संदीप पंवार जाटदेवता जी , ललित शर्मा जी, मनु प्रकाश त्यागी जी , कमल कुमार सिंह आदि के साथ ये शानदार शो देख  चुका हूँ।   
                                               मैं चूँकि कई बार ये शो देख चुका था , इसलिए मैं नही गया।  मेरे साथ मेरे अनिमेष बाबु भी थे , इसलिए उन्हें लेकर घर छोड़ा। लौटकर अकेला किला परिसर पहुंचा।  ( ड्राइवर कैलाश को छोड़ दिया )  इतने में पंकज शर्मा जी का कॉल हुआ।  वो झाँसी से ओरछा पहुँच चुके थे।  उन्होंने मंदिर चौराहे पर खुद के खड़ा होने की बात बताई , तो मैंने उन्हें खड़े रहने की हिदायत दी।  जल्दबाजी में जैसे ही गाड़ी रिवर्स की तो पीछे खड़ी कार से मेरी कार टकराई।  तो उसके ड्राइवर से थोड़ी बहस करनी पड़ी , अब चूँकि गलती मेरी थी, तो सॉरी बोलकर निकल पड़ा , क्योंकि टक्कर जोरदार नही थी।  खैर मैं मंदिर चौराहे पहुंचा तो पंकज शर्मा जी सड़क किनारे किसी व्यक्ति के साथ खड़े थे।  मेरे पहुँचने पर उस व्यक्ति से मिलाया , जो मऊरानीपुर का रहने वाला था , और मुझे जानता था। लेकिन मैं उसे नही जानता था।  खैर पंकज जी को लेकर किला परिसर पहुंचा।  शो ख़त्म होने वाला ही था।  तब तक उनका हाल समाचार प्राप्त किया।  पंकज जी का ओरछा आना भी काम रोमांचक नही था।  यही हमारे महामिलन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।  शो समाप्ति पर सभी जब बहार आये तो पंकज जी से सबका मिलना हुआ।  
                                                     फिर सब गाड़ियों से होटल वापिस हुए।  होटल लौटने पर खाना लग चुका था।  परंतु संस्थापक एडमिन मुकेश भालसे जी का आग्रह था , कि खाने से पहले सबका एक बार परस्पर परिचय हो जाये।  अतः उनका आग्रह मानकर परिचय प्रारम्भ हुआ।  पर भूखे पेट भजन न होय गुसाई।  और बच्चों को तो रहा ही नही जा रहा था।  अतः मैंने बाकी लोगों का परिचय भोजन पश्चात् करने का निवेदन किया , जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया।  अब भोजन करने के बाद पुनः परिचय शुरू हुआ।  परिचय शुरू होते ही सब फ्लैशबैक में चले गए।  सचमुच ये बड़ा भावुक क्षण था।  सब ग्रुप से जुड़ने और सदस्यों से अपने मिलने -जुलने की बात सुना रहे थे।  मुकेश भालसे जी ने ग्रुप की स्थापना की कहानी सुनाई , तो बुआ जी ने अपनी परिवार के बिना अनजान शहर में अनजान लोगों से मिलने के लिए बिना टिकट लिए ही ट्रेन से ओरछा आने की भावुक दास्ताँ सुनाई।  सब यादों के झरोखों में खो रहे थे।  ग्रुप के प्रति समर्पित प्रतीक गाँधी जी ने बताया कैसे उनकी यात्रा से उनके गांव इ दोस्त भी न केवल घुमक्कड़ बने , बल्कि घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप के सदस्य भी बने।  मूलतः बंगाली संदीप मन्ना जी ( इन्हें बाइक यात्राएं ज्यादा पसंद है।  ) हिंदी में कमजोर होने के बाद भी अपनी कहानी हिंदी में सबसे साझा की।  ग्रुप के अन्य एडमिन संजय कौशिक जी , रितेश गुप्ता जी ने भी अपने अनुभव बांटे।  सूरज मिश्र , प्रकाश यादव जी, रूपेश शर्मा  जी , रामदयाल प्रजापति भाई , कविता भालसे  जी , हेमा सिंह जी , संजय सिंह जी , रमेश शर्मा जी , सचिन जांगड़ा जी , सचिन त्यागी जी , हरेन्द्र धर्रा भाई आदि ने भी अपनी रामकहानी बताई।  इस बीच प्रतीक जी की विशेष फरमाइश पर एक बार चाय का दौर चल चुका है।  रात गहराने लगी थी , सबके चेहरे पर थकान और नींद छा  रही थी। अतः अब सभा विसर्जन का निर्णय लिया गया।  और सुबह आठ बजे तैयार रहने को कहा गया।  ताकि ओरछा अभ्यारण्य में होने वाले दो विशेष और यादगार आयोजन में शामिल हुआ जा सके।
            25 दिसंबर 2017 को सुबह नहा धोकर जल्दी ही मैं तैयार होकर 8 बजे होटल ओरछा रेसीडेंसी पहुँचा तो देखा अभी बहुत से लोग तैयार नही हुए है।  मुम्बई वाली दर्शन कौर यानि  बुआ जी मेरी पत्नी और अनिमेष से मिलना चाहती थी।  तो मैं बुआ जी ,  श्रीमती नीलम कौशिक जी ( सोनीपत , हरियाणा से ) , श्रीमती  कविता भालसे ( इंदौर से ), श्रीमती रश्मि  गुप्ता जी (आगरा से ) और श्रीमती हेमा सिंह जी (रांची , झारखण्ड से ) को अपने परिवार से मिलाने अपनी कार में बिठाकर अपने शासकीय आवास सह कार्यालय लेकर गया।  चूँकि मैंने इसके बारे में अपने घर  पूर्व सूचना  दी थी , इसलिए जब मैं घर पर पहुँचा  तो मेरी धर्मपत्नी निभा पांडेय जी  नहा रही थी , और अनिमेष बाबु सो रहे थे।  तो मैंने ही अपने अतिथियों को पानी का पूछा।  बिना सूचना के अचानक घर  लोगो को लाने  पर पत्नी का सामना करना पड़े , इसलिए बुआ जी को बागडोर सौपकर मैं निकल लिया।  इधर होटल आया तो पता चला कि श्रीमती नयना यादव जी ( रायगढ़ ,छत्तीसगढ़ से ) तो रह ही गयी।  तो अपने ड्राइवर जगदीश को इन्हें घर तक पहुँचाने और सभी को वापिस लेकर आने की जिम्मेदारी देकर मैं आगे के कार्यक्रम की व्यवस्था में लग गया। हमारे अगले कार्यक्रम में बुआ जी , प्रतीक गाँधी जी और उनके दो मित्र अलोक जी और मनोज जी ट्रैन से वापिस लौटने वाले थे।  ग्रुप में सबका प्रेम देखकर विनोद गुप्ता जी खुद को जाने से रोक लिए और फैसला किये कि 25 दिसंबर का पूरा दिन महामिलन के नाम करेंगे।  गाजियाबाद से अपनी कार से सपरिवार आये सचिन त्यागी जी भी इस अविस्मरणीय महमिलन की यादें अपने साथ लेकर  लौट रहे थे।
                                         आज हम लोगो को तुंगारण्य में वृक्षारोपण करना था , ये मेरा ही विचार था , कि इतने राज्यों से एक साथ इतने लोग ओरछा आ रहे है , तो वो ओरछा से सिर्फ लेकर न जाये , बल्कि ओरछा को कुछ देकर भी जाये।  और किसी भी स्थान को पेड़ों से बढ़कर और क्या दिया जा सकता था ? इसके बारे में मैंने ओरछा अभ्यारण्य के प्रभारी अधिकारी रेंजर श्री आशुतोष अग्निहोत्री जी से पूर्व में ही चर्चा कर ली थी।  तुंगारण्य जगह चुनने के पीछे कारण   इतना ही था , कि वहां वन विभाग द्वारा इन वृक्षों की देखभाल होती रहेगी।  श्री अग्निहोत्री जी ने गुलमोहर , कनक-चंपा , कदंब जैसे वृक्ष लगाने को कहा था  अतः मैंने वरुआ सागर की नर्सरी से यही पौधे मंगाए थे।
 होटल में सभी सदस्य तैयार हो चुके थे , मेरे घर गयीं महिलाएं भी वापिस आ चुकी थी।  और नाश्ता तैयार हो चुका था , अतः सभी ने होटल में ही नाश्ता किया।  उसके बाद पूर्व की तरह सभी लोग निकल पड़े तुंगारण्य की ओर।  गाड़ी से जाने वाले लोग पहले पहुंचे , लेकिन बिना टिकट के होने के कारण उन्हें तुंगारण्य में प्रवेश नही मिला।  तो आदतानुसार बाहर सड़क पर ही फोटोग्राफी होने लगी।  अब घुमक्कड़ी दिल से का बैनर भी साथ था।  बाद में जब मैं पहुंचा तो तुंगारण्य में सब लोगों ने प्रवेश किया।  मेरी रेंजर श्री अग्निहोत्री जी से मोबाइल पर बात  हुई  तो वो भी दस मिनट में पहुचने की कह रहे थे।  उनके आने तक खाली समय का सदुपयोग हमारे धुरंधर फोटोग्राफर्स की प्रतिभा का भरपूर दोहन किया गया।  खैर रेंजर साहब के आने के बाद हमारा वृक्षारोपण का कार्यक्रम संपन्न हुआ।  मुम्बई वाले  विनोद गुप्ता  जी ने हमारे ग्रुप के एक सदस्य देवेंद्र कोठारी जी ( जयपुर से )  जो किसी कारणवश ओरछा नही आ पाए , उनसे किये वादे के अनुसार उनके नाम का भी एक पौधा लगाया।  ये ग्रुप के सभी सदस्यों का एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान ही तो है , जो न आये हुए सदस्य की भी बात पूरी की गयी, जबकि विनोद भाई कभी कोठारी जी से भी मिले भी नही है।  खैर हमारे महामिलन के स्मारक के रूप में ये वृक्ष तैयार होंगे।  मेरे ख्याल से इस तरह के जिन्दा स्मारक शायद ही किसी घुमक्कड़ समूह ने बनाया होगा।  अब मैं ओरछा रहूँ या न रहूँ , कोई भी सदस्य या उनसे जुड़े व्यक्ति कभी ओरछा आये तो उन्हें बताने के लिए हमारे ये जीवित स्मारक विशेष होंगे  पौधा रोपण के इस पावन कार्यक्रम में सभी यानि बूढ़े, बच्चे और जवान तन-मन और तन्मयता से लगे थे।
 अब वृक्षारोपण के पुनीत कार्य के बाद हम सभी ओरछा अभ्यारण्य में स्थित पचमढ़िया में अपने वनभोज कार्यक्रम के लिए चल पड़े।  हमारे कुक पहले ही पहुँच चुके थे।  गाड़ी में सबसे पहले बच्चों-महिलाओं और बुजुर्गों को तरजीह दी गयी।  मैं  अभ्यारण्य के प्रवेश की टिकट कटाने रुक गया था , तो देखा हमारे ग्रुप के नौजवान सदस्य मिसिर जी यानि सूरज मिश्र जी शौचालय की तरफ भाग रहे है।  बाद में उन्होंने बताया कि उनके खाने पर लोगों ने नजर लगा दी है।  खैर सब लोग इस महामिलन के सबसे यादगार भाग के हिस्सा बनने के लिए पचमढ़िया पहुँच गए थे।  वहां का नजारा देख कर सबका दिल बल्लियां उछालने लगा , बच्चों को तो मन मांगी मुराद पूरी हो गयी थी।  आखिर पचमढ़ियां में ऐसा क्या हुआ हम जानेंगे इस महामिलन की आखिरी मगर सबसे बेहतरीन किश्त में। .....तब तक के लिए राम -राम



साउंड एंड लाइट शो के लिए जाने वाला रास्ता 
साउंड और लाइट शो की एक झलक
दीवान-ए -आम में खास रौशनी

वृक्षारोपण करते हुए 
ग्रुप की महिलाएं भी किसी कार्य में कम नही थी।  

ओरछा अभ्यारण्य के रेंजर श्री आशुतोष अग्निहोत्री के साथ चर्चारत 

मिलेंगे फिर से .. .घुमक्कड़ी दिल से 


अब 25 दिसंबर का दिन हो  और सांता क्लास न आये !
घुमक्कड़ी दिल से 

बुधवार, 18 जनवरी 2017

कटरीना ट्री और सूर्यास्त : ओरछा महामिलन का प्रथम दिवस

ओरछा में बेतवा किनारे छतरियों के पीछे : सूर्यास्त 

इसके पहले के भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें 
 राम राम मित्रों ,
                      जैसे कि आपने अभी तक पढ़ा , कि ओरछा भ्रमण के प्रथम सत्र के बाद सभी वापिस होटल खाना  खाने के लिए लौट आये। खाने में पूड़ी, मटर-पनीर की सब्जी , आलू-गोभी की सूखी सब्जी के साथ पुलाव, दाल , रायता और रसगुल्ला के साथ सलाद के साथ सभी हँसते - हँसाते  खाने का लुत्फ़ ले रहे थे।  माहौल ऐसा बना था , मानो किसी अपने की शादी में सब आये हो , और सब एक-दूसरे के रिश्तेदार या पुराने परिचित  हो।  लग ही नही रहा था, कि सब सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में एक दूसरे से परिचित हुए और पहली बार मिल रहे है।  इस कथित आभासी दुनिया ने हम सब को न केवल यथार्थ के धरातल पर मिलाया बल्कि एक परिवार के रूप में जोड़ा था।  अपनी अपनी जिंदगी की आपाधापी से दूर एक दूसरे के साथ हंसी-ठिठोली के साथ बड़े -बड़े ठहाके भी लग रहे।  जी हाँ , ठहाके !  जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में लगभग लापता से ही हो गए। ऐसे ठहाके हम अपने परिवार या दोस्तों के साथ ही लगा पाते , वो इस पल इन  घुमक्कडों के परिवार में लग रहे थे।  महिलाएं जो इस ग्रुप में शामिल नही थी , और अपने पतियों के साथ आई थी,  वो भी पुरानी सहेलियों की तरह गप्पे मार रही थी।  बच्चे भी अपने हमजोलियों के साथ मस्ती कर  रहे थे।  मुकेश भालसे जी को तो खाना इतना अच्छा लगा कि मुझसे चार बार तारीफ कर चुके।  
                                                                         अभी हम सब खाने में संलग्न थे , कि खबर मिली मुम्बई से दर्शन कौर धनोय जिन्हें सभी प्यार से बुआ जी पुकारते है , विनोद गुप्ता जी , जो इस महामिलन के प्रस्तावक थे, और प्रतीक गाँधी जी जिन्होंने कार्यक्रम में आने के लिए कई लोगों को प्रेरणा दी, अपने सेंधवा (जिला-खरगोन, मध्य प्रदेश) निवासी दो मित्र अलोक और मनोज के साथ झाँसी स्टेशन पहुँच गए है , मैंने उन्हें लिवाने गाड़ी और ड्राइवर भेज दी।   बुआ जी के ओरछा आने की कहानी कम रोमांचक नही है , जो आप उनके ब्लॉग  पर विस्तार से पढ़ सकते है।  बुआ जी , बिना टिकट मुम्बई से झाँसी तक हम सबके प्रेम से चली आयी।  विनोद गुप्ता जी , तो अपने घर में मेरी शादी में आने का बहाना  करके अपने घर से अनुमति लेकर आ पाए।  अब इसे आपस का प्रेम ही न कहे तो क्या कहे ? कि अनजान लोगों से मिलने 1200 किमी दूर से लोग हर मुश्किल को पार कर इकठ्ठा हुए।  हमारे खाना समाप्त करने के पूर्व ही मुम्बईकर लोगों का आगमन हुआ।  और बुआ को देखते ही  पूरे हॉल में सिर्फ बुआ-बुआ का शोर था।  जैसे कोई बड़ा सेलेब्रिटी आ गया हो।  लोग खाना छोड़ बुआ और अन्य लोगों से मिलने खड़े हो गए।  कोई गले मिल रहा , तो कोई पैर छू रहा था।  अद्भुत ही माहौल था।  उस माहौल को वर्णन करने के लिए मेरी स्थिति  फिर गूंगे के गुड़ जैसी हो गयी थी।  
                                                                           प्रेमपूर्ण माहौल में भोजन से निवृत होने के बाद अब आगे के कार्यक्रम हेतु फिर से सब तैयार।  चूँकि साढ़े चार बज चुके थे , और पांच बजे तक सभी ऐतिहासिक इमारतें बंद हो जाती है।  इसलिए अब कार्यक्रम में परिवर्तन करते हुए बेतवा नदी के दूसरे छोर पर वन विभाग के बनाये पिकनिक स्पॉट तुंगारण्य से बुंदेला शासकों की छतरियों के पीछे सूर्यास्त  दर्शन का कार्यक्रम बनाया गया।  अब गाड़ियां  सिर्फ दो थी , और लोग लगभग 35 से ज्यादा हो गये  थे । इसलिए पहले महिलाएं और बच्चों को गाड़ियों से तथा बाकि पुरुष सदस्यों को पैदल चलने का निर्णय लिया गया।  ( वैसे भी ओरछा बहुत बड़ी जगह नही है।  )
                                                                    ओरछा की गलियों - सड़को पर घुमक्कड़ी दिल से की टोपी लगा कर सब चल पड़े।  सब्जी मंडी होकर मुख्य मार्ग से बस स्टैंड होते हुए बेतवा पर बने राजशाही पुराने पुल से होकर सब तुंगारण्य पहुंचे।  इधर रास्ते में भी हमारे धुरंधर फोटोग्राफर अपनी हरकतों से बाज नही आये।  रास्ते में जो कुछ भी अलग सा दिखा सब उनके कैमरे में कैद हो गया।  मुम्बई वाले विनोद गुप्ता जी को रास्ते में मेरी बारात की बस भी मिल गयी फोटो खिंचवाने के लिए।  हम लोग तुंगारण्य पहुँच गए।  सुशांत सिंघल जी , जो न केवल एक बढ़िया सकारात्मक व्यक्ति है, बल्कि एक बेहतरीन फोटोग्राफर , लेखक और 58 साल के नौजवान है।  वो पुराने पुल से बेतवा, छतरियों और सूर्यास्त की  शानदार  छवियों को अपने कैद कर रहे थे।  वही हम लोग तुंगारण्य की  उस जगह पर पहुंचे , जहाँ से सूर्यास्त की सबसे बढ़िया झलक मिलती है।  इधर सूरज धीरे -धीरे छतरियों के पीछे बेतवा के जल में उतर रहा था , और हम लोगो पर महामिलन का नशा धीरे धीरे चढ़ रहा था।                    सब सूरज को कैद करने में लगे थे, वही जो लोग कैमरे से दूर थे, उनको कटरीना ट्री अपनी ओर खींच रहा था। कटरीना ट्री दरअसल  बेतवा किनारे एक अर्जुन (जिसे बुंदेलखंड में कोहा कहते है।  ) का पेड़ है , जिस पर नकली आम लटका कर कटरीना कैफ ने शीतल पेय  स्लाइस के विज्ञापन की शूटिंग हुई थी।  आपने भी टीवी पर स्लाइस का वो आमसूत्र वाला विज्ञापन देखा होगा।  इस पेड़ के बारे में व्हाट्स एप्प ग्रुप में पहले ही बता चुका था , इसलिए   कुछ पुरुष ( नाम नही बताऊंगा ) उस पेड़ को छूना चाहते थे , जिसे कटरीना कैफ ने छुआ था , उसके साथ फोटो भी खिचाना चाहते थे।  तो अब तुंगारण्य में तीन ग्रुप बन गए थे, एक जो बेतवा के पुल पर सूर्यास्त की फोटो खींच रहे थे , दूसरे ग्रुप में महिलाएं तुंगारण्य में पड़ी बेंच पर अपनी फोटो खिंचवा रही थी , तीसरे ग्रुप में कटरीना के दीवाने थे।  अब जब हमारे इनडोर वाले एडमिन मुकेश भालसे जी को ज्यादा देर तक आउटडोर देखकर कविता भालसे जी  तुरंत कटरीना वृक्ष के पास आयी , फिर क्या दूसरे एक तरह और ये सेलिब्रिटी जोड़ी महफ़िल लूट गयी।  बाकी लोग अब फोटोग्राफर बनकर फोटो खींचे के सिवा कर और क्या कर सकते थे।  बड़ी देर से ये मजमा देख रही पुरानी इंदौरी यानि ग्रुप की बुआ (जो मिनी मुम्बई से वाया कोटा असली मुम्बई पहुँच गयी है ) भी पहुँच गयी , तो असली मुम्बई के सामने मिनी मुम्बई कितनी देर टिकता ! और बुआ तो लाइट , कैमरा और एक्शन की मायानगरी की मायावी थी , बुआ की माया जो उनके आने से असरकारी थी, यहां भी काम कर गयी , और सारे फ़्लैश बुआ पर चमकने लगे।  इधर अपनी तरफ से मोहभंग होते देखकर सूर्यदेव ने भी डूबने में ही भलाई समझी।  हंसी-ठिठोली के साथ बढ़ते अँधेरे के साथ सब लोग बेतवा के पुराने पुल से वापिस बसेरे की ओर लौटने लगे।  
                                                                      पुल को पार करने पर कुछ लोगों को च्यास ( चाय की प्यास ) लग आयी , तो वही गुमटी पर चाय का आर्डर दिया गया , अब दुकान छोटी और टोली बड़ी तो वक़्त लगना जायज था।  खैर ज्यादा देर लगने पर कुछ लोग बिना चाय पीये ही चलने को तैयार हो गए , जो चाय पी चुके वो भी चल पड़े।  खैर साँझ ढल चुकी थी, बत्तियां जल चुकी थी , और ठण्ड भी जोर मारने लगी थी।  इसलिए मैंने होटल पहुंचकर सबको शाम पौने सात बजे तैयार होकर रामराजा मंदिर पहुँचने को कहा।  सात बजे से मंदिर के पट खुलते है, और शाम की आरती शुरू होती है। यहां दोनों समय की आरती में विशेष बात मध्य प्रदेश सशस्त्र बल के जवान द्वारा सशस्त्र सलामी दिया जाना है।  क्योंकि यहां राम भगवान ही राजा है , और उन्हें राजा के रूप में सलामी देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।  इसे मध्य प्रदेश शासन ने भी बनाये रखा।  आरती के बाद ओरछा का एक और आकर्षण ध्वनि और प्रकाश कार्यक्रम  ( sound and light show ) देखने जाना था।  सबको तैयार होने का बोलकर मैं अपने घर कुछ गरम कपडे पहनने आ गया।  इधर खबर मिली हरिद्वार से आ रहे मशहूर फोटोग्राफर घुमक्कड़ और इन सबसे विशेष एक आकर्षक व्यक्तिव पंकज शर्मा जी  झाँसी  पहुँच चुके थे  . ( जो अपनी ट्रेन 12  घंटे लेट होने से लेट हो गए ) मैं जब घर दिन भर से गायब रहने के बाद पहुंचा तो पत्नी जी ने कुछ नही कहा।  मगर मेरा आठ महीने का बेटा  जिसने पूरा  दिन  बीत जाने के बाद ही मुझे देखा तो मेरी गोद में आया तो फिर उतरने का नाम ही नही ले रहा।  इधर मंदिर की आरती का समय हो रहा था , उधर पंकज जी झाँसी पहुँच गए और घर पर अनिमेष बाबु गोद से उतारना ही नही चाहते थे।  जानते है , अगले भाग में


परिचर्चा में लगे घुमक्कड़ 


इस महामिलन के प्रस्तावक मुम्बई वाले विनोद गुप्ता जी 




कुछ इस तरह से प्रेम बढ़ गया 
                                       
जहाँ मौका मिला हमारे फोटोग्राफर्स चुके नही 


घुमक्कड़ी, फोटोग्राफी और ब्लॉगिंग में एक बड़ा नाम - सुशांत सिंघल जी 
                                     
तुंगारण्य से दिखता बेतवा का मनोरम दृश्य 

बच्चो ने वोटिंग का मस्ती के साथ खूब मजा लिया 

तो एक महिला ग्रुप फोटो हो जाये 

इधर पुरुष कटरीना वृक्ष को गले लगाए हुए थे 

कटरीना वृक्ष सबका आकर्षण बन गया था। 
भालसे दंपत्ति - कटरीना वृक्ष के तले 

ये बुआ जी की जीत हुई और कटरीना हार गयी 
                                       
लो अब ये दिन आ गए ... 
बेतवा के पुल से दिखती छतरियां 


तुंगारण्य से बेतवा का एक पैनोरमा फोटो 
... 

गुरुवार, 12 जनवरी 2017

ओरछा महा मिलन : पहला दिन ( फूल बाग़ , चन्दन कटोरा , पालकी महल, हरदौल बैठक , रामराजा मंदिर , चतुर्भुज मंदिर )



राजा महल से दिखता भव्य चतुर्भुज मंदिर 

राम राम मित्रों ,
अभी तक के दो भागों में ओरछा महामिलन के सम्बन्ध में पूर्व तैयारी और अधिकांश सदस्यों के आगमन के बारे में पढ़ चुके है।  अब आगे पढ़िए ....
चाय -नाश्ता से निवृत होकर सभी ओरछा भ्रमण हेतु तैयार हो गए थे , इधर मैं भी अपने घर से तैयार होकर और सूरज मिश्र को साथ लेकर होटल पहुँच गया। झाँसी रेलवे स्टेशन पर हुई अनावश्यक देरी के कारण मेरे द्वारा सभी सदस्यों के लिए बनाये  ओरछा भ्रमण कार्यक्रम में भारी मन से कटौती करनी पड़ी।  खैर होटल से पैदल ही घुमक्कड़ों का काफिला  मेरे साथ निकल पड़ा।  सभी सदस्य घुमक्कड़ी दिल से के लोगो वाली टोपी पहने निकले।  होटल से हम लोग सब्जीमंडी होते हुए फूलबाग पहुंचे। 
                                          फूलबाग और इसमें बना महल बुंदेला राजाओं का ग्रीष्म ऋतू का आरामगाह था।  महल सिर्फ ऊपर ही नही जमीन के नीचे भी बना था।  महल के पीछे दो मीनारें बनी हुई है , जिसमे कई छेद बने हुए है।  यह मध्यकाल में गर्मी से बचने की वातानूकूलित व्यवस्था थी।  उन्नत स्थापत्य कला के ये नमूने आज उपेक्षित पड़े है। इन मीनारों के नीचे पानी को संगृहीत करने के लिए बड़े-बड़े हौद बने थे।  गर्मियों जब हवा मीनारों के छेदों से होकर नीछे हौद तक आती , तो पानी के प्रभाव से ठंडी होकर महल में प्रवेश करती थी।  इस तरह बुंदेला शासक गर्मी में भी सर्दी का अहसास करते थे। कभी कभी राजाओं को सनक भी चढ़ जाती थी , तो इन मीनारों के ऊपर वादको को बिठाया जाता , और वादकगण जब मीनारों के ऊपर से ढोल, नगाड़े बजाते तो नीचे महल में उनकी आवाज़ सावन-भादों के बादलों की गर्जना जैसी लगती थी।  इसलिए इन दोनों मीनारों का नामकरण सावन-भादों किया गया।  लेकिन आज के ओरछा में इन सावन - भादों की अलग ही कहानी प्रचलित है।  कहते है, कि सावन और भादों नाम से एक प्रेमी-प्रेमिका थे।  ज़माने ने उनके प्रेम को स्वीकार नही किया , अतः उन दोनों ने एक साथ अपने प्राण त्याग दिए।  जब लोगो को इस के बारे में पता चला तो उनकी याद में ये दो मीनारें बनवाई।  यहाँ तक कहा जाता है , ये सावन-भादों के महीने में ये दोनों मीनारें आपस में मिलती है।  अब मुझे भी ओरछा में पदस्थ हुए तीन साल हो गए , मुझे तो आजतक कभी ये मिलते हुए दिखाई-सुनाई नही दिए।  खैर इस कहानी की वजह से ये लोगों के आकर्षण का विषय जरूर है।   सावन-भादों के नीचे महल के भूतल को असामाजिक लोगो की वजह से  बंद कर दिया गया है।
                                              अब वर्तमान में लौटते है , हम लोग फूलबाग में सबसे पहले चन्दन कटोरा  से रु-ब-रु हुए।  ये पत्थर का बना हुआ , एक बड़ा सा नक्काशीदार कटोरा है , जिसका प्रयोग युद्ध में जाने वाले सैनिको को चन्दन घोलकर तिलक लगाने में होता था।  लेकिन इसका सबसे बड़ा आकर्षण पत्थर के बने होने के वावजूद धातु की तरह आवाज करना है।  लोगो ने धातू जैसी आवाज़ सुनने के लिए इसमें खूब पत्थर मारे , जिससे इसका एक तरफ का हिस्सा दरक गया , इसलिए अब इसे चारो तरफ से जाली से घेर दिया है।  पता नही कब हम लोगों को अपनी विरासतों को सहेजने की अकल आएगी ! ग्रुप के फोटोग्राफर्स सक्रीय हुए और चन्दन कटोरा को अपने कैमरे में  कैद किया।   
                                            अब हम लोग हरदौल बैठक में दाखिल हुए जो पालकी महल का एक हिस्सा है।  पालकी जैसी आकृति होने के कारण इसे पालकी महल कहा जाता है।  लोक देवता के रूप में प्रतिष्टित हरदौल के बारे में मैंने अपने घुमक्कड़ सदस्यों को  ज्यादा नही बताया , क्योंकि तब लाइट एंड साउंड शो में उत्सुकता नही रहती। लेकिन आप को संक्षेप में बता देना चाहूंगा।
              "महाराजा वीर सिंह के आठ पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़े का नाम जुझार सिंह व सबसे छोटे हरदौल थे। जुझार को आगरा दरबार और हरदौल को ओरछा से राज्य संचालन का जिम्मा विरासत में मिला हुआ था। लोग जुझार सिंह को कान का कच्चा व हरदौल को ब्रह्मचारी एवं धार्मिक प्रवृत्ति का मानते हैं। , "सन 1688 में एक खंगार सेनापति पहाड़ सिंह, प्रतीत राय व महिला हीरादेवी के भड़कावे में आकर राजा जुझार सिंह ने अपनी पत्नी चंपावती से छोटे भाई हरदौल को ‘विष' पिला कर पतिव्रता होने की परीक्षा ली, विषपान से महज 23 साल की उम्र में हरदौल की मौत हो गई। हरदौल के शव को बस्ती से अलग बीहड़ में दफनाया गया। जुझार की बहन कुंजावती, जो दतिया के राजा रणजीत सिंह को ब्याही थी, अपनी बेटी के ब्याह में भाई जुझार से जब भात मांगने गई तो उसने यह कह कर दुत्कार दिया क्‍योंकि वह हरदौल से ज्यादा स्नेह करती थी, श्मशान में जाकर उसी से भात मांगे। बस, क्या था कुंजावती रोती-बिलखती हरदौल की समाधि (चबूतरा) पहुंची और मर्यादा की दुहाई देकर भात मांगा तो समाधि से आवज आई कि वह (हरदौल) भात लेकर आएगा। इस बुजुर्ग के अनुसार, "भांजी की शादी में राजा हरदौल की रूह भात लेकर गई, मगर भानेज दामाद (दूल्हे) की जिद पर मृतक राजा हरदौल को सदेह प्रकट होना पड़ा। बस, इस चमत्कार से उनकी समाधि में भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया और लोग राजा हरदौल को ‘देव' रूप में पूजने लगे।" कुंजावती की बेटी की शादी में हुए चमत्कार के बाद आस-पास के हर गांव में ग्रामीणों ने प्रतीक के तौर पर एक-एक ‘हरदौल चबूतरा' का निर्माण कराया, जो कई गांवों में अब भी मौजूद हैं। शादी-विवाह हो या यज्ञ-अनुश्ठानों का भंड़ारा, लोग सबसे पहले चबूतरों में जाकर राजा हरदौल को आमंत्रित करते हैं, उन्हें निमंत्रण देने से भंड़ारे में कोई कमी नहीं आती।"
                                                   लाला हरदौल  को मैंने भी अपनी शादी में निमंत्रण पत्र दिया था , और उनकी कृपा से भंडारे में कोई कमी नही हुई थी।  वैसे आपको बताता चलूँ मैं ही नही मेरे विभाग में मुझसे पहले भी ओरछा में पदस्थ लोगों की शादी ओरछा में आने के बाद ही हुई।  खैर हम लोग पालकी महल से होते हुए , फूलबाग बाजार में से रामराजा मंदिर की ओर बढे  जहाँ सभी ने सावन-भादों  मीनारों के साथ फोटो खिंचवाई , ग्रुप फोटो भी खींचा गया।  अब रामराजा मंदिर प्रांगण में सब पहुँच चुके थे।  लेकिन मंदिर बंद हो चूका था।  क्योंकि ओरछा में भगवान राम भगवान नही बल्कि राजा बनकर अयोध्या से आये थे।  इसकी पूरी कहानी आप मेरी ओरछा-गाथा  पर क्लिक करके पढ़ सकते है। अतः यहाँ रामराजा के मंदिर में खुलने -बंद होने की अलग ही समय-सारिणी है।  सुबह 9 बजे मंदिर के पट खुलते है।  और साढ़े 12 बजे बंद होकर कुछ देर के लिए  1  बजे राजभोग लगाने के लिए खुलते है।  सबने मंदिर के बाहर से ही ग्रुप फोटो खिंचवाई।  दर्शन शाम को नियत किये गए।  और काफिला बढ़ चूका पास ही बने भव्य चतुर्भुज मंदिर की ओर..... अब ये मंदिर क्यों नही रामराजा मंदिर बन सका , इसकी भी कहानी आप ओरछा-गाथा में पढ़ सकते है।  चारमंजिला मंदिर के पीछे के द्वार से सबने प्रवेश किया।  सबसे पहले सबने चतुर्भुज मंदिर में भगवान कृष्ण (चतुर्भुज ) के दर्शन किये और इसकी भव्यता से मोहित हुए बिना नही रह पाए।  अब इस मंदिर की खड़ी और ऊँची सीढ़ियों को चढ़ते हुए सब मंदिर की छत की और चल पड़े। प्रसिद्द फोटोग्राफर और ब्लॉगर सुशांत सिंघल जी अपनी उम्र का तकाजा करते हुए ऊपर नही आये  जबकि लगभग उनके हमउम्र रमेश शर्मा जी बेधड़क सीढियाँ चढ़ते चले आये।  जम्मू और कश्मीर का निवसी होना शायद काम आया होगा।  चतुर्भुज मंदिर की सीढियाँ , गलियारे , झरोखे से लेकर छत -खिड़की भी फोटोग्राफर्स के कैमरों की कैद में आने लगे।  चतुर्भुज मंदिर में मैंने अपना मार्गदर्शक बनाया , मंदिर में ही ड्यूटी करने वाले लड़के मनोज सेन को।  मनोज को इस मंदिर के चप्पे-चप्पे का ज्ञान है , जबकि नए व्यक्ति को इसकी मंजिले भूलभुलैयाँ लगेगी।  
                                                             जब सब छत पर पहुंचे तो यहाँ से पूरे ओरछा  का नजारा देखकर सब विस्मित होने के साथ ही हर्षित भी थे।  अब सारे फोटोग्राफर अपने अपने कैमरे लेकर मोर्चा संभाल लिए।  कई कैमरों के फ़्लैश एक साथ चमकने लगे।  जिनके पास कैमरे नही थे , वो अपने मोबाइल से ओरछा की खूबसूरती कैद करने लगे।  तभी सचिन त्यागी जी ( जो  दिल्ली से अपने परिवार को लेकर कार से  ग्वालियर , दतिया  घूमते हुए आ रहे थे  )का कॉल आया , कि वो ओरछा बस स्टैंड पहुँच चुके है , उन्हें लेने के लिए मैंने पंकज और प्रवीण को भेज दिया  इधर फोटो सेशन  के दौरान ही सचिन त्यागी जी सपरिवार शामिल हुए।  सचिन जी से मेरी पहली मुलाकात  अपने  हाल के दिल्ली प्रवास पर हुई थी।  सचिन जी अधिकाशतः अपने परिवार के साथ ही घुमक्कड़ी करते है।  दिल्ली में भी हमसे मिलने जब कनॉट प्लेस आये तो परिवार भी साथ लेकर आये थे, हालाँकि परिवार को बाजार में शॉपिंग करने छोड़ कर हमसे मिले।  सचिन जी भी अपना कैमरा लेकर फोटो खींचने के दंगल में कूद पड़े।  तभी हमारे खाना बनाने वाले नत्थू का कॉल अंकज के पास आया , कि  खाना तैयार हो चुका आई।  बड़ी मुश्किल से सबको खाने की दुहाई देकर चतुर्भुज मंदिर से नीचे उतारा।  नीचे उतरने के बाद भी मंदिर के मुख्य द्वार और नीचे बने बाजार में भी फोटो सेशन चलता रहा।  खैर हम होटल पहुंचे , और हाथ मुँह होकर खाना खाने बैठे पर अभी एक धमाका बाकी था .......क्रमशः  
सावन -भादो  के सामने ग्रुप के सदस्य 

रामराजा मंदिर प्रांगण  में 

हरदौल बैठक 


चतुर्भुज मंदिर की भव्यता को कैमरे में कैद करते महारथी 


चतुर्भुज मंदिर की राहें 

चतुर्भुज मंदिर की खड़ी सीढियाँ 


ऊंचाई पर पूरा ग्रुप 

घुमक्कड़ी दिल से 

सारे शूटर्स शूट करने को तैयार 


हम सारे घुमक्कड़ है .. दिल से 


हम भी किसी से कम नही ( बांये से श्रीमती रितेश गुप्ता , श्रीमती कविता भालसे , श्रीमती नयना यादव, श्रीमती संजय कौशिक , श्रीमती हेमा सिंह )


चिल्लर पार्टी के संग मम्मी पार्टी
















रविवार, 8 जनवरी 2017

ओरछा महामिलन का शानदार आगाज

राम राम जी,
पिछले भाग  में आपने ओरछा महामिलन की तैयारियों के बारे में पढ़ा , उसके बाद सूरज मिसिर का आगमन हो ही चूका था।  अब आगे - 
                               ओरछा अभ्यारण्य जो कि बेतवा -जामुनी नदियों के संगम के टापू पर बसा हुआ है।  अर्थात इसके दो तरफ जलराशि तो मध्य में हरीतिमा फैली हुई है।  एक तरफ छोटे-छोटे पत्तों के साथ  करधई के पेड़ थे, तो दूसरी तरफ बड़े पत्तों वाले सागौन के पेड़ खड़े थे।  रस्ते में लंगूर, ललमुँहें बन्दर, सियार, नीलगाय , मोर और हिरन स्वागत कर रहे थे। हमारी घुमक्कड़ी टीम की जंगल पार्टी यानि वनभोज का कार्यक्रम यही था।  चूँकि शिकारगाह के पास बेतवा की एक  निर्मल जलधारा देख कर घुमक्कड़ मित्रों का मन नदी स्नान के लिए डोल  गया।  जब बड़े नहा रहे हो तो महिलाएं और बच्चे कैसे पीछे रहते।  तो एक तरफ पुरुष  नहा रहे थे, तो दूसरी तरफ महिलाएं और बच्चे मस्ती के साथ नहा रहे थे।  और इधर मैं भोजन व्यवस्था का जायजा ले रहा था।  तभी छपाक की आवाज के बाद रोने-चीखने की आवाज़े  आने  लगी।  मैं घबरा सा गया , शरीर पसीने से तर-ब -तर हो गया।  तभी पत्नी की आवाज आयी तो नींद खुली , तो देखा मेरा 8  महीने  का पुत्र अनिमेष जाग चुका था, और रो रहा था।  और मैं ओरछा महामिलन की तैयारियों में इतना खो गया कि जब रत को इसी पर सोच-विचार करते हुए आंख गई , तो ये महामिलन मेरे सपने में भी आ गया।  चूँकि पहली बार इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभाली थी , तो कार्यक्रम की सफलता को लेकर चिंता बढ़ गयी थी।  मनमे हर तरह के विचार आ रहे थे।  खैर रामराजा की कृपा से ये सिर्फ एक सपना ही था , लेकिन मेरा शरीर सचमुच पसीने से नह गया था। 
                                                                                             अब नींद उड़ चुकी थी , बेटे  के साथ खेल रहा था, कि सुबह लगभग 6 :30 बजे हरेंद्र धर्रा जी( ये भी ब्लॉगर है )  का फोन आया , कि वो , सचिन जांगड़ा पानीपत वाले और इंदौर वाले डॉ सुमित शर्मा जी  ( ये भी ब्लॉग लिखते है )के साथ झाँसी से बस पकड़ कर सीधे ओरछा आ गए है।  मैंने पांच मिनट में आने का बोला।  अब समस्या ये कि अनिमेष को सँभालने की , तो सोचा कार से इसको भी घूमा दूँ , फिर सूरज को जगाया और हम ढाई लोग ( एक मैं , एक सूरज और आधा अनिमेष ) पहुँच गए ओरछा बस स्टैंड।  बस स्टैंड के पहले ही रामराजा मंदिर चौराहे पर ही तीनों लोग मिल गए।  सबसे गले मिले।  इनमे से डॉ सुमित शर्मा , इंदौर वाले से एक बार पहले भी इंदौर में पिछले साल मार्च में मिल चूका था।  उस समय मैं मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित राज्य सेवा परीक्षा का साक्षात्कार देने इंदौर गया था।  डॉ साहब से कुछ दिन पहले ही व्हाट्स अप्प ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से में परिचय हुआ , और इंदौर में इतनी आत्मीयता देखकर मैं अभिभूत था।  साक्षात्कार से पहले हम कमला नेहरू पार्क , इंदौर में मिले।  फिर साक्षात्कार के बाद डॉ साहब ने सीधे अपने पर भोजन पर न्यौता दे दिया।  हालाँकि पहली मुलाकात में इतनी आत्मीयता और इस न्योते से मन में एक झिझक तो थी, लेकिन डॉ साहब के प्रेम ने मजबूर कर दिया , क्योंकि वो साक्षात्कार के बाद सीधे मुझे लेने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ही अपनी बुलेट लेकर पहुँच गए।  अब मना करने का विकल्प भी नही था , क्योंकि एक भला मानुस अपनी क्लीनिक बंद करके एक आभासी मित्र को अपने प्रेम से वास्तविकता  के धरातल पर मूर्त रूप दे रहा था।  अब अपने राम चल दिए डॉ साहब की सेल्फ स्टार्ट बुलेट पर बैठकर उनके आशियाने तक।  पहुँच गए।  घर में उनकी माता जी का आशीर्वाद लिया , भाभी जी को नमस्ते करके फर्श पर पालथी मरकर बैठ गए ( हालाँकि पेट बढ़ने के कारण पालथी मारने में कुछ परेशानी होने लगी है।  ) डॉ साहब ने शुद्ध मालवी भोजन बनवाया था , जिसमे दाल-बाफले  , लड्डू आदि विशेष थे।  इंदौर में डॉ साहब  घर के बने भोजन ने जहाँ पेट को तृप्त किया , वहीँ प्रेम ने मन को ही नही आत्मा को भी तृप्त कर दिया।  इस बार हम दोनों के साथ एक अजब संयोग हुआ।  मैं जब इंदौर गया था , तो मेरे घर में खुशखबरी आने वाली थी , और डॉ साहब जब ओरछा आये तो उनके घर खुशखबरी आने वाली है।  वैसे डॉ साहब का आना भी किसी चमत्कार से कम नही था। क्योंकि डॉ साहब ओरछा आने से पहले बाइक से अपनी थार मरुस्थल की यात्रा प्रसिद्द ब्लॉगर नीरज जाट  के साथ पूरी कर के लौटे थे।  इस लंबी यात्रा के बाद घर जाना फिर इंदौर से ट्रैन से झाँसी आना बड़ा मुश्किल काम था। डॉ साहब के आने पर मेरा खुश होना लाज़िमी था।  हरेंद्र धर्रा और सचिन जांगड़ा जी इन दोनों हरयाणे के धुरंधरों से मेरी पहली मुलाकात थी।  सचिन जांगड़ा जहाँ जबरदस्त बाइकर है , तो हरेंद्र एक सीधे साधे से लुहार-किसान है।  इन तीनो को लेकर जब होटल ओरछा रेजीडेंसी पहुंचा तो होटल बंद था।  तो फिर होटल के मैनेजर पंकज राय को कॉल किया , तब होटल खुला।  सबको उनके कमरे में पहुंचा कर मैं और सूरज मेरे घर लौट आये।  क्योंकि हमने अभी तक मुँह भी नही धोया था।  और हमारे अनिमेष बाबु को भी घर छोड़ना था।
                                 घर आने के बाद नित्यक्रिया आदि से निवृत  होकर चाय पी ही रहे थे , कि एडमिन संजय कौशिक जी का कॉल आ गया , कि उनकी ट्रैन झाँसी पहुचने वाली है।  उसी समय प्रकाश यादव जी और आर  डी  प्रजापति भी अपनी ट्रैन से झाँसी पहुचने वाले है।  इन दोनों ट्रेनों से काफी सदस्य आने वाले थे, इसलिए मैंने अपने ड्राइवर जगदीश बाथम और पंकज राय को अपनी अपनी बोलोरो झाँसी स्टेशन लाने  को बोल मैं अकेले ही अपनी कार से झाँसी के लिए निकल पड़ा।  सूरज को घर पर इसलिए छोड़ दिया कि ज्यादा सदस्य हो जाने के कारन तीन वाहनों में  भी जगह काम पड़  सकती है।  मैं  और जगदीश अपने वाहनों से जब झाँसी स्टेशन पहुंचा तो एक ख्वाब सच होने जा रहा था।  सचमुच विश्वास ही नही हो रहा था , कि देश के अलग अलग राज्यों से इतने सारे घुमक्कड़, फोटोग्राफर और ब्लॉगर से एक साथ , एक जगह पर मिल रहा हूँ।  वो भी मेरी मेजबानी में ! अहो भाग्य ! जो रामराजा ने मुझ पर ये कृपा की।  समझ में नही आ रहा था, किससे किस तरह मिलूं ?  मेरे सामने संजय कौशिक सपरिवार  (सोनीपत , हरियाणा ), रितेश गुप्ता सपरिवार ( आगरा) , रूपेश शर्मा ( ग्रेटर नॉएडा ), सुशांत सिंघल ( सहारनपुर, उत्तर प्रदेश ) , रमेश शर्मा ( उधमपुर, जम्मू और कश्मीर ) , प्रकाश यादव सपरिवार  ( रायगढ़ , छत्तीसगढ़ ) , रामदयाल प्रजापति ( जमशेदपुर , झारखण्ड ) , बीनू कुकरेती ( श्रीनगर, उत्तराखंड ), कमल कुमार नारद ( वाराणसी /दिल्ली ) ,  नरेश सहगल (अम्बाला, हरियाणा ), संजय सिंह ( आरा, बिहार ) , हेमा सिंह सपरिवार  ( रांची , झारखण्ड )  साक्षात्  खड़े हुए थे।  मेरी स्थिति गूंगे के गुड़ जैसी हो गयी।  इस आनंदमयी  क्षण के लिए कोई शब्द नही है।  ( हालाँकि इस पंक्ति पर कुछ लोगो को आपत्ति हो सकती है  . पर सत्य यही है।  ) अपने आप आपको किसी तरह सँभालते हुए सबसे मिला , लगभग सभी पुरुष सदस्यों से गले मिला।  महिलाओं से हाथ जोड़ नमस्ते की।  वैसे भी कभी मुलाकात  हो पाने के कारण महिलाओं को पहचानता भी नही था।  खैर कुशलक्षेम पूछने के बाद सबसे पहले महिलाओं , बच्चों और बुजुर्गों को अपनी कार और बोलेरो में बैठाया।  चूँकि इतने में सब आ नही पाए तो मैं वही रुक गया।  अपनी कार की चाभी और  होटल में कमरे आवंटन की व्यवस्था रूपेश शर्मा जी को सौंप दिया।  साथ में रितेश गुप्ता जी भी कार में बैठे।  बोलेरो में  सुशांत सिंघल जी महिलाओं और बच्चों की जिम्मेदारी लेकर बैठे।   अब तीसरे वाहन बोलेरों के इन्तजार में  हम सब कौशिक जी, प्रकाश जी, रमेश जी, संजय सिंह जी , कमल जी, बीनू जी, प्रजापति जी , नरेश जी  रुक गए।  तभी डॉ प्रदीप त्यागी  कॉल आया उनकी ट्रैन भी झाँसी पहुंचने  वाली है।  हम सब वहीँ स्टेशन के पास  एक गुमटी पर चाय पीने  लगे, तब तक डॉ त्यागी भी आ पहुँचे जो अपरिहार्य कारणों से बाकि लोगों से आगरा में ट्रैन में चढ़ने से चूक गए थे।  इसका विशेष मलाल बीनू भाई और कमल भाई को हुआ  . झाँसी स्टेशन के बाहर ही कमल कुमार सिंह उर्फ़ नारद जी ने सबके सामने ही डॉ त्यागी जी को अपना गुरु मानने की घोषणा की।  अब इंतहा हो गयी  इन्तजार की  ... मैं पंकज को बार बार कॉल कर रहा था, वो बस ओरछा से निकलने की बात कर रहा था।  हमें इन्तजार करते हुए लगभग एक घंटे से ज्यादा समय हो गया था।  मेरी खीज  बढ़ रही थी , क्योंकि इससे अच्छा जगदीश से ही बोल देते तो वो भी उन लोगो को छोड़ कर आ गया होता।  मुझे कुछ गड़बड़ होने की आशंका सी होने लगी। सबसे बड़ी दिक्कत तो मेरा बनाया कार्यक्रम देरी की वजह से गड़बड़ हो रहा था।  लेकिन सबसे अपनी खीज छुपाकर मुस्कुराकर बात कर रहा था।  इनमे से अभी तक दिल्ली में  कौशिक जी, बीनू भाई , कमल भाई से मिल चुका था ,  जबकि संजय सिंह से अपनी   सासाराम -गुप्तेश्वर यात्रा में मिल चूका था। कमल भाई से तीसरी बार ( ओरछा, दिल्ली)  मिल रहा था।
                                                                             
                                                           लगभग डेढ़ घंटे के इन्तजार के बाद आखिरकार पंकज अपनी बोलेरो लेकर आ ही गया।  वो अपने दोस्त प्रदीप के लिए रुक गया था।  खैर देर आये दुरस्त आये।  बोलेरो के आने के बाद भी लोग ज्यादा हो रहे थे, मैंने दूसरी गाड़ी बुलाने को कहा था , तो कौशिक जी ने मना  कर दिया था।  खैर अब जाना तो सबको था , इसलिए सामान के साथ एक ऑटो में कमल, बीनू भाई और डॉ प्रदीप त्यागी जी के साथ प्रदीप राजपूत  बैठे।  बाकि लोग बोलेरो में बैठे।  चूँकि लोग ज्यादा थे, और अगर मैं गाड़ी में और कहीं बैठता तो किसी न किसी को दिक्कत तो होती ही , कसी को अगर न होती तो मुझे तो होनी ही थी।  इसलिए अपनी अकल लगाते हुए इन घुमक्कड़ों का सारथि बनने में ही भलाई समझी।
                                    अब तक धुप भी खिल चुकी थी , मौसम से सर्दी विदा ले चुकी थी।   ओरछा का सफर शुरू हो चूका था।  महामिलन का आगाज़  होने जा रहा था।  दिल में गुदगुदी सी हो रही थी।  18  किमी का सफर बातों -बातों में कब कट गया , पता ही नही चला।  होटल पहुँचने तक नाश्ता तैयार हो चूका था।  अतः सबको सीधे नाश्ते के लिए ले जाया गया।  जो लोग पहले आ गए थे , वो नहा -धोकर तैयार हो चुके थे।  नाश्ते में मध्य प्रदेश के इंदौर-मालवा का प्रसिद्ध नाश्ता पोहा और ओरछा की प्रसिद्ध रसभरी गुजिया बनी ही।  साथ में चाय-काफी की भी व्यवस्था थी।  खाने-पीने का मेनू चुनते करते समय मैंने स्थानीयता के साथ ही स्वाद और पौष्टिकता का भी ध्यान रखा था।  खैर नाश्ता करने के बाद सबको तैयार होने को कहा ताकि इसके बाद भगवान रामराजा के दर्शन हेतु चले।   इतने में खबर मिली कि इंदौर से वाया ग्वालियर होकर भालसे परिवार भी आने वाला है।  उनसे मोबाइल से बात हुई तो वो लोग झाँसी पहुँचने वाले थे , उन्हें लाने के लिए मैंने अपने दूसरे ड्राइवर कैलाश यादव के साथ हरेन्द्र धर्रा जी को भेजा। मुकेश  भालसे जी घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप के संस्थापक एडमिन होने के साथ  ही दोनों पति-पत्नी ( कविता भालसे जी ) यात्रा ब्लोगर है।  उनसे मिलने के बाद मैं घर निकल आया , क्योंकि अगर मंदिर जाना है , तो नहाना भी है , और सूरज मिश्र को भी लाना था।
असली रंग अब जमेगा जब ओरछा की सड़को-गलियों में घुमक्कड़ों की फ़ौज निकलने वाली थी।
क्रमश: .......
झाँसी रेलवे स्टेशन के बाहर यादव,गुप्ता और कौशिक परिवार के साथ कौशिक जी और रितेश जी 

इसमें रामदयाल प्रजापति जी भी जुड़ गए 

मेरी कार में बैठे रितेश जी एवं परिवार 


बांये से रूपेश जी, बीनू जी, रमेश जी, संजय जी, और कमल भाई 

रूपेश शर्मा जी और कमल कुमार जी चर्चारत


इंदौर का पोहा, ओरछा की गुजिया और आगरा का पेठा ; हमारा नाश्ता 

होटल ओरछा रेजीडेंसी के बाहर पूरा ग्रुप 



शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

ओरछा महामिलन : पूर्व गाथा 2

राम राम मित्रों,
अभी तक आप ने  ओरछा महामिलन की पूर्व गाथा को न केवल पढ़ा बल्कि पुरस्कार स्वरुप  प्रोत्साहन वाली टिप्पणियां भी की , जिसमे अगले भाग को जल्द ही पढ़ने की इच्छा व्यक्त की गयी।  आपके इसी प्रेम और  इच्छा  का सम्मान करते हुए अपने व्यस्त समय में से कुछ पल चुरा कर  ओरछा महामिलन के  यादों के सागर में पुनः डुबकी लगाकर कुछ लम्हों  के मोती शब्दों की माला में पिरोकर आपके सामने लाया हूँ।   जैसा कि आपने अभी तक पढ़ा  था , कि  कैसे इस महामिलन की पृष्ठभूमि तैयार हुई।  घुमक्कड़ी दिल से की विशेष टीम अपने ख्वाबों की जमीन को हकीकत बनाने के लिए दिन-रात लगी हुई थी।  इस महामिलन समान पुष्प वाटिका का माली मुझे बनाया गया , और मैंने इसका मालिकाना हक़ ओरछाधीश भगवान  रामराजा को सौपकर अपने कर्तव्य में लग गया। 
             अब जैसे-जैसे  आयोजन के दिन नजदीक आते जा रहे थे , दिल की धड़कने तेज होती आ रही थी।  कभी अपने घर में भी कोई पारिवारिक आयोजन की जिम्मेदारी न सम्हालने वाले मुझ जैसे व्यक्ति को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी गयी थी।  खैर जब सर ओखली में दे ही दिया था, तो अब मूसल से क्या डरना ? मैंने आयोजन के लिए अपने से जुड़े पंकज राय , प्रदीप राजपूत , जय कोली और जगदीश बाथम को साथ लेकर एक टीम बनाई इसमें बाद में कैलाश यादव और देवेंद्र रजक  को भी जोड़ा।  इस टीम में सबको अलग-अलग काम सौंपे और उनकी जिम्मेदारी भी दी।  इससे मेरी धड़कनों को भी सुस्ताने का मौका मिला।
                                                                                                     अब बकरे की अम्मा भी कब तक खैर मनाती।  23 दिसंबर को भदौही (उत्तर प्रदेश ) जिले के  रहने वाले युवा घुमक्कड़ जो इलाहबाद से सिविल सर्विस की भी तैयारी भी कर रहे है।  सुबह-सुबह ही कॉल किये कि वो बुंदेलखंड एक्सप्रेस से आ रहे है।  अब विडम्बना ये कि बुंदेलखंड एक्सप्रेस ओरछा से गुजरती तो है, पर ठहरती नही।  वैसे ओरछा भले ही पर्यटन के मामले में कितना धनी हो , परंतु रेलवे विभाग की नजर में बस एक छोटा सा स्टेशन है , जहाँ एक्सप्रेस या मेल ट्रैन तभी रूकती है,  जब उन्हें आगे के लिए सिग्नल न मिले।  अगर रेलवे विभाग ओरछा के मामले में अपना ये मोतियाबिंद ठीक करले तो उसके राजस्व में तो बढ़ोत्तरी तो होगी ही , साथ ही ओरछा आने वालों  का भी भला हो जायेगा।  मैं दावे से कहता हूँ , कि ओरछा आने वालों की दुआओं के असर से घाटे  में चल रहे रेलवे विभाग को फायदा जरूर होगा।  वैसे भी वर्तमान केंद्रीय सरकार और राजाराम का पुराना  नाता है।  लो रेलवे के चक्कर में रेलयात्राओं से घबराने वाले अपने सूरज बाबू को तो  भूल ही गए।  खैर मेरे बताये अनुसार मिसिर जी झाँसी स्टेशन से ऑटो से ओरछा मेरे घर आ ही गए।  अब सूरज बाबू को घर पर ही चाय नाश्ता ( पोहा ) करवाने के बाद नहाने की बात हुई , तो पर्व-त्यौहार पर नहाने वाले मिसिर जी कुछ अनमने से लगे।  फिर मुझ जैसे कौवा स्नान करने वाले पराक्रमी द्वारा बेतवा स्न्नान महत्त्व बताने पर भी छोरा गंगा किनारे का  पिघला नही तो जबरन ही अपनी कार में बिठाकर बेतवा तट ( मेरे घर के पास ही होटल बुंदेलखंड रिवर साइड के पीछे का घाट , जहाँ भीड़ न के बराबर होती है।  ) लेकर गए।  अब दो बाभन नदी तेरे ठन्डे पानी से डरते डरते आखिरकार डुबकी लगा बैठे।  बेतवा का साफ़ और स्वच्छ पानी देखकर सूरज बाबू  बड़े खुश हुए।  अब गंगा किनारे रहने वालों को इतने साफ़ नदी जल को देखने की आदत नही है न ! जब सूरज बाबू से एक दिन पहले आने का उद्देश्य पूछा तो कुछ और ही कहानी पता चली।  जबकि ग्रुप वाले ये सोच कर बड़े खुश थे, कि सूरज मिसिर जी मुझे मदद करने पहले ही पहुँच गए है।  दरअसल सूरज बाबू घर से ये सोचकर रेलगाड़ी में बैठे थे, कि रास्ते में उतरकर एक दिन  विश्व धरोहर खजुराहो के महान स्थापत्य वाले मंदिरों को देखने में बिताएंगे , पर हाय री ! किस्मत टेशन निकलने के बाद निंदिया रानी विदा हुई , तब तक ओरछा ही आने वाला था।  बेतवा में डुबकी लगाने के बाद पेट पूजा की बारी।  वैसे भी पानी सूखा और बाभन भूखा।  तो पास ही बने ओरछा महराज मधुकर शाह द्वितीय के बने शानदार होटल बुंदेलखंड रिवरसाइड की सैर करने के बाद हम दोनों भूखे बाभन (दोनो पुरबिया ) अंग्रेजी इश्टाइल में जमकर जीमे।  इसके बाद घर आकर आराम किया।  ( अब खाने के आराम भी तो जरुरी है।  )  शाम को सूरज बाबू को अपनी कार से ओरछा की एक झलक दिखाई और खुद आयोजन की अंतिम तैयारी का जायजा लिया। नदी किनारे जब छतरियों के बगल से जब कंचना घाट पहुंचे तो वहां पैडल वोट तैर रही थी।  तो हम भी नौकायन का मजा लेने पहुँच गए। सूरज बाबु को रामराजा सरकार के दर्शन करवाये। अपनी भदोही मुलाकात में मैंने सूरज बाबू  को अपनी पाककला विशेज्ञता के बारे में बताया था, तो आज मौका मिलते ही सूरज बाबू भी अपनी पाककला प्रदर्शन को उतावले हो गए।  और उनकी जिद के आगे झुककर मटर पनीर की सामग्री खरीद कर श्रीमती जी को सूचित कर दिया गया।  अब घर पहुंचकर सूरज बाबू  ने किचन की  कमान संभाली और कमाल कर दिया।
                                           व्हाट्स एप्प ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से में लोगों के आगमन की अपडेट्स लगातार मिल रहे थे।  तभी हरेंद्र धर्रा जी जो  हसनगढ़ , रोहतक हरियाणा के रहने वाले है , उनकी अपडेट्स आयी कि वो खजुराहो भ्रमण के बाद वापिस झाँसी की ओर अपनी रेलगाड़ी से बढ़ रहे है।  मैंने उनकी वर्तमान स्थिति जानने को कॉल किया , तो उन्होंने बताया कि रात  11  बजे पहुँचने की बात कही।  जब मैंने उन्हें अपनी कार से ले आने की बात कही तो उन्होंने सचिन जांगड़ा जी ( जो झाँसी लगभग रात्रि 2 बजे पहुँचने वाले थे ) के साथ आने की बात कहकर कॉल काट दिया।  और इधर मेरी नींद गायब हो चुकी थी .... क्रमशः 
बेतवा में सूरज को डुबकी लगवाने ले जाते हुए 

होटल बुंदेलखंड रिवरसाइड में पेट पूजा करते हुए 

मेरी कार और सूरज बाबू 
कंचना घाट में नौकायन का मजा लेते हुए 

रामराजा के दर्शन के बाद 

अपनी पाककला की तारीफ सुनते हुए  सूरज बाबू 

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...