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सोमवार, 25 जुलाई 2022

पन्ना का संक्षिप्त परिचय (भाग - 1 )

नमस्कार मित्रो ,

आप सभी ने फेसबुक पर मेरे माध्यम से पन्ना का नाम तो खूब सुना और देखा है।  फेसबुक पर अपने 56 हजार सदस्यों वाले समूह " घुमक्कड़ी दिल से " का आगामी सम्मिलन भी 6 से 8 नवम्बर 2022 तक पन्ना में ही प्रस्तावित है।  फेसबुक पर भी बहुत सारे लोगों ने भी पन्ना के बारे में सवाल पूछे है।  तो आपने ब्लॉग की इस पोस्ट के माध्यम से पन्ना शहर और जिले का एक छोटा सा परिचय देने का प्रयास रहेगा।  

पन्ना की भौगोलिक स्थिति :- 


(नोट - नक्शा सिर्फ समझने के लिए है , यह किसी माप या स्केल पर नहीं है।  )



पन्ना ( 👈 पन्ना शब्द पर क्लिक करके आप गूगल मैप पर पन्ना की लोकेशन देख सकते है।  )

पन्ना जिला मध्य प्रदेश में उत्तरी सीमा पर उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद  से लगा हुआ है।

  मध्य प्रदेश के अन्य जिले पूर्व में सतना जिला (दूरी - लगभग 70 किमी , मुंबई - हावड़ा रेलवे लाइन का महत्वपूर्ण जंक्शन ), 

दक्षिण - पूर्व में कटनी जिला ( यह भी एक महत्वपूर्व रेलवे जंक्शन है , इसमें बिलासपुर और कोटा रेल लाइन भी जुड़ती है। )

 दक्षिण में दमोह जिला ( यह कटनी-बीना रेलखंड का एक स्टेशन है ) 

पश्चिम दिशा में छतरपुर जिला ( ललितपुर - खजुराहो रेलखंड का स्टेशन है। ) पन्ना से नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो (42 किमी ) है।  इसके अलावा लगभग 200 किमी में जबलपुर, प्रयागराज ,कानपुर और झाँसी जैसे बड़े शहर है।  

पन्ना में देखने लायक क्या है ? 

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है।  आखिरकार क्यों कोई पन्ना आना चाहेगा ? 

वैसे तो पन्ना का नाम दुनिया में हीरे के उत्पादन के लिए जाना जाता है।  जी हाँ, असली के प्राकृतिक हीरे ! पन्ना में सबसे अच्छी किस्म का हीरा मिलता है , जिससे आभूषण बनाये जाते है।  दुनिया में बाकी जगह हीरे बहुत गहरी खदानों से हीरा निकाला जाता है , जबकि पन्ना में हीरा गहरी खदान के अलावा उथली खदान से भी हीरा निकाला  जाता है।  उथली भी मात्र 3 - 4 फुट ही ! और मजे की बात , भारत का कोई भी नागरिक मात्र 250 रूपये का लायसेंस लेकर हीरा की खदान खोद सकता है।  खैर हीरा किस्मत से ही मिलता है, वरना सस्ता न हो गया होता।  पन्ना में भारत सरकार के उपक्रम राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एन एम डी सी ) की गहरी खदान भी है।  

हीरे की गहरी खदान 

हीरे के बाद पन्ना देश में पन्ना टाइगर रिजर्व के कारण प्रसिद्द है।  पन्ना टाइगर रिजर्व में लगभग 75 बाघ है , और बाघ का दिखना यहाँ बड़ा आसान है।  मुझे तो 15  बार की सफारी में हर बार टाइगर दिखा है।  400 के लगभग तेंदुए है। वैसे मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट के बाद अब लेपर्ड स्टेट का भी दर्जा मिल गया है। इसका मतलब ये है की  मध्य प्रदेश में भारत के सबसे ज्यादा बाघ और तेंदुए है।  

पन्ना में एक नहीं दो-दो टाइगर दिख जाते है।  

पन्ना की शेरनी की दहाड़ 


 पन्ना में दुर्लभ हो चुके गिद्धों की सात प्रजातियाँ पाई जाती है।  हाल ही में हुई जिओ टैगिंग में पता चला कि पन्ना के गिद्ध माउंट एवरेस्ट पार कर चीन का भी चक्कर लगा आये।  पन्ना में भालू ,चीतल ,सांभर , नीलगाय आदि बहुत आसानी से दिखते है।  पन्ना का जंगल भी विविधता भरा और बहुत ही खूबसूरत है।  केन नदी पन्ना टाइगर रिजर्व के बीचो बीच प्रवाहित होते हुए प्राकृतिक दृश्यों को और खूबसूरत बनाती है।  अगर बदकिस्मती से आपको टाइगर न भी दिखे तो जंगल ही इतना खूबसूरत है, कि आप अफ़सोस नहीं करेंगे।  सैकड़ों देशी-प्रवासी  मनमोहक पक्षी दिल लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते है। 

ये खूबसूरत चीतल कितने आकर्षक है।  

 

पांडव जलप्रपात और पांडव गुफायें  :- 

पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में ही पांडव जलप्रपात के साथ ही पांडव गुफाएं स्थित है।  ऐसी मान्यता है, कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के कुछ दिन यही बितायेँ थे। चंद्र शेखर आजाद जी ने भी कुछ काल यही बिताया।  

पांडव जलप्रपात 
अब जंगल जंगल बात चली है , पता चला है ....
जंगल के चक्कर में शहर के बारे में तो बताना भूल ही गए।  क्या करे जंगल प्रेमी जो ठहरे।  खैर अब पन्ना शहर के बारे में संक्षिप्त (विस्तार से तो मिलने पर बताएँगे )  जानकारी लेते है।  
पन्ना प्राचीन शहर है , यहाँ आसपास हजारो साल पहले के आदि मानवों के बनाये हुए शैल चित्र बहुत सारी  जगहों पर मिल जायेंगे।  (अफ़सोस इनके संरक्षण पर किसी का ध्यान नहीं है ) पन्ना शहर में गौड़ शासको का शासन रहा है, आज भी पन्ना में गौंड़ों की कुलदेवी पद्मावती (बड़ी देवी ) का मंदिर पुराना पन्ना में स्थित है।  पद्मावती देवी के नाम पर ही पन्ना का प्राचीन नाम पदमावती पुरी था।  जो पदमा से परना हुआ और परना से पन्ना हो गया।  
मुग़ल बादशाह औरंगजेब के समय बुंदेलखंड के प्रसिद्द शासक महाराजा छत्रसाल ने पन्ना को अपनी राजधानी बनाया।  अकेले छत्रसाल महाराज ने मुग़लों को नाको चने चबा दिए थे।  इनकी एक पुत्री मस्तानी (बाजीराव वाली थी ) छत्रसाल के गुरु महामति प्राणनाथ (प्रणामी संप्रदाय के गुरु ) की समाधी बहुत ही भव्य स्वरुप में पन्ना में बनी हुई है।  प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा पर देश-विदेश से लाखो प्रणामी अनुयायी आते है।  
प्राण नाथ मंदिर पन्ना 

पन्ना शहर में बुंदेला शासकों द्वारा कई भव्य और खूबसूरत मंदिर बनवाये गए है।  पोस्ट ज्यादा लम्बी न हो जाये इसलिए इन मंदिरों के बारे में संक्षिप्त जानकारी ही दूंगा।  

जुगल किशोर जी का मंदिर - 

पन्ना का मुख्य मंदिर जुगल किशोर जी का मंदिर है।  इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान् श्रीकृष्ण और राधा जी की प्रतिमा है।  कहा जाता है , कि किशोर जी की मुरली में हिरे जेड हुए है।  यह मूर्ति  ओरछा होते हुए पन्ना आई थी।  (इसकी कहानी फिर कभी )

जुगल किशोर जी मंदिर पन्ना 

बलदेव जी मंदिर : - 

दुनिया में बलराम जी के मंदिर बहुत कम है।  पन्ना में स्थित बलदेव जी का मंदिर न केवल भव्य है, बल्कि स्थापत्य की दृष्टि से बिलकुल अनूठा है।  यह मंदिर बाहर से देखने पर किसी चर्च की तरह दिखता है।  गर्भगृह में शालिग्राम पत्थर की एक ही चट्टान से निर्मित बलराम जी की आदमकद  प्रतिमा है।  

अनूठे स्थापत्य वाला बलदेव जी मंदिर 

जगन्नाथ मंदिर पन्ना : - 

जिस तरह जगन्नाथ पूरी में प्रतिवर्ष भगवन जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है , उसी तरह पन्ना में भी रथ यात्रा सैकड़ों साल से निकल रही है।  इस यात्रा का आरम्भ जगन्नाथ मंदिर से होता है।  इस मंदिर में भी पूरी के जगन्नाथ मंदिर की तरह काष्ठ प्रतिमाएं विराजमान है।  



जगन्नाथ मंदिर पन्ना 



रामजानकी मंदिर :- 
पन्ना की महारानी द्वारा बनवाया गया यह मंदिर भी बुंदेली स्थापत्य का शानदार उदहारण है।  इस मंदिर की अंदर की दीवारों पर पूरी रामचरित मानस लिखी हुई है।  
रामजानकी मंदिर पन्ना 

इस पोस्ट में इतना ही।  अगली पोस्ट में पन्ना के आसपास  के झरने , मंदिर और भी आकर्षक स्थलों के बारे में जानकारी देने का प्रयास होगा।  आप के प्रश्न और सुझावों का भी स्वागत है, ताकि अगली पोस्ट में सुधर कर सकूँ। तब तक के लिए नमस्कार 

शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

बृहस्पति कुण्ड का रहस्य (भाग 1)



 बृहस्पति कुण्ड का रहस्य (भाग 1) 

                           एक दिन मन बड़ा ही उदास था, अपनी चार पहिया गाड़ी से ऐसे ही पन्ना से पहाड़ीखेड़ा मार्ग पर अनायास ही चल पड़ा । शाम का समय हो रहा, आकाश में बादल घुमड़ रहे है, बादलों की रंगत श्यामल हो चली है । मौसम ठंडा हो चला यानी आसपास कही बारिश हो चुकी है, हवा में भी ठंडक घुलने लगी थी । गाड़ी के शीशे उतार कर हम भी आराम से चले जा रहे थे । अभी तक खाली चल रहे मन में प्रकृति धीरे धीरे प्रवेश करने लगी । आसपास के खेत, पहाड़ियाँ और उनके ऊपर घुमड़ते आवारा बादल मन को प्रसन्न कर रहे थे । प्रकृति में इतना खोया रहा कि पता ही नही चला कि कब बृजपुर आ गया । बृजपुर आने पर मन बृहस्पति कुण्ड जाने का बनने लगा । गाड़ी अपने पथ पर चली जा रही थी । मैंने गाड़ी बृहस्पति कुण्ड की तरफ मोड़ दी । रास्ते में बाघिन नदी का पुल पड़ा । बाघिन नदी जो बृहस्पति कुण्ड जलप्रपात बनाती है, आज अलग ही अंदाज में बह रही थी । मैंने पुल के थोड़े पहले ही गाड़ी रोकी । पता नही क्यों एक अलग ही सम्मोहन मुझे नदी की ओर खींच रहा था । इससे पहले मैं कई बार बृहस्पति कुण्ड जाते समय यहाँ से गुजरा हूँ, मगर कभी रुका नही । आज एक अलग ही अहसास हो रहा था । लग रहा था, कि जैसे कोई मुझे बुला रहा हो ! यह अनुभव लौकिक तो बिल्कुल भी नही लग रहा था । मैं धीरे धीरे नदी की तरफ बढ़ने लगा ।      

                                     आसमान बादल काले हो रहे थे, हवा भी अपनी रफ्तार बढ़ा रही थी । अचानक बहुत तेज बिजली चमकती है ! मेघ गर्जना की बहुत तेज आवाज से हाथ अपने आप कानो को ढक लेते है । मुझसे कुछ दूर ही नदी में बज्रपात होता है , नदी का पानी बहुत ऊपर तक उछलता है ! यह दृश्य देख कर भय मिश्रित आश्चर्य होने लगता है, ऐसा दृश्य मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा था । मस्तिष्क विचार शून्य हो गया । पैर अपनी जगह पर जम से गये, मैं चाहकर भी न आगे बढ़ पा रहा था, न पीछे हट पा रहा था । हृदय की गति भी इतनी तेज हो गयी कि स्पंदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था । मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे । 

                                                                 खैर झंझावात  हुआ, नदी की लहरें सामान्य हुई , ये सामान्य भी मेरे लिए असामान्य सा था । लगा जैसे को स्वप्न देख रहा हूँ, और अचानक नींद टूट गयी हो । तभी पृष्ठभूमि से एक गुर्राहट मिश्रित आवाज आई - कैसे हो पुत्र ! स्वर मधुर था, मगर गुर्राहट मिश्रण से भय लगा । आसपास देखा तो कोई दिखा नही !

फिर से आवाज़ आई, 

भयभीत क्यों हो पुत्र ?

 तुम तो नदियों से पहले भी वार्तालाप कर चुके हो न ! यह सुन हृदय स्पंदन कम हुआ , आवाज नदी से ही आ रही थी । लगता है, आज फिर से मुझे नदी-संवाद का सौभाग्य मिलेगा ! 

पुत्र ! मैं बाघिन हूँ ! 

मैंने दोनो हाथ जोड़ प्रणाम किया । माते मुझ अकिंचन पर कृपा करें । 

तथास्तु ! आखिरकार विधाता ने तुम्हे मेरी कथा सुनने भेज ही दिया । युगों युगों से प्रवाहित मैं हर युग में किसी न किसी को अपनी कहानी सुनाती आई हूँ । सतयुग में देवगुरु बृहस्पति, त्रेता युग स्वयं नारायण अवतार श्रीराम , जगत जगनी सीता और शेषावतार सौमित्र के अलावा अगस्त्य मुनि, द्वापर में अज्ञातवास बिता रहे पाण्डव और कृष्णा (द्रोपदी) के बाद कलिकाल में आज तुम मिले हो ! 

अभी तक हाथ जोड़े खड़ा मैं अब नतमस्तक हो गया । आज मुझे बेतवा, गंगा और नर्मदा के बाद अरण्यानी बाघिन से भी संवाद का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है । 

आपके इस अनुग्रह से यह पातकी पावन हुआ ! 

आकाश में घुमड़ते मेघों के बीच भगवान भास्कर अस्तांचल गामी होने लगे । गोधूलि बेला में गौ-महिषी वन से गांवों की ओर वापिस लौटने लगे । उनके बछड़े रंभा रहे थे । पक्षी भी कलरव करते हुए नीड़ की ओर उड़ चले थे । बगुले त्रिभुजाकार अनुशासन में उड़ रहे थे । मैं भी नदी किनारे एक चट्टान पर हाथ जोड़े बैठ गया । पृष्ठभूमि में झींगुर अपना राग अलाप रहे थे, और तबले पर उनकी संगत मेंढ़क बखूबी दे रहे थे । 

सुनो पुत्र ! मैं अपनी कथा आरंभ से सुनाती हूँ । 

माते, एक निवेदन स्वीकार करें, यदि कथा के मध्य में कोई जिज्ञासा या प्रश्न हो तो उसका भी निवारण अवश्य करती चलें ।

ठीक है !  महाप्रलय के पश्चात सृष्टि का पुनः निर्माण हो रहा था । श्रीहरि मत्स्य अवतार ले चुके थे । वर्तमान स्थल जहाँ तुम अभी बैठे हो यह आधुनिक अफ्रीका महाद्वीप का भाग था । यहाँ बड़े बड़े घास के मैदान थे , जिसमें सिंह, बाघ, चीता, तेंदुआ, भालू, जिराफ और हाथी जैसे बड़े जीव विचरण करते थे । 

लेकिन माते ! जिराफ तो भारत में पाए नही जाते । 

पुत्र मैं आज से करोड़ो वर्ष पूर्व की बात कर रही हूँ, तब तो यहाँ भीमकाय सरीसृप जिसे पाश्चात्य जगत डायनासुर कहता है, वो भी विचरते थे । फिर श्रीहरि का कच्छप अवतार हुआ, कच्छप की पीठ पर ही मंदरांचल पर्वत रख कर समुद्र मंथन हुआ । चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई । समुद्र मंथन से वसुंधरा के गर्भ में हलचल हुई । महाद्वीप टूटने लगे । अफ्रीका का एक भाग टूटकर उत्तर भारत के नीचे आ लगा । इस भौगोलिक प्रक्रिया से भूगर्भीय हलचल होने लगी , संयोजक स्थल पर ज्वालामुखी सक्रिय होने लगे । विंध्याचल पर्वत धीरे धीरे उच्च होने लगा । ज्वालामुखी का लावा प्रवाहित होने लगा । उत्तर भारतीय जन को नवीन भूमि और वहाँ के लोगों के जानने की उत्सुकता बढ़ रही थी । परंतु विंध्याचल और जवालामुखी बाधा बन रहे थे । लेकिन परिवर्तन संसार का नियम है । अफ्रीका से टूटकर अलग हुआ भाग वर्तमान भारत से जुड़ा और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में ज्वालामुखी धधक रहे थे । ज्वालामुखी के लावे से नए नए पहाड़ो का निर्माण हो रहा था, जिनमे सबसे प्रमुख विंध्याचल पर्वत श्रेणी थी । धरती के अंदर चल रही भूगर्भीय हलचलों के कारण विंध्याचल ऊपर उठता जा रहा था । 

माते ! क्या पर्वत अपने निर्माण के बाद भी ऊपर उठते है ? 

एक मधुर मुस्कान के साथ बाघिन माता आगे बोली -

पुत्र , बिल्कुल पर्वत भी निरंतर परिवर्तन शील होते है । जैसे आज हिमालय में परिवर्तन हो रहे है । चूंकि ये परिवर्तन इतनी धीमी गति से होते है, कि मानवों को दिखाई नही देते है । इन परिवर्तनों में हजारों साल लग जाते है, तब तक मनुष्य की आयु ही समाप्त हो जाती है । 

हाथ जोड़े मैंने निवेदन किया - माते आपका नाम बाघिन क्यों पड़ा ? 

माता बाघिन कुछ देर तक मंद मंद मुस्कुराती रही है । मैं हाथ जोड़े खड़ा रहा । तभी उत्तर देने की जगह बोली - ईश्वर भी कैसे संयोग बनाता है ! पुत्र तुम्हारा गोत्र क्या है ? 

मैं - माते, मैं वशिष्ठ गोत्र का कान्यकुब्ज ब्राह्मण हूँ । 

तुम्हारा जन्म कहाँ हुआ ? 

बक्सर, बिहार में 

बक्सर का भगवान राम से क्या सम्बन्ध है ? 

माते, भगवान राम बक्सर में महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में शिक्षा पाए, ताड़का और सुबाहु का वध किये । और वर्तमान अहिरौली गांव में अहिल्या का उद्धार किये । बक्सर से भगवान मिथिला की ओर प्रस्थान किये । 

तब बाघिन माता बोली - आज इसीलिए तुम मेरी गाथा सुनने चयनित हुए हो ! मेरी कथा भी भगवान राम से जुड़ी है ! तुम्हारा गोत्र बशिष्ठ है, अर्थात तुम महर्षि बशिष्ठ के वंशज हुए न ! 

जी , 

तुम्हारा जन्म राशि का नाम क्या है ?

 अवध बिहारी !

अभी तक जिन जगहों पर रहे हो, उनके पते क्या रहे ? 

सागर में राम मंदिर के पास, पुलिस लाइन सागर , हनुमान मंदिर के पीछे, सिविल लाइन सागर । फिर टीकमगढ़ में रामजानकी मन्दिर के पास, पपौरा चौराहा, उसके बाद रामराजा की नगरी ओरछा में पदस्थ रहा । 

इसका संकेत समझे ? 

तुम्हारे जीवन में हर जगह राम किसी न किसी रूप में जुड़े है । 

पता है, महर्षि बशिष्ठ के भाई कौन थे ? 

नही माते,

महान वैज्ञानिक, अविष्कारक महर्षि अगस्त्य ! जिनकी कृपा से मैं कृतार्थ हुई । महर्षि का जन्म भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी में एक घड़े से हुआ था । वे बचपन से ही प्रखर बुद्धि और तपोबल वाले थे ।  उन्होंने सूर्यवंशी राजाओं के कुलगुरु का पद स्वयं न लेकर अपने भाई  बशिष्ठ को दिया । वे राजकाज के बंधन में नही बंधना चाहते थे । वे एक महान वैज्ञानिक थे । मुझे वो दिन अच्छे से याद जब महर्षि अगस्त्य ने अपने भाई को रघुवंश का कुलगुरु बनने की कथा सुनाई थी । 

बाघिन नदी की धारा शांत हो गयी, सूर्यास्त पश्चात अंधकार बढ़ने लगा था । झींगुरों की आवाज तेज हो गयी थी । इधर मेरी जिज्ञासा भी बढ़ने लगी थी । धीरे धीरे जल में हलचल हुई । माते बाघिन ने जैसे यादों में गोता लगाया हो । अगस्त ऋषि को सूर्यवंश का राजपुरोहित या राजगुरु बनने का निमंत्रण प्राप्त हुआ । परंतु अगस्त्य मुनि अपने अविष्कारों को अधबीच में छोड़कर पुरोहताई नही करना चाहते थे । लेकिन तत्कालीन विश्व के सर्वश्रेष्ठ कुल से सम्बन्ध विच्छेद भी नही करना चाहते थे । वो अपने भाई महर्षि बशिष्ठ के पास गए और उन्हें रघुकुल का राजपुरोहित बनने को कहा । बशिष्ठ भी अपने गुरुकुल के माध्यम से न केवल वैदिक शिक्षा को समाज में प्रसारित कर रहे थे, बल्कि कुछ वैज्ञानिक शोधों पर भी लगे हुए थे । 

अगस्त्य मुनि - प्रिय भ्राता बशिष्ठ, तुम्हे अयोध्या का राजपुरोहित बन जाना चाहिए ! 

बशिष्ठ - आदरणीय आप स्वयं जानते है, राजपुरोहित बनना एक बन्धन है । मुझे राज्य की नियमों से चलना होगा, मेरा गुरुकुल भी प्रभावित होगा ।

अगस्त्य - भ्राता, किसी महान उद्देश्य के लिए लघु वस्तुओं का त्याग करना होता है । 

बशिष्ठ - महान उद्देश्य ! राजपुरोहित बनना कौन सा महान उद्देश्य है ? 

अगस्त्य - बशिष्ठ, राजपुरोहित बनना तो एक माध्यम है । तुम्हे राक्षस राज दशानन के अत्याचार से पूरी पृथ्वी को मुक्ति दिलानी है ! 

बशिष्ठ - आदरणीय आप पहेली न बुझाये ! स्पष्ट बताये, कि मेरे राजपुरोहित बनने से लंकाधीश से मुक्ति कैसे होगी ? 

अगस्त्य - स्नेहिल बशिष्ठ, रघुकुल में भगवान श्री हरि अवतार के रूप में जन्म लेंगे और वही दसकन्धर का उद्धार भी करेंगे । 

बशिष्ठ - श्री नारायण रघुकुल में जन्म लेंगे ! कब , जल्दी बताइये कब  आदरणीय ? 

अगस्त्य -धैर्य धारण करो, श्री नारायण त्रेता युग में सूर्यकुल के सूर्य के रूप जन्म लेंगे । 

बशिष्ठ - धन्य है, आदरणीय ! अभी सतयुग चल रहा है, फिर द्वापर आएगा उसके पश्चात कही त्रेता युग में नारायण का अवतार होगा । तब तक मुझे प्रतीक्षा करते हुए पुरोहताई करनी होगी । मैं पूरे एक युग तक पुरोहताई नही करना चाहता । आप अयोध्या नरेश को संदेश भिजवा दीजिये वो किसी और को अपना राजपुरोहित बना ले । चाहे तो आप ही बन जाये । मुझसे इतनी प्रतीक्षा न हो पाएगी । 

अगस्त्य - सोचो , तुम्हे भगवान को शिक्षा देने का सौभाग्य मिल रहा है ! वो तुम्हारे गुरुकुल में पढ़ेंगे । तुम्हारे आदेशों का पालन करेंगे । तुम प्रतीक्षा के कारण इस परम सौभाग्य को त्यागना चाहते हो । 

बशिष्ठ - आप ही क्यों नही बन जाते ।

अगस्त्य - मुझे प्रभु के अवतार हेतु और भी कार्य करने है ।

बशिष्ठ - ऐसा कौन सा कार्य करना है ? 

अगस्त्य - प्रभु का अवतार रावण के उद्धार हेतु होने वाला है , रावण बहुत ही शक्तिशाली है, उसे महादेव और परमपिता ब्रह्मा का आशीर्वाद भी प्राप्त है । उससे युद्ध के लिये प्रभु को बड़े शक्तिशाली आयुधों की आवश्यकता होगी । उनका निर्माण हमे करना है । 

बशिष्ठ - जब वो स्वयं नारायण के अवतार है, तो उन्हें आपके आयुधों की आवश्यकता होगी ? 

अगस्त्य -  भ्राता, उनका ये अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम का होगा । वो मानव की मर्यादा को पार नही करेंगे । वो ईश्वर की तरह नही बल्कि एक सामान्य मनुष्य की तरह युद्ध करेंगे ।

बशिष्ठ - बाकी सब उचित है, परंतु एक युग तक प्रतीक्षा करने का धैर्य मुझमें नही है । 

अगस्त्य - बालहठ न करो बशिष्ठ, विधि के विधान में सब निश्चित है । प्रभु का जन्म त्रेता युग में नियत है । और त्रेता प्रत्येक सृष्टि में द्वापर के पश्चात ही आता है । 

बशिष्ठ - यदि त्रेता द्वापर से पूर्व आ जाये तो ?

अगस्त्य - यह तो असंभव है ! 

बशिष्ठ - मैं परम् पिता ब्रम्हा की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करूंगा । और इस असंभव को संभव बनाने का प्रयास करूंगा ।

अगस्त्य - अर्थात तुम राजपुरोहित बनने तैयार हो ? 

बशिष्ठ - आप ही बताइये जब श्री हरि विष्णु के अवतार का सानिध्य मिल रहा हो, तो कोई मूढ़ ही होगा जो तैयार न हो । 

इसके बाद महर्षि बशिष्ठ ने ब्रह्मा जी की उपासना कर प्रसन्न किया तो विधि के विधान को परिवर्तित करते हुए सतयुग के बाद द्वापर के स्थान पर त्रेता का आविर्भाव हुआ । इतना कह बाघिन माता ने विराम लिया । लेकिन मेरे मन में प्रश्न घुमड़ने लगे । 

सूर्य नारायण अस्तांचल से धरा के दूसरे भाग को प्रकाशित करने चले गए । इधर सूर्यवंश की राजपुरोहित बनने की कथा ने मेरे मस्तिष्क में हलचल मचा दी । मां बाघिन मंद मंद मुस्कान के साथ चुप हो गयी । लहरें भी मंद मंद गति से प्रवाहित हो रही थी, मगर मेरे हृदय में जिज्ञासा के ज्वार उठ रहे थे । अंधकार बढ़ने के साथ ही अज्ञानता के तिमिर में मैं स्वयं को असहाय पा रहा था । विवश होकर मैंने पुनः बाघिन नदी की ओर करबद्ध होकर विनती की । 

हे माते ! मेरे मन में उमड़ रहे प्रश्नों का निवारण कीजिये ? 

लहरों की गति में कुछ तीव्रता आई । ऊपर आकाश में हंसिये के आकार के चन्द्र देव निकल आये थे । अंधकार कुछ कम हुआ । चंद्र देव की परछाई नीचे नदी के जल में बन रही थी, लेकिन लहरों की गति के कारण ऐसा प्रतीत हो रहा था , कि जैसे स्वर्ण मयी कोई हंसिया जल में तैर रहा हो ! 

पृष्ठभूमि से आवाज़ आई - पुत्र, पूछो अपने प्रश्न ! 

माते, वशिष्ठ जी इतनी लंबी आयु के थे, कि सतयुग से त्रेता तक उपस्थित रहे ? 

बिल्कुल पुत्र, ऋषि-मुनि अपने तप के बल पर लम्बी आयु प्राप्त कर लेते है । आज भी बहुत से ऋषि मुनि हिमालय की कंदराओं में सैकड़ो वर्षों से तपस्यारत है । वैसे एक रोचक तथ्य बताऊँ , इंद्र की तरह वशिष्ठ भी एक पद है, जो समय समय पर अनेक ऋषि-मुनियों ने अपने तप के बल पर प्राप्त किया है । 

माते, थोड़ा समझाकर बताइये ।

जैसे आज के जमाने में प्रधानमंत्री एक व्यक्ति न होकर पद है, जो समय समय पर अलग अलग व्यक्तियों द्वारा धारण किया गया है । उसी प्रकार इंद्र, वशिष्ठ और व्यास भी एक पद है, जो समय समय पर अलग अलग ऋषि रहे है । इनमें से कुछ प्रमुख वशिष्ठ के बारे में संक्षेप में बताती हूँ । पहले वशिष्ठ ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हुए ।

माते ! ये मानस पुत्र क्या होते है ? 

पु

त्र, जब महाप्रलय के पश्चात फिर से सृष्टि की रचना करनी थी, तो ब्रह्माजी ने अपनी योगमाया से 14 मानसपुत्र उत्‍पन्‍न किए:- मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि,  मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुष्ठ से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु और शतरुपा व ध्यान से चित्रगुप्त। 

ब्रह्माजी के उक्‍त मानस पुत्रों में से प्रथम सात मानस पुत्र तो वैराग्‍य योग में लग गए तथा शेष सात मानस पुत्रों ने गृहस्‍थ जीवन अंगीकार किया। गृहस्‍थ जीवन के साथ-साथ वे योग, यज्ञ, तपस्‍या तथा अध्‍ययन एवं शास्‍त्रास्‍त्र प्रशिक्षण का कार्य भी करने लगे। अपने सात मानस पुत्रों को, जिन्‍होंने गृहस्‍थ जीवन अंगीकार किया था ब्रह्माजी ने उन्‍हें विभिन्‍न क्षेत्र देकर उस क्षेत्र का विशेषज्ञ बनाया था ।


'सप्‍त ब्रह्मर्षि देवर्षि महर्षि परमर्षय:। 

कण्‍डर्षिश्‍च श्रुतर्षिश्‍च राजर्षिश्‍च क्रमावश:।।


1. ब्रह्मर्षि   2. देवर्षि   3. महर्षि   4. परमर्षि   5. काण्‍डर्षि   6. श्रुतर्षि    7. राजर्षि


उक्‍त ऋषियों का कार्य अपने क्षेत्र में खोज करना तथा प्राप्‍त परिणामों से दूसरों को अवगत कराना व शिक्षा देना था। मन्‍वन्‍तर में वशिष्‍ठ ऋषि हुए हैं, उस मन्वन्‍तर में उन्‍हें ब्रह्मर्षि की उपाधि मिली है। वशिष्‍ठ जी ने गृहस्‍थाश्रम की पालना करते हुए सृष्टि वर्धन, रक्षा, यज्ञ आदि से संसार को दिशा बोध दिया।

 

वशिष्ठ नाम से कालांतर में कई ऋषि हो गए हैं। एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकु के काल में हुए, तीसरे राजा हरिशचंद्र के काल में हुए और चौथे राजा दिलीप के काल में, पांचवें राजा दशरथ के काल में हुए और छठवें महाभारत काल में हुए। पहले ब्रह्मा के मानस पुत्र, दूसरे मित्रावरुण के पुत्र, तीसरे अग्नि के पुत्र कहे जाते हैं। पुराणों में कुल बारह वशिष्ठों का जिक्र है।


 आगे बाघिन माते बताती है,

एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकुवंशी त्रिशुंकी के काल में हुए जिन्हें वशिष्ठ देवराज कहते थे। तीसरे कार्तवीर्य सहस्रबाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अपव कहते थे। चौथे अयोध्या के राजा बाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (प्रथम) कहा जाता था। पांचवें राजा सौदास के समय में हुए थे जिनका नाम वशिष्ठ श्रेष्ठभाज था। कहते हैं कि सौदास ही सौदास ही आगे जाकर राजा कल्माषपाद कहलाए। छठे वशिष्ठ राजा दिलीप के समय हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (द्वितीय) कहा जाता था। इसके बाद सातवें भगवान राम के समय में हुए जिन्हें महर्षि वशिष्ठ कहते थे और आठवें महाभारत के काल में हुए जिनके पुत्र का नाम पराशर था। इनके अलावा वशिष्ठ मैत्रावरुण, वशिष्ठ शक्ति, वशिष्ठ सुवर्चस जैसे दूसरे वशिष्ठों का भी जिक्र आता है। 

मैं अवाक सा सुन रहा था, कि मेरे गोत्र ऋषि वशिष्ठ के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी के बारे में अब तक अनजान ही रहा है । मध्य रात्रि हो चुकी थी । लेकिन मन प्रसन्न था, भूख और नींद गायब थी । चन्द्र देव बिल्कुल सिर के ऊपर आ गए थे । पृष्ठभूमि तो जान गया, परंतु अभी तक बृहस्पति कुण्ड का रहस्य तो बाकी ही था । 

मां बाघिन मेरे मन की बात जानती हुई बोली,

पुत्र अभी पृष्ठभूमि पूर्ण नही हुई है, जब तक पृष्ठभूमि पूर्ण नही होगी, आगे बृहस्पति कुण्ड के रहस्यों को नही जान पाओगे । रहस्य इतने आसान होते तो रहस्य ही क्यों होते है । पृष्ठभूमि की एक एक बात आगे चलकर किसी न किसी रहस्य की परत खोलेगी ! अभी इन रहस्यों में बहुत से पात्रों का प्रवेश होगा, कुछ जाने होंगे कुछ अनजाने होंगे । लेकिन कोई भी पात्र कही से कमजोर नही बल्कि इन रहस्यों को समझने के लिए महत्वपूर्ण होगा । अब बहुत देर हो गयी पुत्र आज के लिये इतना बहुत है । फिर आना तो अगले किसी पात्र से परिचित कराउंगी ।
नदी के जल में अचानक हलचल हुई, जैसे ज्वार उठ रहा हो, एक लहर तेजी से उछल कर मेरे सिर का स्पर्श करती हुई, पुलिया के दूसरी ओर चली गयी । उस अलौकिक स्पर्श से ऐसा लगा जैसे बाघिन माता मुझे आशीर्वाद दे रही हो । मैं प्रणाम करते हुए अपनी गाड़ी में बैठ गया । मोड़दार रास्तों में स्टेरिंग की तरह मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न घूम रहे थे । वशिष्ठ जी राजपुरोहित कैसे और क्यों बने ? भगवान राम के जीवन में अगस्त्य ऋषि की क्या भूमिका थी ?  अगस्त्य मुनि ने बृहस्पति कुण्ड को ही क्यों चुना ? 

( क्रमशः )




रविवार, 12 जुलाई 2020

खूबसूरत पाण्डव जलप्रपात और गुफाएं

पन्ना झरनों का एक अलग ही संसार
 नमस्कार मित्रों मानसून का प्रवेश देश में हो चूका है , लेकिन कोरोना के संक्रमण  कारण घुमक्कड़ी लगभग बंद सी है। लेकिन मानसून में देश में झरनो की एक अलग ही खूबसूरत दुनिया शुरू हो जाती है।  देश में बारहमासी झरने  कम ही है।  चलिए हम आपको मॉनसूनी झरनो की खूबसूरत दुनिया से रू ब रू कराते है।  देश के दिल यानि मध्य प्रदेश में उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद से लगा एक पिछड़ा सा जिला है।  जिसका नाम है , पन्ना।  हो सकता है,आपने नाम ही न सुना हो।  वैसे पन्ना सामान्य ज्ञान की किताबों में देश के एकमात्र हीरा उत्पादक जिले के रूप में जाना जाता है।  इसके अलावा यहाँ का पन्ना टाइगर रिजर्व भी थोड़ा-बहुत प्रसिद्द है। लेकिन आज हम पन्ना जिले के छुपे हुए खजाने की चर्चा करेंगे वो भी बिना खर्चा (कोरोना काल में यही कर सकते है ) पन्ना को प्रकृति ने दिल खोल कर अपनी सुंदरता प्रदान की है। मानसून आते ही यहाँ के पहाड़ अनगिनत झरनो को अपनी गोद से उतार देते है।  छोटे-बड़े झरने बड़े ही मनमोहक दृश्यावली उत्पन्न करते है।  मैदानी इलाकों में शायद ही कोई एक जिला होगा जिसमे इतने सारे जलप्रपात होंगे।  खैर हम एक एक कर के पन्ना जिले के खूबसूरत झरनो से आपको मिलवाते है।  इस श्रृंखला  का श्रीगणेश हम पन्ना जिले के सबसे प्रसिद्द जलप्रपात पांडव फॉल एवं गुफा से करते है।
  
स्थिति - छतरपुर -पन्ना मार्ग पर पन्ना टाइगर रिजर्व के मड़ला गेट से लगभग 5 किमी पन्ना की ओर मुख्य सड़क से 600 मीटर अंदर जंगल की ओर 
प्रवेश शुल्क -50 रूपये प्रति व्यक्ति ( पन्ना टाइगर रिजर्व  की तरफ से )
                   चार पहिया वाहन के 300 रूपये 
कब तक खुला रहता है - पूरे साल सूर्योदय से सूर्यास्त तक ( जबकि पन्ना टाइगर रिजर्व अक्टूबर से जून तक खुला रहता है।  )
                          अब नाम से इतना तो पता चल ही गया होगा कि इस जलप्रपात का नाम महाभारत कालीन पांच पांडवों से जुड़ा है।  अब पांडव हस्तिनापुर से यहाँ आये या नहीं इसका कोई प्रमाण है नहीं मुझे नहीं पता।  लेकिन पन्ना जिले में ही केन नदी पर  पण्डवन नाम से एक शानदार जगह है।  जिसका सम्बन्ध पांडवों से जोड़ते है।  इसके अलावा छतरपुर के बिजावर के पास भीमकुण्ड नाम से भी रहस्यमयी कुंड है।  पन्ना से 90 किमी की दूरी पर प्रसिद्द शक्तिपीठ शारदा देवी मंदिर मैहर है , जिसका सम्बन्ध पांडवों से जोड़ा जाता है। किंवदंती है, पांडव यहाँ  स्थित प्राकृतिक गुफा में अपने अज्ञातवास के दौरान रहे है।  अब अज्ञात वास है , तो उसे ज्ञात करना मुश्किल है।  इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद भी काकोरी कांड के बाद यहाँ 4  सितम्बर 1929 को क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक आयोजित की थी।  
दिल के आकार में बहने वाले इस खूबसूरत झरने को देखते ही बनती है।  टाइगर रिजर्व में पड़ने वाले इस जलप्रपात के आसपास प्राकृतिक खूबसूरती भी बहुत है।  कुछ वन्य जीव देखने मिल जाते है।  लंगूर, लाल मुँह वाले बन्दर, सियार , चीतल , सांभर , नीलगाय आदि गाहे-बगाहे दिख जाते है।  

  
पांडव जलप्रपात का पेनोरमा दृश्य 

                                       






चंद्रशेखर आजाद  

  • पांडव गुफाएं 














बुधवार, 25 मार्च 2020

मध्य प्रदेश की एक खूबसूरत अनछुई जगह पन्ना

 आपको पन्ना जिले के मेरे अनुभव से यात्रा करवाते है ।

मेरा स्थानांतरण जब मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में हुआ , तो अधिकांश व्यक्तियों ने नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की । क्योंकि पन्ना मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र का सबसे पिछड़ा जिला है । खैर काम कही करना है, तो हम 2 सितंबर को पन्ना जिले में जॉइन करने निकल पड़े ।  अपनी कार से जब छतरपुर से सतना मार्ग पर  बमीठा (यहाँ से 9 किमी दूरी पर खजुराहो है ।)  से आगे निकला तो सड़क के दोनों किनारे सागौन का जंगल शुरू हो गया । जगह जगह पन्ना टाइगर रिजर्व के साइन बोर्ड जिन पर बाघ के होने की चित्रमय सूचना दी थी , मिलने शुरू हो गए । मेरे ड्राइवर ने मुझसे पूछा - सर यहां से सचमुच शेर गुजरते है या वन विभाग ने डराने के लिए ये बोर्ड लगाए है ।  मैंने अपना ज्ञान बघारते हुए कहा -  नही, यहां 50 से ऊपर बाघ है । एक समय यहां बाघ समाप्त हो गए थे, फिर 2009 में बाघ पुनर्स्थापना की शुरुआत हुई और तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर मूर्ति जी और स्टॉफ की कड़ी मेहनत ने पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से बाघों से आबाद किया । और आज दूसरी जगहों पर पन्ना से बाघ भेजे गए । पन्ना टाइगर रिजर्व दुनिया पहला और इकलौता टाइगर रिजर्व है , जहाँ बाघों की संख्या शून्य होने के बाद उनका पुनर्वास सफलता पूर्वक किया गया है , बल्कि अब दुनिया भर के टाइगर रिजर्व यहाँ इस बात का प्रशिक्षण लेने आते है । पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के अलावा तेंदुआ, रीछ, लकड़बग्घा, जंगली सुअर, सांभर , चीतल, नीलगाय जैसे जानवर बहुतायत में है । यहां के सांभर अनुकूल परिस्थितियों के कारण आकार में बड़े और हष्ट पुष्ट होते है । सांभर बाघों का प्रिय भोजन है । हालांकि हमे भी सांभर बड़ा पसंद है, लेकिन डोसा और इडली के साथ । 
                                              
                         अब हम पांडव गुफा और जलप्रपात के पास से गुजर रहे थे । मैंने 2013 में यह स्थान देखा था । यहाँ खूबसूरत झरने के पास कुछ गुफाएं भी बनाई गई है । जिनके बारे में कहा जाता था, कि इन्हें पांडवों ने अपने अज्ञातवास में बनाया था । खैर पांडव प्रपात से थोड़े आगे घाटी चढ़े ही थे, कि सड़क किनारे एक गाड़ी खड़ी लेकिन उसमें से कोई व्यक्ति बाहर नही निकला । सब खिड़की से जंगल की तरफ झांक रहे थे । तभी एक वन विभाग की बोलेरो आई और वो भी जंगल की तरफ देखने लगे । हम भी उत्सुकता वश रुक गए  और पूछा क्या हुआ ? तो गाड़ी वाले एक व्यक्ति ने जंगल की तरफ इशारा करके कहा - वहाँ टाइगर है ! फिर क्या था , हमारी बांछे (शरीर मे जहाँ भी होती हो ) खिल उठी । और हमने न केवल जी भर टाइगर देखा बल्कि उसका भरी दोपहरी में मोबाइल से वीडियो बनाया । बाद में मुझे पता चला कि हमने जो बाघ देखा था, उसका नाम कन्हैया है । इसके नामकरण की भी रोचक दास्तान है । किसी अन्य बाघ के साथ इलाके की लड़ाई में इसकी एक आंख नही रही । इसलिये इसे काणा (एक आंख वाला) नाम दिया , कुछ लोगों ने काणा को कान्हा समझा । फिर कान्हा को सुधार कर कन्हैया कर दिया गया । यह एक आंख होने के कारण अंदर घने जंगल में न रहकर सड़क किनारे के क्षेत्र में रहने लगा है, क्योंकि यहाँ कम मेहनत में आसपास के गांवों के पालतू पशु आसानी से मिल जाते है । और दूसरे किसी बाघ का इलाका न होने के कारण सुरक्षित भी है ।  कन्हैया बाघ के जाने के बाद हम भी चल पड़े , अपना दिन बन चुका था । जहाँ लोगो को हजारों खर्च करने के बाद बाघ नही दिखता हम मुफ्त में ही सड़क किनारे बाघ देख लिए वो भी तब जब टाइगर रिजर्व बन्द रहता है । (जुलाई से सितम्बर तक)
                                  अब हम पन्ना शहर में प्रवेश किये और पन्ना के सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पूज्यनीय मन्दिर जुगलकिशोर मन्दिर पहुँचे । मध्यकालीन बुंदेला शैली में बना भव्य मंदिर के अंदर गर्भगृह में कृष्ण और राधा की प्रतिमा है । कहते है कि कृष्ण जी की प्रतिमा की मुरली और मुकुट में हीरे जड़े है । बात सही भी है, क्योंकि पूरे भारत में सिर्फ पन्ना जिले में ही हीरे की खदानें है । यहाँ की एशिया की सबसे बड़ी हीरे खुली खदान यही पर मझगंवा में है , जिसका संचालन राष्ट्रीय खनन विकास कॉर्पोरेशन (एन एम डी सी) द्वारा किया जाता है । दर्शन पश्चात हमने अपनी नौकरी जॉइन की ।
                                 अगले दिन हम पन्ना के दूसरे प्रसिद्ध मंदिर बलदेव जी के मन्दिर गए । इस मंदिर की बड़ी तारीफ सुनी थी, और यह उससे भी ज्यादा खूबसूरत निकला । यह दुनिया का इकलौता मन्दिर है, जो चर्च की स्थापत्य शैली में बना है । इसके वास्तुकार इटली के मेल्स है, जिन्होंने 1921 में राजा रुद्रदेव के आदेश पर यह बेहद खूबसूरत मन्दिर बनाया । 16 कलाओं के स्वामी बलराम को समर्पित इस मंदिर में 16 गुम्बद, 16 दरवाजे, 16 खिड़कियां, 16 स्तंभ, 16 सीढ़ियां है । अंदर चमकदार काले ग्रेनाईट से बलराम जी की सुंदर मूर्ति है, पीछे शेषनाग बने हुए है । इस मंदिर का स्थापत्य हर किसी को मोहित कर सकता है । इसके पास में ही दो भव्य मंदिर है । जिनमे से एक जगन्नाथ स्वामी मंदिर है , जो बना तो बुंदेला स्थापत्य शैली में है , मगर अंदर प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृति ही है । यहां पुरी की तरह ही भव्य रथयात्रा निकाली जाती है । बलदेव जी मन्दिर के दूसरी तरह गोविंद जी का मन्दिर है । जहाँ भगवान कृष्ण की सुंदर प्रतिमा स्थापित है ।
                              तीसरे दिन आफिस के बाद हम फिर शहर घूमने निकल पड़े । इस बार पड़ाव था , प्राणनाथ मन्दिर । दुनिया का मकबरा शैली में संगमरमर से बना यह शानदार मन्दिर प्रणामी सम्प्रदाय के संत प्राणनाथ जी को समर्पित है । प्राणनाथ जी बुंदेला वीर शासक महाराज छत्रसाल के आध्यात्मिक गुरु थे । प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा पर बहुत बड़ा मेला लगता है , जिसमें प्रणामी सम्प्रदाय के लाखों अनुयायी देश-विदेश से आते है । इसके बाद गली से निकलते ही पुराना कलेक्ट्रेट भवन मिला । महेंद्र भवन के नाम से विख्यात यह इमारत एक समय पन्ना राजघराने का महल था, जिसे प्रशासनिक भवन बना दिया गया । यह मध्य प्रदेश का सबसे खूबसूरत कलेक्ट्रेट भवन था । अब नई इमारत बनने से इसे खाली कर दिया गया है , भविष्य में इसमे  हेरिटेज होटल बनना प्रस्तावित है । इससे थोड़े आगे चलने पर रामजानकी मन्दिर है । इस मंदिर में अंदर दीवारों पर तुलसीकृत रामचरित मानस की सभी चौपाइयां, दोहे आदि लिखे हुए है । गर्भगृह में राम जानकी की मनमोहक प्रतिमा है ।
अब अगले दिन रविवार पड़ गया । छुट्टी के दिन क्या करें ? तो गूगल महाराज का सहारा लिया तो पता चला नए कलेक्ट्रेट के पास ही किलकिला नदी पर कलकल जलप्रपात है । शहर के इतने पास जलप्रपात देख बड़ी खुशी हुई । बायपास रोड पर जब कलकल जलप्रपात पहुँचे तो मजा आ गया । जलप्रपात के पास ही चट्टानें इस तरह है, मानो कोई महापाषाणीय समाधि हो । पास में शिवमंदिर भी है । वही एक व्यक्ति से जलप्रपात के बारे में पूछताछ करने पर पता चला कि इसी नदी पर आगे 2 किमी जंगल में  कौआसेहा जलप्रपात इससे भी बड़ा और खूबसूरत है । अंधा क्या चाहे दो आंखे और हम अकेले ही गड्डी लेकर निकल पड़े जंगल की ओर । तब किलकिला नदी ने ही हमारा रास्ता रोका । पास से गुजर रहे लकड़हारे लड़के से मैंने कौआसेहा जलप्रपात जाने के अन्य विकल्प का पूछा तो उसने बताया रास्ता तो यही है , वैसे नदी में पानी ज्यादा नही है, गाड़ी आसानी से पार हो जाएगी । लेकिन मेरी हिम्मत नही हुई, तो उसे पहले नदी पार करने को कहा जब वो नदी पार हो गया तब हमने अपनी गाड़ी पार की । कुछ देर बाद जब हम जलप्रपात के नजदीक पहुँचे तो नजारा अविस्मरणीय था । स्थानीय भाषा में सेहा का अर्थ कुंड या प्रपात होता है । कौआसेहा जलप्रपात देखने ने छत्तीसगढ़ के तीरथगढ़ जलप्रपात जैसा लगता है । शहर के इतने नजदीक जंगल मे इतना शानदार जलप्रपात होने के बाद भी भीड़ न होना आश्चर्यजनक है । बाद में इसका कारण पता चला कि मॉनसून में पन्ना और आसपास ढेर सारे झरने जाग्रत हो जाते है ।
                             अब अगले दिन जब मैंने अपने कार्यालय के सहयोगियों को दोनो झरनों की फ़ोटो दिखाई तो उन्होंने कहा - अभी आपने बृहस्पति कुण्ड का झरना तो देखा ही नही । उसके आगे पन्ना के सारे झरने बच्चे है । अब बृहस्पति कुण्ड देखने की इच्छा जोर मारने लगी । इंटरनेट पर मैंने बृहस्पति कुण्ड खोज कर देखा वास्तव में बड़ा खूबसूरत झरना है । अगले दिन सुबह सुबह अपने उन्ही सहयोगियों के साथ पन्ना से 35 किमी दूर बृहस्पति कुण्ड पहुँचे । वहाँ का दृश्य देखकर दिल गार्डन गार्डन सॉरी झरना झरना हो गया । बाघिन नदी पर बना यह एक ज्वालामुखी कृत जलप्रपात है । घोड़े के नाल की आकृति में बाघिन नदी जब नीचे घाटी में गिरती है, तो गिरने से पहले दिल लूट लेती है । बृहस्पति कुंड जलप्रपात का क्षेत्र प्राकृतिक रूप से तो मनभावन है ही , साथ ही धार्मिक-पौराणिक, ऐतिहासिक,आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण है  । एक कथा अनुसार देवगुरु बृहस्पति ने यहां पर यज्ञ किया था । ऋषि मुनियों के अनेक आश्रम भी यहाँ रहे है । त्रेता युग में भगवान राम अपने चित्रकूट वनवास काल में सीता और लक्ष्मण के साथ यहाँ ऋषि-मुनियों के दर्शन करने आये । ( चित्रकूट यहां से जंगल के रास्ते से लगभग 50 किमी होगा।) यहाँ की गुफाओं और चट्टानों पर आदिमानवों द्वारा हजारों साल पहले बनाये शैलचित्र है । एक शैलचित्र में तो जिराफ जैसे जानवर को देखकर आश्चर्यचकित रह गया । चूंकि भारत का प्रायद्वीपीय भाग पहले अफ्रीका से जुड़ा था, तो हो सकता है यहां जिराफ रहे हो । अधिकांश शैलचित्रों में शिकार , आदिमानवों की तत्कालीन गतिविधियाँ और वन्य जीवों के चित्र है । आर्थिक महत्व के रूप में इस जलप्रपात के आसपास हीरे की खदानें भी है । खदान का नाम सुनते ही हमारे जेहन में बड़ा सा गड्ढा सामने आता है । जबकि पन्ना में हीरे ही 3-4 फुट की उथली खदानें है । पन्ना के आसपास किम्बरलाइट चट्टाने बहुतायत में पाई जाती है । जिनमें हीरे पाए जाते है । जमीन में जिन जगहों पर किम्बर लाइट के पत्थर ज्यादा होते है , वहाँ लोग जमीन के हिस्से का हीरे उत्खनन का लाइसेंस ले लेते है, फिर वहाँ की मात्र 3-4 फुट की खुदाई कराई जाती है , पत्थरों के बीच हीरा खोजा जाता है । यहाँ उत्कृष्ट किस्म का हीरा मिलता है । सबसे अच्छी बात भारत का कोई भी नागरिक हीरा खोदने का लाइसेंस ले सकता है, वो भी कुछ हजार रुपयों में ।
                                  पन्ना जिले में राम वनगमन पथ के स्थानों में वृहस्पति कुंड के अलावा सुतीक्ष्ण मुनि आश्रम सारंगधर, अगस्त्य मुनि आश्रम सलेहा, अग्निजिह्वा आश्रम आदि स्थल है । ऐसी मान्यता है, कि भगवान राम अपने वनवास काल में इन स्थानों पर ऋषि मुनियों के दर्शन करने आये थे । रामायण काल के अलावा पन्ना जिले में महाभारत कालीन स्थलों में पाण्डव गुफा और जलप्रपात , अमानगंज के पास पन्डवन है, जहाँ केन नदी पाँच चट्टानों में से गुजरती है । यही से लगभग 30 किमी दूरी पर भीमकुण्ड है, जिसका पानी बिल्कुल नीला है । दुनिया में कही भी भूकम्प या सुनामी आती है, तो भीमकुण्ड के जल में अपने आप ऊंची लहरें उठने लगती है ।
पन्ना जिला अभी भी अपनी ठेठ बुंदेली संस्कृति को बचाकर रखे है । खानपान पर अभी भी शहरी मुलम्मा नही चढ़ा है ।  पन्ना में खान पान और संस्कृति पूरी तरह बुंदेली है । यहां भोजन में दाल-बाटी के साथ भटा का भर्ता, चीला, बरा, मंगोड़ा, बिजौरा, बरी, खोवा की जलेबी, रायता, बिर्रा की रोटी आदि स्वादिष्ट व्यंजन लोकप्रिय है । यह तो पन्ना  संक्षिप्त परिचय था , जल्द ही अगले पोस्ट में विस्तार से लिखने का प्रयास करूँगा।  20 फ़रवरी को दैनिक जागरण  राष्ट्र्रीय संस्करण में सप्तरंग परिशिष्ट में पन्ना पर मेरा आलेख प्रकाशित चुका है।  जिसे आप दैनिक जागरण की वेबसाइट पर पढ़ सकते है।  
अब आप चित्रों का आनंद लीजिये 
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में सांभर 

जुगल किशोर जी मंदिर 

चर्च जैसा बलदेव जी मंदिर 

पन्ना टाइगर रिज़र्व में चीतल 

बृहस्पति कुण्ड जलप्रपात 

जलप्रपात का एक और खूबसूरत नजारा 

बृहस्पति कुण्ड के पास प्राचीन शैलचित्र जिसमे जिराफ भी दिख रहा है।  

मस्जिद जैसा प्राणनाथ मंदिर 

कउआसेहा जलप्रपात 

कलकल जलप्रपात 
अजयगढ़ घाटी 

बक्चुर जलप्रपात 

नवीन कलेक्ट्रेट भवन 

पुराना कलेक्ट्रेट महेंद्र भवन 
गुप्तकालीन नचने कुठार का मंदिर 

अजयगढ़ किले से सूर्यास्त 
20 फ़रवरी 2020 को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित मेरा आलेख 

रविवार, 19 जनवरी 2014

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान और पांडव गुफाओं की खूबसूरत यादें

नमस्कार मित्रो आज मैं आप सभी को मध्य प्रदेश के एक बहुत ही प्यारे राष्ट्रीय उद्यान पन्ना राष्ट्रिय उद्यान कि सैर पर ले चलता हूँ . कुछ साल पहले पन्ना राष्ट्रिय उद्यान बाघों की संख्या ख़त्म होने के कारण चर्चा में रहा था . लेकिन  मुख्य वन संरक्षक श्री मूर्ति के प्रयासों से आज पन्ना राष्ट्रिय उद्यान में पुरे देश में सर्वाधिक 22  बाघ है . मेरी पन्ना राष्ट्रिय उद्यान / टाइगर रिज़र्व की यात्रा का संयोग टीकमगढ़ जिले के निवाड़ी विधानसभा क्षेत्र के सामान्य निर्वाचन पर्यवेक्षक के रूप में आये हिमांचल राज्य सेवा के श्री गोपाल शर्मा जी के कारण सम्भव हो सका . मैं और शर्मा जी टीकमगढ़ से पन्ना के लिए 9  दिसंबर को अलसुबह ही निकल पड़े , क्योंकि जंगल में जानवरों को देखने का सही समय सुबह का ही होता है . टीकमगढ़ से छतरपुर- खजुराहो होते हुए हम लोग पन्ना राष्ट्रिय उद्यान के भव्य गेस्ट हाउस ' मणिकर्णिका ' पहुचे . वहाँ से श्री मूर्ति के माध्यम से हमारी टाइगर रिज़र्व सैर की व्यवस्था हुई . हम लोगों ने अपनी बंद इनोवा कि बजाय खुली किराये की जिप्सी में जाना उचित समझा ...
वन विभाग के खूबसूरत गेस्ट हाउस में लगी ये मनमोहक मूर्ति ही राष्ट्रिय उद्यान की खूबसूरती को बयां करती नजर आती है ....
पन्ना राष्ट्रिय  उद्यान / टाइगर रिजर्व के मुख्य द्वार पर श्री गोपाल शर्मा जी के संग  मैं और वन रक्षक श्री भदोरिया ( गाइड के रूप में )
तो ये  लो ....चल पड़ी अपनी सवारी ..करने जंगल की सफारी ..मित्रो जंगल का असली मजा तो खुली जिप्सी में ही आता है, और हाँ साथ में दूरबीन रखना न भूले , क्योंकि जंगल में सारे जीव आपके पास नही होते है . 
 
हम कुछ दूर चले ही थे , कि इन सांभर महोदय ने हमारा रास्ता ही रोक लिया . जब हम लोगो का पूरी तरह से मुआयना कार लिया तभी अंदर जाने की अनुमति मिली . शुक्रिया सांभर महोदय जी , जो आप ने हमें जंगल में जाने के लायक समझा .

वैसे हम घूम तो रहे थे भारत में सबसे ज्यादा बाघों वाले राष्ट्रीय उद्यान में ..मगर जंगल के राजा के दर्शन नही हो पाये ..बदकिस्मती से हमारे जंगल में आने के कुछ देर पहले ही इस टाइगर रिजर्व की सबसे चर्चित बाघिन ' नदिया के पार ' जा चुकी थी . और हम इस पेड़ पर बाघ के पंजे के निशान देख कार ही संतोष कर सके . बाघ इस तरह से पेड़ों के ऊपर अपने निशान छोड़ कर अपना एरिया निर्धारित करता है . खैर हम जंगल के राजा के एरिया में पहुच कर खुश हो लिए . जय हो बाघ महराज की 
 




अरे ये कौन आ गया .....हमें देख कर शायद यही सोच रही है , ये मादा नील गाय
जंगल के राजा के पंजो के निशान के बाद हमें जामवंत जी यानि कि भालू के पंजो के निशान इस पेड़ पर देखने मिले ...भालू इस पेड़ पर अपना पसंदीदा  भोजन " शहद " खाने उलटे पैर चढ़ा होगा .भालू को अपने घने बालों की वजह से मधुमक्खियों से सुरक्षा मिल जाती है ...वरना हमें तो उलटे पैर ही भागना पड़ता है ...है न !

ये रहे लंगूर महराज ! अक्सर लोगो को लंगूर और बन्दर के बीच ग़लतफ़हमी होती है , तो काले मुँहऔर लम्बी  पूंछ  वाले जीव लंगूर कहलाते है , जबकि लाल मुह वाले बन्दर कहलाते है . बन्दर हमारे ही दूर के रिश्तेदार है , लेकिन लंगूरो से बहुत ही दूर का नाता है . ऐसा जीव विज्ञानी कहते है , आपको क्या लगता है ? शायद ये लंगूर महाराज भी इसी उलझन में है ...

ये है दुनिया की सबसे स्वच्छ नदियों में से एक ' केन ' नदी जो इस राष्ट्रीय उद्यान के बेचो-बीच बहकर जीवन प्रदान करती है . और हम ' नदिया के पार  बाघिन रानी को खोजने की कोशिश करते हुए ..शायद दर्शन हो जाये ..

केन नदी में घड़ियाल पायें जाते है, मध्य प्रदेश में चम्बल , सोन और केन नदी में घड़ियाल परियोजना संचालित है . नदी जोड़ो परियोजना के अंतर्गत केन-बेतवा को जोड़ने का कम सबसे पहले कियाक गया . नदी की स्वच्छता का सबसे बड़ा कारण इसके किनारे किसी शहर का न होना है . इस चित्र में आप इसकी स्वच्छता और सुंदरता को बखूबी देख सकते है . 

केन की सुंदरता का मोह बड़ी मुश्किल से त्यागते हुए जब आगे बढे तो ये चीतल माँ-बेटे (बेटी भी हो सकती है ) का जोड़ा दिखा , जो शायद नदी तट पर अपनी प्यास बुझाने आया हो .






कुछ दूर आगे बढ़ने पर हिरणो का पूरा का पूरा कुनबा ही नजर आ गया ..जो हमारी गाड़ी की आवाज सुनकर भागने लगा ....फिर भी कुछ को तो मैंने अपने कैमरे कैद कर ही लिया ...आपको जो दिखाना  था .

साडी दुनिया से बेखबर ये सांभर महाशय अपनी मुसीबत में ही उलझे है , जी हाँ ये सांभर अपने सींगो को पेड़ से रगड़ रहा है , ताकि इसके लिए मुसीबत बन चुके ये लम्बे सींग झाड़ जाये . संभारो के सींग हर साल उगते है , बड़े हो जाने पर ये इन्हे पेड़ो से रगड़ कर गिरा देते है .

तलब किनारे पानी पीने आयी इस नील गाय ने हमारी आवाज सुनते ही हमें चौकन्ना होकर देखा ...चौकन्ना होना भी स्वाभाविक है , क्योंकि शाकाहारी जीवों पर हिंसक जीव सबसे ज्यादा हमला पानी पीते समय ही करते है. 



तालाब के पास ही ये लंगूर महोदय पेड़ कि छाँव में बड़े आराम से बैठ कर सामने चरते चीतल को निहार रहे थे ...हो सकता हो लाइन मार रहे हो 
लेकिन थोड़ी देर बाद ही उन्होंने चीतल कि और दौड़ लगा दी ...चीतल भी कहाँ कम थी ....वो भी कुलांचे मारते हुए जंगल में निकल ली 
 
यू ही रास्ते में कई पहाड़ी बरसाती जल कुंड मिले ....

नदिया के पर बाघिन तो नही दिखी ..लेकिन कुछ पेड़ो पर सुन्दर-सुन्दर पक्षी जरुर दिखे ..जिनमे ड्रांगो , नीलकंठ . किंगफिशर , मैन , बुलबुल , चील . जल मुर्गी , कोयल आदि ( कइयों के नाम नही मालूम लेकिन थे बहुत सुन्दर )

सागौन के बेशकीमती जंगल सीधे खड़े ...mano किसी तपस्या में लीन हो ....
पन्ना टाइगर रिजर्व से ही कुछ दूर पांडव गुफा एवं जल प्राप्त देखने का मोह हम छोड़ न पाये ...

ऊपर से पांडव जल प्राप्त का मनमोहक दृश्य ....

नीचे उतरते ही पांडव झरने नजर आये

झरनो के ही किनारे गुफाएं बनी हुई है मैं और शर्मा जी गुफाओं को देखते हुए ...इसके बाद हम वापस अपने गनतव कि ओर लौट चले ..अपने मन में ढेर सारी कभी न भूलने वाली यादें साथ लेकर ..







orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...