रविवार, 19 जनवरी 2014

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान और पांडव गुफाओं की खूबसूरत यादें

नमस्कार मित्रो आज मैं आप सभी को मध्य प्रदेश के एक बहुत ही प्यारे राष्ट्रीय उद्यान पन्ना राष्ट्रिय उद्यान कि सैर पर ले चलता हूँ . कुछ साल पहले पन्ना राष्ट्रिय उद्यान बाघों की संख्या ख़त्म होने के कारण चर्चा में रहा था . लेकिन  मुख्य वन संरक्षक श्री मूर्ति के प्रयासों से आज पन्ना राष्ट्रिय उद्यान में पुरे देश में सर्वाधिक 22  बाघ है . मेरी पन्ना राष्ट्रिय उद्यान / टाइगर रिज़र्व की यात्रा का संयोग टीकमगढ़ जिले के निवाड़ी विधानसभा क्षेत्र के सामान्य निर्वाचन पर्यवेक्षक के रूप में आये हिमांचल राज्य सेवा के श्री गोपाल शर्मा जी के कारण सम्भव हो सका . मैं और शर्मा जी टीकमगढ़ से पन्ना के लिए 9  दिसंबर को अलसुबह ही निकल पड़े , क्योंकि जंगल में जानवरों को देखने का सही समय सुबह का ही होता है . टीकमगढ़ से छतरपुर- खजुराहो होते हुए हम लोग पन्ना राष्ट्रिय उद्यान के भव्य गेस्ट हाउस ' मणिकर्णिका ' पहुचे . वहाँ से श्री मूर्ति के माध्यम से हमारी टाइगर रिज़र्व सैर की व्यवस्था हुई . हम लोगों ने अपनी बंद इनोवा कि बजाय खुली किराये की जिप्सी में जाना उचित समझा ...
वन विभाग के खूबसूरत गेस्ट हाउस में लगी ये मनमोहक मूर्ति ही राष्ट्रिय उद्यान की खूबसूरती को बयां करती नजर आती है ....
पन्ना राष्ट्रिय  उद्यान / टाइगर रिजर्व के मुख्य द्वार पर श्री गोपाल शर्मा जी के संग  मैं और वन रक्षक श्री भदोरिया ( गाइड के रूप में )
तो ये  लो ....चल पड़ी अपनी सवारी ..करने जंगल की सफारी ..मित्रो जंगल का असली मजा तो खुली जिप्सी में ही आता है, और हाँ साथ में दूरबीन रखना न भूले , क्योंकि जंगल में सारे जीव आपके पास नही होते है . 
 
हम कुछ दूर चले ही थे , कि इन सांभर महोदय ने हमारा रास्ता ही रोक लिया . जब हम लोगो का पूरी तरह से मुआयना कार लिया तभी अंदर जाने की अनुमति मिली . शुक्रिया सांभर महोदय जी , जो आप ने हमें जंगल में जाने के लायक समझा .

वैसे हम घूम तो रहे थे भारत में सबसे ज्यादा बाघों वाले राष्ट्रीय उद्यान में ..मगर जंगल के राजा के दर्शन नही हो पाये ..बदकिस्मती से हमारे जंगल में आने के कुछ देर पहले ही इस टाइगर रिजर्व की सबसे चर्चित बाघिन ' नदिया के पार ' जा चुकी थी . और हम इस पेड़ पर बाघ के पंजे के निशान देख कार ही संतोष कर सके . बाघ इस तरह से पेड़ों के ऊपर अपने निशान छोड़ कर अपना एरिया निर्धारित करता है . खैर हम जंगल के राजा के एरिया में पहुच कर खुश हो लिए . जय हो बाघ महराज की 
 




अरे ये कौन आ गया .....हमें देख कर शायद यही सोच रही है , ये मादा नील गाय
जंगल के राजा के पंजो के निशान के बाद हमें जामवंत जी यानि कि भालू के पंजो के निशान इस पेड़ पर देखने मिले ...भालू इस पेड़ पर अपना पसंदीदा  भोजन " शहद " खाने उलटे पैर चढ़ा होगा .भालू को अपने घने बालों की वजह से मधुमक्खियों से सुरक्षा मिल जाती है ...वरना हमें तो उलटे पैर ही भागना पड़ता है ...है न !

ये रहे लंगूर महराज ! अक्सर लोगो को लंगूर और बन्दर के बीच ग़लतफ़हमी होती है , तो काले मुँहऔर लम्बी  पूंछ  वाले जीव लंगूर कहलाते है , जबकि लाल मुह वाले बन्दर कहलाते है . बन्दर हमारे ही दूर के रिश्तेदार है , लेकिन लंगूरो से बहुत ही दूर का नाता है . ऐसा जीव विज्ञानी कहते है , आपको क्या लगता है ? शायद ये लंगूर महाराज भी इसी उलझन में है ...

ये है दुनिया की सबसे स्वच्छ नदियों में से एक ' केन ' नदी जो इस राष्ट्रीय उद्यान के बेचो-बीच बहकर जीवन प्रदान करती है . और हम ' नदिया के पार  बाघिन रानी को खोजने की कोशिश करते हुए ..शायद दर्शन हो जाये ..

केन नदी में घड़ियाल पायें जाते है, मध्य प्रदेश में चम्बल , सोन और केन नदी में घड़ियाल परियोजना संचालित है . नदी जोड़ो परियोजना के अंतर्गत केन-बेतवा को जोड़ने का कम सबसे पहले कियाक गया . नदी की स्वच्छता का सबसे बड़ा कारण इसके किनारे किसी शहर का न होना है . इस चित्र में आप इसकी स्वच्छता और सुंदरता को बखूबी देख सकते है . 

केन की सुंदरता का मोह बड़ी मुश्किल से त्यागते हुए जब आगे बढे तो ये चीतल माँ-बेटे (बेटी भी हो सकती है ) का जोड़ा दिखा , जो शायद नदी तट पर अपनी प्यास बुझाने आया हो .






कुछ दूर आगे बढ़ने पर हिरणो का पूरा का पूरा कुनबा ही नजर आ गया ..जो हमारी गाड़ी की आवाज सुनकर भागने लगा ....फिर भी कुछ को तो मैंने अपने कैमरे कैद कर ही लिया ...आपको जो दिखाना  था .

साडी दुनिया से बेखबर ये सांभर महाशय अपनी मुसीबत में ही उलझे है , जी हाँ ये सांभर अपने सींगो को पेड़ से रगड़ रहा है , ताकि इसके लिए मुसीबत बन चुके ये लम्बे सींग झाड़ जाये . संभारो के सींग हर साल उगते है , बड़े हो जाने पर ये इन्हे पेड़ो से रगड़ कर गिरा देते है .

तलब किनारे पानी पीने आयी इस नील गाय ने हमारी आवाज सुनते ही हमें चौकन्ना होकर देखा ...चौकन्ना होना भी स्वाभाविक है , क्योंकि शाकाहारी जीवों पर हिंसक जीव सबसे ज्यादा हमला पानी पीते समय ही करते है. 



तालाब के पास ही ये लंगूर महोदय पेड़ कि छाँव में बड़े आराम से बैठ कर सामने चरते चीतल को निहार रहे थे ...हो सकता हो लाइन मार रहे हो 
लेकिन थोड़ी देर बाद ही उन्होंने चीतल कि और दौड़ लगा दी ...चीतल भी कहाँ कम थी ....वो भी कुलांचे मारते हुए जंगल में निकल ली 
 
यू ही रास्ते में कई पहाड़ी बरसाती जल कुंड मिले ....

नदिया के पर बाघिन तो नही दिखी ..लेकिन कुछ पेड़ो पर सुन्दर-सुन्दर पक्षी जरुर दिखे ..जिनमे ड्रांगो , नीलकंठ . किंगफिशर , मैन , बुलबुल , चील . जल मुर्गी , कोयल आदि ( कइयों के नाम नही मालूम लेकिन थे बहुत सुन्दर )

सागौन के बेशकीमती जंगल सीधे खड़े ...mano किसी तपस्या में लीन हो ....
पन्ना टाइगर रिजर्व से ही कुछ दूर पांडव गुफा एवं जल प्राप्त देखने का मोह हम छोड़ न पाये ...

ऊपर से पांडव जल प्राप्त का मनमोहक दृश्य ....

नीचे उतरते ही पांडव झरने नजर आये

झरनो के ही किनारे गुफाएं बनी हुई है मैं और शर्मा जी गुफाओं को देखते हुए ...इसके बाद हम वापस अपने गनतव कि ओर लौट चले ..अपने मन में ढेर सारी कभी न भूलने वाली यादें साथ लेकर ..







orchha gatha

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