मंगलवार, 31 जनवरी 2012

न जाने क्यूँ वो मुझसे रूठ गये !

न जाने क्यूँ वो मुझसे रूठ गये
एक पल में ही सरे रिश्ते नाते टूट गये
क्या खता की थी हमने, जो हमको ये सिला मिला
क्या ज़रा सी आह भरने पर, हमको ये जलजला मिला
उनको हमारी छोटी सी गलती पर, जरा भी रहम न आया
बड़े जालिम निकले वो, जो हमपे इतना सितम ढाया
उनके साथ ही , उनकी यादें , बातें , सारे कारवां पीछे छूट गये
न जाने क्यूँ वो मुझसे रूठ गये
निगाहें जब हम उनसे मिलते है वो अपना चेहरा मोड़ लेते है अब
हमने भी देखना बंद कर दिया , हम भी दूर से हाथ जोड़ लेते है अब
हमसे रुखसत जो वो होंगे, तभी नज़रे मिलायेंगे हम
गर जालिम है वो , तो हम भी कर सकते है जुलम
सपने निकले कच्ची मिटटी के , जो झट से टूट गये
न जाने क्यूँ वो मुझसे रूठ गये



सोमवार, 9 जनवरी 2012

उपहार :कविता


एक दिन जरुरी काम से , मैं गया एक कार्यालय
वहां सब मस्ती में थे, सब की थी अपनी लय
काम करवाने की नीयत से मैं, पहुंचा अधिकारी कक्ष की ओर
चपरासी ने रोका, साहब बिजी है! आना किसी दिन और
बहुत जरुरी काम है , नही है मेरे पास फिर आने का वक़्त
लौट जाओ , बिना उपहार वालो के लिए कानून है सख्त
"उपहार " आपके कहने का क्या प्रयास है ? क्या साहब का जन्मदिन आसपास है ?
जन्मदिन वाला उपहार साहब स्वीकार नही करते बिना उपहार वालो के लिए अपना समय बेकार नही करते
अरे भाई , ऑफिस में क्या है उपहार का काम ? उपहार तो है समारोहों का ताम झाम
ऑफिस में बिन उपहार के नही बनता है कोई काम
क्योंकि भैया उपहार है, "रिश्वत" का नया नाम

शनिवार, 7 जनवरी 2012

नव वर्ष आया .................पत्रिका :जबलपुर में १ जनवरी को प्रकाशित


आप सभी को देर से ही सही नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये , दर असल मैं जबलपुर में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग -२०१० की मुख्य परीक्षा में व्यस्त था । अभी फुर्सत मिली है , तो आपके सामने पत्रिका (अखबार) के १ जनवरी के नैनो अंक के मुखप्रष्ठ पर पहली कविता मेरी प्रकाशित हुई , हालाँकि अन्दर के पृष्ठों में २०-२५ कवितायेँ थी । उसी को ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ .......
नव, नूतन , नवल नया वर्ष आया है
नई उमंग, नई आशा संग लाया है
कुछ ऐसी खुशियाँ मिले नए साल में
स्वाभिमान जगे, यूं तिलक लगे भाल में

अश्रु बहे तो खुशियों से होके सराबोर
दमके जीवन, मुस्कान हो हर और
चाँद सितारे झोली में, ऐसा हो दामन
सब कुछ शाश्वत , मन हो पावन
रात भी आये , पर भटके न सवेरा
तपती धुप में हो, चैन का बसेरा
नव, नूतन , नवल हो अभिनन्दन
हर ओर खुशबू हो , जैसे महके 'चन्दन'

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...