मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

कहा से शुरू करूँ ....आप बताएं ?

नमस्कार मित्रो ,
मध्य प्रदेश विधानसभा निर्वाचन में संलग्न होने के कारण बहुत दिनों तक ब्लॉगिंग से दूर रहा . हालाँकि इस दौरान बहुत ही अच्छे अनुभव हुए , जिन्हे आप सभी को बताने की इच्छा बहुत बार हुई , मगर समय आभाव के कारण उसे आप तक नही पंहुचा पाया . खैर अब समझ नही आ रहा ..इतने दिनों में हुए अनुभवो में से किसे सबसे पहले आपके सामने प्रस्तुत करू .
विधान सभा निर्वाचन में मुझे केंद्रीय जागरूकता प्रेक्षक श्री बी ० नारायण जी ( निदेशक , केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ) , पुलिस प्रेक्षक श्री नवनीत राणा ( डी आई जी , कानपुर)  और निवाड़ी विधान सभा सामान्य प्रेक्षक श्री गोपाल शर्मा जी (हिमांचल प्रशासनिक सेवा )के साथ पूरा टीकमगढ़ जिला और साथ ही चंदेरी , खजुराहो और पन्ना के पर्यटन स्थलों के भ्रमण का भरपूर मौका मिला . इन सुन्दर स्थलो से जुड़े बड़े ही यादगार अनुभव रहे है .
इन दो महीनो में जितना घूमा उतना शायद ही इतने कम समय में ज्यादा स्थलो पर कभी घूमा हूँ .
सोच नही पा रहा हूँ , कि कहाँ से शुरू करू ...ओरछा में राम राजा के दरबार से  या जहांगीर महल , राजा महल , चतुर्भुज मंदिर , आजाद आश्रम , बेतवा और जामनी नदियों के सुरम्य हरे- भरे पथरीले तट या खंगार नरेश की राजधानी  गढ़कुण्डार के किले की कहानियों से ....या 875  ईस्वी के मढखेरा के अद्भुत शिल्प वाले सूर्य मंदिर से ...या विश्व धरोहर खजुराहो के अप्रतिम स्थापत्य वाले मंदिर समूह से ...या पन्ना बाघ रिजर्व के रोमांचक सफारी से ...दुनिया की सबसे स्वच्छ और खूबसूरत नदियों में से एक  केन नदी के विहंगम प्राकृतिक दृश्यों से ....या पांडव जल प्रपात एवं प्राकृतिक गुफाओं से ........कुछ भी छोड़ने योग्य नही है . इसलिए तय नही कर पा रहा हूँ , कहाँ से शुरू करू ...
आप ही बताये कहाँ से शुरू  करू .....

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

जिन्द्गी न जाने , क्यूँ खफा हो गयी है ...

 जिन्द्गी  न जाने , क्यूँ खफा हो गयी है

हैतन्हाई के आलम में , ख़ुशी बेवफा हो गयी है 

जो लिखे मोहब्बत के तराने , आज हुए बेगाने
दिल में बसी तेरी खुशबु , जाने कहाँ दफा हो गयी है


सोचा था , एक दिन पूरी होगी मोहब्बत की किताब
अफ़सोस , बचे कुछ पन्ने, कुछ फलसफा हो गयी 

जेहन में बची यादें, दिल भी वीरान हुआ 
दफन हो सब बातें , जिंदगी भी सफा हो गयी 

महक न रह गयी बाकि, चली ऐसी आंधियां 
वीरान 'चन्दन' के दरख्त , अब ऐसी फ़िज़ा हो गयी है . 
- मुकेश पाण्डेय 'चन्दन'

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

बाल दिवस के कुछ सवाल ..हम सब से ?????

                                  मित्रो आप सभी को भारतीय बाल दिवस कि हार्दिक शुभकामनायें. 
मेरे ख्याल से आज आपने अपने फेसबुक , ट्विटर  और शोशल मीडिया के मित्रो को शुभकामनयें भेज कर बाल दिवस मना लिया होगा . है न ?
 पर कभी -कभी मन में कई सवाल आते है , सोचा क्यों न आप से ही साझा कर लिया जाये  ? 
शायद कुछ के जवाब ही मिल जायेंगे  ? 
हम बाल दिवस को बच्चो के दिन के रूप में मानते है , तो क्या आज हमने बच्चों को बच्चा रहने दिया है ?
दिन भर स्कूली बस्ते का बोझ लादने के बाद कोचिंग , ट्यूशन , म्यूजिक क्लास , स्पोर्ट क्लास , कंप्यूटर , विडिओ गेम्स , मोबाइल के बीच क्या उनका बचपना बचा है ?
और स्कूलों में भी कौन सी शिक्षा ....सिर्फ नौकरी या व्यवसाय के लिए ?
हम उन्हें नैतिक शिक्षा , संस्कार दे पा रहे है  ?
क्या इस गलाकाट प्रतियोगी दौर में उन्हें किसी असहाय , बेसहारा या जरूरतमंद की मदद करना सिखा पा रहे है ?  
टेलीविज़न और इंटरनेट के बीच माँ की लोरी और थपकियाँ कहाँ  है ?
बड़ो का सम्मान , पड़ौसी धर्म, परोपकार , विनम्रता , सहनशीलता , आदर्श इस पीढ़ी के पास पहुचें है ?
तकनीक के तनाव में प्यार की छाँव उन्हें नसीब है ?
ग्लोबल वर्ल्ड में माँ-बाप की गलबहियां मिल पा रही है ?
  जिंदगी की जद्दोजहद में जिंदादिली उन्हें मिल पायी है ?
वर्चुयल रिलेशन और सोशल नेटवर्किंग के जाल में रिश्ते-नाते , दादा-दादी , नाना -नानी , मामा-मामी, चाचा-चाची का दुलार मिला है ?
ये तो हुए हमारे अपने बच्चों के लिए अब कुछ बच्चे ऐसे भी है , जिनका जन्म लेना ही उनके लिए अभिशाप से कम नही है . ऐसे बच्चों के लिए तो जिंदगी ही सबसे बड़ा सवाल है . उनकी दुनिया में सबसे बड़ा उद्देश्श्य ही रोटी है . ऐसे ही  बच्चो की कुछ तसवीरें आपके लिए लाया हूँ ....


हमारी ये जंजीरें कब टूटेंगी ...???

क्या आपका ये कचरा ही हमारा भविष्य होगा ?

क्या सारा बोझ हम ही उठाएंगे ?


मुझे कब भरपेट रोटी नसीब होगी ?

कब हम अपने आंसू पोंछ पाएंगे ?

हम कब आपकी दुनिया में शामिल होंगे ....?

हमें भिक्षा नही शिक्षा कब मिलेगी ?

कब हमारे उज्जवल भविष्य के नींव की ईंट रखी जायेगी ?
इसलिए नही कि आप बस उन्हें देखे ...बल्कि उनके लिए सोचे ...कुछ करे ...मैं ये नही कहूंगा कि आप ऐसे बच्चों को गोद  ले या उनका खर्च उठाएं ....या उनकी पढाई का खर्च उठाएं ...बल्कि जब कभी ऐसे बच्चे आपको नज़र आयें तो उनकी तरफ हिकारत कि नज़र से न देखे ..बल्कि प्यार से देखे ...वो भी हमारी तरह इंसान है . उनके साथ इंसानों के जैसा ही बर्ताव करे ...और हो सके तो उनकी मदद करे (पैसे की नही ) ...ऐसी मदद जो उनके जीवन में खुशियां ला सकें ...उनको अपने पैरो पर खड़ा कर सके ...उन्हें गलत राहों पर जेन को मजबूर न करें .....वो भी एक इंसानी जिंदगी फक्र से  जी सके  .....और इस दुनिया में पैदा होने के लिए ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर सकें
हमें भी हक़ है जीने का .....है न !

रविवार, 10 नवंबर 2013

आज भी इतिहास को समेटे हुए है टीकमगढ़ ....



नमस्कार मित्रो ,
पिछले 9  माह से मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले पदस्थ हूँ , इन 9  महीनों में लगभग पूरा जिला घूम चूका हूँ . हाल -फ़िलहाल तो मध्य प्रदेश विधासभा निर्वाचन में व्यस्त हूँ . लेकिन आज रविवार को थोड़ी सी फुर्सत मिली तो सोचा क्यों न आपको भी टीकमगढ़ जिले की सैर करवायी जाये . तो चलिए मेरे साथ बुंदेलखंड के इस जिले की सैर पर -
टीकमगढ़ शहर के महेंद्र सागर तालाब का मेरे द्वारा खीचा गया एक मनमोहक दृश्य
            टीकमगढ़  जिले में बुंदेला राजाओ की जागीरें और रियासतें रही है . टीकमगढ़ का नाम भगवान कृष्ण के एक नाम " टीकम " के नाम पर पड़ा . जिला मुख्यालय के नाम पर, टीकमगढ़ है. शहर के मूल नाम टेहरी था. 1783 CE ओरछा  विक्रमजीत (1776-1817 CE के शासक) में ओरछा  से अपनी राजधानी टेहरी में स्थानांतरित कर दिया है . आज भी शहर में पुराणी टेहरी नाम से मोहल्ला है , जहाँ पर किला बना  हुआ है .
शहर की सभी सीमाओं पर इस तरह के भव्य द्वार बने है .
टीकमगढ़ के राजा के द्वारा रम की बोतलों से 'बोतल हॉउस ' बनवाया गया .
                                                  इस जिले के अंतर्गत क्षेत्र ओरछा  के सामंती राज्य के भारतीय संघ के साथ अपने विलय तक हिस्सा था ! ओरछा  राज्य रुद्र प्रताप द्वारा 1501 में स्थापित किया गया था. विलय के बाद, यह 1948 में विंध्य प्रदेश के आठ जिलों में से एक बन गया. 1 नवंबर को राज्यों के पुनर्गठन के बाद, 1956 यह नए नक्काशीदार मध्य प्रदेश राज्य के एक जिले में बन गया !
टीकमगढ़ शहर आज भी एक बड़े गांव की तरह है , शहरी सुविधायें कम ही है. हाँ शहर में मंदिरों की तादाद बहुत ज्यादा है . छोटे-बड़े मंदिर जगह-जगह है . पुरे जिले में आपको बड़े-बड़े तालाब और किले आसानी से देखने मिलेंगे . चूँकि पथरीला क्षेत्र होने की वजह से यहाँ पानी की कमी रहती है , जिसे पूरा करने के लिए तत्कालीन राजाओं ने बड़े-बड़े तालाब खुदवाये . इन तालाबों की वजह से न केवल भूमिगत जलस्तर बढ़ा बल्कि लोगो के लिए मत्स्य पालन के रूप में एक रोजगार भी मिला . इन तालाबो की प्राकतिक सुंदरता भी देखते ही बनती है . मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा तालाब टीकमगढ़ जिले में ही है .लगभग 832  तालाब .
टीकमगढ़ तालाब का एक मनमोहक नजारा
                                    हाल ही में टीकमगढ़ नगर पालिका द्वारा शहर में स्थित महेंद्र सागर तालाब के किनारे ' शान- ए- टीकमगढ़ पार्क ' बनवाया है , जो बड़ा ही सुन्दर है . इस पार्क में जिले की लगभग सभी  महान शख्शियतों को मूर्तियां लगायी गयी है . इसके अलावा शहर के मुख्या चौराहे अस्प्ताल चौराहे के दोनों तरफ बुंदेलखंड के प्रसिद्द लोकनृत्य " राई " करते हुए नर्तकियों एवं वादको की सुन्दर जीवंत प्रतिमाएं लगवायी गयी है . शहर की सीमाओं पर चारो और भव्य द्वार बने है .   बुंदेलखंड पठार क्षेत्र के कारण यहाँ की जमीने पथरीली है . औद्योगिक क्षेत्र लगभग न के बराबर है , लेकिन पत्थरो एवं रेत
का उत्खनन बड़ी मात्रा में चलता है .
 
इस साल अप्रैल में लोगो ने टीकमगढ़ की पहली ट्रैन का अभूतपूर्व स्वागत किया
अपनी तरह का एक अनोखा हनुमान मंदिर



टीकमगढ़ शहर के बीचो-बीच स्थित किला

महेंद्र सागर तालाब स्थित कालेज का मनोरम दृश्य



टीकमगढ़ जिले के तालाबो के मध्य भी खूबसूरत इमारतें बनी हुयी है .

















ओरछा में जहांगीर महल के प्रवेश द्वार पर परिवार के साथ
 
कुण्डेश्वर महादेव मंदिर


कुंडेश्‍वर- टीकमगढ़ से 5 किमी. दक्षिण में जमड़ार नदी के किनारे यह गांव बसा है। गांव कुंडदेव महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि मंदिर के शिवलिंग की उत्पत्ति एक कुंड से हुई थी। गांव के दक्षिण में बारीघर नामक एक खूबसूरत पिकनिक स्थल और आकर्षक ऊषा वाटर फॉल है। विनोबा संस्थान और पुरातत्व संग्रहालय भी यहां देखा जा सकता है।
बड़े महादेव :- ग्राम जेवर, टीकमगढ़  में यह प्राचीन मंदिर बीच बस्ती में स्थित है, जिसमें शंकरजी की केवल एक पिंडी थी। उस पिंडी के आस-पास कई पिंडियां भूमि से स्वयं प्रकट हो गयीं, जो प्रति वर्ष बढ़ती जाती हैं। संप्रति तीन पिंडियां बहुत बड़ी हैं, तीन मझोली हैं और दो निकल रही हैं। यह स्थान रानीपुर रोड स्टेशन से ४ मील दक्षिण में है।
बगाज माता मंदिर वकपुरा सुन्दरपुर - टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से बुडेरा मार्ग पर वकपुरा नामक एक गांव स्थित है। इसी गांव के पास हरी भरी पहाडि़यों के बीच विद्या की देवी सरस्वती जी का मंदिर है। जिसे बगाज माता के नाम से जाना जाता है। यह करीब 1100 वर्ष प्राचीन है। देवी मंदिर गांव से करीब 2 कि0मी0 दूर पहाडि़यों के बीच है। माना जाता है कि आज से करीब 500 वर्ष पूर्व वकपुरा गांव के लोगों ने इस पवित्र स्थल की पहचान कर यहां आना जाना शुरु किया।
अहार जी - बल्देवगढ़ तहसील का यह गांव जिला मुख्यालय से 25 किमी. दूर टीकमगढ़-छतरपुर रोड पर स्थित है। यह गांव जैन तीर्थ का प्रमुख केन्द्र कहा जाता है। अनेक प्राचीन जैन मंदिर यहां बने हैं, जिनमें शांतिनाथ मंदिर प्रमुख है। इस मंदिर में शांतिनाथ की 20 फीट की प्रतिमा स्थापित है। एक बांध के साथ चंदेल काल का जलकुंड यहां देखा जा सकता है। इसके अलावा श्री वर्द्धमान मंदिर, श्री भेरू मंदिर, श्री चन्द्रप्रभु मंदिर, श्री पार्श्‍वनाथ मंदिर, श्री महावीर मंदिर, बाहुबली मंदिर और पंच पहाड़ी मंदिर यहां के अन्य लोकप्रिय मंदिर हैं। बाहुबली मंदिर में भगवान बाहुबली की 15 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है।
पपौरा जी - टीकमगढ़ से ५ किलोमीटर दूर सागर टीकमगढ़ मार्ग पर पपौरा जी जैन तीर्थ है ,जो कि बहुत प्राचीन है और यहाँ १०८ जैन मंदिर हैं जो कि सभी प्रकार के आकार मैं बने हुए जैसे रथ आकार और कमल आकार यहाँ कई सुन्दर भोंयरे है |
बंधा जी - एक बार एक संवत् 1890 में कलाकार मूर्तियों को बेचने के लिए 'बम्होरी जा रहा था. अचानक बैलगाड़ी बम्होरी के पास एक पीपल का पेड़ के पेड़ के पास रुक गई और उसने अनपे सभी प्रयासों को बेकार पाया और गाड़ी को आगे नहीं ले जा पाया पर जब कलाकार ने फैसला किया कि वह में मूर्ति स्थापित 'बंधा जी क्षेत्र' में स्थापित करेगा और उसकी गाड़ी बंधा जी की ओर बढ़ शुरू कर दिया यह मूर्ति अब भी बंधा जी के विशाल मंदिर में स्थापित है!
गढ़ कुडार का प्रसिद्द किला जो वृन्दावन लाल वर्मा के उपन्यासों से लेकर आज भी लोक साहित्य और किंवदंतियों में शान से जिन्दा है .
अछरू माता- टीकमगढ़-निवाड़ी रोड पर स्थित यह गांव पृथ्वीपुर तहसील में है। एक पहाड़ी पर बसे इस गांव में माता अछरू का चर्चित मंदिर है। मंदिर एक कुंड के लिए भी प्रसिद्ध है जो सदैव जल से भरा रहता है। हर साल नवरात्रि के अवसर पर ग्राम पंचायत की देखरेख में मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आकर शिरकत करते हैं। यह स्थान ग्राम पृथ्वीपुरा, टीकमगढ़ में है। यहां मूर्ति नहीं है, एक कुंड के आकार का गड्ढा है। यहां चैत्र-नवरात्र में प्राचीनकाल से मेला लगता आ रहा है।
आज भी सीना तने हुए बल्देवगढ़ का अभेद्य किला
बल्देवगढ़ की प्रसिद्द विशाल तोप (वर्दी में इन पंक्तियों का नाचीज़ लेखक )
बल्देवगढ़ - यह नगर टीकमगढ़-छतरपुर रोड़ पर टीकमगढ़ से 26 किमी. दूर स्थित है। खूबसूरत ग्वाल सागर कुंड के ऊपर बना पत्थर का विशाल किला यहां का मुख्य आकर्षण है। एक पुरानी और विशाल तोप  आज भी किले में देखी जा सकती है। विन्ध्य वासिनी देवी मंदिर बलदेवगढ़ का लोकप्रिय मंदिर है। चैत के महीने में सात दिन तक चलने वाले विन्ध्यवासिनी मेला यहां लगता है। यहां पान के पत्तों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।
जतारा- टीकमगढ़ से 40 किमी. दूर टीकमगढ़-मऊरानीपुर रोड पर यह नगर स्थित है। नगर की मदन सागर झील काफी खूबसूरत है। इस लंबी-चौड़ी झील पर दो बांध बने हैं। इन बांधों को चन्देल सरदार मदन वर्मन ने 1129-67 ई. के आसपास बनवाया था। जतारा में अनेक मुस्लिम इमारतों को भी देखा जा सकता है।
माँ गिद्धवाहिनी मंदिर गढ़कुडार- यह निवाड़ी तहसील का लोकप्रिय गांव है। यह प्रथम स्थल है जिसे बुन्देलों ने खांगरों से हासिल किया था। 1539 तक यह स्थान राज्य की राजधानी था। इस गांव में एक छोटी पहाड़ी के ऊपर महाराज बीरसिंह देव द्वारा बनवाया गया किला देखा जा सकता है। देवी महा माया ग्रिद्ध वासिनी मंदिर भी यहीं स्थित है। मंदिर में सिंह सागर नाम का विशाल कुंड है। हर सोमवार को यहां बाजार लगता है।

मडखेड़ा का सूर्यमंदिर
मडखेरा- सूर्य मंदिर के लिए विख्यात मडखेरा टीकमगढ़ से 20 किमी. उत्तर पश्चिमी हिस्से में स्थित है। मंदिर का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा की ओर है तथा इसमें भगवान सूर्य की प्रतिमा स्थापित है। इसके निकट ही एक पहाड़ी पर बना विन्ध्य वासिनी देवी का मंदिर भी देखा जा सकता है।

रामराजा सरकार मंदिर , ओरछा
ओरछा में बेतवा नदी , पृष्ठ भूमि में स्थानीय राजाओं की छतरियां ( यही पर सॉफ्टड्रिंक  स्लाइस की कैटरिना कैफ ने शूटिंग की थी )
रामराजा के दरबार में ये नाचीज
ओरछा- बेतवा नदी तट पर बसा   यह गांव उत्तर प्रदेश के झाँसी से 15 किमी. की दूरी पर है। काफी लंबे समय तक राज्य की राजधानी रहे ओरछा की स्थापना महाराजा रूद्र प्रताप ने 1531 ई. में की थी। ओरछा को हिन्दुओं का प्रमुख धार्मिक केन्द्र माना जाता है। राजा राम मंदिर, जहांगीर महल, चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, फूलबाग, शीशमहल, कंचन घाट, चन्द्रशेखर आजाद मैमोरियल, हरदौल की समाधि, बड़ी छतरी, राय प्रवीन महल और केशव भवन ओरछा के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। यहाँ देशी के साथ ही विदेशी पर्यटक भी बहुतायत तौर से आते है .
ओरछा की बड़ी रोचक और प्रसिद्द कथाएं है , इनके बारे में अलग से पोस्ट लिखूंगा . 

हजरत इलहान शाह बाबा रहमत उल्लाह अलैह नजरबाग - हिन्दू मुस्लिम श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र हजरत इलहान शाह बाबा रहमत उल्लाह अलैह सन् 1802 में टीकमगढ़ में तशरीफ लाये और नजरबाग में अपना मुकाम बना लिया। वह बाबा साहब के पास जो श्रद्धालु जाते बाबा साहब की दुआओं से उनकी मनोकामएं पूर्ण होती।
हजरत अब्दाल शाह बाबा रहमत उल्लाह अलैह जतारा - हजरत ख्वाजा रुकुनुद्दीन चिश्ती रहमत उल्लाह अलैह सन् 1200 में जतारा तशरीफ लाये ओर नगर के किनारे से बहने वाली नहर के पास एक जगह अपना मकाम बनाया। जतारा नगर के रहने वाले शेख परिवार के एक हजरत, ख्वाजा की खिदमत किया करते थे। कई वर्षों के बाद शेख साहब ने ख्वाजा साहब से मुराद मांगी की उन्हें भी अपनी दुआओं से नवाज दिया जाए।
हजरत दाता इलाहीशाह बाबा रहमत उल्लाह अलैह बड़ी मजार टीकमगढ़ - हजरत दाता इलाहीशाह बाबा रहमत उल्लाह अलैह एक ऐसे बली थे जिनके दर पर सदैव समाज के हर वर्ग के लोग अपनी मन्नतें लेकर आते और बाबा साहब की दुआओं से उनकी मनोकामनायें कबूल होती। आज भी यह एक ऐसा स्थान है जहां हिन्दू-मुस्लिम व सभी धर्मो के लोग अपनी मनोकामनायें लेकर श्रृद्धापूर्वक जाते और उनकी मनोकामनायें पूर्ण होती। पिछले 68 वर्षों से बाबा साहब की दरगाह पर 4-5 व 6 अप्रैल को उर्स का आयोजन किया जाता है।

टीकमगढ़ मध्य प्रदेश के सभी बड़े शहरो से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है . सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ललितपुर 55  कि मी ० है .अब टीकमगढ़ भी ललितपुर-सिंगरौली रेल लाइन से जुड़ गया है .  हालाँकि पर्यटक झाँसी से आना ज्यादा पसंद करते है , ताकि वहाँ से ओरछा , गढ़कुंडार जैसे नजदीकी स्थानो का भ्रमण कर सके . रहने -रुकने के लिए ओरछा में कई होटल और रिसार्ट है .   मित्रो आज की इस पोस्ट में इतना ही लेकिन जिन बातों को मैंने संक्षेप में समेत दिया ...उन सब की रोचक कहानिया है , जो समयाभाव के कारण फिर कभी आगामी पोस्टों में लिखूंगा .
तब तक जय जय ......

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

हम भी चोट खाए है

 
एक मुख्त्शर* इश्क में हम भी चोट खाए है
राह-ए-मोहब्बत में हम भी किसी के आजमायें हुए है
चोट खाकर कई जख्मो को सहे है हम
कहते जिसे बेवफाई , उन घावों को हम भी सहलायें हुए है
सीने में दर्द को सहकर इस कदर बे-दर्द हुए है हम
वक़्त को मरहम बनाकर उन ज़ख्मों को हम भी छुपायें हुयें है 
काँटों की कलियों को , सीने से लगायें है हम
लहू के रंग को फूलों के रंग में हम भी समायें हुए है
हमारी वफाओं के बदले ज़फायें *लिए है हम
ज़िन्दगी के दरख्तों पे अब भी यादों के फूल कुम्हलाएँ हुयें है
जिंदगी के अज़ाब* को ज़ेहन में लिए है हम
अनदेखे ख्वाबो के ताबीर* भी अब रंग लाये हुए है
दियार-ए- गम* में तबस्सुम*लिए है हम
तीरगी* के साये में चिराग -ए-दिल जलाये हुए है 

*मुख्तशर - लघु , अजाब - मुसीबत , जफ़ायें - निष्ठुरतायें, ताबीर - स्वप्नफल , दीये-ए-गम - दुःख का नगर 
तबस्सुम - मुस्कराहट , तीरगी - अँधेरा 
 

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

मेरी सफलता ....फिर से


नमस्कार मित्रो ,
आपको यह बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है , कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित राज्य सेवा परीक्षा 2010  के अंतिम परीक्षा परिणाम घोषित हुए जिसमे आपका यह मित्र " बाल विकास परियोजना  अधिकारी " के पद पर चयनित हुआ है . साथ ही " खंड विकास अधिकारी " की प्रतीक्षा सूची में प्रथम स्थान है . मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा  यह मेरा लगातार दूसरा चयन है . इससे पूर्व मैं आबकारी उपनिरीक्षक के पद पर चयनित हुआ था , और तब नायब तहसीलदार  की प्रतिक्षा सूची में भी स्थान था .इन चयनों में मेरी कड़ी मेहनत के साथ आप सभी का आशीर्वाद और शुभकामनाएं रही है . अभी भी लगातार प्रयास जारी है ....
दैनिक भास्कर के मुख्य पृष्ट पर फोटो के साथ खबर भी ....

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

कुछ तसवीरें हमारे पूर्वजों की ....



एक दिन की बात है कि कुछ प्राकृतिक तसवीरें खीचने का बहुत मन हो रहा था , तो मैंने अपना डिजिटल कैमरा और बाइक उठाई और चल पड़ा सागर (मध्य प्रदेश ) के अपने घर से 16  कि मी  दूर स्थित प्राकृतिक और धार्मिक स्थान गढ़पहरा कि ओर... हनुमान जी के मंदिर के लिए प्रसिद्द यह पहाड़ी  स्थान बरसात के समय बहुत खूबसूरत लगता है . ... वहां पहुचकर हमारे पूर्वजो और हनुमान जी के समजातों  ने  मन मोहा तो सोचा क्यों न इन्ही कप अपने कैमरें में कैद किया जाया ...और कुछ प्यारी से तसवीरें आपके लिए लाया हूँ
सबसे पहले जब मैं मंदिर की सीढियों की ओर बढ़ा तो ये  महाशय मेरे हाथ में कैमरा देख कर सामने खड़े हो गये , कि पहले मेरी फोटो खीचो ..फिर आगे जाने दूंगा ...मरता क्या न करता ..इनकी फोटो खीचनी ही पड़ी ....जंगल में बन्दर से बैर थोड़ी ले सकता था !

अब एक कि फोटो खीची तो अगली सीढ़ी पर छोटे उस्ताद बैठे मिले ..अब इन्होने भी कसम खाली थी , कि मैं भी फोटो खिच्वाऊंगा ...लो भाई अब तुम भी खिचवा लो ..कौन सी मेरी रील ख़तम हो रही है ...


लगता है ये महाशय पहले भी कई बार फोटो खिच चुके है , इसलिए स्टाइल में भी है और देखो ...स्माइल भी दे रहे है ...है न !

अरे ..ये क्या हो रहा है ? मैं भी तो देखू ये क्या कर रहे है ? ऐ ...इन्सान की औलाद ..इधर भी बत्ती चमका अपुन भी अमलतास की डाल पे बैठा है ...समझा क्या ?

हुह्ह्ह .....मुझे क्या ....लेना ..मैं लाइम लाइट में नही आने वाला ...मेरी फोटो खीचनी ही थी , तो आते बसंत के मौसम में जब इस पलाश में प्यारे प्यारे फूल खिले थे ..अब आये हो ......मुझे नही खीचनी फोट-वोटो ....मैं चला ...

श... श्ह्ह्ह  आवाज नही ....अभी बिजी हूँ ....कुछ ढूंढ रहा हूँ 

अरे ...देखो मेरी छलांग लगते हुए फोटो लेना .....बिलकुल हीरो स्टाइल में ....ये है जलवा  !

अरे यार ....थोडा से चुक गया ..वरना बड़ी शानदार छलांग लगाई थी... चलो कोई बात नही इसे डिलीट कर देना ..चेहरा नही दिखाऊंगा ..अरे यार समझते नही पीछे देखो ..कितना सुन्दर पेड़ दिख रहा है ...



हाँ ...यही वाला पेड़ .. है न बहुत खुबसूरत नजारा ?



मम्मी ...मम्मी ..देखो ...फोटो खिच रही है ....अपनी भी खिच्वाओ न !

चलो कोई बात ..मम्मी तो तैयार नही ..मेरी ही खीच दो ...ये स्टाइल सही है न  ?                                                तो दोस्तों कैसी लगी ये चित्र मय प्रस्तुति   ?                     


शनिवार, 17 अगस्त 2013

अब पहले जैसा सावन नही आता ...!

भारतीय साहित्य में बसंत के बाद जिस मौसम की चर्चा की गयी है ....वो है श्रावण या सावन मास ! 
हो भी क्यों न , आखिर प्रकृति भी इस महीने पर बहुत मेहरबान जो होती है . सावन के वर्णन में कवियों ने कोई कसर नही छोड़ी है .
याद करे मुकेश का गाया हुआ वो मधुर गीत -  
सावन का महीना, पवन करे सोर
 पवन करे शोर पवन करे सोर 
पवन करे शोर अरे बाबा शोर नहीं सोर, सोर, सोर 
पवन करे सोर.
 हाँ, जियरा रे झूमे ऐसे, जैसे बनमा नाचे मोर हो 
सावन का महीना … मौजवा करे क्या जाने, हमको इशारा जाना कहाँ है पूछे,
 नदिया की धारा मरज़ी है ...
या फिर ..
लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है....
या फिर 
सावन बरसे...धड़के दिल...क्यों ना घर से निकले दिल...

 सावन का महिना प्यार का महिना कहलाता था .....पर प्यार तो अब बारहमासी हो गया है . 
भगवान् शिव का प्रिय महिना भी सावन ही है ....इसी महीने में लोग सावन सोमवार का व्रत रखते है ...इसी महीने में कांवरिये कांवर में जल भर कर भगवन शिव का जलाभिषेक करने मीलो पैदल चल कर जाते है . 
सावन के महीने में ही पपीहा स्वाति नक्षत्र का जल पीने पिहू-पिहू  गाता फिरता है ...
सावन के महीने में ही किशोरियां कजरी तीज का व्रत रखती है ..
 लेकिन मैं आज सावन की कसक की बात करना चाहूँगा .......
अब सावन पहले जैसा नही रहा ...
न ही सावन का इंतजार होता है . ...
न बागों में झूलें पड़ते है ...
न परदेस से पिया के आने का इन्तजार होता है ...
न कई दिनों की झड़ी लगती है ....
न सावन के मेले भरते है , जिसमे बच्चे साल भर के लिए खिलोने लेते थे ...
न सावन में  गाँव  में लोग विदेशिया या आल्हा गाते है ..... 
न बहनों के राखी बांधने जाने के लिए मायके जाने की वो बेकरारी रहती है ....
न नागपंचमी पर अखाड़ो में कुश्तियां होती है ....
न सावन में बेटी-बहनें अपने हाथों में पहले की तरह मेहंदी रचाती है ...
न सावन में बारिश के पानी में कागज की कश्तियाँ छोड़ी जाती है ..
न सावन की लड़ी में भीगने का मन होता है ....
आखिर बाजारवाद की अंधी दौड़ ...आधुनिकता के नाम पर ....पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से हम क्यों अपनी संस्कृति ....अपनी प्रकृति ....से दूर होते जा रहे है ....
अब क्यों नही पहले जैसा सावन आता है ???



orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...