शनिवार, 25 जुलाई 2009

आज भी आधी आबादी संघर्षरत है .

आज सुबह ही पटना (बिहार) पंहुचा । सुबह जब अख़बार देखा तो एक मुख्या ख़बर मुह चिढा रही थी। पटना में पिछले दो दिन में व्यस्तम बाजारों में हुई महिलाओ के साथ की तीन घटनाये सचमुच दिल को झकझोर देने वाली थी । कल पटना के अति व्यस्त बाज़ार एक्सिबिसन रोड में एक युवती को कुछ लोगो ने सरे आम न केवल पीटा ,बल्कि बे-आबरू भी किया । लोग वहन बस तमाशबीन बने देखते रहे। घटनास्थल से गाँधी मैदान थाना मात्र ५०० मीटर की दुरी पर है । पुलिस को भनकतक न लगी काफी देर बाद पुलिस आई । दूसरी ख़बर कदमकुआ क्षेत्र में कुछ महिलाओ ने मात्र एक चोरी के आरोप के चलते एक महिला को सरे आम पीटा बल्कि उसके कपड़े भी फाड़ डाले । यहाँ भी लोग तमाशबीन बने थे । तीसरी घटना थोडी सी अलग है , पटना में ही एक महिला ने अपनी बेटी को छेड़ रहे युवक को न केवल पीटा बल्कि उसको कलर पकड़ कर घसीटते हुए

ये तीनो खबरें दिल को आहात करने वाली है । एक और जहाँ देश में महिलाये नित नये प्रतिमान रच रही है वही इस तरह की घटनाये दिल को आहत करती है । ये ख़बर उसी बिहार की है , जहाँ से भारत की पहली महिला लोक सभा स्पीकर हाल ही में मीरा कुमार जी बनी , बिहार ही भारत का पहला राज्य है जिसने सबसे पहले पंचायती राज में महिलाओ को ५०% आरक्षण दिया।

मित्रो आज भी देश में इस तरह की घटनाये हो रही है , जब देश चाँद को छू रहा है , कब तक ऐसा होता रहेगा ? शायद जब तक हम मूक दर्शक बने रहेंगे !

रविवार, 19 जुलाई 2009

वाह वाह नेताजी !!

नमस्कार मित्रो ,
हमारे देश के नेताओ के बारे में कहने को जी नही करता है, पूछे क्यो अरे भाई कुछ अच्छा करे तो लिखे , अब उनकी करनी पर लानत भेजने से कुछ होने वाला तो है नही । खैर आज नारद मुनि जी ने प्रेरित किया तो लिखने बैठ ही गये । हमारे नेता लोग जितना सरकारी धन का दुरूपयोग करते है , उतना दुनिया में शायद ही कही होता होगा। गलती पूरी उन्ही की नही है , हम ही तो उन्हें चुन के भेजते है । अब जब ग़लत लोगो को चुनेगे तो काम भी तो गलत ही करेंगे वो । अब जरा कुछ हमारे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के छेदों पर गौर फरमाए ।
*हमारे यहाँ चुनाव लड़ने की कोई योग्यता निर्धारित नही है , जबकि बिना स्नातक किए कोई पाकिस्तान में चुनाव नही लड़ सकता है ।
* हमारे यहाँ चुनाव प्रत्यासियो का चरित्र का सत्यापन नही किया जाता है, जबकि एक चपरसी की नौकरी लगने पर भी उसका चरित्र सत्यापन जहाँ -जहाँ वो रहा है वहां की पुलिस से करवाया जाता है ।
*आप को किसी प्रत्याशियों को नकारने का कोई प्रावधान नही है।
* हम ख़ुद मतदान के प्रति जबाबदार नही है , मत देना हमर फ़र्ज़ नही है शायद !
और भी कई बातें है मगर आज इतना ही बाकि फ़िर कभी , खैर इन में कुछ सवाल आपके के छुपे है ,उनके जवाब जरुर देना । शुक्रिया नारद जी

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

ब्लोगिंग आख़िर एक फुरसतिया काम है !!.......जवाब दो

ब्लोस्कर दोस्तों,
मेरे एक मित्र है ,जो इंटरनेट के भी अच्छे जान कार है । बहुत दिनों बाद उनसे मुलाकात हुई तो हाल चाल जानने की ओपचारिकता के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि भाई आजकल क्या चल रहा है ? मैंने भी ये जानते हुए कि वो इंटरनेट के जानकार है , इसलिए कहा कि आजकल ब्लोगिंग कर रहे है। लेकिन ये क्या ब्लोगिंग की सुनकर वो उल्टे मुझ पर भड़क उठे ! अरे ब्लोगिंग तो उन लोगो का काम है जिन्हें कोई काम नही होता,और उन्हें छपत की बिमारी होती है । मैंने कहा ऐसी बात नही है, आजकल ब्लोगिंग में बहुत अच्छा साहित्य और पत्रकारिता लिखी जा रही है । फ़िर जनाब जरा ऊँचे स्वर में बोले- अरे छोडो ये ब्लोगिंग वाले क्या जाने साहित्य लिखना और पत्रकारिता करना । जिनकी रचनाये किसी पत्र-पत्रिका में नही छपी तो वो ब्लॉग पर अपनी रचना पोस्ट कर साहित्यकार हो गया, जिन्हें किसी सनचार पत्र या न्यूज़ चेनल वालो ने किसी काम का नही समझा वो ब्लॉग पर पत्रकार बन गया। मैं खूब समझता हूँ इन ब्लोगेर्स को दो चार लेने लिख कर अपने आप को जाने क्या समझते है । एक तो इन्हे पढता ही कौन है ? सरे ब्लोगेर्स एक-दुसरे की रचनाओ पर झूठी टिप्पणिया देते है , वो इसलिए ताकि ताकि कोई उनके ब्लॉग पर आकर अपनी तारीफ के जवाब में एक अच्छी सी टिप्पणी कर जाए। बस सरे फुर्सतियो की फौज है ब्लोगिंग । हुंह कोई काम नही तो ब्लोगेर बन जाओ । तुम भी किस चक्कर में पड़े हो , अपने काम में मन लगाओ ।
रही बात तुम्हारी कविताओ और अभिव्यक्ति की तो छोडो भी , क्या रखा है हिन्दी साहित्य में ?
प्रेमचंद भी भूख से मर गए ! क्या दिया उन्हें हमने जिन्दा रहते हुए ? जिन्दगी मर दूसरो की पीड़ा लिखते रहे पर कभी उनकी पीड़ा को कोई समझा ?
लिखना है तो dear english में likho कहाँ हिन्दी के चक्कर में हो एक पैसे का munafa नही होने wala ।
चूँकि we मुझसे umra में बड़े थे , इसलिए उनसे कुछ नही कह paya पर मन में बहुत baicheni हो रही थी । सोचा aapse ही अपनी पीड़ा bant loo !

बुधवार, 15 जुलाई 2009

चुपके-चुपके भाग -१

चुपके-चुपके-१
गली से गुजरा तुम्हारी, मैं एक शाम चुपके-चुपके
दिल को बैचैन कर गई, तुम्हारी मुस्कान चुपके-चुपके
तुम्हारी मुस्कुराहटों ने घायल कर दिया, इस संगदिल को
बना लो हमे अपना सनम , होगा तुम्हारा एहसान चुपके-चुपके
कब तुम ओगी, है इंतजार इस दिल-ऐ-महफ़िल को
पलके बिछाए खड़े है हम, बन जाओ मेरे मेहमान चुपके-चुपके
आंखे थकने न पाए ,कुछ तो तरस आए मेरी मंजिल को
बता दो कि कब पुरा करोगी , मेरा ये अरमान चुपके-चुपके
राह-ऐ-मोहब्बत के सफर में बन जाओ हमसफ़र तुम
बनके हमदम ,हम दे देंगे तुम्हारी खातिर जान चुपके-चुपके
जिन्दगी में मेरी आकर दे देना एक डगर तुम
बाकि न रहेगा कुछ जिन्दगी में ,होगा एक मुकाम चुपके-चुपके
हालत क्या है हमारे, डाल देना एक नज़र तुम
इंतज़ार तेरी खुशबू का इस "चंदन" को, महकेगा सारा जहाँ चुपके-चुपके
इस रचन में आपने एक लड़के की ख्वाहिश और गुजारिश देखि है , मगर उसकी प्रेमिका का जबाब भी उसे बड़े जोरदार तरीके से मिलता है। प्रेमिका का जबाब मैं आपको अगली पोस्ट में इस शर्त में लिखूंगा की ये रचना आपको पसंद आई इसका प्रमाण आपकी टिप्पणियों से जरुर मिलेगा , इसी आशा के साथ आपका हर बार की तरह स्नेहिल मुकेश पाण्डेय "चंदन"

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

छोटू

बड़ी बेपरवाही से, आवाज़ आई , क्यो बे छोटू
बाल मन गिलास धोये, या जूठे बर्तन समेंटू
हर नुक्कड़,हर चौराहे, हर चाय की दूकान पर
बर्तन मांजते, डांट सुनते बाज़ार या मकान पर
ग्राहकों की झिड़की और मालिक की डांट
खाली गिलासों सी जिन्दगी, जूठन में कहाँ ठाठ
हर ढाबे-दूकान में पिसता छोटू का मासूम बचपन
मासूमियत खोयी, बस बचा कप-प्लेट और जूठन
कब तक मिलेंगे ये छोटू, चाय बेचते, कचरा बीनते
आख़िर क्यों ? हम उनका बचपन छीनते
छोड़ के पाठशाला, कब तक बनेंगे जिन्दगी के शिष्य
सोच लो ! ये छोटू ही कल बनेंगे देश का भविष्य
आपका अपना ही मुकेश पाण्डेय "चंदन"

सोमवार, 13 जुलाई 2009

प्रेम मर रहा है !

आज क्षितिज सा हुआ प्यार
बस भ्रम मिलन का बचा संसार
गगन छू रहा है बसुधा को
पर यथार्थ विरह है सर्वदा को
अब बची कहाँ प्रतीक्षा मिलन की
बस क्षुधा ही क्षुधा है तन की
दूषित हो चुकी है हर भावना
कहाँ है पवित्रता की सम्भावना
नही है यहाँ विरह की वेदना
मर चुकी जहाँ प्रेम की संवेदना
प्रिय की कमी नही है जीवन में
कमी है तो प्रेम की हर मन में
प्रेम मर रहा ही कोई सुने पुकार
बस भ्रम मिलन का बचा संसार
आपका अपना मुकेश पाण्डेय "चंदन "

रविवार, 12 जुलाई 2009

गरीब की बेटी

न तन पर है पूरे कपड़े, न खाने को है रोटी
क्योंकि मैं हूँ एक गरीब की बेटी
सारी इच्छाए मेरी अधूरी रह गयी
गरीबी, मेरे सपनो की दूरी बन गयी
मेरे पास भी है, इच्छायों अ अनंत आकाश
मेरे भी है कुस्छ सपने, है कुछ करने की आस
काश, मैं भी किसी बड़े घर में पैदा होती
न तन पर है पूरे कपड़े , न खाने को है रोटी
हर जगह निगाहें, तन को है तरेरती
पर मदद के वक्त, आंखे है फेरती
न जाने क्यों किया, ये अन्याय उसने मेरे साथ
दे दिया जीवन , पर कुछ भी नही है मेंरे हाथ
दुनिया बड़ी जालिम है, न जीने न मरने देती
क्योंकि मैं हूँ एक गरीब की बेटी
आपका ही मुकेश पाण्डेय "चंदन"

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

समलैंगिगता की भयावहता और भविष्य

सभी बुद्धिजीवियो को जय राम जी ,
अरे भाई जब से दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिगता पर अपना निर्णय क्या दिया पुरे देश में हल्ला हो गया , सरे न्यूज़ चैनल , अख़बार बस इसी को लेकर बहस जरी किए है । मुस्लिम संगठनो ने इसे इस्लाम विरोधी बताया तो संघ परिवार इसे भारतीय परम्पर के खिलाफ घोषित कर रहा है । बाबा राम देव भी इसके खिलाफ मोर्चा खोले बैठे है । अब तो सुप्रीम कोर्ट में भी इसके खिलाफ याचिका दायर हो गई है। अब जब चारो तरफ़ इसी का बोल बाला है तो मैंने सोचा क्यों न मैं भी अपनी तुच्छ बुद्धि से कुछ विचार प्रगट करू ।
समलैंगिगता कुछ मानसिक रूप से विकृत लोगो का शौक है। कुछ लोग कहते है कि समलैंगिग लोग जन्मजात ही होते है इसलिए इसे मान्यता देनी चाहिए । मेरे ख्याल से ये प्रक्रिया कुदरती तो बिल्कुल नही है , क्योंकि प्रकृति ने ऐसी कोई व्यवस्था नही की। और तो और जानवर भी इस तरह का व्यवहार नही करते यानि समलैंगिक लोग जानवरों से भी गए गुजरे है ! खैर कुछ लोग ऐसा चाहते है , इसलिए उसे कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए ये कोई तर्क नही है , क्योंकि कुछ लोग तो अपराध और आतंकवाद भी फैलाना चाहते है , तो क्या उन्हें भी कानूनी मान्यता दे दी जानी चाहिए ?
अब जनाब ! सोचिये अगर भविष्य में संलैंगिगता को कानूनी मान्यता मिल गई तो कैसे कैसे नज़ारे होंगे ।
१.एक पिता बड़ी मुश्किल से पैसे जुटा के अपने एकलौते बेटे को पढने किसी बड़े शहर भेजता है। जब बेटा पढ़ाई पुरी कर के वापस लौटता है तो उसके साथ एक लड़का भी आता है , तो पिता पूछता है - बेटा ये तुम्हारा दोस्त है क्या ?
बेटा- नही पिताजी ये आपकी बहू है। मैंने और इसने शादी कर ली है !

२.एक पिता अपनी एकलौती लड़की की शादी के कई सपने संजोये बैठा है। उसने कई जगह रिश्ते तलासने शुरू कर दिए है । एक जगह बात पक्की होती है । अब लड़के वाले लड़की देखने आते है। लड़की ने शादी से इनकार करदिया ! कारन पूछने पर बताया की वो अपनी एक सहेली को प्यार करती है , और उसी से शादी करेगी !!

३.एक आदमी की पत्नी अपने पति से तलाक लेना चाहती है। जब वकील ने तलाक लेने का कारन पूछा तो उसने बताया की उसके पति को उसमे कोई दिलचस्पी नही है , क्योंकि वो समलैंगिक है !

४.लड़कियों को नै परशानी शुरू हो गई , अब उन्हें लड़के न तो देखते है और न ही छेड़ते है ,क्योंकि अब उन्हें अपने पुरूष दोस्तों से ही अपनी इच्छा की पूर्ति हो रही है । हाँ कुछ लड़को ने जरुर अपने पुरूष दोस्तों को आकर्षित करने के लिए सजना संवरना शौर कर दिया है !

५.केन्द्र सरकार सन २०२१ की जनगणना के नतीजो से चिंतित है। क्योंकि देश की आबादी अब बढ़ने की वजाय घट रही है ! देश में परिवार नामक सामाजिक संस्था अब धीरे धीरे लुप्त हो रही है। देश में समलैंगिको की बढती आबादी देश की आबादी घटने की सबसे बड़ा कारन है ।

ये मेरे अपने विचार है , आपका इनसे सहमत होना बिल्कुल जरुरी नही है । मगर अपने विचार भी जरुर प्रस्तुत करे ........आपका ही मुकेश पाण्डेय "चंदन"

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

मोबाईल सस्ते हो गए! अब होंगे ऐसे नज़ारे .......

नमस्कार दोस्तों,
आप ने भी बजट में ये देखा-पढ़ा होगा की मोबाईल सस्ते हो गए है । अब वैसे ही भारत में घर घर मोबाईल नामक बला पहुच गई है .(मोबाईल प्रेमियों से क्षमा ) लेकिन अब नए बजट के अनुसार और मोबाईल सस्ते होने से कुछ नए नज़रो से दो चार होना पड़ सकता है । जैसे -
१.
भिखारी - मेमसाब दो दिन से भूखा हूँ , कुछ खाने को देदो ...
मेमसाब- अभी खाना नही बना है ।
भिखारी- कोई बात नही मेमसाब आप मेरा मोबाईल नंबर ले लीजिये , जब खाना बन जाए तो मिस्ड काल कर देना ।
२.
एक भिखारी मोबाईल पर दुसरे से क्यो भाई हनुमान मन्दिर में ज्यादा भीड़ नही है , यार तू बता मजार पे आज धंदा कैसा चल रहा है।
दूसरा भिखारी यार आज जुम्मा है , मजार पर धंदा मस्त चल रहा है । तू अगर फुर्सत मेंहै तो यहाँ आजा मुझे पैसे गिनने के लिए एक असिस्टेंट की जरुरत है। मंगल को मैं तुम्हारे यहं आ जाऊंगा ।

रविवार, 5 जुलाई 2009

एक अजब मुग़ल बादशाह की गजब कहानी !!

नमस्कार मित्रो,
अपने रोचक इतिहास श्रृंख्ला के तहत मैं फ़िर हाजिर हूँ, आज मैं आपको एक मुग़ल बादशाह की रोचक दास्तान बताना चाहता हूँ। हाँ बही मुग़ल बादशाह जिसमे सबसे पहले बाबर जो अपने दोनों हाथो पर दो सैनिको को लटका के किले की बुर्ज पर दौड़ लगा सकता था । उसका बेटा हुमायूँ जो दर-दर की ठोकरे खता रहा और आख़िर में पुस्कालय की सीढियो से ठोकर खा के गिर के मर गया। मगर हुमायूँ का बेटा अकबर हिंदुस्तान का ही नही सारी दुनिया का महानतम शासको में से एक था। अरे भाई हाँ वही अकबर जिसके दरवार में बीरबल, तानसेन जैसे नवरत्न थे। बिल्कुल सही पहचाना आपने जोधा-अकबर वाला । उसका बेटा जहागीर जिसकी बेगम नूरजहाँ थी , क्या कहा आपने ? अरे भाई अनारकली का इतिहास में कोई जिक्र नही है , वो तो मुग़ल-ऐ-आज़म वाले के० आसिफ की कल्पना थी । जिसके नाम से लाहौर में कब्र और बाज़ार भी है। सलीम का बेटा शाहजहाँ हुआ । जी हाँ अबकी बार आप सही है मुमताज और ताजमहल वाला ही । फ़िर औरंगजेब ने अपने बाप को कैद कर गद्दी हथिया ली।
ओफ्फो ! ये कहाँ एक अजब मुग़ल की कहानी सुनानी थी , मगर मैं तो पुरे खंडन को लेके बैठ गया । माफ़ करना जनाब भूल इन्शानो से ही होती है । हाँ तो अपनी बात शुरू होती है सन १७२१ और १७४८ ई० के बीच क्योंकि यही इन मुग़ल बादशाह का शासन काल था । इनका नाम था मुहम्मद शाह लेकिन इनके रंगीन मिजाज के चलते इतिहासकार इन्हे मुहम्मद शाह रंगीला के नाम से जानते है । तो बादशाह का अधिकांस वक्त अपने हरम में बीतता था । इनका हरम भी मीलो में फैला हुआ था , जब बादशाह हुजुर अपने हरम में तशरीफ़ लेट तो महीनो बाद ही निकलते थे । इनके हरम में पुरुषों को जाने की मनाही थी । हाँ महिलाये और हिजडो को जाने में कोई रोक टोक नही थी । बादशाह हुजुर इतने आशिक मिजाज थे की दिल्ली शहर में अगर को महिला इन्हे पसंद आ जाए तो उसे उठवा के अपने हरम में ले आते थे । इनसे ट्रस्ट हो कर दिल्ली की जनता ने महिलाओ ऐ घर से जाने पर रोक लगा दी , अगर महिलाये बहार जाती भी थी ,तो हिंदू महिलाये लंबा घूंघट और मुस्लिम महिलाये बुरका पहनती थी । दिल्ली के सरे घरो की दीवारे ऊँची कर दी गयी थी ताकि बादशाह या उनके लोग घरो में तक झांक न कर सके । बादशाह को महिलाओ और हिजडो का साथ अधिक पसंद था ।
बादशाह का मन राज काज में बिल्कुल नही लगता था , देश तो अल्लाह के भरोसे था । बचा खुचा काम बादशाह के वजीर और सिपहसालार कर देते थे। मुहम्मद शाह रंगीला के समय ही भारत पर इरान के आक्रमणकारी नादिरशाह का हमला १७३९ में हुआ । नादिरशाह ने दिल्ली को खूब लूटा और बेशकीमती हीरा कोहिनूर लूट के ले गया । बादशाह रोते रह गए । नादिरशाह के सेनापति अहमदशाह अब्दाली ने भी भारत पर कई हमले किए जो १७६१ तक चलते रहे । मुग़ल बादशाह बस हाथ पर हाथ धरे देखते रहे ..................और इस तरह भारत गुलामी की राह पर चल पड़ा।
अब इन मुग़ल बादशाहों पर शर्म या गर्व करना आपके ऊपर छोड़ता हूँ । अगली बार फ़िर कोई इतिहास के पन्नो से नै रोचक कहानी लूँगा तब तक के लिए आपकी प्रतिक्रियाओ के इंतजार में आपका ही
मुकेश पाण्डेय "चंदन "

शनिवार, 4 जुलाई 2009

आंसू बहाता बादल

देख के आज के हालत, आंसू बहाता बादल
सीना छलनी कर धरा का,पानी के कतरे जमाता बादल
खोद-खोद धरती को , सारा पानी बहा दिया
था जो जीवन का आधार, उसे ही ढहा दिया
अब खली रुई के फाहों से बरसने की आशा करते हो
था जब पानी, खूब बहाया, अब प्यासे मरते हो
कभी मैं देख धरा की खुशहाली , खुशी के आंसू बहाता
नही बचा है ,अब उतना पानी, सोच के दिल घबराता
अभी समय है, संभलो, बचा लो जीवन की बूँद
बाद में पछताओगे, मर जाओगे जीवन को ढूंढ
उठो, जागो, कुछ करो, तुम सबको जगाता बादल
देख के आज ke haalaat , आंसू बहाता बादल

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

गाँधी जी के अन्तिम दिन !

प्रिय ब्लोगरिया दोस्तों,
अपने रोचक इतिहास श्रंखला के अर्न्तगत आपको गाँधी जी के अन्तिम दिनों की कुछ ऐसी बातो को बताना चाहता हूँ जो सामान्यतः लोगो को नही पता है। गाँधी जी की राष्ट्रिय आन्दोलनों में सविनय अवज्ञा आन्दोलन की असफलता के बाद भूमिका कम हो गई थी। भले ही आम आदमी के लिए महात्मा जी बहुत बड़े नेता थे , मगर कोंग्रेस के बड़े नेताओ ने उन्हें तवज्जो देना बंद कर दिया था। हाँ वे सार्वजानिक मंचो पर गाँधी जी को आगे रखते थे , क्योंकि लोगो पर उनकी अभी भी मजबूत पकड़ थी। हम कुछ उदाहरणों से इसे समझ सकते है -
१- कांग्रेस के त्रिपुरी सम्मलेन में सुभाष चन्द्र बोस गाँधी जी के समर्थित प्रत्याशी पुत्ताभी सीतारमैया के खिलाफ कांग्रेस के अध्यक्ष पद हेतु खड़े हुए, जबकि वे इससे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष थे।
२- तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड वेवेल ने गाँधी जी को ७५% राजनेता, १०% संत और ५ % चिकित्सक कहा।
३- ब्रिटेन के प्रधान मंत्री बिस्तान चर्चिल ने दूसरे विश्व युद्ध के समय कहा की हम जब सारे विश्व में जीत रहे है तब एक बूढे के सामने हार नही मान सकते है ।
४- शिमला समझौते (1945) के समय गवर्नर जनरल ने भारत के सभी प्रमुख नेताओ को बुलाया मगर गाँधी जी के शिमला में रहते हुए भी नही बुलाया गया। जो उनकी तत्कालीन प्रभाव को दर्शाता है ।
५- हिंद-पाक विभाजन को रोकने के लिए जब गाँधी जी जिन्ना से मिलने गए तो जिन्ना ने कहा की आप किस हैसियत से मुझसे मिलने आए है , आप तो कांग्रस के चवन्निया सदस्य भी नही है ।
६- गाँधी जी जब कांग्रेस के नेताओ से तंग आ गए तो उन्हें मजबूरी में कहना पड़ा की - " मैं देश की बालू से कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोलन खड़ा कर सकता हूँ।
७- देश की आज़ादी के समय जब सारा देश जश्न मना रहा था , तो देश का ये अधनंगा फ़कीर नोआखाली में हिंदू-मुस्लिम दंगो को शांत करने के लिए प्रयास कर रहा था।
इस तरह और भी उधाहरण है की देश के लिए अपना सब कुछ लुटा देने वाला यह अहिंसा का पुजारी कांग्रेस के कुछ महत्वकांक्षी नेताओ की महत्वकांक्षा की भेंट चढ़ गया। खैर आज हम अपने देश के एक महान आत्मा को सिर्फ़ १५ अगस्त, २ अक्तूबर और २६ जनवरी को याद कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है। जबकि जरुरत है हमें उनके सिद्धांतो और जीवनचर्या को अपने जीवन में अपनाने की। आज भी गाँधी उतने ही प्रासंगिक है , जितने तब थे । आइये इस महापुरुष को उसका सही स्थान दिलाये......

मुझे इन्तजार रहेगा आपकी प्रतिक्रियाओ का ...........
आपका अपना ही मुकेश पाण्डेय "चंदन"

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

एक रोचक आन्दोलन

ब्लोग्स्कार,
इतिहास बहुत लोगो को बोर करता है, इसलिए इतिहास का छात्र होने के नाते सोचा की आप लोगो को इतिहास की कुछ रोचक जानकारियो से रु-ब-रु करू । इसी श्रंखला की पहली कड़ी में मैं आपको सविनय अवज्ञा आन्दोलन की कुछ रोचक जानकारियां देना चाहता हूँ। जी हाँ , वही सविनय अवज्ञा आन्दोलन जिसमे गाँधी जी ने दांडी यात्रा करते हुए नमक कानून तोडा था । इस आन्दोलन में गाँधी जी के कहने पर सारे देश में लोगो ने स्वदेशी वस्त्र अपनाना शुरू कर दिया । लेकिन एक रोचक घटना बिहार की छपरा जेल में हुई , वहां कैदियो ने अंग्रेजो द्वारा दिए विदेशी वस्त्रो को पहनने से इनकार कर दिया और निर्णय किया की जब तक उन्हें देशी वस्त्र नही दिए जायेंगे तब तक वे नंगे ही रहेंगे । जी हाँ वे कैदी देशी वस्त्र मिलने तक कई दिनों तक नंगे रहे , जब उन्हें देशी वस्त्र मिले तभी उन्होंने कपड़े पहने । इसे इतिहास में नंगी हड़ताल के नाम से जाना जाता है ।
तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड इर्विन से हुए समझौते के अनुसार गाँधी जी एस -राजपुताना जहाज से द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने लन्दन के लिए रवाना हुए , गाँधी जी अपने साथ एक बकरी ले गये थे, क्योंकि वे गाय और भैंस का दूध न पीने का संकल्प लिए थे । और दूसरी और इसी सम्मलेन में भाग लेने हिंदू महासभा की और से पंडित मदन मोहन मालवीय जी अपने साथ एक बड़े से कलश में गंगा जल और अलग चूल्हा ले गए थे , ताकि वे अपवित्र न हो जाए । इतिहास करो ने इसे शिव की बारात कहा था ।
इस तरह के इतिहास में कई रोचक प्रसंग है , जो सामान्यतः लोगो की जानकारी में नही है , अगर आपकी अच्छी प्रतिक्रियाए मिलती है , तो आगे भी मैं इसी तरह इतिहास के कई रोचक पहलुओ को आपसे रु-ब -रु करता रहूँगा ।
खैर सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने अंग्रेजो की नाक में दम कर दिया था , इसकी गवाही धरसना की महिलायों के साहस से पता चलता है । आज इतना ही बाकि अगली बार के लिए ..............जय जय

orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...