बुधवार, 25 नवंबर 2015

जटाशंकर और भीमकुण्ड की रोमांचक यात्रा



जटाशंकर और भीमकुण्ड की रोमांचक यात्रा
नमस्कार मित्रो,
बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर पोस्ट लिखने का मन हुआ है. कारण कार्य की व्यस्तता और फेसबुक उन्मुखी होना रहा है।  खैर अब सीधे मुद्दे पर आते है। जटाशंकर और भीमकुण्ड मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले  में खूबसूरत , प्राकृतिक धर्मस्थल है .एक साल पहले  इन स्थानों के बारे में प्लान मेरे मित्र योगेन्द्र राय के मेरे पदस्थापना स्थल टीकमगढ़ आने से बनता है. जटाशंकर और भीमकुण्ड के बारे में  सागर में  लोगो से सुना था, पर अब जाने का विचार हो पाया।   रविवार के दिन टीकमगढ़ से बाइक से  हमारे जाने का कार्यक्रम पक्का होता है. जाने से पहले छतरपुर जिले के  रहने वाले टीकमगढ़ में मेरे पडोसी विशाल मिश्रा से रास्ते और दर्शनीय स्थलों  जानकारी पता की और चल पड़े हम दोनों बाइक यात्रा पर ..
मैं और योगेन्द्र मेरी बाइक बजाज डिस्कवर से टीकमगढ़ से टीकमगढ़-छतरपुर मार्ग पर चल पड़े. लगभग 100  किमी चलने के बाद जब छतरपुर लगभग 10 किमी रह जाता है ,  हम बिजावर रोड पकड़ते है , इस रास्ते पर आते ही सड़क के दोनों और घना जंगल शुरू हो जाता है।  चारो तरफ मनमोहक हरियाली छाई  है।  चलते चलते हमें सियार , नीलगाय , मोर  आदि वन्य जीवो  भी दर्शन होते है।  बिजावर से जटाशंकर और भीमकुण्ड दोनों विपरीत दिशाओं में 28 किमी की दुरी पर है।  हम लोगो  पहले जटाशंकर जाने का  फैसला किया और चल पड़े जटाशंकर की ओर।  बिजावर से जटाशंकर तक सड़क अच्छी हालत में है. रोडवेज  की बहुत बसें जटाशंकर तक जाती है।  रास्ते में जंगल घना ही मिला .....हरियाली और रास्ते की खूबसूरती के बीच हम दोनों दोस्त मस्ती भरे अंदाज़ में अपनी बाइक चला  रहे थे, तभी अचानक पास  झाड़ी से कोई जानवर सन्न से हमारी बाइक के सामने  से सडक  दूसरी  तरफ निकल गया।  हमें अचानक बाइक के ब्रेक लगाने पड़े ।  कुछ दिन पहले  क्षेत्र में तेंदुआ होने की खबर अख़बार में पढ़ी थी।  हमें लगा हो न  हमारे सामने से तेंदुआ ही गुजरा हो , ये  सोचकर हमारी हालत  ख़राब हो गयी।  फिर एक लम्बी सांस लेकर हमने कुछ हिम्मत जुटाकर जानवर  भागने की दिशा  देखने का निश्चय किया।  उस दिशा में देखा अभी भी झाड़ियों में पत्तों की सरसराहट हो रही थी , ध्यान से देखने पर पता चला कि भागने वाले श्रीमान सियार जी थे।  ये देखकर हम दोनों खूब हँसे  . फिर पानी की बोतल निकालकर पानी पीया  फिर आगे बढे. आगे चलने पर हिरन,नीलगाय, लंगूर, बन्दर  और मोर भी दौड़ते भागते नजर आये .
                                  खैर अपनी मंजिल जटाशंकर पर हम पहुंच  गए।  मंदिर ऊपर पहाड़ी पर बना हुआ .  पहाड़ी की  तलहटी में ही सीमेंटेड सड़क बनी है , जिसके किनारे प्रसाद , फूल-मालाओं की दुकाने बनी  हुई है. मध्य प्रदेश पर्यटन निगम की ओर से पर्यटक धर्मशाला बनी हुई है।   पुलिस चौकी भी दर्शनार्थियों की  सहायता हेतु  बनी है।  ऊपर शिवमंदिर तक जाने के लिए पक्की सीढियाँ बनी है।  हम लोगो ने प्रसाद ख़रीदा   ( मावा का बना कलाकंद ) और फूलमाला खरीदी ,हेलमेट और जूते उसी दुकान पर रखे।  सीढ़ियों के दोनों तरफ पहाड़ी के शानदार नज़ारे थे।  आधी पहाड़ी चढ़ने पर एक बड़े कुण्ड के  दर्शन हुए जो कि एक स्विमिंग पूल की तरह लग रहा था।  इस कुण्ड का स्रोत पहाड़ी के ऊपर से आ रहा झरना था।  कुण्ड के आगे टीन शेड लगा , जहाँ बहुत से पण्डे लोगो को बिठाल कर पूजा करा रहे थे।  इसके आगे भगवान जटाशंकर का  शिवलिंग स्टील की रेलिंग से घिरा था। उसके पास  ही तीन  छोटे छोटे कुण्ड बने थे।  इन तीनो पवित्र कुंडों को त्रिदेव ब्रह्मा , विष्णु  और महेश का प्रतीक माना जाता है. लोग इन कुंडों के पास बैठकर स्नान कर रहे थे।  इनमे महिलायें भी शामिल थी।   कुण्ड के पास ही झरना गिर रहा था,  इसी झरने  का पानी आगे कुण्डों में जा रहा था।  झरने के  गिरने वाले स्थान पर पीतल की गाय का सिर लगा था , जिसे शायद गौमुख के रूप में लगाया गया होगा।  झरने में भी लोग नहा रहे थे , खास तौर  पर बच्चे खूब मस्ती कर रहे थे।  फिसलन से बचने के लिए रेलिंग और जाली लगी थी।  हम दोनों ने भी झरने और कुण्ड में खूब नहाया।  फिर भगवन जटाशंकर के दर्शन किया।  अभी पहाड़ी ख़त्म नही हुई थी , इसलिए जिज्ञासावश दोनों ऊपर की और बढ़ चले।  ऊपर पहाड़ी की चोटी पर कई  दुकाने  थी, जिन पर प्रसाद ,  खाने -पीने  की दुकाने थी . हमने भी एक  दुकान पर समोसा , भजिया  खाया।  दुकान पर  पूछताछ करने पर पता चला कि इस स्थान पर भगवान शिव ध्यान करने आते थे , मगर अब यहाँ से कुछ दूर जंगल में  ध्यान लगाते है. पहाड़ी के दूसरी ओर  पक्की सड़क बनी है. जबकि दोनों पहली ओर से इतनी सीढियाँ चढ़कर आये ! अफ़सोस हो रहा था , कि अगर हमें भी दूसरा रास्ता पता होता तो इतनी मेहनत बच जाती।  अब उतनी ही सीढियाँ उतरनी पढ़ेगी।   दुकानों के पीछे एक छोटा सा मंदिर था , जहाँ एक बाबा अपना आश्रम बनाये थे।  बाबा के पास एक बैल था , जिसके तीन सींग थे,  जो बिलकुल त्रिशूल की तरह लग रहे थे।  खैर हम  बापिस लौटे क्योंकि हमें भीमकुण्ड भी जाना था। उसके बाद  बापिस टीकमगढ़ लौटना था।   भीमकुण्ड ( जहाँ डिस्कवरी चैनल ने भी शूटिंग की है , पर रहस्य पता नही कर पाये ) की यात्रा अगली पोस्ट में …




जटाशंकर के पहले एक मंदिर का खूबसूरत द्वार मिला





एक खूबसूरत गांव जो तालाब किनारे पहाड़ी पर बसा था



जटाशंकर की पहाड़ी का प्रवेश द्वार


जरा पास से देखिये द्वार की खूबसूरती 


पहाड़ी के बीच  मिला एक बड़ा कुण्ड














बड़े कुण्ड के आगे टीनशेड के अंदर पंडित जी यजमानों के इंतजार में




झरने के यहां बना गौमुख 





पवित्र कुण्ड  स्नान करते श्रद्धालु



 बड़ी मुश्किल से रेलिंग से घिरे शिवलिंग की स्पष्ट तस्वीर ले पाया 



तीन सींग वाले नंदी के साथ बाबा जी 






















orchha gatha

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