शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

मोबाइल और आजकल का बचपन



मोबाइल अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जिसका हिंदी अर्थ 'गतिशील' होता है। मगर आज मोबाइल फोन के लिए रूढ़ हो चुके शब्द 'मोबाइल' ने आजकल के बच्चों को गतिहीन कर दिया है । अब बच्चों में बचपना बचा ही नही । पैदा होते ही उन्हें खेलने के लिए मोबाइल सौंप दिया जाता है, जो उनके बचपन को ही लील जाता है । 

आज लगभग हर भारतीय परिवार जिनमें छोटे बच्चे है, उनमें बच्चों को मोबाइल की लत आम है । इसका सबसे बड़ा कारण स्वयं अभिभावक ही है । माताएं अपने घरेलू कार्यों के बीच बच्चों का मन बहलाने के लिए मोबाइल पकड़ा देती है, शुरू-शुरू में तो उन्हें यह आदत बड़ी राहत देती है । मगर अब बच्चों को हर समय मोबाइल चाहिए । उनकी दिन भर की सारी गतिविधियों में मोबाइल अनिवार्य हो जाता है, और समस्या यही से शुरू होती है । खाते समय मोबाइल, पढ़ते समय मोबाइल, खेलते समय भी मोबाइल । खेल भी मोबाइल गेम वाले खेल हो गए है । अब यूपीआई और पेमेंट एप्प के कारण इन गेम से खेलते समय कई बार बच्चे हजारों रुपये इन गेम भी खर्च कर देते है, अभिभावकों को जब पता चलता है, तब तक एक बड़ी रकम खर्च हो चुकी है । पबजी गेम के कारण बच्चे आक्रामक और चिड़चिड़े होने लगे थे, तो एक कदम आगे बढ़ते हुए ब्लू व्हेल गेम के कारण तो बच्चे आत्महत्या तक करने लगे थे । मजबूरन कई देशों को इन मोबाइल गेम पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना पड़ा । 

मोबाइल फोन से हानिकारक रेडिएशन किरणें निकलती है, जो न केवल शरीर को हानि पहुँचाती है, बल्कि मस्तिष्क पर भी बुरा असर डालती है । बच्चों के मानसिक स्तर को प्रभावित करती है । शुरू शुरू में बच्चा चिड़चिड़ा और जिद्दी होता है, बाद में वो पागलों जैसी हरकतें करने लगता है । मोबाइल न मिल पाने पर वो घर के सामान की तोड़-फोड़ भी करने लगता है । 

अब अभिभावक इस समस्या से निजात कैसे पाये ? क्योंकि आज हमारे दैनिक जीवन में मोबाइल जरूरत नही मजबूरी बन गया है । इसके बिना आज के जीवन की कल्पना नही की जा सकती है । नौकरी और व्यवसाय भी मोबाइल के माध्यम से चल रहे है।  पैसे का लेन-देन भी मोबाइल के माध्यम से हो रहे है । यहाँ तक बच्चों के होमवर्क भी स्कूल वाले मोबाइल पर ही भेजते है । तो आज मोबाइल से बच्चों को दूर करना तो असंभव है, लेकिन हम अपनी निगरानी में बच्चों के मोबाइल उपयोग को सीमित कर सकते है । बच्चों के मोबाइल प्रयोग का समय निश्चित कर दें । उन्हें इकट्ठा लंबे समय के लिए मोबाइल न देकर थोड़े-थोड़े समय के लिए मोबाइल दे सकते है । उनके मोबाइल इस्तेमाल के समय अभिभावकों की निगरानी जरूरी है, ताकि हमें पता रहे कि बच्चे मोबाइल पर क्या कर रहे है । बच्चों को मोबाइल देते समय उसे चाइल्ड मोड (आजकल लगभग सभी स्मार्ट फोन में यह फीचर आता है ।) में करके दें । इसके अलावा पेमेंट वाले एप ऐसे पासवर्ड से लॉक कर दें, जिसके पासवर्ड बच्चे उपयोग नही कर पाये । जैसे फिंगर प्रिंट या फेस लॉक कर सकते है । सोशल मीडिया वाले एप पर उनका अकाउंट कम से कम 15 वर्ष के होने के बाद ही बनाये । अपने सोशल मीडिया के अकाउंट वाले एप लॉक रखे । पासवर्ड में पैटर्न या पिन की जगह फिंगरप्रिंट या फेस लॉक रखे ताकि आपकी जानकारी के बगैर किसी एप का इस्तेमाल न हो । बच्चों को आउटडोर गेम खेलने तो प्रेरित करें, हो सके तो उनके साथ भी खेले । समय-समय पर उनके साथ घर से बाहर घूमने जाए । घर पर भी उन्हें पर्याप्त समय दें, उन्हें कहानियां और किस्से सुनाए । उनकी बातें सुने, उनकी स्कूल की गतिविधियों को सुने, अपने स्कूल के अनुभव भी उन्हें सुनाये । जब आप घर पर हो तो खुद भी मोबाइल का कम से कम इस्तेमाल करें । रात को खाने के समय से लेकर सुबह तक यदि बहुत जरूरी न हो तो मोबाइल का प्रयोग न करें । मोबाइल में सीमित और उपयोगी एप रखे । गेम और टिकटोक सरीखे एप न रखे । बच्चों के लिए कामिक्स और किताबें पढ़ने की आदत डालें । रचनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने, जैसे चित्रकला, क्राफ्ट बनाना, गायन-वादन आदि कलाओं से जोड़े ताकि उनका फुरसत का समय उसमें व्यतीत हो । बच्चे जितना अधिक अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहेंगे वो उतना ही मोबाइल से दूर रहेंगे ।

उन्हें ये आदत डालें कि मोबाइल का उतना ही इस्तेमाल करें, जितनी जरूरत हो ताकि मोबाइल लत न बन पाये । हालांकि इसके लिए अभिभावकों को भी अपनी मोबाइल से जुड़ी आदतें कम करनी होगी । 


orchha gatha

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