शनिवार, 14 सितंबर 2019

भेड़ाघाट का प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर !

नमस्कार मित्रों,
इस 17 जुलाई को जबलपुर उच्च न्यायालय एक केस के सिलसिले में जाना हुआ , उच्च न्यायालय से जल्दी फुरसत होने पर भेड़ाघाट की ओर रुख किया । हालाँकि पहले भी कई बार भेड़ाघाट स्थित धुंआधार जलप्रपात की खूबसूरती देखी है, लेकिन इस बार चौसठ योगिनी मंदिर जाना मुख्य उद्देश्य था ।
                                                                                     जबलपुर के पास स्थित भेड़ाघाट नर्मदा नदी के विहंगम जलप्रपात धुंआधार और संगमरमर की खूबसूरत चट्टानों के बीच बहती नर्मदा के खूबसूरत दृश्यों के लिए प्रसिद्द है । लेकिन भेड़ाघाट में एक प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर भी महत्वपूर्ण स्थल है । जिसकी जानकारी बहुत कम लोगो को होती है । पूरे भारत में कुछ ही प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर है, जिनमे से तीन मध्य प्रदेश में ही है । एक चौसठ योगिनी मंदिर मुरैना जिले के मितावली गांव में स्थित है । गोलाकार आकृति में बने इस मंदिर को भारतीय संसद के स्थापत्य की प्रेरणा कहा जाता है । मितावली स्थित चौसठ योगिनी मंदिर 9 वीं सदी में गुर्जर प्रतिहार शासक देवपाल गुर्जर में बनवाया था। इसके अलावा चौसठ योगिनी मंदिर, छतरपुर जिले में विश्व विरासत स्थल खजुराहो में भी चौसठ योगिनी का एक ध्वस्त मंदिर है। यह खजुराहो का सबसे प्राचीन मंदिर है, जो अब भी विद्यमान है। किन्तु यह अकेला ऐसा मन्दिर है जिसका आकार गोल न होकर आयताकार है। यह 9 वीं सदी में चंदेल शासकों द्वारा बनवाया गया था । ये तो हुए मध्य प्रदेश के चौसठ योगिनी मन्दिरो की बात अब मध्य प्रदेश के बाहर स्थित मंदिरों की बात करें तो उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट हीरापुर तथा बोलनगीर के निकट रानीपुर में हैं। इस तरह से देखा जाये तो पूरे भारत में कुल 5 प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर है । जिनमे 4 गोलाकार और 1 आयताकार आकृति में बने है । इन पांचों का निर्माण काल 9-10  सदी है । लेकिन सभी अलग अलग शासकों द्वारा बनवाये गये है । 
                                              आमतौर पर हिन्दू मंदिर वर्गाकार होते हैं और इनका विन्यास रेखीय होता है। अधिकतर मंदिरों में ईश्वर का मुख पूर्व दिशा की ओर होता है। दूसरी ओर गोलाकार योगिनी मंदिरों में ईश्वर का मुंह हर दिशा की ओर होता है। हालांकि, कुएं जैसी इन संरचनाओं का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर ही है। मंदिरों की आम पहचान गुम्बद, शिखर या विमान इन मंदिरों में नहीं हैं। वास्तव में इन मंदिरों की तो छत ही नहीं है। उड़ीसा के हीरापुर तथा रानीपुर के योगिनी मंदिरों की अंदरूनी दीवारों पर योगिनियों की प्रतिमाएं हैं, सभी का मुंह केंद्र में बने मंदिर की ओर है। मध्यप्रदेश के भेड़ाघाट और मितावली मंदिरों में सभी योगिनियों के अलग-अलग मंदिर हैं जिनकी छतें तो हैं परंतु वे सभी गोलाकार प्रांगण की ओर खुलते हैं। योगिनियों की प्रतिमाएं हीरापुर, रानीपुर तथा भेड़ाघाट के मंदिरों में अच्छी हालत में हैं। खजुराहो के मंदिर में केवल तीन प्रतिमाएं बची हैं, जबकि मुरेना के मितावली मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। 
                                                                            ये तो हुआ भारत में बने चौसठ योगिनी मन्दिरों के बारे में परिचय । अब हम बात करते है , अपनी चौसठ योगिनी मन्दिर की यात्रा की । उच्च न्यायालय के कार्य से मुक्त होते ही हम चल पड़े अपनी कार से भेड़ाघाट की ओर । मौसम भी सुहावना होकर हमारा साथ दे रहा था । बादल छाए हुए थे, और हवा चल रही थी । हम गूगल मैप की सहायता से मुख्य सड़क से न होकर गलियों से होकर भेड़ाघाट पहुँचे । कई बार गूगल महाराज पर गुस्सा भी आया कि कहां गलियों में भटका रहा है , लेकिन अंत भला तो सब भला । अभी मानसून आने में देरी थी , गर्मी अपने चरम पर थी , इसलिए भेड़ाघाट के धुआंधार जलप्रपात में पानी कम ही था । यहां एक बात बताना चाहूंगा कि भेड़ाघाट जगह का नाम है, जबकि नर्मदा नदी के जलप्रपात का नाम धुंआधार है । इस बार हमने रोप वे का प्रयोग करके नर्मदा के शानदार नजारे देखे । हालांकि जलप्रपात के भ्रमण के बारे में अगली पोस्ट में विस्तार से लिखूंगा । फिलहाल चौसठ योगिनी मन्दिर की यात्रा पर ही वापिस आते है । जलप्रपात देखने के बाद हम भेड़ाघाट शहर (कस्बा नुमा) की ओर आगे बढ़े । और एक पहाड़ी पर पत्थर की सीढ़ियां चढ़ कर हम चौसठ योगिनी मन्दिर पहुंचे । पसीने से लथपथ जब ऊपर पहुंचे तो वहां से नर्मदा नदी का दृश्य अद्भुत था । किसी ने बताया कि जल्दी दर्शन कर ले , अन्यथा मन्दिर बंद होने वाला है । उनकी बात मानते हुए हम मन्दिर के अंदर प्रवेश किये । गोलाकार आकृति में बने मन्दिर की बाहरी दीवालों पर चौसठ योगिनियों की अद्भुत प्रतिमाएँ बनी हुई है । यह देखकर दुख हुआ, कि सभी प्रतिमाएँ खण्डित है । कहानी वही मुस्लिम आक्रमण कारियों द्वारा इन प्रतिमाओं को खंडित किये जाने की । खैर योगिनियों की फ़ोटो लेने के बाद मन्दिर के बीचोबीच बने गर्भ गृह की ओर बढे । गर्भगृह के ऊपर लगा ध्वज बता रहा था, कि ये जाग्रत मन्दिर है, अर्थात यहां नियमित पूजा होती है । मतलब गर्भ गृह की मूल प्रतिमा खण्डित नही है । अंदर पहुँचे तो देखा गर्भ गृह में भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी पार्वती जी नंदी बैल पर सवार है । मन्दिर के पुजारी के अनुसार यह विश्व में इस तरह की एकमात्र ऐसी प्रतिमा है । मैंने भी कभी इस तरह नन्दी आरूढ़ उमा-महेश्वर की प्रतिमा देखी या सुनी नही है । सामान्यतः शिव मंदिर में शिवलिंग ही प्रतिष्ठित होते है । प्रतिमा भी बड़ी आकर्षक थी । शिव-पार्वती  के बगल में में ही कार्तिकेय और गणेश की प्रतिमाएं विराजमान थी, मतलब पूरा शिव परिवार ही विराजमान था।  
                                                                                   मन्दिर के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगे थे, और मन्दिर के अंदर की फ़ोटो न खींचने की मनाही वाली चेतावनी लिखी थी । चेतावनी पढ़कर मन मायूस हुआ , मगर एक कोशिश करने में क्या हर्ज है ?  यही सोचकर मैंने पुजारी जी से फ़ोटो खीचने के बारे में पूछा तो उन्होंने सीसीटीवी की पहुँच से बाहर होकर फ़ोटो खींचने की अनुमति दे दी । अंधा क्या चाहे दो आंखे ! हमने भी मोबाइल से ही जल्दी जल्दी कुछ फोटो ली । फिर भगवान को प्रणाम कर बाहर निकल आये । आज बड़ी पुरानी इच्छा पूर्ण हुई । अभी तक दो चौसठ योगिनी मन्दिर देख लिए एक खजुराहो वाला और दूसरा ये भेड़ाघाट का । अब मुरैना और ओडिसा के मंदिर बाकी है । 

चौसठ योगिनी मंदिर की बाहरी बनावट 
मंदिर के भीतरी प्रांगण में स्थित शिव मंदिर 
मंदिर के गर्भगृह में नंदी पर आरूढ़ शिव-पार्वती और बगल में उनका परिवार



योगिनी की खंडित खंडित प्रतिमा 
























मंदिर में स्थित शिवलिंग 














मंदिर के बाहर  मैं 
इस पोस्ट में इतना ही अगली पोस्ट में धुआंधार जलप्रपात के खूबसूरत नजारें देखेंगे।

रविवार, 2 जून 2019

ब्राह्मणों के गोत्रों की जानकारी




ब्राह्मणों की कहानी  अपनी एक पुरानी पोस्ट में ब्राह्मणों के बारे जानकारी दी थी, जिसे पाठकों द्वारा जबरदस्त प्रतिसाद मिला । मित्रों, आइये आज हम ब्राह्मणों के सभी गोत्रों के विषय में जानने का प्रयास करें ।।

गोत्र ज्ञान -  गोत्र सामान्यतः एक प्रतीक होता है, कि किसी व्यक्ति या वंश की उत्पत्ति कहाँ से हुई । ब्राह्मणों के अधिकांश वंश ऋषियों से ही उत्पन्न हुए है । इसलिये अधिकांश गोत्रों के नाम ऋषियों के नाम पर ही है ।

मित्रों, उन ११५ ऋषियों के नाम, जो कि ब्राह्मणों के गोत्र भी है.......

१.अत्रि गोत्र,
२.भृगुगोत्र,
३.आंगिरस गोत्र,
४.मुद्गल गोत्र,
५.पातंजलि गोत्र,
६.कौशिक गोत्र,
७.मरीच गोत्र,
८.च्यवन गोत्र,
९.पुलह गोत्र,
१०.आष्टिषेण गोत्र,
११.उत्पत्ति शाखा,
१२.गौतम गोत्र,
१३.वशिष्ठ और संतान (क) पर वशिष्ठ गोत्र, (ख)अपर वशिष्ठ गोत्र, (ग) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (घ)
पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (ड) दिवा वशिष्ठ गोत्र !!!
१४.वात्स्यायन गोत्र,
१५.बुधायन गोत्र,
१६.माध्यन्दिनी गोत्र,
१७.अज गोत्र,
१८.वामदेव गोत्र,
१९.शांकृत्य गोत्र,
२०.आप्लवान गोत्र,
२१.सौकालीन गोत्र,
२२.सोपायन गोत्र,
२३.गर्ग गोत्र,
२४.सोपर्णि गोत्र,
२५.शाखा,
२६.मैत्रेय गोत्र,
२७.पराशर गोत्र,
२८.अंगिरा गोत्र,
२९.क्रतु गोत्र,
३०.अधमर्षण गोत्र,
३१.बुधायन गोत्र,
३२.आष्टायन कौशिक गोत्र,
३३.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, ३४.कौण्डिन्य गोत्र,
३५.मित्रवरुण गोत्र,
३६.कपिल गोत्र,
३७.शक्ति गोत्र,
३८.पौलस्त्य गोत्र,
३९.दक्ष गोत्र,
४०.सांख्यायन कौशिक गोत्र, ४१.जमदग्नि गोत्र,
४२.कृष्णात्रेय गोत्र,
४३.भार्गव गोत्र,
४४.हारीत गोत्र,
४५.धनञ्जय गोत्र,
४६.पाराशर गोत्र,
४७.आत्रेय गोत्र,
४८.पुलस्त्य गोत्र,
४९.भारद्वाज गोत्र,
५०.कुत्स गोत्र,
५१.शांडिल्य गोत्र,
५२.भरद्वाज गोत्र,
५३.कौत्स गोत्र,
५४.कर्दम गोत्र,
५५.पाणिनि गोत्र,
५६.वत्स गोत्र,
५७.विश्वामित्र गोत्र,
५८.अगस्त्य गोत्र,
५९.कुश गोत्र,
६०.जमदग्नि कौशिक गोत्र, ६१.कुशिक गोत्र,
६२. देवराज गोत्र,
६३.धृत कौशिक गोत्र,
६४.किंडव गोत्र,
६५.कर्ण गोत्र,
६६.जातुकर्ण गोत्र,
६७.काश्यप गोत्र,
६८.गोभिल गोत्र,
६९.कश्यप गोत्र,
७०.सुनक गोत्र,
७१.शाखाएं गोत्र,
७२.कल्पिष गोत्र,
७३.मनु गोत्र,
७४.माण्डब्य गोत्र,
७५.अम्बरीष गोत्र,
७६.उपलभ्य गोत्र,
७७.व्याघ्रपाद गोत्र,
७८.जावाल गोत्र,
७९.धौम्य गोत्र,
८०.यागवल्क्य गोत्र,
८१.और्व गोत्र,
८२.दृढ़ गोत्र,
८३.उद्वाह गोत्र,
८४.रोहित गोत्र,
८५.सुपर्ण गोत्र,
८६.गालिब गोत्र,
८७.वशिष्ठ गोत्र,
८८.मार्कण्डेय गोत्र,
८९.अनावृक गोत्र,
९०.आपस्तम्ब गोत्र,
९१.उत्पत्ति शाखा गोत्र,
९२.यास्क गोत्र,
९३.वीतहब्य गोत्र,
९४.वासुकि गोत्र,
९५.दालभ्य गोत्र,
९६.आयास्य गोत्र,
९७.लौंगाक्षि गोत्र,
९८.चित्र गोत्र,
९९.विष्णु गोत्र,
१००.शौनक गोत्र,
१०१.पंचशाखा गोत्र,
१०२.सावर्णि गोत्र,
१०३.कात्यायन गोत्र,
१०४.कंचन गोत्र,
१०५.अलम्पायन गोत्र,
१०६.अव्यय गोत्र,
१०७.विल्च गोत्र,
१०८.शांकल्य गोत्र,
१०९.उद्दालक गोत्र,
११०.जैमिनी गोत्र,
१११.उपमन्यु गोत्र,
११२.उतथ्य गोत्र,
११३.आसुरि गोत्र,
११४.अनूप गोत्र,
११५.आश्वलायन गोत्र !!!!!

कुल संख्या १०८. ही है, लेकिन इनकी छोटी-छोटी ७ शाखा और हुई है ! इस प्रकार कुल मिलाकर इनकी पुरी संख्या ११५ है ! मैं स्वयं वशिष्ठ गोत्र से हूँ ।
आज की पोस्ट में इतना ही ।

गुरुवार, 9 मई 2019

गंगा जी कहिन : अहिल्या का उद्धार (बक्सर गाथा -2)



अहिरौली गंगा घाट (बक्सर , बिहार ) चित्र प्रतीकात्मक है।  
इस श्रृंखला की पहली पोस्ट में आपने पढ़ा, कैसे मेरे और मां गंगा के बीच संवाद शुरु हुआ और मैंने उनसे कैसे बक्सर का प्रारंभिक इतिहास जाना । परंतु मेरा प्रश्न अनुत्तरित रह गया था , कि भगवान राम ने कैसे अहिल्या का उद्धार किया ?  
चूँकि मैं जीवन यापन के लिए मां गंगा से सैकड़ों किलोमीटर दूर बेतवा किनारे ओरछा में रहता हूं और साल में एक या दो बार ही आना हो पाता है, इसलिए मां गंगा से  मुलाकात अधूरी रही और महीनों तक यह प्रश्न मेरे मन में भ्रमण करता रहा, कि आखिर भगवान श्री राम अपने गुरु विश्वामित्र के साथ जब गौतम ऋषि के आश्रम पहुंचे होंगे तो वह दृश्य कैसा होगा और उस स्त्री को जिसको उसके स्वयं तपस्वी पति ने छोड़ दिया हो ,आखिर भगवान ने कैसे उस पर अपनी करुणा दिखाई होगी ?
 मां गंगा की कृपा बहुत जल्दी मुझ पर हुई और उन्होंने अपने तट पर मुझे जल्दी ही बुला लिया और इस बार मैं फिर हाजिर था।  अपने उन्हीं प्रश्नों या जिज्ञासाओं के उत्तर को पाने के लिए और मां गंगा के बक्सर स्थित उसी रामरेखा घाट पर मैं पहुंचा जहां कभी भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र के साथ स्नान करते थे। मैं मां गंगा के आंचल के  एक छोर पर प्रतीक्षारत बैठा था , कि कब मां गंगा अपनी कृपा मुझ पर बरसा दे  ! और महीनों से अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर मुझे मिले।  मां गंगा की कृपा मुझ पर हुई और गंगा की अविरल धारा से आवाज आई-  हे पुत्र ! आखिर तुम्हें आना ही पड़ा !  मैं हाथ जोड़कर नतमस्तक खड़ा था और मैंने कहा कि क्या ऐसा हो सकता है कि आप बुलाएं और आपका यह अनुग्रहित पुत्र आए ना ।
इसके पश्चात मैंने मां गंगा से अपना वही पुराना प्रश्न दोहराया कि आज मां बताइए पाषाण बनी अहिल्या से कैसे मिले प्रभु राम ? 
कुछ देर की शांति  के पश्चात गंगा की लहरें  शांत हुई और कुछ देर के बाद मां गंगा  बोली - मैं  त्रेता युग में पहुंच गई थी  और मुझसे बोली - पुत्र मुझे अच्छे से याद है, वह दिन जब ऋषि गौतम और उनकी पत्नी की  कथा महर्षि विश्वामित्र ने राम को सुनाई और राम ने अहिल्या के लांछन और अपमान की कथा सुनकर अपने गुरुदेव से कहा - कि मैं उस देवी के दर्शन करना चाहूंगा गुरुदेव !  गुरुदेव ने कुछ कहा नहीं केवल गर्व से देखा था राम की ओर और राम के निकट पहुंच कर उनके कंधे पर हाथ रख कर दूर आकाश की ओर निहारा और अपने शिष्य के मुख से उस तिरस्कृत और लोक निर्वासित महिला के लिए देवी का संबोधन सुन बोले कि आज तुम में मैं अपना आप में मेरा विस्तार देख रहा हूं।   कुछ क्षण  तक महर्षि विश्वामित्र आत्म मुग्ध से खड़े रहे और राम की ओर देखते हुए बोले उसे भी तुम्हारी ही प्रतीक्षा है।  राम ! अपमान और उपेक्षा ने उसकी चेतना को लगभग नष्ट कर दिया है, मनुष्यों की छाया से भी वह डरती है , किसी को दूर से ही देख कर छिपने या भागने का प्रयत्न करती है ,डरती है,  न जाने क्या अपशब्द सुनने पड़े ! चेतना का केवल यही प्रमाण शेष रह गया है।  समाज  उसे दूषित करने वालों की लोग पूजा करता है।   ! पुरुष जो ठहरे शक्तिशाली जो ठहरे वे छल कर सकते हैं ! लूट सकते हैं !दूसरों को अपमानित कर सकते हैं ! और जिन्हें चलते लूटते और अपमानित करते हैं, उन्हीं को इन सब के लिए दोषी भी सिद्ध कर सकते हैं।  आश्चर्य है !  जो सिरजता है, गढ़़ता है लोक  को जीवन और अवलंबन देता है, वही सबसे अधिक अपमानित भी होता है वह धरती हो,स्त्री हो या नदी  हो सबकी एक नियति है । महर्षि विश्वामित्र और उनके दोनों होनहार शिष्य धीरे धीरे मेरे किनारे ही उस स्थान पर पहुंचे जहां पर अहिल्या जीवित होते हुए भी पाषाण की तरह शापित थी।  राम ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए थे और दूर किसी स्त्री की छाया दिख रही थी, वह हाथ जोड़े उसी दिशा में चलते रहे लक्ष्मण भी उनका अनुगमन करके उनके साथ उसी तरह चल रहे थे, संभवत उन्हें भी लगा था कि वह व्यक्ति अन्य लोगों से भिन्न है ,  वह ना तो अपने स्थान से हिली थी और ना भागी थी।  संभव है उसे आंखों से कुछ दिख ही  ना रहा हो या संभव है कि उसमें हिलने की शक्ति ही ना रह गई हो ! नहीं ! वह शायद इधर देख ही नहीं पा रही थी,  मौन बैठी थी।  किसी सोच में डूबी थी। उसके निकट पहुंचकर राम उसके चरणों में लेट गए थे और बोली आपने बहुत दुख झेला है मां ! मैं समस्त पुरुष जाति की ओर से आपसे क्षमा मांगने आया हूं ! हे देवी मैं आपको अपमानित करने वाली उस दम्भी पुरुष जाति का प्रतिनिधि आपसे दंड मांगने आया हूं ।
उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।   यदि राम के शब्द उसके कानों में पड़ भी रहे थे, तो उनका अर्थ शायद उसकी समझ में नहीं आ रहा था ! वह जड़ सी एकटक राम को देखी जा रही थी ! नहीं,  उसके कानों में कोई ध्वनि आवश्यक टकराई थी उसने बोलने का प्रयत्न किया था,  होठ हिले थे, पर शब्द बाहर नहीं आ पा रहे थे।   कोई मरणासन्न व्यक्ति जैसे कुछ कहने का प्रयत्न करें और उसकी आवाज एक अस्पष्ट फुसफूसाहट बनकर रह जाए और बहुत ध्यान देने पर कुछ समझ में आए वैसे ही उसने कहा था - मैं लंछिता हूँ !  पतिता हूं !  उसने राम के सिर को अपनी दुर्बल अंगुलियों से कुछ इस तरह छुआ था, जैसे उठाने का प्रयत्न कर रही हो !
                                               और फिर वही शब्द 'पतिता  ' .. आप पतित नहीं हो सकती मां , जो पतित होते हैं,  वह अपने जघन्य कृत्य पर भी अपने को पतित नहीं कहते।  वह अपने पापों  को लेकर गर्व करते हैं , उनकी चेतना अहंकार से इतनी मलिन हो चुकी होती है , कि वे अपने पातकों को समझ ही नहीं पाते।  जिनमें पतित होने का बोध है,  जो उन अहंकारियों द्वारा पातिकी कहीं जाते हैं।  वे या तो अज्ञान अपज्ञान या व्यवस्था के कारण उनके ही पापों और पातकों का बोझ धोने को बाध्य कर दिए जाते हैं । राम ने प्रतिवाद करते हुए कहा था ।
                                             अहिल्या की समझ में कुछ नहीं आ रहा था।   वह केवल आश्चर्य से राम को निहार रही थी राम ने कुछ स्पष्ट स्वर में एक एक शब्द पर रुकते हुए और एक एक शब्द का स्पष्ट उच्चारण करते हुए फिर कहा  " तुम पतित नहीं हो मां तुमने दूसरों के पातक का प्रक्षालन अपनी पीड़ा और यात्रा से किया है । जैसे मां अपनी गोद के बच्चों की मल का प्रक्षालन करती है । हाँ मां, अपने समस्त अहंकार के बावजूद पुरुष जाति स्त्री के सम्मुख एक शिशु ही बना रह जाता है अपनी धात्री और पोषिका को ही दूषित और मलिन करके किलकारियां भरने वाले शिशु से अधिक क्या है वह "
तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आती अहिल्या ने दुर्बल और कांपते हुए स्वर में कहा था।  उसकी समझ में कुछ तो आ ही रहा था,  अन्यथा वाणी में यह परिवर्तन कहां से आता । उसके नकार में भी आत्मविश्वास कहां से लौटता ।  ' कुछ समझ में नहीं आता बेटा" बेटा शब्द का उच्चारण उसने इतने विलगित होकर किया था ,कि अपना संयम ना खोने वाले राम की भी आंखें भर आई थी ।
आततायी  होते हैं मां ,जो दूसरों को कुचलकर अकेले ऊपर उठना चाहते हैं ,सिर तान कर शिखर बनना चाहते हैं।  मैंने शिखरों को भूचाल तो दूर मात्र मेह से खिसकते और लुढकते देखा है । पर्वतों को अपने अहंकार के दरबार से बिना किसी बाहरी ठोकर या आघात के चूर चूर होते देखा है । लेकिन मैंने धरती को द्रवित होकर बहते तो देखा है, पर पतित होते नहीं देखा । स्त्री तो जननी होती है ! वह तो धरती होती है !  मां वह पतित नहीं हो सकती !  पतितो को भी वही संभालती है और वहीं संभाल सकती है । यदि वह पतित होगी तो उसे कौन संभालेगा । राम ने अपने संयत पर कोमल स्वर में कहा था । उस समय वृद्धा के मुख पर हो रहे भाव परिवर्तन को देखकर आश्चर्य हो रहा था उसमें एक ऐसी प्राणशक्ति आ गई थी मानो कोई सूखी लता वर्षा की झड़ी से एक ही क्षण में हरी हो गई हो ।

तुम कौन हो ? कौन हो तुम ? उसने अपने आंतरिक आह्लाद को दबाते हुए भर आई सी आवाज में कहा था । " तुम मनुष्य नहीं हो सकते " नहीं तुम मनुष्य नहीं हो सकते , तुम भगवान हो । तुम पतित पावन भगवान हो , पतितों को भी पवित्र मानने वाले, उपेक्षित और वंचितों को उनका लूटा हुआ सौभाग्य और गौरव दिलाने वाले अवतार हो तुम " वह बढ़कर राम के चरणों में लिपट गई और फूट-फूट कर रोने लगी थी राम बार-बार उठो मां ! उठो देवी !  कहकर बुला रहे थे ! 

मां गंगा की लहरें शांत हो चली थी , इधर मेरा मन अशांत हो चला था , आँखों से अविरल धारा बह रही थी  ......
( क्रमशः अगले भाग में जारी )
चित्रकला - अलका दास 


orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...