रामराजा मंदिर ओरछा का विहंगम दृश्य |
पिछले भाग से अनवरत जारी ...
नमस्कार मित्रों
बहुत दिनों से माँ बेतवा के सानिध्य में नही गया था । मन तो कई बार किया लेकिन नौकरी की व्यस्तता ने पहुचने ही न दिया । खैर जब चांदनी रात में माँ बेतवा के पास पहुचा तो बेतवा की लहरें ग्रेनाईट की चट्टानों से धीरे धीरे टकरा कर रात की शांति को भंग कर रही थी । समय की तरह बेतवा की लहरें बिना रुके अनादि काल से अनवरत अपने सफर पर चले जा रही है । खैर माँ बेतवा ने बड़ी ख़ुशी से स्वागत किया । मैंने पूछा -माँ कहीं नाराज़ तो नही हो ?
वेत्रवती मुस्कुरातें हुए बोली - कोई माँ अपने बच्चों से नाराज़ हो सकती ?
वैसे भी अपनी ओरछा गाथा में प्रभु राम ओरछा आने वाले थे, लेकिन अच्छे कार्यों में बाधाएं तो आती रहती है , पुत्र चन्दन !
माँ बेतवा के मुख से अपना नाम सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई । तो माँ गाथा शुरू करो न ! अब मन अधीर हो रहा है ।
पुत्र अभी तक तुमने सुना कि कैसे ओरछा में कृष्ण भक्त महाराज मधुकर शाह और उनकी रामभक्त महारानी गणेश कुंवर के संवाद के बाद महारानी अपने आराध्य राम को अयोध्या से ओरछा लाने निकल पड़ी थी। महारानी की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवन राम बालरूप में प्रकट हुए ! भगवन राम ने महारानी से कहा - माँ मांगो वरदान ! हम आपकी भक्ति से प्रसन्न हुए !
गणेश कुंवर जू की आँखों से अनवरत ख़ुशी के आंसू बह रहे थे । बोली - प्रभु ! मैं आपको ओरछा ले जाने आई हूँ ।
आज भी रानी गणेश कुंवरि के कक्ष में राम दरबार का जीवंत चित्र है । |
महारानी - प्रभु अगर आप ओरछा नही चलेंगे तो मुझे अपने प्राण त्यागने की अनुमति प्रदान करे ।
भगवान आखिरकार भक्त की जिद के आगे झुक ही गए । बोले - मैं ओरछा चलने तैयार हूँ , लेकिन मेरी कुछ शर्तें है ।
महारानी - प्रभु ! मुझे आपकी सारी शर्तें मंजूर है ।
राम - माँ , मेरी पहली शर्त ये है , कि ओरछा में राजा मैं होऊंगा ।
दूसरी शर्त - आप मुझे यहाँ से पैदल ही अपनी गोद में ओरछा लेकर चलेंगी ।
तीसरी शर्त - आप केवल पुष्य नक्षत्र में ही चलेंगी ।
चौथी शर्त - एक बार जहाँ रख देंगी मैं वहीँ स्थापित हो जाऊंगा ।
भगवन के अयोध्या से ओरछा जाने की बात सुनकर पुरे अयोध्या में हलचल मच गयी । सारे साधू-संत महारानी गणेश कुंवर को रोकने पहुँच गए । तब भगवान बोले - आप सभी अयोध्या वासी चिंतित न हो , मैं प्रतिदिन दिन में ओरछा में रहूँगा , लेकिन रात्रि शयन अपनी जन्मभूमि अयोध्या में ही करूँगा ।
प्रभु राजाराम के दो निवास है खास ।
दिवस ओरछा रहत है, रात अयोध्या वास ।
महारानी जी , तुरंत सन्देश वाहक से सन्देश महाराज मधुकर शाह के पास भिजवाया कि वो प्रभु राम को लेकर ओरछा आ रही है । प्रभु के लिए भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जाये। महरानी जू अपनी गोद में राम लक्षमण की मूर्ति लेकर साधू संतो के जत्थे के साथ भजन कीर्तन करते हुए पुष्य नक्षत्र में ओरछा की और बढ़ने लगी...
बेतवा की लहरें तेजी से उछालने लगी । मनो स्वागतुर हो । मगर अच्छे कार्यो में बाधा तो आती ही रहती है....
कहकर माँ वेत्रवती भगवान के आगमन की ख़ुशी में मगन हो गयी । मैं ग्रेनाइट शिला पर सोच रहा ...कि कैसे प्रभु ओरछा पहुचे ? क्या मधुकर शाह भव्य मंदिर बनवा सके ? क्या महारानी जू प्रभु की सारी शर्तें पूरी कर सकी ? प्रतीक्षा करते है....बेतवा की लहरों की
माँ बेतवा की लहरों से फिर प्रसन्नचित ध्वनि प्रकट हुई ...
महारानी साधू-सन्तों के साथ भजन-कीर्तन करते हुए पुष्य नक्षत्र में ओरछा की और बढ़ रही थी । बेतवा की लहरें प्रभु राम के ओरछा आगमन की कथा सुनाते हुए उल्लास से ऐसे उछल रही थी , मानो समुद्र में ज्वार आ गया हो । मैं ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठ कर बेतवा जल और राम रास दोनों में पुरी तरह भीग चूका हूँ । आशा है आप तक भी छीटें पहुचें होंगे । खैर माँ बेतवा ने कथा आगे बढ़ाते हुए बताया ... इधर पुरी ओरछा नगरी प्रभु राम के स्वागत के लिए उतावली हो रही थी । महाराज मधुकर शाह ने अपने राजप्रासाद के ठीक सामने बहुत ही भव्य चरमंजिला मंदिर का निर्माण प्रारम्भ करवा दिया था । मंदिर काफी ऊँची और पक्की नींव पर बनाया जा रहा था । विशेषज्ञ कारीगर और मजदुर दिन रात और खून पसीना एक किये हुए थे । महाराज ने मंदिर का ऊंचाई और संरचना इस प्रकार बनवाई थी , कि वे और महारानी अपने राजमहल की खिड़की से सोकर उठते ही प्रभु के दर्शन कर सके । ओरछा के लोग भी मंदिर की भव्यता देख कर अचंभित थे। आखिरकार ओरछा के इंतजार की घड़ियां समाप्त हुई और महारानी जू प्रभु राम को ओरछा लेकर आई । लेकिन मंदिर का थोडा सा कार्य शेष था, तो महाराज ने कहा - रानी जू ! एक दो दिन में मंदिर का निर्माण पूरा हो जायेगा । तब तक आप मंदिर के निकट वाले महल में ही प्रभु को भोग लगा दीजिये । महाराज की बात मानकर महारानी ने भी प्रभु को महल में भोग लगाया । मगर प्रभु की लीला कौन समझ सका है ! रानी जू तो प्रभु की एक शर्त भूल ही गयी । "एक बार जहाँ रख दिया मैं वही स्थापित हो जाऊंगा "
और प्रभु राम अपनी शर्त अनुसार वहीँ महल में ही स्थापित हो गए ।
माँ बेत्रवती से मैंने पूछा - आखिर क्यों भगवान ने अपनी ये लीला दिखाई ? क्यों भव्य मंदिर में नही गए ?
पुत्र ! प्रभु की हर लीला का कोई न कोई कारण होता है। वैसे ही इस लीला का भी का कारण है । पहली बात भगवान राम ओरछा में भगवान नही राजा बनकर आये तो क्या राजा कभी मंदिर में रहता है ? नही न ! राजा सदैव महलों में ही रहता है । दूसरा कारण राजा मधुकर शाह का घमंड भी तोडना था , कि प्रभु अयोध्या से ओरछा आये और वो दर्शन के लिए महल के शैय्या से भी नही उतारना चाहते थे !
बस इसी कारण से प्रभु राजा के बनवाये भव्य मंदिर में नही गए । जो प्रतिमा तब अपनी जगह से नही हिली थी, वो आज वर्ष में कई बार विशेष अवसरों पर जैसे - रामनवमी, श्रावण तीज़, रामजानकी विवाह, दीवाली और होली आदि पर्वो पर गर्भगृह से बाहर आती है ।
मैं जिज्ञासु भाव से माँ बेतवा को निहार रहा था । तो माँ ने कहा पूछो अपने मन का प्रश्न ?
मैंने हाथ जोड़कर पूछा - माते ! फिर उस भव्य मंदिर का क्या हुआ ?
भव्य चतुर्भुज मंदिर |
माँ रामराजा मंदिर की ऐसी क्या विशेषता है , जो उसे अन्य राममंदिरों से विशेष बनाती है ?
पुत्र ! सिर्फ ओरछा के रामराजा मंदिर में ही -
राम राजा के रूप में विराजमान है । बाकि जगह भगवान के रूप में है ।
रामराजा को आज भी सुबह-शाम की आरती के समय सशस्त्र सलामी दी जाती है (मध्य प्रदेश सशस्त्र पुलिस बल द्वारा )
यही पर राम सिंहासन पर ढ़ाल-तलवार लिए बैठे है । बाकि जगह धनुषधारी है ।
यहीं पर राम बैठे अन्य मंदिरो में खड़े स्वरुप में है ।
यहां राम बैठे हुए एवं हनुमान जी खड़े है , अन्य जगह इसका विपरीत है ।
सामान्यतः किसी भी मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद मूर्ति अपने स्थान पर स्थिर होती है । यहां साल में कई बार मूर्ति गर्भगृह से बाहर आती है ।
मंदिर का समय भी सामान्य मंदिरों की तरह न होकर बल्कि एक राजा की दिनचर्या के अनुरूप है ।
मैं मंत्रमुग्ध होकर सुन रहा था, कि बेतवा की लहरें शांत होने लगी । मैंने मायूस होकर पूछा - माँ क्या ओरछा की गाथा समाप्त हो गयी ?
जल कलरव से आवाज़ आई - नही पुत्र ! गाथा अब प्रारम्भ हुई है । अभी तो राय प्रवीण की अमर प्रणय कथा , वीरसिंह जूदेव का गौरव , हरदौल के लोकदेवता बनने की कहानी और भी बहुत कुछ बाकी है पुत्र ..बड़े दिनों बाद बेतवा के तट पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । माँ बेत्रवती का वेग पहले से कम था । सूखे के इस मौसम में माँ भी बड़ी उदास सी लग रही थी । माँ तो आखिर माँ ही होती है । अपने बच्चों के दुःख से कैसे न दुखी होती । आखिर इस वर्ष पुरे बुन्देलखण्ड में लोग सूखे से त्रस्त है । कई जगह नदियों और जलस्रोतों पर पहरे लगाना पड़ रहा है । खैर बहुत दिनों बाद मिलने के कारण तो माँ नाराज नही हो सकती क्योंकि वो अपने बच्चों से नाराज नही हो सकती है । कुछ देर के इंतजार के बाद लहरों में हलचल शुरू हो गयी । मेरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गयी । माँ वेत्रवती बोली - पुत्र तुम्हारी व्यस्तता समझ सकती है । मैं तुमसे नाराज़ नही हूँ ।
मैने माँ को प्रणाम किया और पूछा माँ क्या पहले भी इस तरह बुंदेलखंड के लोगो को भी इस तरह सूखे का सामना करना पड़ता था ?
माँ बोली - नही पुत्र , खजुराहो के अद्भुत मंदिरो के निर्माता चंदेल शासको द्वारा पुरे क्षेत्र में सातवी-आठवीं सदी में ही जगह बहुत बड़े और सुन्दर तालाब खुदवायें । आज भी उनके अवशेष है, कई जगह आज भी लोग उन्ही पर निर्भर है । लेकिन आज का मनुष्य अपने स्वार्थ के कारण अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने लगा है । जमीन का पानी तो चूस रहा है, लेकिन ज़मीन में पानी तो पहुँच ही नही रहा है । जो पानी के पुराने स्रोत जैसे तालाब और कुंऐं या अतिक्रमित कर कॉलोनियां बना दी गयी या कचरेदान बना दिए गए है । माँ की बात सुनकर मैं निशब्द हो गया । सच में हमने प्रकृति का दम घोंट दिया । कुछ देर वातावरण में शांति छाई रही ।
फिर माँ बोली बेटा चलो अपनी ओरछा गाथा शुरू करते है ....
अभी तक हम ने ओरछा में महराज मधुकर शाह और महरानी गणेश कुँवर के माध्यम से रामराजा का आगमन सुना था । अब आगे सुनेंगे ओरछा की जन नायिका राय प्रवीण की कथा जिसके आगे मुग़ल बादशाह अकबर को भी झुकना पड़ा।
क्रमशः अगले भाग में जारी
रायप्रवीण : जिसके आगे अकबर को भी झुकना पड़ा ( ओरछा गाथा भाग - 3 )
वर्तमान रामराजा मंदिर में प्रतिष्ठित रामराजा सरकार |
चन्दन जी छीटे क्या पूरा भीग गया माँ बेतवा के जल से आप जो रसोपान हुआ वह अविश्मरणीय है
जवाब देंहटाएंविनोद जी हार्दिक आभार
हटाएंराम की ही लीला थी, जो ओरछा भी आए तो राजा बनकर। इसलिए महल में स्थापित हो गए ओर रामराजा कहलाए।
जवाब देंहटाएंयह सब जानकर व एक विशेष यात्रा पर आकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।
सचिन जी
हटाएंसब राम जी माया है !
सचिन जी
हटाएंसब राम जी माया है !
जय जय
जवाब देंहटाएंप्रभु के प्रेम की दिव्य चर्चा
बिनु प्रेम रीझे नही साँवल राम सरकार
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो !
हटाएंश्याम सुन्दर जी आभार
जय जय
जवाब देंहटाएंप्रभु के प्रेम की दिव्य चर्चा
बिनु प्रेम रीझे नही साँवल राम सरकार
ओरछा गाथा के प्रारम्भिक ड्राफ्ट्स पढ़ते हुए ही हम सब को यह पक्का विश्वास हो गया था कि जब भी यह गाथा अपने सम्पूर्ण रूप मे पाठकों के सम्मुख आएगी, इसे भरपूर सराहा जाएगा। आपकी पहली पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाएं और समर्थन हम सबके इस विश्वास की पुष्टि ही करता है।
जवाब देंहटाएंइस बात की बेहद ख़ुशी और संतोष है कि अब यह गाथा विस्तृत रूप में ब्लॉग के माध्यम से सबके सम्मुख आ रही है, परन्तु मन में कहीं एक हल्का सा रंज भी है कि जहाँ पहले हम कई रात अपने मुसाफ़िरखाना में बहुत बेसब्री से बेतवा की लहरों के मचलने का इंतज़ार करते थे, शायद अब वो सम्भव न हो पाए!
परन्तु आपके प्रयत्नों और लेखन के प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई तथा साथ ही यह गाथा, जो अपने भीतर बहुत से इतिहास और जनश्रुतियों को सहेजे हुए है, शीघ्रताशीघ्र अपनी सम्पूर्णता की तरफ बढ़े... इसके लिए बहुत बहुत शुभकामनाये 💐💐
P.S. - इस गाथा में वर्णित इस जगह के सौंदर्य को महसूस करने के उपरान्त अवश्य ही घुम्मकड़ साथियों का एक आवश्यक पड़ाव ओरछा भी होने वाला है, जिसके लिए आप अवश्य ही साधुवाद के पात्र हैं !
पाहवा जी ये आप सबका प्रेम और प्रभु की कृपा है ।
हटाएंपाहवा जी ये आप सबका प्रेम और प्रभु की कृपा है ।
हटाएंओरछा गाथा के प्रारम्भिक ड्राफ्ट्स पढ़ते हुए ही हम सब को यह पक्का विश्वास हो गया था कि जब भी यह गाथा अपने सम्पूर्ण रूप मे पाठकों के सम्मुख आएगी, इसे भरपूर सराहा जाएगा। आपकी पहली पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाएं और समर्थन हम सबके इस विश्वास की पुष्टि ही करता है।
जवाब देंहटाएंइस बात की बेहद ख़ुशी और संतोष है कि अब यह गाथा विस्तृत रूप में ब्लॉग के माध्यम से सबके सम्मुख आ रही है, परन्तु मन में कहीं एक हल्का सा रंज भी है कि जहाँ पहले हम कई रात अपने मुसाफ़िरखाना में बहुत बेसब्री से बेतवा की लहरों के मचलने का इंतज़ार करते थे, शायद अब वो सम्भव न हो पाए!
परन्तु आपके प्रयत्नों और लेखन के प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई तथा साथ ही यह गाथा, जो अपने भीतर बहुत से इतिहास और जनश्रुतियों को सहेजे हुए है, शीघ्रताशीघ्र अपनी सम्पूर्णता की तरफ बढ़े... इसके लिए बहुत बहुत शुभकामनाये 💐💐
P.S. - इस गाथा में वर्णित इस जगह के सौंदर्य को महसूस करने के उपरान्त अवश्य ही घुम्मकड़ साथियों का एक आवश्यक पड़ाव ओरछा भी होने वाला है, जिसके लिए आप अवश्य ही साधुवाद के पात्र हैं !
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जवाब देंहटाएंजल्द ही दूसरे भाग को भी आपने बेतवा की लहरों की भांति ही जारी कर दिया..... शानदार सीरीज।
जवाब देंहटाएंwww.travelwithrd.com
प्रजापति जी , यहाँ तक की गाथा तो पहले ही मुसफिरनाम..दोस्तों का ग्रुप में प्रस्तुत की जा चुकी है ।इसलिए दूसरे भाग को जल्द प्रस्तुत कर दिया । हाँ अब अगले भाग में जरूर थोडा समय लगेगा ।
जवाब देंहटाएंआभार
प्रांतीय सीमाओं के बंधन को तोड़नते हुए हरदौल लोक देवता के रूप में जनमानस में स्थापित हो गये। कहीं लाला हरदौल तो कहीं हरदे लाला तो कहीं हरदे बाबा के नाम से पूजनीय हुए। आज भी इन्हें ग्राम रक्षक देवता के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। बाकी फिर कभी...
जवाब देंहटाएंप्रांतीय सीमाओं के बंधन को तोड़नते हुए हरदौल लोक देवता के रूप में जनमानस में स्थापित हो गये। कहीं लाला हरदौल तो कहीं हरदे लाला तो कहीं हरदे बाबा के नाम से पूजनीय हुए। आज भी इन्हें ग्राम रक्षक देवता के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। बाकी फिर कभी...
जवाब देंहटाएंललित जी आगे लाला हरदौल जी की कहानी भी आएगी । आज भी ओरछा में हरदौल बैठका और हरदौल समाधि पर लग्न के दिनों में भयंकर भीड़ होती है । हरदौल के भात के लिए असंख्य निमंत्रण पत्र दिए जाते है । मैंने स्वयं दिया है ।
हटाएंललित जी आगे लाला हरदौल जी की कहानी भी आएगी । आज भी ओरछा में हरदौल बैठका और हरदौल समाधि पर लग्न के दिनों में भयंकर भीड़ होती है । हरदौल के भात के लिए असंख्य निमंत्रण पत्र दिए जाते है । मैंने स्वयं दिया है ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-05-2016) को "कुछ जगबीती, कुछ आप बीती" (चर्चा अंक-2342) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार शास्त्री जी
हटाएंयूँ ही स्नेह बनाये रखिये ।
सादर आभार शास्त्री जी
हटाएंयूँ ही स्नेह बनाये रखिये ।
प्रभु की लीला प्रभु ही जाने ,पर आपका वर्णन सराहनीय है चन्दन जी |एक एक शब्द बांधे रखता है ,लाजबाब |
जवाब देंहटाएंआभार रूपेश जी
हटाएंआप की पोस्टों के माध्यम से ही हाल फ़िलहाल ओरछा दर्शन हो रहे हैं !! सादर धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " हिंदी भाषी होने पर अभिमान कीजिये " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शिवम् जी आज भी आपका बेसब्री से इंतजार है ।
जवाब देंहटाएंमुकेश भाई "चन्दन" हो गए हो बिल्कुल.... सुगन्ध दूर दूर तक फैलने लगी है...और जैसा पाहवा जी ने कहा अब "घुमक्कड़ों और भक्तों" की लिस्ट में "ओरछा" का नाम काफी ऊपर आ गया.
जवाब देंहटाएंसचमुच दिल्ली की गर्मी में भी माँ बेतवा के निर्मल छींटों से काफी राहत मिली..
संजय जी सब रामराजा की कृपा है । आभार
हटाएंबहुत सुन्दर मुकेश जी । बुंदेलखंड की सामायिक सूखे की समस्या को भी बहुत खूबसूरती के साथ जोड़ा है आपने ।
जवाब देंहटाएंअब आगे की कड़ियों की प्रतीक्षा है ।
असली लेखन तो वही है , जो कल से आज को जोड़े । यथार्थ को न भूले ।आभार आपका
हटाएंसुन्दर पोस्ट. सुन्दर चित्र
जवाब देंहटाएंआभार ओंकार जी
हटाएंबोलो राजा रामचन्द्र की जय !!!
जवाब देंहटाएंराम राजा सरकार की जय !!!
जवाब देंहटाएंOrcha k itne pas aakar bhi mai itni gahrai se Orcha se nahi jur paya tha jitna Ki aapke blog ne mujhe jor diya hai. Dhanyabad, ek anya romanchkari blog k pratichha me ......
जवाब देंहटाएंआभार प्रवीण जी
हटाएंसब रामराजा की कृपा है !
अनुपम! सार्थक प्रयास! क्षेत्र में प्रचलित विभिन्न जनस्मृतियों को यथासंभव पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्यों से जोड़ते हुए चलें! प्रयास अनवरत चलता रहे। आपकी इस सुन्दर शैली में अगर किसी प्रकार सन्दर्भों का समावेश हो सके तो और अच्छा।अशोक और कारूवाकी प्रसंग, पुष्यमित्र शुंग की विजय गाथा, हेलियोडोरस का भागवत धर्म अपनाना, गुप्त शासकों का स्वर्ण काल, ओरछा में बुंदेलाओं का उत्थान-पतन, केशव का काव्य, मैथिलिशरण गुप्त जी सम्बंधित स्मृतियों, रायप्रवीण की प्रेमगाथा, लक्ष्मीबाई की वीरता , चंद्रशेखर आजाद के अज्ञातवास से जुडी रोचक कड़ियों की प्रतीक्षा रहेगी। प्रिय प्रवीण त्रिपाठी जी द्वारा मार्गदर्शन के लिए भी आभार!
जवाब देंहटाएंत्रिभू नाथ दुबे
दुबे जी आपके सुझावों पर अवश्य विचार करूँगा । आप जैसे प्रबुद्ध पाठको से लेखनी और मजबूत होती है । आगे भी स्नेह बनाये रखिये ।
जवाब देंहटाएंmukesh ji bhut uttam tarike se vivran diya aap ne, kya aap ki koi yah gatha market me pustak ke roop me uplabdh he kya...
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी अभी तो नही लेकिन जल्द ही इसे पुस्तक का रूप देने वाला हूँ ।
हटाएंराम राजा के रूप में विराजमान है । बाकि जगह भगवान के रूप में है ।
जवाब देंहटाएंरामराजा को आज भी सुबह-शाम की आरती के समय सशस्त्र सलामी दी जाती है (मध्य प्रदेश सशस्त्र पुलिस बल द्वारा )
यही पर राम सिंहासन पर ढ़ाल-तलवार लिए बैठे है । बाकि जगह धनुषधारी है ।
यहीं पर राम बैठे अन्य मंदिरो में खड़े स्वरुप में है ।
यहां राम बैठे हुए एवं हनुमान जी खड़े है , अन्य जगह इसका विपरीत है ।
सामान्यतः किसी भी मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद मूर्ति अपने स्थान पर स्थिर होती है । यहां साल में कई बार मूर्ति गर्भगृह से बाहर आती है ।
मंदिर का समय भी सामान्य मंदिरों की तरह न होकर बल्कि एक राजा की दिनचर्या के अनुरूप है ।ओरछा को आपने एक "मस्ट विजिट " प्लेस बना दिया है ! लेखनी में जादू के साथ साथ ये भी जरुरी है कि उस जगह को विश्व पटेल पर ले आया जाए ! वो काम आपकी लेखनी बहुत बेहतरीन तरीके से कर रही है ! साधुवाद पांडेय जी
आभार योगी जी ।
हटाएंसब रामराजा की कृपा है ।
सुन्दर. महारानी गणेश कुंवारी अपने साथ तो केवल राम लल्ला को ही लेकर आई थी. क्या लक्ष्मण की मूर्ति भी थी क्या चतुर्भुज मंदिर की तस्वीर बेजोड़ है.
जवाब देंहटाएंआभार सर ।
हटाएंमहारानी राम और लक्ष्मण दोनों की मूर्तियां लेकर आई थी । जो आज भी राम विवाह पंचमी ( दिसम्बर में) पर बारात के साथ निकलती है ।
आज दोनों भाग पढ़े..., उम्दा लेखन के साथ वृतान्त काफ़ी रोचक लगे।
जवाब देंहटाएंआगामी भाग की प्रतीक्षा में...
आभार सर
हटाएंलोकाभिरामम् रणरंगधीरम् ! राजीवनेत्रम् रघुवंशनाथम् !! कारुण्यरूपम् करुणाकरंतम् !
जवाब देंहटाएंश्री रामचंद्रम् शरणं प्रपद्ये !!
सुंदर एवं सादुवाद ...पुष्प बबीना
जय हो
हटाएंbahut sunder
जवाब देंहटाएंShukriya ji
हटाएंइतना सुंदर लेखन की पढ़ने में मग्न होने के कारण कब भीग गए पता भी नही चला
जवाब देंहटाएंजय हो
हटाएं।।ॐ।।
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक रुचिकर राम जी के प्रति समर्पण निष्ठा
से पूर्ण आलेख ।
शब्दो के प्रभावी उपयोग की क्षमता का श्री मुकेश पांडेय चंदन ने भरपूरता से सजाया है ।
अभिनंदन
राम राजा को दंडवत प्रणाम !!!
।। ॐ।।
आभार तिवारी
हटाएं