रविवार, 21 अक्तूबर 2012

तीन रूप में दर्शन देने वाली माँ हरसिद्धि !

माँ हरसिद्धि


नमस्कार मित्रो ,
अभी पुरे देश में शारदीय नवरात्र बड़े धूम - धाम से मनाया जा रहा है , हिन्दू लोग माँ दुर्गा की उपासना  में रत है . आज मैं आप को बुंदेलखंड की एक प्रसिद्द देवी स्थल " माँ हरसिद्धि , रानगिर " के बारे में बताना चाहता हूँ .
माँ हरसिद्धि स्वयं प्रकट होने के साथ ही , सभी की मनोकामना पूर्ण  करने के लिए विख्यात है . मनोकामना पूर्ण करने के कारन ही उन्हें हरसिद्धि कहा जाता है . मान्यता है कि माँ हरसिद्धि एक दिन में तीन रूप में लोगो दर्शन देती  है . सुबह बालिका  के रूप में , दोपहर में युवती के रूप में और शाम  के समय वृद्धा के रूप में माँ हरसिद्धि की प्रतिमा से दर्शन होते है .वर्तमान में नया भव्य  मंदिर बना है , जबकि इसके पूर्व एक किले (गढ़ ) के रूप में था .  
माँ हरसिद्धि मंदिर
माता के प्रकट होने के बारे में एक कथा प्रचलित है - बहुत पहले रानगिर गाँव में बच्चों के साथ जंगल की ओर से एक दिव्य बालिका खेलने आती थी .गाँव के बच्चे घर जाकर उस दिव्य बालिका की चर्चा करते तो ग्रामीणों को आश्चर्य होता . एक बार सभी ने उस बालिका के बारे में पता लगाने का निश्चय किया , नियत समय पर बालिका खेलने आई , तो ग्रामीणों ने उसे पकड़ने का प्रयास किया . लेकिन वो बालिका अंतर्धान हो गयी . फिर कुछ दिनों बाद ग्रामीणों को सपने में बालिका आई और बताया मैं हरसिद्धि माता हूँ , और गाँव स्थित कुएं में मेरी प्रतिमा है , जिसे कच्चे सूत से निकलकर उसकी स्थापना करो , हाँ ध्यान रखना एक बार जहाँ रख डोज मैं वही स्थापित हो जाउंगी . दुसरे दिन ग्रामीणों ने कुएं में कच्चा सूत डाला तो एक प्रतिमा उसमे चिपक कर बाहर आई . लोगो में पास में ही एक नीम के पेड़ के नीचे प्रतिमा रखा , तो प्रतिमा वही स्थापित हो गयी , बाद में ग्रामीणों द्वारा बहुत प्रयास किये गए , कि किसी तरह गड्ढा खोद कर  भी प्रतिमा निकाल ली जाये , ताकि व्यवस्थित तरीके से मंदिर बना कर प्रतिमा प्रतिष्ठापित की जाये . लेकिन सारे प्रयास विफल रहे . आज भी गड्ढा खोदे जाने के कारण मंदिर में प्रवेश करने हमें प्रतिमा सामान्य धरातल से नीचे दिखती है . माँ हरसिद्धि की प्रतिमा का मुख नदी और जंगल की ओर है .(जहाँ से वह बालिका आती थी ) मंदिर काफी प्राचीन बताया जाता है .  
                                                            एक जनश्रुति के अनुसार - पहले नवरात्री में ब्रम्ह मुहूर्त में बाघ माँ के दर्शन करने आता  था और बिना किसी को हानि पहुचाये जंगल लौट जाता था . हालाँकि अब न तो घना जंगल बचा है , और न ही जंगल में बाघ बचे  है . बारहमासी  सड़क बन जाने से  जंगल तेजी कटा . मैं जब बचपन में जाता था , और अब जाने पर फर्क साफ़ नज़र आता है . जंगल वन्यजीवों के नाम पर बन्दर, लंगूर और सियार ही दिखते  है. हाँ पक्षियों के कुछ दुर्लभ प्रजातियाँ थोड़े प्रयास से जरुर दिख जाती है . मंदिर के किनारे ही देहार नदी का विहंगम तट है . वैसे तो ये एक छोटी नदी है , लेकिन अद्भुत है , इसके किनारों पर जब आप बड़ी-बड़ी नदी द्वारा काटी गयी चट्टानों को देखते है , तो लगता है , कि शायद चट्टानों को भी इसने हार दी , इसीलिए इसे " दे हार " कहा गया . नदी के दोनों किनारों पर बंदरों और लंगूरों की अठखेलियाँ मन मोह लेती है . गौर करने की बात है , कि यहाँ के बन्दर शैतान नहीं है . 
                                                           नदी के दुसरे ओर घने जंगल में " बूढी रानगिर " देवी का मंदिर है . जो स्टाप डेम पर करके जाया जाता है . जंगल में और भीतर  जाने पर " गौरी दांत " नामक देवी स्थल है . कहा जाता है , कि भगवान् शिव जब माता सती का शव लेकर विलाप कर रहे थे , और भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से  शव के ५१ टुकड़े गिरे , जहाँ बाद में ५१ शक्ति पीठो की स्थापना हुई . उन्ही में से यह भी एक स्थल है , यहाँ सती का दांत गिरा था , इसलिए इसे गौरिदांत कहा जाता है . हालाँकि यह स्थान दुर्गम होने के कारण सामान्य जन की पहुच से दूर है . इस स्थान पर प्रागैतिहासिक काल के साक्ष्य भी है . जो इसकी प्राचीनता का प्रमाण है .  
दर्शनार्थियों की भीड़
                                           रानगिर में प्रतिवर्ष चैत्र माह की नवरात्री में मेला लगता है . जिसमे बुंदेलखंड ही नहीं दूर -दूर से लोग आते है .     माँ हरसिद्धि का धाम मध्य प्रदेश के सागर जिला मुख्यालय से ५० किमि० दूर विंध्यांचल पर्वतमाला की सुरम्य पहाड़ियों के मध्य देहार नदी के तट पर स्थित है . यहाँ पहुचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन सागर है , जो बीना -कटनी रेलखंड पर है . सागर से नवरात्री के समय बस और जीप आसानी से मिल जाती है .लेकिन अन्य दिनों लोग स्वयं के वाहन या निजी वाहन रिजर्व करके जाते है . सागर से राष्ट्रिय राजमार्ग क्र० २६ (झाँसी -लखनदों ) पर नरसिहपुर की तरफ लगभग ३० किमि० पर बांये ओर 8 किमि० जंगल  में पक्की सड़क से जाया जा सकता  है .

3 टिप्‍पणियां:

ab apki baari hai, kuchh kahne ki ...

orchha gatha

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