जब कभी किसी ग़ज़ल की गहराई में डूबता हूँ , या फिर किसी कब्बाली को सुनते हुए दिल झूम उठता है , या किसी भी भारतीय संगीत को सुनते हुए ढोलक - तबले की थाप या सितार की झंकार से दिल नाचने लगता है , तो मन उस महान आत्मा के सम्मान में अपने आप नतमस्तक हो जाता है , जिसकी पहेलियाँ बचपन में खूब बुझी थी . जी हाँ , आज मैं बात कर रहा हूँ , भारतीय इतिहास के उस महान व्यक्ति की जो अपने आप को " तूती -ए- हिन्द " यानि हिंदुस्तान का तोता कहता था . क्योंकि रोम -रोम में हिन्द बसा था . कभी -कभी जब सोचता हूँ , अमीर खुसरो के बारे में तो लगता है , कि क्या सचमुच कोई व्यक्ति इतना प्रतिभाशाली हो सकता है ? या फिर ये इतिहास की कोरी गप्प है ?
मगर जब मैंने इतिहास की कई किताबो को खंगाला तो मालूम चला , कि सचमुच खुसरो इतने प्रतिभाशाली थे . खुसरो का जन्म एटा जिले के पटियाली ( उत्तर प्रदेश ) में 1253 ईस्वी में हुआ था .खुसरो का पूरा नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरौ था . दुनिया खुसरो को सितार , ढोलक ,तबले जैसे वाद्य यंत्रो और ग़ज़ल , कव्वाली तथा कौल , तलबाना, तराना , और ख्याल के अविष्कारक के नाम से जानती है , मगर खुसरो अपने वतन हिंदुस्तान से बेइंतिहा मोहब्बत करते थे . भले ही खुसरो के पूर्वज मध्य एशिया से आये तुर्क हो मगर खुसरों खुद को " हिंदुस्तान का तोता " (तुते-ए- हिन्द ) कहलाना पसंद करते थे .
खुसरो अपने पीर (गुरु ) सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया को बहुत मानते थे . कहते है , कि जिस दिन
हज़रत निजामुद्दीन औलिया इस दुनिया से रुखसत हुए , और ये खबर खुसरो को पता चली तो खुसरों ने भी अपने प्राण त्याग दिए. आज भी दिल्ली में हज़रत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के बगल में खुसरों की भी मजार बनी है . खुसरो की मृत्यु १३२५ ईस्वी में हुई थी .
खुसरों को हिंदी , फारसी , अरबी , पंजाबी और संस्कृत भाषाएँ आती थी , और उर्दू के तो खुसरो जनक ही कहे जाते है . खुसरों जितने भारत में लोकप्रिय है , उतने ही आज भी पाकिस्तान में भी लोकप्रिय है . नुसरत फ़तेह अली खान जैसे कई बड़े गायकों ने खुसरों की गजलें और कब्बालियाँ गायीं है . खुसरो लोक काव्य में भी काफी लोकप्रिय रहे है . जहाँ उनके सूफी कलाम आध्यात्मिकता की ओर ले जाते है , वही उनकी मुकरियां और पहेलियाँ आज भी जनमानस के मन से रची बसी है . मैंने तो बचपन में खुसरो की कई पहेलियाँ रट रखी थी . उनमे से कई तो आज भी याद है -
१- एक थाल मोती से भरा , सबके सर पे औंधा धरा
थाल चारो ओर फिरे, मोती उसमे से एक न गिरे .
२- सावन - भादों बहुत चालत है , माघ-पूष में थोरी
एरी सखी मैं तुझसे पूछूं , बूझ पहेली मोरी
३- हरी थी , मन भरी थी ,
राजा जी के बाग़ में दुशाला ओढ़े खड़ी थी
( आपने भी ये पहेलियाँ पढ़ी - सुनी होगी , इसलिए इनके जवाब मैं नही लिख रहा हूँ . देखते है , कितने लोग इनके जवाब दे पाते है , अगर आपको नही पता तो दुसरो से पूछिए ....)
खुसरों बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति होने के साथ ही हाजिर जवाब भी थे . एक बार खुसरों कहीं जा रहे थे , तो उन्हें प्यास लगी गाँव के पनघट में चार पनिहारिन पानी भरती हुई उन्हें नज़र आई , तो खुसरो ने उनसे पानी पिलाने की प्रार्थना की . खुसरो की राजसी पोषक देखकर पनिहारिनों ने खुसरों से परिचय पूछा . तो खुसरों ने जब अपना परिचय दिया . लेकिन पनिहारिनें ये मानने तैयार ही न थी , कि उनके सामने अमीर खुसरो खड़े है . फिर पनिहारिनों ने खुसरो को कविता सुनाने को कहा , तो खुसरो ने उनसे विषय पूछा . तब एक ने खीर , दूसरी ने चरखा , तीसरी ने कुत्ता और चौथी ने ढोल पर कविता सुनाने को कहा . खुसरों ने तुरत दो पंक्तियाँ बनाकर सुना दी -
खीर बनाई जतन से , चरखा दिया चलाय
आया कुत्ता खा गया , तू बैठी ढोल बजाय
और खुसरो पानी पीकर चलते बने . खुसरों मध्यकालीन इतिहास के एकमात्र व्यक्ति है , जिन्होंने सात सुल्तानों का न केवल शासन काल देखा , बल्कि उनके दरबारी भी रहे है . खुसरो की सबसे ज्यादा पूछ-परख मोहमद - बिन - तुगलक के समय रही है .
खुसरों की मुकरियां भी लोगों में लोकप्रिय रही है , इनमे से एक आपके समक्ष प्रस्तुत है -
रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥
नंगे पाँव फिरन नहिं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥
वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय॥
मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥
जब माँगू तब जल भरि लावे। मेरे मन की तपन बुझावे॥
मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥
बेर-बेर सोवतहिं जगावे। ना जागूँ तो काटे खावे॥
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥
अति सुरंग है रंग रंगीलो। है गुणवंत बहुत चटकीलो॥
राम भजन बिन कभी न सोता। क्यों सखि साजन? ना सखि तोता॥
मगर जब मैंने इतिहास की कई किताबो को खंगाला तो मालूम चला , कि सचमुच खुसरो इतने प्रतिभाशाली थे . खुसरो का जन्म एटा जिले के पटियाली ( उत्तर प्रदेश ) में 1253 ईस्वी में हुआ था .खुसरो का पूरा नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरौ था . दुनिया खुसरो को सितार , ढोलक ,तबले जैसे वाद्य यंत्रो और ग़ज़ल , कव्वाली तथा कौल , तलबाना, तराना , और ख्याल के अविष्कारक के नाम से जानती है , मगर खुसरो अपने वतन हिंदुस्तान से बेइंतिहा मोहब्बत करते थे . भले ही खुसरो के पूर्वज मध्य एशिया से आये तुर्क हो मगर खुसरों खुद को " हिंदुस्तान का तोता " (तुते-ए- हिन्द ) कहलाना पसंद करते थे .
खुसरो अपने पीर (गुरु ) सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया को बहुत मानते थे . कहते है , कि जिस दिन
हज़रत निजामुद्दीन औलिया इस दुनिया से रुखसत हुए , और ये खबर खुसरो को पता चली तो खुसरों ने भी अपने प्राण त्याग दिए. आज भी दिल्ली में हज़रत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के बगल में खुसरों की भी मजार बनी है . खुसरो की मृत्यु १३२५ ईस्वी में हुई थी .
खुसरों को हिंदी , फारसी , अरबी , पंजाबी और संस्कृत भाषाएँ आती थी , और उर्दू के तो खुसरो जनक ही कहे जाते है . खुसरों जितने भारत में लोकप्रिय है , उतने ही आज भी पाकिस्तान में भी लोकप्रिय है . नुसरत फ़तेह अली खान जैसे कई बड़े गायकों ने खुसरों की गजलें और कब्बालियाँ गायीं है . खुसरो लोक काव्य में भी काफी लोकप्रिय रहे है . जहाँ उनके सूफी कलाम आध्यात्मिकता की ओर ले जाते है , वही उनकी मुकरियां और पहेलियाँ आज भी जनमानस के मन से रची बसी है . मैंने तो बचपन में खुसरो की कई पहेलियाँ रट रखी थी . उनमे से कई तो आज भी याद है -
१- एक थाल मोती से भरा , सबके सर पे औंधा धरा
थाल चारो ओर फिरे, मोती उसमे से एक न गिरे .
२- सावन - भादों बहुत चालत है , माघ-पूष में थोरी
एरी सखी मैं तुझसे पूछूं , बूझ पहेली मोरी
३- हरी थी , मन भरी थी ,
राजा जी के बाग़ में दुशाला ओढ़े खड़ी थी
( आपने भी ये पहेलियाँ पढ़ी - सुनी होगी , इसलिए इनके जवाब मैं नही लिख रहा हूँ . देखते है , कितने लोग इनके जवाब दे पाते है , अगर आपको नही पता तो दुसरो से पूछिए ....)
खुसरों बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति होने के साथ ही हाजिर जवाब भी थे . एक बार खुसरों कहीं जा रहे थे , तो उन्हें प्यास लगी गाँव के पनघट में चार पनिहारिन पानी भरती हुई उन्हें नज़र आई , तो खुसरो ने उनसे पानी पिलाने की प्रार्थना की . खुसरो की राजसी पोषक देखकर पनिहारिनों ने खुसरों से परिचय पूछा . तो खुसरों ने जब अपना परिचय दिया . लेकिन पनिहारिनें ये मानने तैयार ही न थी , कि उनके सामने अमीर खुसरो खड़े है . फिर पनिहारिनों ने खुसरो को कविता सुनाने को कहा , तो खुसरो ने उनसे विषय पूछा . तब एक ने खीर , दूसरी ने चरखा , तीसरी ने कुत्ता और चौथी ने ढोल पर कविता सुनाने को कहा . खुसरों ने तुरत दो पंक्तियाँ बनाकर सुना दी -
खीर बनाई जतन से , चरखा दिया चलाय
आया कुत्ता खा गया , तू बैठी ढोल बजाय
और खुसरो पानी पीकर चलते बने . खुसरों मध्यकालीन इतिहास के एकमात्र व्यक्ति है , जिन्होंने सात सुल्तानों का न केवल शासन काल देखा , बल्कि उनके दरबारी भी रहे है . खुसरो की सबसे ज्यादा पूछ-परख मोहमद - बिन - तुगलक के समय रही है .
खुसरों की मुकरियां भी लोगों में लोकप्रिय रही है , इनमे से एक आपके समक्ष प्रस्तुत है -
रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥
नंगे पाँव फिरन नहिं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥
वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय॥
मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥
जब माँगू तब जल भरि लावे। मेरे मन की तपन बुझावे॥
मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥
बेर-बेर सोवतहिं जगावे। ना जागूँ तो काटे खावे॥
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥
अति सुरंग है रंग रंगीलो। है गुणवंत बहुत चटकीलो॥
राम भजन बिन कभी न सोता। क्यों सखि साजन? ना सखि तोता॥
निसंदेह:अमीर खुसरो : एक अद्भुत महान हिंदुस्तानी थे
जवाब देंहटाएंशानदार,उम्दा प्रस्तुति,,,
RECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
वाह.....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट....
रोचक और जानकारी देती हुई प्रस्तुति...
आभार
अनु
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
Bahut sundar
जवाब देंहटाएंअच्छा सारगर्भित आलेख | साधुवाद
जवाब देंहटाएंवंदना जी , रारावी जी और सक्सेना जी आभार , इसी तरह स्नेह बनाये रखियेगा
जवाब देंहटाएंमहान इंसान अमीर खुसरो के बारे में रोचक जानकारी समाहित किये बहुत सुंदर आलेख.
जवाब देंहटाएंabhar rachna ji
जवाब देंहटाएंकोई शक नहीं की खुसरो की रचनाओं का आज भी कोई जवाब नहीं है ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इतनी गहरी जानकारी और कवि का ....
shukriya yashwant ji aur digambar ji ....isi tarah sneh banaye rakhiye
जवाब देंहटाएंसुभानल्लाह.......
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