मंगलवार, 20 अगस्त 2013

कुछ तसवीरें हमारे पूर्वजों की ....



एक दिन की बात है कि कुछ प्राकृतिक तसवीरें खीचने का बहुत मन हो रहा था , तो मैंने अपना डिजिटल कैमरा और बाइक उठाई और चल पड़ा सागर (मध्य प्रदेश ) के अपने घर से 16  कि मी  दूर स्थित प्राकृतिक और धार्मिक स्थान गढ़पहरा कि ओर... हनुमान जी के मंदिर के लिए प्रसिद्द यह पहाड़ी  स्थान बरसात के समय बहुत खूबसूरत लगता है . ... वहां पहुचकर हमारे पूर्वजो और हनुमान जी के समजातों  ने  मन मोहा तो सोचा क्यों न इन्ही कप अपने कैमरें में कैद किया जाया ...और कुछ प्यारी से तसवीरें आपके लिए लाया हूँ
सबसे पहले जब मैं मंदिर की सीढियों की ओर बढ़ा तो ये  महाशय मेरे हाथ में कैमरा देख कर सामने खड़े हो गये , कि पहले मेरी फोटो खीचो ..फिर आगे जाने दूंगा ...मरता क्या न करता ..इनकी फोटो खीचनी ही पड़ी ....जंगल में बन्दर से बैर थोड़ी ले सकता था !

अब एक कि फोटो खीची तो अगली सीढ़ी पर छोटे उस्ताद बैठे मिले ..अब इन्होने भी कसम खाली थी , कि मैं भी फोटो खिच्वाऊंगा ...लो भाई अब तुम भी खिचवा लो ..कौन सी मेरी रील ख़तम हो रही है ...


लगता है ये महाशय पहले भी कई बार फोटो खिच चुके है , इसलिए स्टाइल में भी है और देखो ...स्माइल भी दे रहे है ...है न !

अरे ..ये क्या हो रहा है ? मैं भी तो देखू ये क्या कर रहे है ? ऐ ...इन्सान की औलाद ..इधर भी बत्ती चमका अपुन भी अमलतास की डाल पे बैठा है ...समझा क्या ?

हुह्ह्ह .....मुझे क्या ....लेना ..मैं लाइम लाइट में नही आने वाला ...मेरी फोटो खीचनी ही थी , तो आते बसंत के मौसम में जब इस पलाश में प्यारे प्यारे फूल खिले थे ..अब आये हो ......मुझे नही खीचनी फोट-वोटो ....मैं चला ...

श... श्ह्ह्ह  आवाज नही ....अभी बिजी हूँ ....कुछ ढूंढ रहा हूँ 

अरे ...देखो मेरी छलांग लगते हुए फोटो लेना .....बिलकुल हीरो स्टाइल में ....ये है जलवा  !

अरे यार ....थोडा से चुक गया ..वरना बड़ी शानदार छलांग लगाई थी... चलो कोई बात नही इसे डिलीट कर देना ..चेहरा नही दिखाऊंगा ..अरे यार समझते नही पीछे देखो ..कितना सुन्दर पेड़ दिख रहा है ...



हाँ ...यही वाला पेड़ .. है न बहुत खुबसूरत नजारा ?



मम्मी ...मम्मी ..देखो ...फोटो खिच रही है ....अपनी भी खिच्वाओ न !

चलो कोई बात ..मम्मी तो तैयार नही ..मेरी ही खीच दो ...ये स्टाइल सही है न  ?                                                तो दोस्तों कैसी लगी ये चित्र मय प्रस्तुति   ?                     


शनिवार, 17 अगस्त 2013

अब पहले जैसा सावन नही आता ...!

भारतीय साहित्य में बसंत के बाद जिस मौसम की चर्चा की गयी है ....वो है श्रावण या सावन मास ! 
हो भी क्यों न , आखिर प्रकृति भी इस महीने पर बहुत मेहरबान जो होती है . सावन के वर्णन में कवियों ने कोई कसर नही छोड़ी है .
याद करे मुकेश का गाया हुआ वो मधुर गीत -  
सावन का महीना, पवन करे सोर
 पवन करे शोर पवन करे सोर 
पवन करे शोर अरे बाबा शोर नहीं सोर, सोर, सोर 
पवन करे सोर.
 हाँ, जियरा रे झूमे ऐसे, जैसे बनमा नाचे मोर हो 
सावन का महीना … मौजवा करे क्या जाने, हमको इशारा जाना कहाँ है पूछे,
 नदिया की धारा मरज़ी है ...
या फिर ..
लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है....
या फिर 
सावन बरसे...धड़के दिल...क्यों ना घर से निकले दिल...

 सावन का महिना प्यार का महिना कहलाता था .....पर प्यार तो अब बारहमासी हो गया है . 
भगवान् शिव का प्रिय महिना भी सावन ही है ....इसी महीने में लोग सावन सोमवार का व्रत रखते है ...इसी महीने में कांवरिये कांवर में जल भर कर भगवन शिव का जलाभिषेक करने मीलो पैदल चल कर जाते है . 
सावन के महीने में ही पपीहा स्वाति नक्षत्र का जल पीने पिहू-पिहू  गाता फिरता है ...
सावन के महीने में ही किशोरियां कजरी तीज का व्रत रखती है ..
 लेकिन मैं आज सावन की कसक की बात करना चाहूँगा .......
अब सावन पहले जैसा नही रहा ...
न ही सावन का इंतजार होता है . ...
न बागों में झूलें पड़ते है ...
न परदेस से पिया के आने का इन्तजार होता है ...
न कई दिनों की झड़ी लगती है ....
न सावन के मेले भरते है , जिसमे बच्चे साल भर के लिए खिलोने लेते थे ...
न सावन में  गाँव  में लोग विदेशिया या आल्हा गाते है ..... 
न बहनों के राखी बांधने जाने के लिए मायके जाने की वो बेकरारी रहती है ....
न नागपंचमी पर अखाड़ो में कुश्तियां होती है ....
न सावन में बेटी-बहनें अपने हाथों में पहले की तरह मेहंदी रचाती है ...
न सावन में बारिश के पानी में कागज की कश्तियाँ छोड़ी जाती है ..
न सावन की लड़ी में भीगने का मन होता है ....
आखिर बाजारवाद की अंधी दौड़ ...आधुनिकता के नाम पर ....पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से हम क्यों अपनी संस्कृति ....अपनी प्रकृति ....से दूर होते जा रहे है ....
अब क्यों नही पहले जैसा सावन आता है ???



शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

पुलिस प्रशिक्षण की प्यारी प्यारी यादें ...

प्रणाम मित्रो .
सर्वप्रथम आप सभी को स्वतंत्रता  दिवस की पश्चातवर्ती हार्दिक शुभकामनाएं !
पूरे दो महीने आप से दूर रहने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ, दरअसल मैं २ माह के पुलिस प्रशिक्षण के लिए जवाहर लाल पुलिस अकादमी , सागर  ( म० प्र० ) गया था . दो महीने प्रशिक्षण में बड़ा मजा आया ! पूरे मध्य प्रदेश से आये अपने बैच के लोगो के साथ विभाग के  अनुभवी ( पदोन्नत/प्रमोटी ) लोगो का साथ खूब भाया. इन दो महीनो में बहुत कुछ सीखा. और सबसे ख़ुशी की बात तो ये थी , कि प्रशिक्षण मेरे अपने शहर सागर में ही था .
अब आप सभी से भी इसके अनुभव बाँटना जरुरी है न !
तो प्रशिक्षण कि शुरुआत हुई कटोरा कट हेयर कटिंग के साथ .....

प्रशिक्षण के दौरान मौज मस्ती में भी कोई कमी नही रही ...

ये है सागर की प्रसिद्द लाखा बंजारा झील जिसके किनारे जवाहर लाल पुलिस अकादमी बनी हुई है ...इस तरह के ज्ञान देने की मेरी आदत यह भी बनी रही ..साथ में है मनोज प्रजापति ( ज्ञानार्जन करते हुए ..)

ये है हमारे पूरे बैच की चांडाल चौकड़ी ! इसमें बांयें से मनोज प्रजापति ( सीधी में पदस्थ मगर सीधे नही है ), फिर नीलिमा ( देखने में सबसे छोटी मगर मस्ती में सबकी माँ है ), इसके बाद हमारे बैच के सबसे कमउम्र विक्रम (बेताल ) और सबसे बांये संजीव जैन ( जिन्हें अपने मक्कार होने का गर्व था )



परेड ( सलामी शास्त्र )  करते हुए हम लोग ....और सबसे आगे हमारे कमांडर मनोज प्रजापति

ये है जलवा ...रिवाल्वर और पिस्टल दोनों एक साथ ....हैंड्स अप
और कंप्यूटर भी सीखा हमने ....

  
जब ज्यादा पी० टी० और परेड हो जाती तो थ्योरी की क्लास में थोड़ी झपकी भी लेने में नही चुकते थे . 




ये है हमारा बैच और हमारे प्रशिक्षक

पीछे दिख रही बिल्डिंग -हमारा होस्टल है .

इन महीनो में हमने शारीरिक प्रशिक्षण में पी० टी०  परेड तो थ्योरी में भारतीय दंड संहिता , दंड प्रक्रिया संहिता , आबकारी अधिनियम , एन डी पी एस एक्ट ,  आचरण नियम , विभागीय नियम  इत्यादि सीखा .
और आखिर में दीक्षांत समारोह के बाद विदाई .....






orchha gatha

बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)

एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...