जी हाँ दोस्तों , शीर्षक सही है और मेरी मानसिक स्थिति भी अभी ठीक है। मध्य प्रदेश के सागर शहर के मतदाताओ ने महापौर (meyar) के पद के लिए एक किन्नर "कमला बुआ " को रिकॉर्ड मतों से जीताया है .जी हाँ मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार और केंद्र में कांग्रेस की सर्कार होने के बाद भी लोगो ने एक निर्दलीय किन्नर को भरी मतों से जिताया है । ये हाल है की , भाजपा की कमजोर स्थिति देख कर खुद मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को आना पड़ा मगर उनकी अपील भी मतदाताओ को लुभा नही पाई । मुख्यमंत्री ने कहा था की अगर यहाँ से यदि भाजपा प्रत्याशी जीतती है , तो वे सागर को विशेष पैकेज देंगे । मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी सागर को केंद्र सरकार से भारी अनुदान और सहायता राशि दिलाने का वादा भी कांग्रेस को तीसरे नंबर पर जाने से नही रोक पाया । गनीमत है की कांग्रेस की जमानत बच गयी। मतदान के दिन सभी मतदाता खुलकर कह रहे थे की मेरी वोट चाभी (कमला बुआ का चुनावचिंह) को गया है ।
अब प्रश्न ये उठता है की ,
आखिर मतदाता ने क्यों एक किन्नर को चुना ?
क्या कमला बुआ इतनी लोक प्रिय थी ?
क्या भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी कमजोर थे ?
या फिर जनता कुछ नया चाहती थी ?
क्या लोग भाजपा के नगर निगम में लगाक्तार दस सालो के कार्यकाल से नाखुश थी ?
सबसे पहले मेरे ख्याल से जनता ने कमला बुआ किन्नर को इसलिए चुना की, वो इसके माध्यम से इन दोनों पार्टियों को ये सन्देश देना चाहती है की वो अपनी नपुंसकता को त्यागे ! अपनी जेबे तो भरे मगर विकास का भी ध्यान रखे ! ऐसा नही है की इतिहास में सिर्फ सागर से ही कोई किन्नर जीता हो , इससे पहले मध्य प्रदेश में ही कटनी से महापौर कमला मौसी और सुहागपुर से शबनम मौसी (शबनम मौसी के ऊपर इसी नाम से फिल्म भी बन चुकी है , जिसमे शमनं मौसी की भूमिका सागर के ही आशुतोष राणा ने निभाई थी )विधायक बन चुकी है । मगर इन दोनों की कोई उल्लेखनीय भूमिका नही रही .कमला मौसी कत्निमे कुछ खास नही कर पाई , शबनम मौसी ने कांग्रेस के विधायक को विधान सभा में चप्पल मारी !
मगर सागर में कमला बुआ की स्थिति जरा दूसरी है। कमला बुआ पहले से ही समाजसेविका रही है । इन्होने स्वयं अपने खर्चे से कई गरीब लड़कियों की शादी धूमधाम से कराइ है । विकलांगो की न केवल सहायता की है बल्कि उनके अधिकारों के लिए राष्ट्रिय विकलांग पार्टी का गठन किया। दैनिक भास्कर द्वारा किये गये एक टॉक शो में कमला बुआ ने जनता के गंभीर सवालो ने सटीक जवाब दिए जबकि दोनों पार्टी के उम्मीदवार हिचकिचा गये थे।
खैर आज के दिन सागर में लोग जश्न और ख़ुशी मना रहे है । दोहरी ख़ुशी ! भारत अपना पहला मैच श्री लंका से संघर्ष पूर्ण मुकाबले में जीता , और महपौर के चुनाव में कमला बुआ जीती। दोनों मुकाबले में रिकॉर्ड बने (एक में रनों का , दुसरे में मतों का ) दोनों में छक्को की भूमिका महत्वपूर्ण रही !
खैर इश्वर से दुआ है की किन्नर राजनीति में आये , मगर हमारे नेतायो विकास कर के दिखा दे की इश्वर ने भले उन्हें परपक्वता नही दी है , मगर असल में नपुंसक कौन है !
अब बारी है अपने पुछल्ले की
कमला बुआ के कुछ नारे :-
- कमल नही कमला चाहिय, पंजा नही छक्का चाहिय !
- नकली नही असली चाहिय !
- न भैया से न भाभी से , अब निगम खुलेगा चाभी से !
- जब गूंजेगी कमला की ताल , कंपेगी दिल्ली , हिलेगा भोपाल !
शुक्रिया अपनी टिपण्णी से हमारा उत्साह वर्धन करते रहिये
आपका मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
विचारों की रेल चल रही .........चन्दन की महक के साथ ,अभिव्यक्ति का सफ़र जारी है . क्या आप मेरे हमसफ़र बनेगे ?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
orchha gatha
बेतवा की जुबानी : ओरछा की कहानी (भाग-1)
एक रात को मैं मध्य प्रदेश की गंगा कही जाने वाली पावन नदी बेतवा के तट पर ग्रेनाइट की चट्टानों पर बैठा हुआ. बेतवा की लहरों के एक तरफ महान ब...

-
जटाशंकर और भीमकुण्ड की रोमांचक यात्रा नमस्कार मित्रो, बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर पोस्ट लिखने का मन हुआ है. कारण कार्य की व्यस्तता और फेस...
-
ब्राह्मणों की कहानी अपनी एक पुरानी पोस्ट में ब्राह्मणों के बारे जानकारी दी थी, जिसे पाठकों द्वारा जबरदस्त प्रतिसाद मिला । मित्रों, ...
-
बुंदेलखंड भारत के इतिहास में एक उपेक्षित क्षेत्र रहा है, जब हम भारतीय इतिहास को पढ़ते हैं ,तो हमें बुंदेलखंड के बारे में बहुत कम या कहें...
बहुत बढिया!! पढ कर अच्छा लगा.....इन्हें भी मौका जरूर मिलना चाहिए क्योकि हो सकता है यह दोनो से बेहतर हो.....और देश का कुछ भला कर सके...
जवाब देंहटाएं